Saturday, November 28, 2020

गरीबी कभी भी शिक्षा में बाधक नहीं 

 गरीबी में जीवन जीने वाले व्यक्तियों को ना तो अच्छी शिक्षा की प्राप्ति होती है ना ही उन्हें अच्छी सेहत मिलती है. भारत में गरीबी देखना बहुत आम सा हो गया है क्योंकि ज्यादातर लोग अपने जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर सकते हैं। ]

गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा है और अशिक्षा से अज्ञानता पनपती है. गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा तो छोडिये सामान्य शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाते हैं. शिक्षा का अधिकार सभी लोगों को है लेकिन गरीबी के कारण ऐसा नहीं हो पाता है. हमारी भारत सरकार गरीब लोगों के लिए कई सारे अभीयान चलाती है लेकिन अशिक्षित होने के कारण गरीबों तक उस अभियान की जानकारी नहीं पहुँच पाती है। 

 

हम जिस युग में जी रहे हैं उसमे आधुनिक तकनीकी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है जिसे सिखने या इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा की अहमियत होती है. शिक्षा हम सभी के उज्जवल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है. हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं. ये तो हम हमेसा से सुनते आये हैं की शिक्षा पर दुनिया के हर एक बच्चे का अधिकार है. देश के विकास के लिए प्रत्येक बच्चे का शिक्षित होना बेहद जरुरी है।

 

हमारे देश की हालत को सुधारने का एक मात्र रास्ता है शिक्षा. गरीबी एक ऐसी समस्या है जो हमारे पुरे जीवन को प्रभावित करने का कार्य करती है. गरीबी एक सामाजिक समस्या है जो इंसान को हर तरीके से परेशान करती है. इसके कारण एक व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर आदि जैसी सारी चीजें ख़राब हो जाती है. आज के समय में गरीबी को दुनिया के सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना जाता है।

 

गरीब लोगों में जागरूकता और जानकारी का अभाव तथा उनका गैर प्रगतिशील नज़रिया एक ऐसा मुलभुत कारण है जिसे गरीबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जानकारी तथा जागरूकता की कमी के कारण गरीब लोग सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं. इसलिए प्राथमिक शिक्षा भी गरीबों के लिए बहुत ही जरुरी होता है।

 

बेहतर शिक्षा सभी के लिए जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है. यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है. आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व क्या है ये गरीब परिवार और पिछड़ी जाती के लोगों को बताना अति आवश्यक है तभी वो अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

 

शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चलायी जा रही है ताकि सभी की शिक्षा तक पहुँच संभव हो. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के महत्व और लाभों को दिखाने के लिए टीवी और अखबारों में बहुत से विज्ञापनों को दिखाया जाता है क्योंकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी और शिक्षा की ओर अधूरी जानकारी के कारण पढाई करना नहीं चाहते हैं।

 

सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य सभी को शिक्षित करके उन्हें अपने पैर पर खड़ा करना है जिससे समाज का कल्याण हो सके. इसके अलावा बालक बालिका का अंतर समाप्त करना, देश के हर गांव शहर में प्राथमिक स्कूल खोलना और मुफ्त शिक्षा प्रदान करना, निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, स्कूल ड्रेस देना, शिक्षकों का चयन करना, उन्हें लगातार प्रशिक्षण देते रहना, स्कूलों में अतिरिक्त कक्षा का निर्माण करना आदि सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य में शामिल हैं। बालिका छात्रों तथा कमजोरवर्गों के बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है. डिजिटल दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।

 

स्कूली शिक्षा बिना अमीरी गरीबी का भेदभाव किये सभी बच्चों को मिलनी चाहिए क्योंको ये सभी के जीवन में एक महान भूमिका निभाती है. शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जैसे तिन प्रभागों में विभाजित किया गया है. शिक्षा के सभी भागों का अपना महत्व और लाभ है. प्राथमिक शिक्षा आधार तैयार करती है जो जीवन भर मदद करती है।

 

माध्यमिक शिक्षा आगे के अध्ययन के लिए रास्ता तैयार करती है और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा भविष्य और पुरे जीवन का अंतिम रास्ता तैयार करती है. उचित शिक्षा भविष्य में आगे बढ़ने के बहुत सारे रास्ते बनाती है. यह हमारे ज्ञान स्तर, तकनिकी कौशल और नौकरी में अच्छी स्थिति को बढाकर हमें मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से मजबूत बनाता है। पहले भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत सख्त थी और सभी वर्गों के लोग अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे. ज्यादा पैसे लगने की वजह से विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना बहुत कठिन था. लेकिन अब शिक्षा प्रणाली में बदलाव किये गए हैं जिससे शिक्षा में आगे बढ़ना सरल और आसान हो गया है।

 

शिक्षा के कारण ही कई तरह के आविष्कार हुए हैं. इन अविष्कारों से मनुष्य का जीवन और भी आसान हो गया है. अच्छी शिक्षा की वजह से अच्छे अच्छे इंजीनियर, डाॅक्टर, वैज्ञानिक एवं व्यवसायी आदि बनते हैं, जो समाज को काफी कुछ देते हैं जिनसे अनगिनत लोगों को कई फायदे मिलते हैं। शिक्षा के वजह से ही व्यापार का विकास होता है और देश की आय में बढ़ोतरी होती है. अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना जैसे कई सारे मुद्दों के बारे में सोचने समझने की काबिलियत प्रदान करता है।

 

समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा तथा भेदभाव जैसे ऐसी समस्याएं हैं जो आज के समय में विश्व भर को प्रभावित कर रही है. इसे देखते हुए हमें इन कारणों की पहचान करनी होगी और इनसे निपटने की रणनीति बनाते हुए समाज के विकास को सुनिश्चित करना होगा क्योंकि गरीबी का सफाया समग्र विकास के द्वारा ही संभव है।

 

दिल की आवाज सुनो राही

दिल की आवाज  सुनो  राही

बंद   न   करना   आवाजाही

 

आपस  में  गर टकराए कभी

बिन झगड़ा क्षमा करना तभी

 

झगड़ा कर कौन खुश हुआ है

जीत  में  गम  दबाए  हुआ  है

 

रात  बिलखती  ही  रहती  है

दिन   सहमा  हुआ  रहता  है

 

अफसोस  रहता  है  उम्र  भर

दिल ने कहा था झगड़ा न कर

 

बात मान लिया  होता  अगर

तो  ऐसे  ना  रहता  उम्र  भर

 

अब  जीना  दुश्वार  लगता है

मरने  से  भी   जी  डरता  है

 

उधेड़बुन   में   है    ये    राही

दिल की आवाज  सुनो  राही ।

                 ✍️ ज्ञानंद चौबे

                  केतात , पलामू

                       झारखंड

भारतीय संविधान की गौरव गाथा 

 डॉ. भीम राव आंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता माना जाता है. निःसंदेह उन्होंने समानुभूति के साथ संविधान को रूप, आकार, स्वरूप, चरित्र प्रदान किया. लेकिन वास्तविकता यह है कि संविधान के निर्माण में केवल डॉ. भीम राव आंबेडकर की ही भूमिका नहीं थी. भारत का संविधान एक साझा पहल का नतीजा है। ]


भरतीय परिप्रेक्ष्य से अक्सर हमारे सामने यह तथ्य आता है कि भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर हैं, लेकिन यह एक अधूरा तथ्य है. डॉ. आंबेडकर ने भारत के संविधान में न्याय, बंधुत्व और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र के भाव को स्थापित करने में केन्द्रीय भूमिका जरूर निभाई थी, किन्तु वे संविधान के अकेले निर्माता या लेखक नहीं थे।


जहां तक संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया का सवाल है, इसमें व्यापक रूप से संविधान सभा के कई सदस्यों ने ऐसी भूमिका निभाई थी, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. मसलन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया था, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मूलभूत अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए बनाई गई समिति का समन्वय किया था. आदिवासी समाज के हकों पर जयपाल सिंह ने बहुत अहम भूमिका निभाई, तो वहीं इसे भारतीय दर्शन से जोड़ने में डॉ. एस. राधाकृष्णन की भूमिका बहुत अहम रही।


29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने मसौदा (प्रारूप) समिति के गठन का निर्णय लिया. इस समिति की भूमिका के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि "परिषद् (संविधान सभा) में किए गए निर्णयों को प्रभाव देने के लिए वैधानिक परामर्शदाता (बी एन राव) द्वारा तैयार किए गए भारत के विधान (संविधान) के मूल विषय की जांच करना, उन सभी विषयों के जो उसके लिए सहायक हैं या जिनकी ऐसे विधान में व्यवस्था करनी है और कमेटी द्वारा पुनरावलोकन किए हुए विधान के मसौदे के मूल रूप को परिषद् के समक्ष विचारार्थ उपस्थित करना।


यह भी एक सच है कि डॉ. आंबेडकर ने 25 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में संविधान का अंतिम मसौदा प्रस्तुत करते हुए जो कहा, उसे भारत ने भुला दिया है. उन्होंने कहा था कि “जो श्रेय मुझे दिया जाता है, उसका वास्तव में मैं अधिकारी नहीं हूं. उसके अधिकारी बी एन राव हैं, जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता है. और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का एक मोटे रूप में मसौदा बनाया. कुछ श्रेय मसौदा समिति के सदस्यों को भी मिलना चाहिए, जिन्होंने 141 दिन तक बैठकें कीं और उनके नए सूत्र खोजने के कौशल के बिना तथा विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहनशील तथा विचारपूर्ण सामर्थ्य के बिना इस संविधान को बनाने का कार्य इतनी सफलता के साथ समाप्त न हो पाता।


सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक एस.एन. मुखर्जी को है, बहुत ही जटिल प्रस्थापनाओं को सरल से सरल तथा स्पष्ट से स्पष्ट वैध भाषा में रखने की उनकी योग्यता की बराबरी कठिनाई से की जा सकती है. इस सभा के लिए वे एक देन स्वरूप थे. उनकी सहायता न मिलती तो इस संविधान को अंतिम स्वरूप देने में इस सभा को कई और वर्ष लगते।


यदि यह संविधान सभा विभिन्न विचार वाले व्यक्तियों का एक समुदाय मात्र होती, एक उखड़े हुए फर्श के समान होती, जिसमें हर व्यक्ति या हर समुदाय अपने को विधिवेत्ता समझता तो मसौदा समिति का कार्य बहुत कठिन हो जाता. तब यहां सिवाए उपद्रव के कुछ नहीं होता. सभा में कांग्रेस पक्ष की उपस्थिति ने इस उपद्रव की संभावना को पूरी तरह से मिटा दिया. इसके कारण कार्यवाहियों में व्यवस्था और अनुशासन दोनों बने रहे. कांग्रेस पक्ष के अनुशासन के कारण ही मसौदा समिति यह निश्चित रूप में जानकर कि प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन का क्या भाग्य होगा, इस संविधान का संचालन कर सकी. अतः इस सभा में संविधान के मसौदे के शांत संचालन के लिए कांग्रेस पक्ष ही श्रेय की अधिकारी है।


यदि इस पक्ष के अनुशासन को सब लोग मान लेते तो संविधान सभा की कार्यवाही बड़ी नीरस हो जाती. यदि पक्ष के अनुशासन का कठोरता से पालन किया जाता तो यह सभा "जी हुज़ूरों" की सभा बन जाती. सौभाग्यवश कुछ द्रोही थे. श्री कामत, डॉ. पी.एस. देशमुख, श्री सिधावा, प्रो. सक्सेना और पंडित ठाकुर दास भार्गव थे. इनके साथ-साथ मुझे प्रो. के.टी. शाह और पंडित हृदयनाथ कुंजरू का भी उल्लेख करना चाहिए. जो प्रश्न उन्होंने उठाए, वे बड़े सिद्धान्तपूर्ण थे. मैं उनका कृतज्ञ हूं. यदि वे न होते तो मुझे वह अवसर नहीं मिलता, जो मुझे इस संविधान में निहित सिद्धांतों की व्याख्या करने के लिए मिला और जो इस संविधान के पारित करने के यंत्रवत कार्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था।


चूंकि भारतीय संविधान के बारे में यह कहा जाता है कि यह ब्रिटिश उपनिवेशवादी व्यवस्था के तहत बनाए गए भारत शासन अधिनियम (1935) की प्रतिलिपि है. इसके लिए डॉ. भीम राव आंबेडकर की सभा में खूब आलोचना भी हुई. इस विषय में पंडित बाल कृष्ण शर्मा ने कहा कि इस विषय पर जो कुछ मैं कह सकता हूं, वह यह कि मसौदा समिति, डॉ. आंबेडकर और उन सबके लिए जिन्होंने डॉ. आंबेडकर का साथ दिया, यह गौरव की बात है कि वे संकीर्णता की किसी भी भावना से प्रेरित नहीं हुए. आखिर हम एक संविधान बना रहे हैं. हमारे सामने आधुनिक प्रवृत्तियां, आधुनिक कठिनाइयां और आधुनिक समस्याएं हैं. अपने संविधान में हमें इन सबके लिए उपबंध करना हैं और इस कार्य के लिए यदि हमने भारत शासन अधिनियम का सहारा लिया, तो हमने कोई पाप नहीं किया है।


संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 26 नवम्बर 1949 को, यानी उस दिन, जब संविधान आत्मार्पित किया गया, सभा की कार्यवाही का समापन करते हुए कहा कि "संविधान के संबंध में जिस रीति को अपनाया, वह यह थी कि सबसे पहले "विचारणीय बातें" निर्धारित की, जो लक्ष्य मूलक संकल्प के रूप में थी, जिसके ओजस्वी भाषण द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया था और जो अब हमारे संविधान की प्रस्तावना है. इसके बाद संविधानिक समस्याओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए कई समितियां नियुक्त की गईं।


भारत का संविधान एक साझा, प्रतिबद्ध और मूल्य आधारित प्रक्रिया से निर्मित विधान है. इसमें विचारों, समुदायों और संस्कृतियों के साथ-साथ विविध राजनीतिक धाराओं की सक्रिय भागीदारी रही है. यह संविधान केवल राज्य व्यवस्था के नियम ही निर्धारित नहीं करता है, बल्कि व्यक्तियों की सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक आज़ादी की व्याख्या भी करता है. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि यह एक सहभागी और सहिष्णु प्रक्रिया के साथ बनाया गया संविधान था।


Wednesday, November 18, 2020

भारतीय संस्कृति में पर्व एवं त्योहार एकता के प्रतीक हैं 

जीवन को हंसी खुशी व रिश्तों को मजबूत बनाने में त्योहारों का अहम् योगदान है। भारत त्योहारों का देश है। साल के हर दिन कोई न कोई त्योहार यहां मनाया जाता है। त्योहार खुशियां बांटने और पूरे समाज को जोड़ने का काम करते हैं। ईद , तीज ,गणेश चतुर्थी ,कृष्ण जन्माष्टमी ,दशहरा ,होली, दीवाली ,क्रिसमस ,छठपूजा ,ओणम ,महाशिवरात्रि, नवरात्री ,मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, कुम्भ मेला आदि।


अनगिनत त्योहर और मेले हमें एकता और भाईचारे का सन्देश देते है। त्योहारों पर लगने वाले मेले कौमी एकता और सांप्रदायिक सोहाद्र के अनूठे उदहारण है। इन पर्वों और मेलों में समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल हो कर दुनियां को भारत की बहुरंगी संस्कृति झलक दिखाते है।
मेले एवं त्योहार हमारी समृद्ध संस्कृति, परम्परा एवं रीति-रिवाजों के परिचायक हैं। विविधता में एकता के प्रतीक मेले और उत्सवों के आयोजन से हमारी संस्कृति को संजोने और सहेजने को बल मिलता है, साथ ही साथ नई पीढ़ी को हमारी स्मृद्ध संस्कृति एवं परम्पराओं का भी ज्ञान होता है। मेलों के आयोजन से भाईचारा, सद्भाव कायम रहता है। मेले ग्रामीण समाज को जीवंत बनाते है । मेलों के माध्यम से अनेक प्रकार की वस्तुये एक स्थान पर बिकने आती हैं और साथ ही दर्शकों मनोरंजन होता है।


जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। मेले और त्योहार भारत का एक बड़ा आकर्षण है। यह इस देश की जीवंत संस्कृति को तो दिखाते ही हैं साथ ही यह भारत के पर्यटन उद्योग में भी बहुत खास जगह रखते हैं। भारत की समृद्ध संस्कृति के असली रंग दिखाने के अलावा ये मेले और त्योहार देश में सैलानियों के आने के लिए आकर्षण पैदा करने में बहुत महत्व रखते हैं। ये त्योहार देश के लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। वास्तव में एक दूसरे के निकट आने और आपसी सहयोग और सौहार्द की भावना ने मेलों को जन्म दिया जिसकी झलक वर्तमान भारत में भी देखी जा सकती है।


भारत मेलो और तीज त्योहारों का देश है। यहाँ दुनियाँ के सबसे ज्यादा त्योहार मनाये जाते है। यही पर दुनियाँ में सबसे ज्यादा मेलो का आयोजन होता है । इनमे से कुछ मेले तो दुनिया के सबसे बड़े व विशाल मेलो में शुमार है जिन्हें देखने पूरी दुनिया से हर साल लाखों लोग भारत आते है । भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक न जाने कितने प्रकार के मेले भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना अपना महत्व है। मेलों को संस्कृति और रंगीन जीवन शैली का पैनोरमा कहा जा सकता है। इन मेलों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का अद्वितीय और दुर्लभ सामजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता। मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं।


मेला स्थानीय लोक संस्कृति, परंपरा और लोक संस्कारों के विविध रूपों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। भारत में मेले, लोकसंस्कृति और परंपरा के माध्यम से आस्था, उमंग और उत्सव की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मेलों का आयोजन प्राय किसी पर्व या त्योहार के अवसर पर किया जाता है। मेला हमारे समाज को जोड़ने तथा हमारी संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित रखने में अहम् भूमिका निभाता है। यह उत्पादकों और खरीददारों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराता है। खाने-पीने से लेकर मौज-मस्ती की सभी चीजें मेले को आकर्षक बनाती हैं। मेलों में कहीं लोकगीतों की लहरियां हमारे दिल के तार को झंकृत करती हैं तो कहीं लोकनृत्य के माध्यम से हमारे तन-बदन में थिरकन पैदा होने लगती है।