Monday, November 16, 2020

भाई दूज मनाने की रोचक कथा

रक्षाबंधन पर्व के समान भाई दूज पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है|  इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है| भाई दूज का पर्व भाई बहन के रिश्ते पर आधारित पर्व है, भाई दूज दीपावली के दो दिन बाद आने वाला एक ऐसा उत्सव है, जो भाई के प्रति बहन के अगाध प्रेम और स्नेह को अभिव्यक्त करता है| इस दिन बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए कामना करती हैं|

 

इस बार भाई दूज का त्योहार 16 नवंबर को मनाया जाएगा। यह त्योहार भाई बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाई का तिलक करके उनकी लंबी उम्र और उन्नति की प्रार्थना करती हैं। भाई भी अपनी बहन के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेते हैं। इस त्योहार की पौराणिक कथा सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमुना से जुड़ी हुई है।

 

शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव और पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं - एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थी जिसके कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण किया और अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव नहीं था, परंतु यम और यमुना दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था।

 

यमदेव अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन काम की अधिकता के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। एक दिन यम अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए उनसे  मिलने उनके घर चले गए। जब यमुना ने अपने भाई को देखा तो खुशी से प्रफुल्लित हो उठीं। भाव विभोर होकर यमुना ने अपने भाई के लिए व्यंजन बनाए औऱ उनका आदर सत्कार किया। अपने प्रति बहन का प्रेम देखकर यमराज को अत्यंत प्रसन्नता हुई। उन्होंने यमुना को खूब सारी भेंटें दीं।

 

जब चलने का समय हुआ तो बहन से विदा लेते समय यमराज ने बहन यमुना से कहा कि अपनी इच्छा का कोई वरदान मांग लो। तब यमुना ने अपने भाई के इस आग्रह को सुनकर कहा कि,अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। कहते हैं कि इसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष भाईदूज का त्यौहार मनाया जाता है।

 

गाय माता के पूजा का पर्व गोवर्धन पूजा

गोवर्धनका अर्थ है गौ संवर्धन। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। जो यह संदेश देता है कि हमारा सम्पूर्ण जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है। इसलिए हमें प्रकृति का धन्यवाद देना चाहिए। इस दिन विशेष रुप से गाय माता की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन कोई दुखी है तो साल भर दुखी रहेगा। मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को मनाना चाहिए। इस दिन स्नान से पूर्व तेला लगाना चाहिये। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दारिद्र का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भगवान के चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह सालभर सुखी और समृद्ध रहता है।

               दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन और गौ पूजा का विशेष महत्व है। आज गोवर्धन पूजा का पावन पर्व है, मान्यता है कि इस दिन गाय की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। आज गोवर्धन पूजा के साथ भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाएगी। शिल्पकार और श्रमिक वर्ग गोवर्धन पूजा के दिन दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज अपने घर- व्यवसाय के विकास व वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं।

            दीपावली के उत्सव के चौथे दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था। अन्नकूट पूजा को अत्यधिक कृतज्ञता, जुनून और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है।

 


भाई- बहन के प्यार व स्नेह का प्रतीक : भैया दूज

भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज का त्योहार पूरे भारत ने बड़े उत्साह व उल्लास से मनाया जाता है। रक्षाबंधन की तरह भैया दूज का त्यौहार भाई बहन के अनन्य प्रेम और स्नेह का प्रतीक है ।  

  दीपावली के पांच दिवसीय त्योहार के अंतिम पांचवे  दिन भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है ।इसको यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विवाहिता बहन अपने भाई को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती है और भाई को तिलक कर,मुंह मीठा कराकर कलाई के कलावा बांधती है।और भाई की दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है। एवं भाई भी अपनी बहन को उसके मान सम्मान की रक्षा करने व उसका साथ देने का वादा करता है ।और बहन को उपहार देता है। इससे भाई-बहन के अटूट प्यार व स्नेह में प्रगाढ़ता आती है।   

     प्राचीन काल से भाई-बहन के परस्पर प्यार व स्नेह का पर्व भाई दूज का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है । रक्षाबंधन के बाद बहन भाई दूज की बेसब्री से इंतजार करती है,और विश्वास होता है उसका भाई कहीं भी,कितनी दूर क्यों ना हो,भाई दूज पर जरूर उसके घर आएंगे।आधुनिकता के दौर में भी आज भी भाई -बहन के अनन्य प्यार,स्नेह और  विश्वास का प्रतीक यह त्यौहार मनाया जा रहा है।

*पौराणिक मान्यताएं*

   पौराणिक कथाओं के अनुसार

सूर्य देव की पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को बड़े प्यार और स्नेह से अपने घर भोजन करने के लिए कई बार आग्रह किया। लेकिन यमराज हर बार बहन की बात को टालते रहे।आखिर कार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंच गए, बहन यमुना अपने भाई यमराज को अचानक अपने घर आया देखकर बहुत खुश हो जाती है ।यमुना अपने भाई का बड़े प्यार-स्नेह से आदर सत्कार करती है ।यमराज अपनी बहन यमुना का अपने प्रति स्नेह और आदर सत्कार देखकर भाव विभोर हो जाते हैं। यमराज बहन के प्यार व स्नेह से बहुत खुश होते हैं औरअपनी बहन यमुना से वर मांगने के लिए कहते हैं।

 यमुना भाई यमराज से वर मांगती है की है कि आप हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेरे घर आकर भोजन करें और जो भी बहन प्यार और जो भी बहन स्नेह से अपने भाई को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित कर, भाई को तिलक करके भोजन कराती है।उसको आपका भय ना हो।यमराज बहन को तथास्तु कहकर यम लोक चले जाते है।उस दिन से यह प्राचीन परंपरा भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक भैया दूज का त्यौहार पूरे देश में बड़े उत्साह और स्नेह से मनाया जाता है।

अपने ढँग से जीने दो


माना हम छोटे बच्चे हैं,

अपनी भी इक्षाएं हैं।

अपने भी तो कुछ सपने हैं,

अपनी भी आशाएं हैं।

 

खेल खिलौने अजब अनूठे,

अपनी भी कुछ बातें हैं।

उजले-उजले दिन हैं अपने,

सपनों बाली रातें हैं।

 

मन पतंग की तरह हमेशा,

उच्च उड़ाने भरता है।

अपने ढँग का काम अनोखा,

करने को मन करता है।

 

इंद्रधनुष सा रंग-रँगीला,

अपना तो संसार है।

जिसमें राज कुँवर के जैसा,

अपना तो किरदार है।

 

लेकिन कोई नहीं समझता,

अपनी सोच थोपते हैं।

उनके जैसा बनूँ, करूँ मैं,

हमसे यही बोलते हैं ।

 

कैसे उनको समझाऊँ मैं,

अमृत रस को पीने दो।

बचपन की मस्ती के ये दिन,

अपने ढँग से जीने दो।