Monday, October 5, 2020

डाकघर में कल लगेगा  आधार के लिए विशेष शिविर

राहत भरी खबर उरई प्रधान डाकघर से
दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो रिपोर्ट
उरई- स्कूल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्र छात्राओं से लेकर अन्य कार्य के लिए आधार कार्ड बनवाने वाले लोगों के लिए राहत भरी खबर है ।



आधार कार्ड में संशोधन कराने व नया आधार बनवाने के लिए मंगलवार 6 अक्टूबर को डाकघर की तरफ से आधार के लिए विशेष शिविर का आयोजन किया जाएगा। डाकघर की ओर से महा लॉगिन डे के रूप में मनाते हुए सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक प्रधान डाकघर उरई में आधार कार्ड संशोधन व नया आधार बनाने का कार्य किया जाएगा ।
जिले में इन दिनों आधार कार्ड बनवाने और संशोधन को लेकर मारामारी मची हुई है । कई डाकघर व बैंक की शाखाओं में आधार का कार्य या तो कम हो रहा है या हो ही नहीं रहा है इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रधान डाकघर में विशेष शिविर का आयोजन किया जा रहा है जिससे लोगों की परेशानियों को कुछ कम किया जा सके सहायक  डाक अधीक्षक उरई राजीव तिवारी ने बताया कि इसके लिए विशेष काउंटरों की व्यवस्था प्रधान डाकघर उरई में की गई है उन्होंने कहा कि 6 अक्टूबर को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक आधार बनाने व संशोधन का करने का कार्य शुरू किया जाएगा ।


Saturday, October 3, 2020

भारतीय सेना को अपनी सेकुलर पहचान पर गर्व है

पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सेना के खिलाफ और विशेष रूप से सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) में तैनात वरिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल तरनजीत सिंह के खिलाफ राज्य प्रायोजित दुर्भावनापूर्ण सोशल मीडिया अभियान चलाया गया। देश के भीतर धर्म आधारित असहमति को भड़काने में लगातार असफल होने के बाद पाकिस्तान हताश है। उसने अब भारतीय सेना के भीतर विभाजन की कोशिश कर रहा है।


भारतीय सेना संस्थान को बदनाम करने के ऐसे कुत्सित प्रयासों को स्पष्ट रूप से खारिज करती है।


भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संगठन है, और इसके सभी अधिकारी, सैनिक अपने धर्म, जाति, पंथ या लिंग का ख्याल किए बिना राष्ट्र की सेवा करते हैं।



पीड़ा

क्या कहूं बहुत ही पीड़ा है

ये हृदय भयानक जलता है

इस जग में ऐसा घोर भयानक

अधम कर्म क्यों पलता है

क्यों बार-बार नारी का पावन

आंचल मैला होता है

सुन घोर भयानक कृत्यों को

पत्थर का मन भी रोता है

घनघोर अधम इन पापों का

क्या कोई भी उपचार नहीं

इन दुष्टों, नीचों, अधमों का

होता अब क्यों संहार नहीं

यूं भीड़ जुटाकर, शोक मनाकर

चुप हो जाएंगे बस हम

कुछ दिन ऐसे ही रो लेंगे

पर पाप कभी न होंगे कम

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

 

हमारी बीमारी को आदर्श नहीं चाहिए, हम झेल लेंगे! 

आदर्श गाँव के बारे में तो सबने सुना ही होगा कि किसी रियायतदार के हाथ एक गाँव को गोद लिया जाता है, मगर हमारा गाँव अपंग, अनाथ तो नहीं! कि उसे गोद लेना पड़े। हम अपनी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी बीमारियों से निपटने में स्वयं सक्षम हैं। देखा नहीं है क्या? कि जब हमारे बीच अनबन होती है, तो हम गाली-गलौच से अनबन का निपटारा कर ही लेते हैं। इससे भी अगर बात नहीं बनती तो लाठी-डंडों से समझौता हो ही जाता है, ऐसे में जब हम अपने मामलों को स्वयं येन-केन-प्रकारेण निपटा ही लेते हैं, तो हमारे गाँव को पुलिस स्टेशन जैसे आदर्श संरक्षण की क्या आवश्यकता? हमारा गाँव तो स्वयं में ही एक आदर्श है कि अपने मामलों को स्वयं निपटा लेता है। बाहरी हस्तक्षेप हमें बर्दाश्त नहीं! क्योंकि हमारा गाँव परिवार सरीखा है, अपंग, अनाथ नहीं कि कोई आए और उसे गोद लेकर आदर्श बनाए। चलो एक बार यह मान भी लेते हैं कि हमारे गाँव को आदर्श गाँव बनाने की जरूरत है, पर क्या यह बताएंगे? कि यह आदर्श गाँव बनाने की जरूरत क्यों केवल चुनावी दंगलों में ही महसूस होती है? क्या चुनावी दौर से पहले व बाद हमारा गाँव अपंग व अनाथ नहीं हो सकता? 

यह एक गाँव है, साहेब! यह अपना अच्छा-बुरा सब समझता भी है, निपटता भी है, यह कोई दूध पीता बच्चा नहीं कि खिलौना दिखाकर बहका लोगे और यह गोद में कूद पड़ेगा। आदर्श के नाम की लॉलीपॉप अब बहुत चूस ली हमनें, अब हकीकत का विकास चाहिए हमें, न कि महज आदर्श गाँव का तमगा! हमारे गाँव को ऐसे आदर्शवादी अस्पताल की जरूरत नहीं, जो लाश के भी पैसे बनाते हों! हमारे गाँव में तमाम नीम-हकीम, झोलाछाप डॉक्टर व दाई हैं। और तो और हमारे गाँव की दाई तो होशियार व बुद्धिमान भी खूब है, अगर रात में मृत्यु हो तो सुबह ही प्रमाणित करती हैं, क्योंकि उसे गाँव वालों की चिंता है, वह गाँव वालों की रात की नींद खराब करना नहीं चाहती। हमारे गाँव में स्कूल की भी कोई कमी नहीं है, मास्टर जी दिल खोलकर शिक्षा प्रदान करवा रहे हैं, फिर रिजल्ट खराब आए तो यह शिक्षार्थी की गलती, ना कि शिक्षक की! अब आज गाँव आदर्श हुआ नहीं कि मास्टर जी की पेशी, नेता जी टांग पर टांग चढ़ाए कुर्सी पर और मास्टर जी खड़े हो टुकुर-टुकुर निहारे जा रहे बेचारे। यह दशा अगर आदर्श गाँव को परिभाषित करे तो नहीं चाहिए, हमें आदर्श गाँव! हमारी बीमारी को हम येन-केन-प्रकारेण आज तक ठीक करते आए हैं और आगे भी कर ही लेंगे!