Saturday, September 19, 2020

कभी तो

तुम ख्वाहिश हो मेरी 

कभी तो मुझे मिला करो।

तुम दुआ हो मेरी 

कभी तो कबूल हुआ करो।

तुम मोहब्बत हो मेरी

कभी तो पूरी हुआ करो।

तुम जहान हो मेरा

कभी तो मुझ पर 

मर मिटा करो।

तुम धड़कन हो मेरी

कभी तो मेरे

दहकते दिल में धड़का करो।

तुम सांस हो मेरी 

कभी तो जीने की 

ख्वाहिश से

मुझ में आया करो।

तुम इश्क हो मेरा

कभी तो तुम

मोहब्बत के बहाने 

मेरे शहर में आया करो।

तुम चाहत हो मेरी

कभी तो मेरे 

अनाहत द्वार को छुआ करो।

युवा वर्ग के लिए चुनौती एवं संदेश 






केंद्र सरकार ने नौकरियों में भरती की जिस नई प्रवेश परीक्षा और प्रक्रिया की योजना पेश की है, उसके भीतर दूरगामी संभावनाएं छिपी हुई हैं। यह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति को जन्म दे सकती है, बशर्ते इसे सावधानी से लागू किया जाए। यह प्रक्रिया ग्रामीण क्षेत्र के युवकों को मुख्यधारा में आने का मौका देगी, लड़कियों को महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं से जोड़ेगी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से सरकारी सेवाओं में आने के इच्छुक नौजवानों को आगे आने का अवसर देगी। इन सब बातों के अलावा प्रत्याशियों और सेवायोजकों दोनों के समय और साधनों का अपव्यय भी रुकेगा।

केंद्र सरकार ने गत 19 अगस्त को फैसला किया है कि सरकारी क्षेत्र की तमाम नौकरियों में प्रवेश के लिए एक राष्ट्रीय भरती एजेंसी का गठन किया जाएगा। इस आशय की जानकारियाँ प्रधानमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध तथा कार्मिक, सार्वजनिक शिकायतों और पेंशन विभागों के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्र सरकार की नौकरियों की भरती में परिवर्तनकारी सुधार लाने हेतु राष्ट्रीय भरती एजेंसी (नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी-एनआरए) के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

हर वर्ष सरकारी सेवाओं और बैंकों की नौकरी के लिए ढाई से तीन करोड़ प्रत्याशी परीक्षा में बैठते हैं। सीएटी में एकबार बैठने के बाद व्यक्ति भरती करने वाली दूसरी एजेंसियों की उच्चतर परीक्षा में बैठने का अधिकारी हो जाएगा। इस टेस्ट का पाठ्यक्रम समान होगा। प्रत्याशी एक सामान्य पोर्टल पर जाकर अपना नाम पंजीकृत करा सकेंगे और उपलब्ध परीक्षा केंद्रों में से अपनी इच्छा का केंद्र तय कर सकेंगे। उपलब्धि के आधार पर उन्हें केंद्र आबंटित किया जाएगा। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद अलग-अलग परीक्षाओं के लिए फीस पर पैसा बर्बाद नहीं होगा। साथ ही जगह-जगह की यात्रा पर समय और साधनों का व्यय भी नहीं होगा। इन परीक्षाओं की बहुलता के कारण महिला प्रत्याशियों को खासतौर से परेशानियों का सामना करना होता है।

एनआरए की यह परीक्षा (सीईटी) पहले चरण में 12 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाएगी। इसके बाद दूसरी भाषाओं में भी इसे शुरू किया जा सकेगा। हालांकि अभी यह जानकारी नहीं मिल पाई है कि कौन सी भाषाओं में यह परीक्षा होगी, पर इतना स्पष्ट किया गया है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में से 12 होंगी। कई मायनों में यह बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है, जो राष्ट्रीय एकीकरण में भी सहायक होगी। भारत के इतिहास, भूगोल, संस्कृति और समाज से जुड़े सामान्य ज्ञान का समान पाठ्यक्रम भी सांस्कृतिक एकता की स्थापना में महत्वपूर्ण साबित होगा।

कार्मिक तथा प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव सी चंद्रमौलि के अनुसार सामान्यतः ढाई से तीन करोड़ युवा हर साल करीब सवा लाख सरकारी नौकरियों से जुड़ी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। ये परीक्षाएं एक तरह से नागरिक के रूप में हमारा ज्ञानवर्धन करती हैं। भारतीय भाषाओं के मार्फत करीब ढाई-तीन करोड़ नौजवानों का एक ही परीक्षा में शामिल होना एक नए प्रकार की ऊर्जा को जन्म देगा। देश के हर जिले में इसका परीक्षा केंद्र होगा।

इस सिलसिले में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या सरकारी नौकरियाँ इतनी हैं कि यह परीक्षा आकर्षक बनी रह सके? यह भी कहा जा रहा है कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है। ये बातें सही हैं, पर सही यह भी है कि रेलवे का कार्यक्षेत्र बढ़ रहा है। उसके लिए कर्मचारियों की जरूरत कम होने के बजाय बढ़ेगी। उम्मीद है कि एनआरए की सीईटी का स्कोर निजी क्षेत्र की कंपनियों के काम भी आएगा, जैसे कि कैट का स्कोर निजी क्षेत्र के प्रबंध संस्थानों में भी स्वीकार किया जाता है।

अभी सरकारी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को समान शर्तों वाले विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग भरती एजेंसियों द्वारा संचालित अलग-अलग परीक्षाओं में शामिल होना पड़ता है। इतना ही नहीं उन्हें प्रत्येक परीक्षा के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम के अनुसार अलग-अलग पाठ्यक्रमों की तैयारियाँ करनी होती हैं। इसके कारण उन्हें अलग-अलग एजेंसियों को अलग-अलग शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। साथ ही परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए लंबी दूरी भी तय करनी पड़ती है।  इससे उनपर आर्थिक बोझ पड़ता है।

अलग-अलग भरती परीक्षाएँ आयोजन करने वाली एजेंसियों पर भी काम का बोझ बढ़ता है। बार-बार होने वाला खर्च, सुरक्षा व्यवस्था और परीक्षा केंद्रों से जुड़ी तमाम बातें संसाधनों के अपव्यय की कहानी कहती हैं। वर्तमान प्रक्रिया के कारण भरती की गति भी बहुत धीमी होती है। इस नई व्यवस्था से यह गति तेज हो जाएगी। इससे एक तरफ बेरोजगारी की समस्या दूर होगी, वहीं सरकारी कामकाज में गति आएगी। बहुत से सरकारी विभागों ने कहा है कि हम दूसरे चरण की परीक्षा लेंगे ही नहीं और एनआरए के स्कोर के आधार पर ही भरती कर लेंगे। भारत के रक्षा क्षेत्र में विस्तार का जबर्दस्त कार्यक्रम शुरू होने वाला है। इसके लिए हरेक स्तर की भरती होगी। बहुत से विभागों में पिछले कई वर्षों से भरती नहीं हुई है। उन पदों को भरने की प्रक्रिया तेज की जा सकती है। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ गई है, उसे गति प्रदान करने में भी इस नई प्रक्रिया का काफी लाभ मिलेगा, बशर्ते उसका समय से इस्तेमाल किया जा सके।

 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश




 

 




देश का भरोसा अभी आप पर है लेकिन

अगर आपको कहा जाए कि फ़्लैश बैक में जाकर कुछ याद कीजिए यूपीए-2 के अंतिम वर्ष।बुरी तरह से घोटालों के आरोपों से घिरी हुई सरकार।विपक्ष का चौतरफा हमला।यकायक अन्ना आंदोलन और उस आंदोलन के पीछे देश।याद कीजिए वह दिन जब रामलीला मैदान से अन्ना को गिरफ्तार कर लिया था और तिहाड़ जेल में भेज दिया था,तब एकदम से सारे देश में ऐसा लगा कि बस अब और नहीं,यह यूपीए की सरकार किसी भी कीमत पर अब एक दिन के लिए भी नहीं चाहिए।इसे जाना चाहिए।इसी क्रम में याद कीजिए मीडिया का सारा फोकस केवल अन्ना पर हो गया था और देश का विपक्ष एकदम नेपथ्य में चला गया था।हर और एक ही शोर कि अन्ना नहीं,यह गांधी है।आनन-फानन में अन्ना को उसी दिन तिहाड़ जेल से रिहा किया गया,तब देश का वातावरण देखते ही बनता था।ठीक इसी तरह जैसे आज रिया,कंगना आदि-आदि हो रहा है।उस समय केवल अन्ना बाकी कुछ नहीं।इस बीच यह बात भी ध्यान रखिए कि उस समय सरकार के मंत्री कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद,प्रणव मुखर्जी आदि-आदि,ऐसे बौखला गए थे कि इन सबके लिए मीडिया का सामना करना मुश्किल हो गया था।लबोलुबाब यह था कि इन तमाम मंत्रियों को कुछ नहीं सूझता था और अनाप-शनाप बोलने लग गए थे।अगर आपको याद हो या आप थोड़ा फ़्लैश बैक में जाएं तो पाएंगे कि उस समय सरकार बुरी तरह घिरी हुई थी,उसे निकलने का कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा था और सिर्फ अन्ना और उसके मुद्दे।अन्ना के साथी जो बाद में मुख्यमन्त्री और गवर्नर,केंद्रीय मंत्री तक बने हुए हैं,वे ही असली हीरो माने जाने लगे थे।ऐसा लगता था कि मानों भगत सिंह जैसे लोग धरा पर अवतरित हो गए हैं।लेकिन बाद में सबका भंडाफोड़ हो गया।देश ठगा-सा गया।इसी बीच तत्कालीन विपक्ष पर भी आरोप लगे मगर वे हवा में उड़ गए,किसी ने उन पर विश्वास ही नहीं किया।ज्यादा न कहते हुए आख़िरकार यूपीए-2 की चुनावों में ऐतिहासिक फजीहत हुई और सम्भवतः यह सबसे बड़ी हार थी जब उनके सांसदों का आंकड़ा अर्धशतक भी नहीं लगा सका,विशेषकर कॉंग्रेस का।यह केवल मोदी की जीत नहीं थी बल्कि यूपीए के कर्मकांडों की हर थी।ख़ैर,वो वर्ष था 2014 का,जब मोदी का उदय हुआ और देश भगवामय हो गया।एनडीए की पहली पारी में जो कुछ भी सरकार ने किया,पूरे देश ने उसे मान लिया,चाहे वह कोई भी फैसला किया हो।मजे की बात यह रही कि किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि सरकार के खिलाफ बोले।अगर कोई दबे स्वर में बोला भी तो उसका विरोध हुआ और इस देश ने देशद्रोही जैसे शब्द सुने।न केवल सुने बल्कि उनके साथ बेहद बुरा किया गया।ठीक अन्ना आंदोलन की तरह मीडिया भी पीछे नहीं रहा।ब्यानों का अपने ही तरीके से मतलब निकाला गया और एकाध को छोड़कर किसी की भी हिम्मत नहीं रही कि एनडीए सरकार की आलोचना कर सके।इसी बीच प्रधामन्त्री जी यहाँ तक आ गए कि प्रधामन्त्री जी ने जो कह दिया,बस वह ब्रह्मवाक्य माना जाने लगा।वैश्विक स्तर पर छाए रहे।सम्मानों की मानो झड़ी लग गयी।2019 के आते-आते जलवा बरकरार रहा जबकि याद रखिए नोटबन्दी जैसा निर्णय लेने,जीएसटी के लागू होने के बाद भी जनता का बड़ा तबका एनडीए के साथ ही बना रहा और 2019 में फिर से ऐतिहासिक जीत मिली।यह जीत विशुद्ध रूप से मोदी की जीत थी।किसी को भी यह मानने में गुरेज नहीं था कि बड़े दिनों के बाद मोदी एक करिश्माई नेता के रूप में आएं हैं।एनडीए की दूसरी पारी की शुरुआत हुई लेकिन 2020 के आते-आते करिश्माई नेतृत्व कुछ धीमा पड़ने लग गया।दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने उसमें पलीता लगा दिया।हरियाणा में भी गठबंधन की ही सरकार बनानी पड़ी।राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी हाथ से निकल गया।वो अलग बात है कि बाद में मध्यप्रदेश हाथ में आ गया।इस समय बिल्कुल 2014 वाला दौर खुद को दोहरा रहा है।किसानों का मसला थम नहीं रहा मगर सरकार और इसके मंत्रियों के ब्यान चौकानें वाले हैं।मजदूरों के बारे में सरकार ब्यान देने से ही हिचक रही है।चीन का मसला गले की फांस बनता जा रहा है।बढ़ता निजीकरण जनता में आक्रोश  पैदा कर रहा है।छोटे-छोटे पड़ौसी देश अनाप-शनाप बोल रहे हैं।कंगना और रिया से देश का वो तबका जो अधिकाँश है और मूल मुद्दों पर बात चाहता है,मीडिया से खासा नाराज है बल्कि मुखर होकर कहने लग गया है कि मीडिया बिकाऊ है।उधर कोरोना ने भी कसर नहीं छोड़ी है और लोग इसको भी अब  सरकार की विफलता बताने लग गए हैं।घटती जीडीपी,गिरता रुपया,आसमान छूती मंहगाई,बढ़ती बेरोजगारी ही सरकार के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर रही है क्योंकि अब लोग 2014 से पहले के ब्यान निकाल-निकालकर देखने- दिखाने लगे हैं।पीएम के जन्मदिन को राष्ट्रीय झूठ दिवस,जुमला दिवस,बेरोजगार दिवस के रूप में मनाना,अपने आप में बड़ी घटना है।मंत्रियों के ब्यान बेहद खराब हैं जैसे भाभी जी पापड़ खाना,ठेका नहीं ले रखा है,हर चीज के लिए पिछले लोग जिम्मेदार हैं।अब तो लोग हिन्दू-मुस्लिम से भी तंग आ चुके हैं।शुरू-शुरू में यह मुद्दा सिर चढ़कर बोला था।सोशल मीडिया में भी अब वो पहले जैसी बात नहीं रही।अब विरोधी स्वर ज्यादा हो रहे हैं।दिल्ली दंगों की जांच खुद जांच के घेरे में है।पूरे देश के हालात इस समय बेहद खराब गुजर रहे हैं।

लेकिन हमारा मानना यह है कि अब भी समय है।देर नहीं हुई है।सरकार को चाहिए कि समस्याओं का समाधान करें,कोरोना से निपटे,जीडीपी को उठाए,रूपये की हालात में सुधार करे,बेरोजगारों को रोजगार दे,किसानों की सुनकर किसानों के हित में काम करे,महिला सुरक्षा पर ध्यान दें,निजीकरण पर रोक लगाए,सार्वजनीकरण को बढ़ावा दे।हिन्दू-मुस्लिम करना बंद करे।अभी भी देश आप पर भरोसा करता है।कहीं ऐसा न हो कि हश्र यूपीए वाला हो जाए क्योंकि कहने को तो उनके पास भी बहुत कुछ था।कहने को तो इंडिया शाइनिंग भी था लेकिन जनता ने दोनों  को नकार दिया था।अभी समय है,चेत जाइए ताकि देश सही दिशा की और जा सके।उम्मीद भी आपसे ही है।जय राम जी की।भली करेंगे राम।

 

"   आप ही के अंदर शक्तियों का महावृक्ष है 

सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो आप, अपने आप में विश्वास रखिए जब भी विचलित हो आप तो यह शब्द जरूर बोलो कि मैं समुंद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। इस प्रकार की शक्ति और इच्छा आप रखो, इसके साथ ही कड़ा परिश्रम करो। देखना आप अपने उद्देश्य को एक दिन निश्चित पा लोगे।

याद रखना आप मेरी बात को आपके भीतर सभी शक्तियां निहित है, आप में ही महान से महानतम बनने के बीज आप के अंतः करण में मौजूद है। लेकिन दोस्त जब तक हम इन शक्तियों को विकसित नहीं करेंगे तब तक आप ही सोचो आपको जीवन का आनंद कैसे प्राप्त होगा?

आज चारों तरफ देखे तो अधिकतर लोग थोड़ी सी किसी ने आलोचना किया और वह परेशान हो जाते हैं, जबकि भाइयों हर जानदार तथा शानदार व्यक्ति की आलोचना होती है। यह सच है कि अधिकतर लोग उससे ईर्ष्या  भी करते हैं । एक बात अपने दिल में उतार लो कि आलोचना एवं ईर्ष्या इस बात की द्योतक है कि आप जीवित हैं, आप में दम है तथा आपका जीवन सार्थक है। सही आलोचना से आप हमेशा सीखो तथा अपने आपको बदलो एवं इसके साथ ही गलत आलोचनाओं से परेशान आप जरा भी ना होना। उन्हें मुस्कुरा कर हवा में उड़ा दो, अपने दिल पर इसका असर ना होने दो कि मेरा उसने आलोचना किया। अपनी आंतरिक शक्तियों के माध्यम से आलोचनाओं के बाहरी आक्रमण को ध्वस्त कर दीजिए। अपने चेहरे पर तनाव नहीं मुस्कान हमेशा रखिए। आपका जीवन ईश्वर द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है, इसे कमजोर मत होने देना, आज से ही आशा उत्साह प्रेरणा एवं शक्ति को अपने जीवन में स्थान दीजिए तथा बन जाइए अपने जहाज के कप्तान स्वयं साथियों ।

यह आप भी जानते हैं कि बीज से अंकुर तभी फूटता है, जब वह फटता है और बाद में यही अंकुर एक दिन एक बड़ा पेड़ बन जाता है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि हमें अपने गुणों के विकास में सहायक अवसरों को बराबर खोजते रहना चाहिए। विकास का अर्थ ही होता है कि लगातार बढ़ते चले जाना और अपने साथ समाज के वंचित लोगों को भी आगे बढ़ाते चलना। याद रखना कैसा भी भय ,कैसा भी लोभ , कैसी भी चिंता यदि आपके बढ़ते कदमों को नहीं रोक पाती तो समझ लेना कि आपकी प्रगति भी नहीं रुक सकती आप एक दिन सफल होकर ही रहेंगे। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आप अपने सुप्त शक्तियों को जगा दो अपने आपको और अपनी शक्ति को पहचानो, जो अपनी शक्तियों को पहचान लेता है, वही एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंचता है, बाकी लोग तो केवल समय पूरा करने के लिए इस धरती पर आते हैं और गुमनामी की मौत मर कर भुला दिए जाते हैं ।