Friday, September 18, 2020

  आज परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा फेक न्यूज़ से है

जी दोस्तों आज देखा जाए तो झूठी खबरें किसी परमाणु बम से भी ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। जब दोस्तों कोविड-19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के शुरुआती दिनों में देशव्यापी लॉकडाउन किया गया तो हम सभी ने प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें देखें, लेकिन अब केंद्र सरकार के मुताबिक कहा जा रहा है कि फेक न्यूज़ की वजह से ही इतनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर पलायन के लिए मजबूर हो गए थे मतलब की हमारे भारत के लिए आज फेक न्यूज़ सबसे बड़ा खतरा बन गया है । दोस्तों आज फेक न्यूज़ को आप तक पहुंचाने का सबसे बड़ा भूमिका सोशल मीडिया निभा रहा है, यह आप भी देख रहे हैं कि फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे ऐप फेक न्यूज़ फैलाने का माध्यम बन चुके हैं और यह किसी परमाणु बम के धमाके से भी ज्यादा खतरनाक है। आज दोस्तों इन्हीं फेक न्यूज की वजह से कई जगहों पर हम देखते हैं कि दंगे हो जा रहे हैं, किसी बड़ी हस्ती के निधन के बारे में झूठी खबर फैला दी जाती है, और तो और आज फेक न्यूज़ के वजह से ही दो देश युद्ध के करीब पहुंच जाते हैं। दोस्तों आज यह फेक न्यूज़ एक ही समय में लाखों करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहा है।

याद करो आप जब 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था, उसी प्रकार आज दोस्तों हम देख रहे हैं कि इस वैश्विक महामारी के वक्त भी कुछ अराजक तत्वों के द्वारा फेक न्यूज़ का बम गिराने का प्रयास किया जा रहा है। आप ही देखो ना जब देश में लॉक डाउन का ऐलान किया गया था तब प्रधानमंत्री जी ने कहा था जो जहां पर है वह वहीं पर रहे लेकिन कुछ अराजक तत्वों ने झूठी खबर फैला दी और अगले ही दिन दिल्ली से हजारों लोग अपने गांव जाने के निकल पड़े थे।

इस प्रकार से झूठी खबर लॉकडाउन के दौरान फैला दिया गया कि मजदूर लोग घर में रहेंगे तो खाना पानी नहीं मिलेगा और लॉकडाउन अभी बहुत लंबा चलेगा, जिसके कारण ही दोस्तों प्रवासी मजदूर लोग घबरा गए और फिर वह पलायन करने के लिए मजबूर हो गए। जिसमें हम सभी ने देखा कि बहुत से प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही अपनी जान गवा बैठे कोई प्रवासी मजदूर किसी ट्रेन के नीचे दबा तो कोई मजदूर किसी ट्रक के नीचे दबकर मरा तो कहीं कहीं देखा गया कि हजारों किलोमीटर पैदल चलते हुए प्रवासी मजदूर भूखे प्यासे मारे गए, और सभी राजनैतिक दल इस विषम परिस्थिति में भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे थे।

दोस्तों हमारे भारत में लगभग 4 करोड़ प्रवासी मजदूर है, यह वह लोग हैं जो अपने घर से दूर किसी और राज्य में जाकर नौकरी किसी कंपनी में करते हैं। अब आप ही सोचो इस लॉकडाउन के दौरान लगभग 75 लाख  मजदूर वापस अपने घर लौट चुके है यानी कि हर 5 प्रवासी मजदूरों में से एक वापस अपने राज्य वापस चला गया है। दोस्तों याद रखना आज फेक न्यूज़ से सिर्फ दंगे ही नहीं हो रहे हैं बल्कि इस फेक न्यूज़ के कारण किसी देश की अर्थव्यवस्था और समाज को भी काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आजकल देखो ना बड़े देश इसी तरीके का युद्ध कर रहे हैं जिसे आप हाइब्रिड युद्ध भी कह सकते हैं। देखने में आता है कि जिस देश को लक्ष्य बनाकर फेक न्यूज़ का यह हमला किया जाता है उसमें उस देश का मीडिया विपक्षी नेता और विपक्षी बुद्धिजीवी सभी शामिल होते हैं। लेकिन इसमें नुकसान देश के आम जनता और निचले दबे कुचले प्रवासी मजदूरों को ही होता है।

आप सभी से आज मैं विनम्र निवेदन करके अनुरोध कर रहा हूं कि किसी खबर को तब तक शेयर ना कीजिए जब तक आप उसकी सच्चाई को लेकर पूरी तरह भरोसा ना कर ले, मतलब कहने का मेरा है कि आंख बंद करके किसी अटैचमेंट को डाउनलोड या ओपन न करें और अगर आपने किसी भड़काने वाली खबर को शेयर किया तो इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के आर्टिकल 66 -A के के तहत आपको 3 साल की जेल भी हो सकती है। यह बात आप को डराने के लिए मैंने नहीं कहा बल्कि 137 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में आज फेक न्यूज़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही है, इसलिए हम सभी का यह नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसे झूठी खबरों को आप ना फैलने दे नाही फैलाएं।।

 

धर्मनिष्ठ तथा धर्मभीरु में अंतर




धर्मनिष्ठ वह होता है जो श्रद्धा से धर्म को मानता है। जबकि धर्मभीरु का मतलब धर्म से डरने वाला होता है। धर्मभीरु भयवश धर्म को मानता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति धर्म के असली अर्थ और महत्व को भलीभांति जानता और समझता है, किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धर्म के अर्थ और महत्व को समझे बिना ही धर्म का पालन करता है।

         धर्मनिष्ठ व्यक्ति मानवता के पालन को ही सबसे बड़ा धर्म मानता है। करुणा, क्षमा, सत्यवादन, चोरी न करना, अहिंसा, किसी को शारीरिक या मानसिक कष्ट न देना, दूसरों की सहायता करना, माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना आदि मानवीय गुण और जीवन के मूलभूत सिद्धांत, धर्मनिष्ठ व्यक्ति के स्वभाव और चरित्र में निहित होते हैं। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति धार्मिक-आध्यात्मिक पुस्तकों और गुरुजनों द्वारा भयभीत कराए जाने के कारण इन मानवीय गुणों और जीवन के मूलभूत सिद्धांतों का भयवश अनुपालन करता है।

          शायद ऐसे लोगों के लिए ही नर्क आदि लोकों की कल्पना की गई है और धार्मिक पुस्तकों में भांति-भांति के नर्कों और उनकी भांति-भांति की यातनाओं का वर्णन कर, ऐसे व्यक्तियों को धर्म के मार्ग पर चलाने का प्रयास किया गया है। अच्छे-बुरे कर्मों को पाप-पुण्य की श्रेणी में बांटने और स्वर्ग-नरक जाने की अवधारणा भी इन्हीं धर्मभीरु व्यक्तियों के कारण संभव हुई है।

         संत-महात्माओं के द्वारा दिए गए उपदेशों को एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति श्रद्धा से सुनता है, प्रशन्नचित्त होकर उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का चिंतन-मनन करता है और उनको अपने जीवन में निर्भीकता से उतारता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति इन उपदेशों और उनके द्वारा बताई हुई अच्छी और प्रेरणादायक बातों का अनुपालन भयवश और स्वर्ग आदि प्राप्त करने के लालच में करता है। इसीलिए जनसामान्य में लोक-परलोक की चिंता रहती है।

          धर्मनिष्ठ व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कर्तव्य का पालन करता है। किंतु धर्मभीरु व्यक्ति के प्रत्येक कर्म में स्वार्थ की भावना निहित होती है, वह धर्म का पालन अपने पुण्य कर्मों के खाते को बढ़ाने के लिए ही करता है। किंतु ऐसी भावना के कारण कभी-कभी वह जिन्हें पुण्य कर्म समझकर करता है, अनजाने में वही उसके पाप कर्म बन जाते हैं।

ऐसे लोगों के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है--

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।

 

इसका तात्पर्य यही है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होते हुए बिना कर्मफल की इच्छा के अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। उसे धर्मभीरु बनकर अच्छे कर्मों यानी पुण्य कर्मों के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्ग आदि लोकों के लालच में धर्म का पालन नहीं करना चाहिए।

      अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति को धर्मनिष्ठ होना चाहिए न कि धर्मभीरु।

 

रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश


 

 




साक्षात विश्वकर्मा की अद्भुत स्मृति 

सृष्टि के आदिकाल, जो पाषाण युग कहलाता है, में आज का यह मानव समाज वनमानुष के रूप में वन-पर्वतों पर इधर से उधर उछल-कूद कर रहा था। मनुष्य की उस प्राकृतिक अवस्था में खाने के लिए कंदमूल, फल और पहनने को वलकल तथा निवास के लिए गुफाएं थीं। उस प्राकृतिक अवस्था से आधुनिक अवस्था में मनुष्य को जिस शिल्पकला विज्ञान ने सहारा दिया, उस शिल्पकला विज्ञान के अधिष्ठाता एवं आविष्कारक महर्षि आचार्य विश्वकर्मा थे। शिल्प विज्ञान प्रवर्तक अथर्ववेद के रचयिता कहे जाते हैं। अथर्ववेद में शिल्पकला विज्ञान के अनेकों आविष्कारों का उल्लेख है। पुराणों ने भी इसको विश्वकर्मा रचित ग्रंथ माना है, जिसके द्वारा अनेकों विद्याओं की उत्पत्ति हुई। 


मानव जीवन की यात्रा का लंबा इतिहास है और इसका बहुत लंबा संघर्ष है। भगवान विश्वकर्मा ने उसे सबसे पहले शिक्षित और प्रशिक्षित किया ताकि उसे विभिन्न शिल्पों में प्रशिक्षित किया जा सके। इस तरह मानव की संस्कृति और सभ्यता का प्रथम प्रवर्तक भगवान विश्वकर्मा जी हुए जिसे वेदों ने स्वीकार किया है और उनकी स्तुति की है।


विश्वकर्मा ने मानव जाति को शासन-प्रशासन में प्रशिक्षित किया। उन्होंने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार और निर्माण किया, जिससे मानव जाति सुरक्षित रह सके। उन्होंने अपनी विमान निर्माण विद्या से अनेक प्रकार के विमानों के निर्माण किए जिन पर देवतागण तीनों लोकों में भ्रमण करते थे। उन्होंने स्थापत्य कला से शिवलोक, विष्णुलोक, इंद्रलोक आदि अनेक लोकों का निर्माण किया। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, इंद्र के वज्र और महादेव के त्रिशूल का भी उन्होंने निर्माण किया जो अमोघ अस्त्र माने जाते हैं। आज शिल्पकला विज्ञान के जो भी चमत्कार देखने को मिलते हैं, वे सभी भगवान विश्वकर्मा की देन हैं। 


भारतवर्ष के सामने अखंडता, सांप्रदायिक सद्भावना तथा सामाजिक एकता की समस्याओं का समाधान विश्वकर्मा दर्शन में है। भारत को स्वावलंबी और स्वाभिमानी राष्ट्र बनाने की जो बात कही जाती है, उसका समाधान भी विश्वकर्मा के शिल्पकला विज्ञान में ही है। यदि इसको विकसित किया जाए तो भारत से बेकारी और गरीबी दूर हो जाएगी और पृथ्वी पर भारत का एक अभिनव राष्ट्र के रूप में अवतरण होगा। सभी देवताओं की प्रार्थना पर विश्वकर्मा ने पुरोहित के रूप में पृथ्वी पूजन किया जिसमें ब्रह्या यजमान बने थे। पुुरोहित कर्म का प्रारंभ तभी से हुआ।


सभी देवताओं ने भगवान विश्वकर्मा को ही सक्षम देव समझा तथा उन सब के आग्रह पर वह पृथ्वी के प्रथम राजा बने, इन सभी चीजों का जिक्र भारतवर्ष के वेद पुराणों में है। कश्यप मुनि को राज-सत्ता सौंपकर विश्वकर्मा भगवान शिल्पकला विज्ञान के अनुसंधान के लिए शासन मुक्त हो गए क्योंकि भारत के आर्थिक विकास और स्वावलंबन के लिए यह आवश्यक था। कुछ दिनों के शासन में विश्वकर्मा भगवान ने शासन को सक्षम, समर्थ तथा शक्तिशाली बनाने के अनेकों सूत्रों का निर्माण किया जिस पर गहराई से शोध करने की आज आवश्यकता है। 


 


प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"


शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार


Thursday, September 17, 2020

दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी का हिस्सा बेघर क्यों?


घर हम सभी की जरूरत या जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा। घर का सपना हम सभी देखते हैं ओर उसे पूरा करने के लिए हर कोशिश करते हैं। हमारे जीवन में जितना बड़ा सहारा घर का है उतना अधिक सहारा तो अपने कहें जाने वाले भी नहीं दे पाते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सत्ता में पहली बार आए तब उनका यही कहना था कि सभी के पास अपना मकान होना चाहिए। जिसके लिए उन्होंने सस्ते घरों की योजना भी निकाली थीं, ताकि सभी को घर मिल सकें।



किंतु आज जब कोविड 19 जैसी बिमारी से परेशान हैं और आर्थिक आपदा झेल रहे हैं। तब वह गरीब लोग जो अपने जीवन चलाने के लिए हर रोज कार्य करते हैं। उनको एक ओर जहां बेरोजगारी के चलते खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके सर से छत छिने के आदेश ने जीना मुश्किल कर दिया है।  31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि


"यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।" 



जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48 हजार झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है तो यह प्रभावी नहीं होगा।



रेलवे और हम सब की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का विरोध करना सही नहीं है। किंतु इस तरह से उनको नोटिस दे कर हटाने तीन महीने में हटाने का फैसला कहा तक उचित है यह भी विचार करना जरूरी है। राजनीति हमारे देश में आज बहुत ताकतवर हो चुकी है और यही राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं, जो चुनाव जीतने के लिए इनके पास जाते हैं और वोट मांगते हैं। सवाल यह नहीं ‌है कि उनको वहां से क्यों हटाया जा रहा है। सवाल यह है कि जब यह लोग ‌वह बस रहें थें तब सरकार और रेलवे ने उनको रोका क्यों नहीं।  यदि वह वहां ग़ैर क़ानूनी तरीके से रह रहे थें तो उनके घर में बिजली पानी क्यों सरकार द्वारा पहुंचाया जा रहा है। जिस स्थान पर रहना गलत है उस स्थान के पत्ते पर वोटर कार्ड और आधार कार्ड क्यों बनाए गए। सरकारें चुनाव के समय वोट मांगने के लिए की वादें करतीं हैं। ऐसा ही एक वादा मोदी सरकार ने भी चुनाव के समय करते हुए कहा, जहां झुग्गी वहां मकान। किंतु आज जब 48 हजार लोग बेघर हो रहें हैं, तब सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति कर रही है।


आम जनता कोई आम नहीं है जिसे चुनाव के समय इस्तेमाल किया जाए और फिर बाद में उसे कचड़ा समझ कर फैंक दिया जाएं। सरकारें सालों से वादा कर रहीं हैं, लोगों को‌ सपना दिखा रहीं हैं घर मिलने का। आज तक घर नहीं मिलें लेकिन लोग बेघर जरूर हो रहें हैं। रेलवे की सुरक्षा जरूरी है। किंतु उन सभी लोगों को बेघर होने से बचाना भी जरूरी है जिन्होने सालों लगा कर अपने लिए एक छत बनाई है। राजनीति पार्टी का फ़र्ज़ केवल वादे कर वोट लेना नहीं होता है। उनको अपनी जिम्मेदारी समझ कर आज अपने फर्ज पूरे करने चाहिए ना कि राजनीति करतें हुए एक दूसरे पर छींटाकशी।


हम सभी को आज इंसानियत दिखा कर, उन 48 हजार लोगों का दर्द और तक़लिफों को समझना चाहिए। वह गरीब है, किन्तु इंसान है उनको भी हक है। हम तर्क दे सकते हैं कि गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर कब्जा कर के रह रहे थें तो हटाया जाना गलत कहां है। किंतु यह तर्क देते हुए हम यह नहीं भूल सकते हैं कि वह भी नागरिक हैं उस देश और राज्य के जिसके हम है। दिल्ली की चालिस प्रतिशत आबादी उन झुग्गियों में रहतीं हैं जिन्हें ग़ैर क़ानूनी कह कर हम सभी गिरवाने की सोच शहर को साफ-सुथरा और सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हम सरकारों के बनाएं कानूनों का विरोध करते है, क्या हम उसी तरह आज सरकार को अपने दिए वादों को याद दिलाने के लिए क्यों नहीं कहते हैं। सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है ताकि बेघर हो‌ रहें लोगों को सरकार घर दें। उनको चुनाव में समय याद‌ करने वाली हमारी सरकार आज  अपनी जिम्मेदारी निभाएं।



           राखी सरोज