Wednesday, August 5, 2020

हिंदुओं की राह बाधित करने के अनेकों किये प्रयास 500 वर्षों के संघर्ष के दौरान

प्रथम किन्ही प्रभु धनुष टंकोरा। रिपु दल बधिर भयहू सुनि सोरा ।। 


लगभग पाँच सौ वर्षों के सतत, दुधुर्ष व उत्कट संघर्ष के बाद 5 अगस्त को अयोध्या में रामलला जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्रथम शिला रखी जानी है। जो समय के भीतर झांक सकते हैं वे जानते हैं कि मंदिर निर्माण की प्रक्रिया तो 6 दिसंबर 1992 के दिन ही प्रारंभ हो गई थी जिस दिन बाबरी ढांचे का कलंक भारत भूमि से हटा था। बाबरी ढांचे से लेकर भव्य निर्माण तक का ये घटनाक्रम और आरोह अवरोह, सब प्रारब्ध है और रामरचित लीला मात्र है। श्रीराम भारत के गुलामी से जकड़े हुये समाज जागरण हेतु जितने बरस स्वयं की जन्मभूमि को आतताइयों के कब्जे में रहने देना चाहते थे उतने बरस उन्होंने रहने दिया। जब श्रीराम का मन किया कि अब लीला को नवस्वरूप देना है और नवविलास करना है तो वे तिरपाल को त्याग कर नए भवन की ओर अग्रसर हो गए हैं।



होइहि सोइ जो राम रचि राखा।


को करि तर्क बढ़ावै साखा॥


अस कहि लगे जपन हरिनामा।


गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥ 


मैं स्वयं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि यदि इतिहास में 6 दिसंबर की वीरोचित घटना नहीं हुई होती तो 9 नवंबर 2019 का विवेकपूर्ण निर्णय भी नहीं हो सकता था। साथ ही यह भी कहना ही होगा कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जितने भी रामभक्त बाबरी विध्वंस में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित थे उन सभी में उस दिन रामेश्वरम रामसेतु के निर्माण में संलग्न देव तुल्य वानरों की आत्मा प्रवेश कर गई थी। गिलहरी, नल, नील, जांबवंत, सुग्रीव, अंगद, हनुमान, सहित भैया लक्ष्मण और श्रीराम वहाँ स्वयं स्वयंसेवक रूप मे उपस्थित थे और एक नए युग के जन्म की कथा का प्रारंभ स्वयं अपने हाथों से लिख रहे थे।      


गोस्वामी तुलसीदास के इन शब्दों को प्रत्येक स्वयंसेवक कहते हुये आगे बढ़ रहा था–


कटि तूनीर पीत पट बाँधें।


कर सर धनुष बाम बर काँधें॥


पीत जग्य उपबीत सुहाए।


नख सिख मंजु महाछबि छाए॥


कमर में तरकस और पीतांबर बाँधे हैं। हाथों में बाण और कंधों पर धनुष तथा पीले यज्ञोपवीत सुशोभित हैं। नख से लेकर शिखा तक सब अंग सुंदर हैं, उन पर महान शोभा छाई हुई है और वे साथ-साथ चलते जा रहे हैं।                        


लंका दहन, क्षमा कीजिये बाबरी विध्वंस के बाद देश भर व विश्व मे चले विमर्श के संदर्भ मे कभी किसी प्रसिद्ध लेखक ने लिखा था कि वह विमर्श बड़ा ही भयावह था। समूचे भारतीय व वैश्विक मीडिया ने बड़ा ही अनैतिक, अनर्गल व अनावश्यक प्रलाप किया था। भारतीय सेकुलर विधवा विलाप कर रहे थे और बीबीसी से लेकर न्यूयार्क टाइम्स, मिरर, वाशिंगटन पोस्ट, एकानामिक टाइम्स आदि आदि वही कह रहे थे जो पाकिस्तान का “द डान” कह रहा था। द टाइम मैगज़ीन ने तो लिखा था कि “पवित्र काम भारत में शांति नष्ट किए दे रहा है।“ टाइम ने उस समय “राम का क्रोध” नाम से भी एक स्टोरी भी प्रकाशित की थी। यूनिवर्सिटी आफ केलिफोर्निया से Ayodhya and the Politics of India's Secularism: A Double-Standards Discourse जैसा शोध पत्र भी प्रकाशित हुआ था। इस समूचे विमर्श में एक ही बात पर बल दिया जा रहा था कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ढाँचा गिराए जाने को ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिया है। बाबरी विध्वंस के बाद देश भर में ऐसे लेखन को प्रायोजित किया गया जो हिंदू समाज में घनघोर आत्मग्लानि, दुख, कुंठा व खेद का वातावरण तैयार करे। वामपंथी, तथाकथित सेकुलर व कांग्रेस ने भारत में इस वितंडावादी वातावरण को निर्मित करने हेतु एड़ी चोटी के प्रयास किए। वस्तुतः बाबरी विध्वंस राम काज था, गौरावान्वित कर देने वाला अवसर था, पाँच सौ वर्षों की कुंठा, अवसाद व कलंक को मिटा देने वाला अवसर था। बाबरी विध्वंस पर 6 दिसंबर 1992 से लेकर 9 अक्तूबर 2019 तक न्यायालय द्वारा जितनी भी प्रतिकूल, अनुकूल प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं उन सभी को इस राष्ट्र के हम हिंदू बंधुओं ने न तो स्मरण करना चाहिए और न ही उन्हें विस्मृत करना चाहिए। मुझे लगता है बाबरी विध्वंस पर हुई तमाम न्यायलीन टिप्पणियों का यथासमय समाशोधन/ न्याय हमारे समाज द्वारा स्वमेव ही कर दिया जाएगा। एक सर्वव्यापी मंथन कभी न कभी होगा जो इस विमर्श के सत्व को स्थापित करेगा। जिस राष्ट्र ने श्रीराम को अपना पूर्वज, अपना कुटुंबपति, अपना पुरोधा, अपना प्रभु, अपना नीतिनियंता और अपना आदर्श माना हो उस समाज में रामकाज करना प्रत्येक नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। निस्संदेह मंदिर निर्माण रामकाज ही है और बाबरी का विध्वंस भी रामकाज ही था।


यदि समाज, देश व विश्व यह सोचता है कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण ही अंतिम रामकाज है तो वह गलत सोचता है। आप चिंता न करें मैं यहां मथुरा, काशी आदि आदि की बात नहीं कर रहा हूँ। मथुरा काशी अपने आप में एक सामाजिक कार्य हैं जो समय आने पर विधिवत अभियान का स्वरूप लेगा; मैं तो यहां यह चर्चा कर रहा हूँ कि ये जो पाँच सौ वर्षों तक हमारे माथे पर कलंक का टीका लगा रहा है वह मंदिर बनने मात्र से समाप्त नहीं होगा। इस कलंक को समाप्त करने हेतु हमें हमारे समाज में चले पाँच सौ वर्षों के षड्यंत्रकारी व लज्जाधारी विमर्श के विरुद्ध भी एक व्यापक विमर्श खड़ा करना होगा। मंदिर स्थूल है किंतु मंदिर का व्यापक विमर्श एक दिव्य विचार है। हमें इस दिव्य विचार की स्थापना हेतु कार्य करना होगा ताकि हम हमारी आने वाली पीढ़ियों को आत्मग्लानि, कुंठा व खेद के भाव से निकाल कर वीरोचित भाव से आत्मविभोर कर पाएँ। आप कल्पना कीजिये कि जिस देश में नरेंद्र मोदी के पूर्व किसी प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंच से जय श्रीराम का उद्घोष ही नहीं किया, उस देश में राममंदिर के निर्माण हेतु एक प्रधानमंत्री का जाना सतह के नीचे कितनी लहरों को जन्म दे रहा होगा।


 


टीका नहीं लगाया, प्रसाद नहीं लिया, पीएम मोदी ने ऐसे सोशल डिस्टेंसिंग का रखा ख्याल

अयोध्या: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या पहुंच गए हैं. इस दौरान पीएम मोदी सोशल डिस्टेंसिंग का खास ध्यान रख रहे हैं. उन्होंने मास्क पहन रखा है. एयरपोर्ट पर सीएम योगी से दो गज की दूरी से नमस्कार किया. इसके बाद उन्होंने हनुमानगढ़ी के दर्शन किए. यहां उन्होंने करीब 10 मिनट तक हनुमान जी की आरती की और वहां उन्होंने बजरंग बली के सामने शीश नवाया. आरती की थाली को खास पहले ही सैनेटाइज किया गया था. कोरोना संकट के कारण उन्हें टीका भी नहीं लगाया गया, न ही उन्होंने प्रसाद दिया गया. हालांकि प्रधानमंत्री ने अपनी जेब से कुछ रुपये निकालकर हनुमानगढ़ी मंदिर में कुछ दान भी चढ़ाया.
इसके बाद राम जन्मभूमि स्थल पहुंचे और रामलला के दर्शन किए. मोदी ने इस दौरान भी लगातार मास्क पहने रखा. उनके साथ मौजूद योगी आदित्यनाथ ने भी मास्क पहने रखा. पीएम मोदी ने रामलला के दर्शन किए और वहां अपना शीश नवाया. इसके बाद अब पीएम मोदी राम जन्मभूमि का भूमि पूजन कर रहे हैं और सभी पूजा-अर्चना के नियमों का पालन करते हुए इस कार्यक्रम को पूरा कर रहे हैं. सबसे पहले उनके हाथ धुलवाए गए और मंत्रोच्चार के बीच पीएम मोदी मुख्य स्थान पर बैठे हुए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे 29 साल बाद अयोध्या पहुंचे हैं और इससे पहले वो 1992 में अयोध्या आए थे. उस समय वो राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा थे और इस समय वो बतौर प्रधानमंत्री अयोध्या में रामलला के दर्शन करने पहुंचे हैं.


सदी के श्रेष्ठ कार्यो में अंकित राम मंदिर निर्माण  

भारत की एकता संप्रभूता और आस्था को एक नई गाथा अयोध्या नगरी में  लिखी जाएगी जब भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण कार्य की नींव रखी जाएगी।सदी के महानतम कार्यो में से एक यह दो सदी के संघर्षो का इतिहास समेटने हुए खड़ा होने को उत्सुक है।वही पूरा भारतवर्ष राममय नजर आ रहा है।अदभूत और मनोरम है यह दृश्य जिसको हमारी न्यायपालिका ने यह गौरव हासिल करने का सौभाग्य तमाम सबूतो और साक्ष्यों के आधार पर देकर करोडो भक्तों का मान बढ़ाया है।आज पूरा भारतवर्ष खुश है ।हर कोई इस सदी के इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनना चाहता है।भारत ही नहीं कई देशों में भी इसका सीधा प्रसारण होगा।
जिनके हृदय श्रीराम वसै तिन और का नाम लियो न लियो।।यह पंक्ति हमारे अराध्य की महत्ता को दर्शाता है। दो अक्षर का यह नाम पूरे ब्रह्माण्ड पर भारी है।इनके नाम लेने मात्र से ही व्यक्ति का मोक्ष है।यहाँ तक परमपिता परमेश्वर शिव भी इनके नाम का जप करते हैं।जीवन की सत्यता का सार है राम नाम, मोक्ष का द्वार है राम नाम, सभी कष्टो के निवारण इन्हीं नामो में निहित है। ऐसे मर्यादा पुरूषोत्तम के मंदिर निर्माण  के अवसर पर हम भारतवासी उनके भक्ति में नहाकर हमारे गौरवशाली इतिहास को चार चाँद लगा रहा है। आज की आस्था तथा इतिहास की यह गौरव गाथा का परिचायक युगो युगो तक याद रखा जाएगा। वेद पुराण और धार्मिक ग्रंथो और हिन्दू कलेंडर के अनुसार प्रभू श्री राम को भगवान् विष्णु जी की 10वीं अवतारों में से 7वां अवतार माना गया है। भगवान् श्री राम की अराधना घरो में भी करते हैं और अपने परिवार और जीवन की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। पूरे देश में लोग मर्यादा पुरूषोत्तम की लीलाओ का बखान करते हैं उनके प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास के साथ लोग उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम मनाते है।  सभी लोग प्रभू श्री राम का दर्शन मंदिरो में करने को कई वर्षो से उत्सुक  है।भक्त हमेशा रामचरितमानस का अखंड पाठ करते हैं और साथ ही मंदिरों और घरों में धार्मिक भजन, कीर्तन और भक्ति गीतों के साथ पूजा आरती भी करते है। आज  विश्व पटल पर उनकी महिमा वखानऔर भक्ति में  लीन अयोध्या,नगरी अदभूत लग रही है।
प्रभू राम को घर मिले प्रतीक्षा में हैं भक्त
पीड़ाहार,की पीड़ा दूर करते रामभक्त। 
हो रहा निर्माण कार्य शूरू पाँच अगस्त 
भव्य मंदिर होगा वहाँ जहाँ होंगे प्रभू।।
सजेगी नित दरबार गूँजेगी मंत्रोचार
घूम गूगल से महकेगी अयोध्या नगर।
आस पास दूर दरार से लोग आएँगे
चार चाँद लगेगा जब पर्यटन बढ जाएँगे।
वो घड़ी आयी है जिसका सबको इन्तजार
आइये इस ऐतिहासिक पल को दे प्यार।
आशुतोष, पटना बिहार 


कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक भी हुए कोरोना संक्रमित, बोले- संपर्क में आए लोग अपनी जांच कराएं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक भी कोविड-19 के मरीज हो गए हैं। प्रदेश के कानून मंत्री पाठक ने बुधवार को एक ट्वीट में कहा कि कोरोना के लक्षण होने के बाद मैंने डॉक्टरों की सलाह पर अपना टेस्ट कराया था जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। पाठक ने कहा कि पिछले कुछ दिनों के दौरान जो लोग भी मेरे संपर्क में आए हैं उनसे अनुरोध है कि वे सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए खुद पृथक-वास में चले जायें और अपनी जांच कराएं। 


गौरतलब है कि इससे पहले प्रदेश के कैबिनेट मंत्री मोती सिंह और महेंद्र सिंह भी कोरोना की जद में आ चुके हैं। इसके अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी इस वायरस के मरीज हुए हैं। हाल में कैबिनेट मंत्री कमल रानी वरुण का कोविड-19 संक्रमित होने के बाद निधन हो गया था।