Tuesday, July 28, 2020

बाढ़ की विभीषिका

आये जब यह बारिस का मौसम

दिल बहुत घबराता रहता है मेरा

मैं बिहार का अबला ग्रामीण हूँ 

बाढ़ की विभीषिका से नाता मेरा।

 

यह बारिस अमीरो को शकून देती

गरीबों के छप्पर को तो चूअन देती

भींगते बदन और रोजी न रोजगार

आशा में दिन निकला थम जा बरसात ।

 

नदियों में उबाल देख डर लगा रहता

घर तो बहेगा ही फसल भी बर्बाद

हर वर्ष हमलोगों को देती दोहरी मार

बाढ़ से निजात का कोई न करता उपाय।

 

बचपन से देख रहा सबका यही हाल

सरकारें बदलती गयी नहीं बदली चाल

बिहार को आगे नही पीछे ले जाते हैं 

हर वर्ष सरकार व यह नदियों की धार।।

 

फिर शूरू होता  बंदरबाट   का  धंधा

लाखो  पैकेज  बनते  करोड़ों के  चंदे

कुछ बांटकर,  खूब चलता गोरख घंघा

फिर वहाँ घडियाली आँसू जाकर बहता।

 

यह विवशता भरी खेल हमसे खेले

हम ग्रामीण फिर भी इनको न बोले

यह जीवन कैसे चले इनपर चुप कैसे रहे

सवालजबाब जब हो ये विपक्ष को बोले। 

 

                                    आशुतोष 

                                  पटना बिहार 

Sunday, July 26, 2020

संतान

राधिका की शादी राहुल से हुए आठ वर्ष व्यतीत हो गए थे किंतु उनके कोई संतान न थी। राधिका जब दूसरे के बच्चों को देखती तो उसका मन घावों से भर जाता और वह भी अपनी गोद में कोई बालक या बालिका को लेने के लिए तरसने लगती। किंतु ईश्वर ने उसे यह सुख प्रदान नहीं किया था। उसकी ममता व्याकुल होकर उससे यही प्रश्न पूछती कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था, जो मैं मां न बन सकी। उसने और उसके पति राहुल ने सभी मेडिकल टेस्ट करवा लिए थे। दूर-दूर के सिद्ध और प्रसिद्ध धर्म स्थानों में जा-जाकर ईश्वर से संतान की प्रार्थना भी कर चुके थे। किंतु सब कुछ असफल ही रहा, उनकी गोद न भर सकी। राहुल को भी संतान की कमी बहुत सालती थी किन्तु वह कभी अपनी पीड़ा राधिका के सामने जाहिर नहीं होने देता था और स्वयं को ऑफिस के कामों में अधिकाधिक व्यस्त रखता था। वह समझता था कि इस दुर्भाग्य के पीछे राधिका का कोई दोष नहीं है। संतान का सुख उसके भाग्य में ही नहीं है इसीलिए मेडिकल रिपोर्टों में भी कोई कमी न निकलने के बावजूद उन्हें यह सुख प्राप्त नहीं हो पा रहा। राधिका भी यही कोशिश करती कि वह राहुल के सामने सामान्य रह सके और उसके भीतर ममता का उठता हुआ ज्वार राहुल को न दिखे। किंतु थी तो वह औरत ही न, ममता की भूखी औरत, जिसका मन सदैव तरसता रहता था, अपनी कोख में बच्चे की हलचल को महसूस करने का, अपनी गोद में किलकारी लेते हुए अपने बच्चे को देखने का। एक मां के रूप में अपने बच्चे को पालने को तरसता हुआ उसका मन सदैव भीतर ही भीतर रोता रहता था। वह बस मन ही मन सदैव ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि ईश्वर उसके दुर्भाग्य को मिटाकर उसे मां बनने का सुख प्रदान करें। पर मानो ईश्वर ने भी अपने कान बंद कर रखे थे और उसकी दिन रात की प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दे रहे थे। कभी-कभी वह स्वयं को ही अपराधी मानने लगती कि वह राहुल को पिता होने का सुख प्रदान न कर सकी।

      एक दिन रात्रि में जब दोनों पति-पत्नी बिस्तर पर लेटे हुए थे, राधिका ने बहुत हिम्मत जुटा कर राहुल से कहा कि मैं चाहती हूं कि तुम दूसरी शादी कर लो। शायद तुम्हारी दूसरी पत्नी तुम्हें पिता होने का सुख प्रदान कर सके और मैं भी उसकी संतान को अपनी संतान समझ कर मातृत्व सुख भोग लूंगी। उसकी बात सुनकर राहुल तमतमाकर बोला, 'तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए, मैं इतना गया गुजरा नहीं कि संतान न होने पर अपनी पत्नी को छोड़ दूं या उसकी उपेक्षा कर दूसरी शादी कर लूं, मेरे जीवन में तुम ही हो और तुम ही रहोगी, संतान हो चाहे ना हो।' राहुल की बात सुनकर राधिका फफककर रोते हुए राहुल से लिपट गई और उसके सीने को अपने गर्म-गर्म आंसुओं से नहला दिया।

        समय बीतता गया अब विवाह को हुए दस वर्ष बीत गए थे। दोनों के मन में संतान होने की जो रही-सही उम्मीद थी वो भी जाती रही। एक दिन शाम को चार पीते वक्त राधिका ने राहुल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, ' मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं, प्लीज़ आप मना मत करना।' राहुल उसे संशय भरी निगाहों से देखने लगा कि अब वह क्या कहने वाली है। राधिका ने उसके कंधे पर अपना सर रखते हुए और प्यार भरी नजरों से उसे देखते हुए कहा कि क्यों न हम किसी बच्चे को गोद ले लें। राहुल ने राधिका को अपनी बाहों में भरते हुए कहा कि वह बहुत दिनों से यही सोच रहा था पर उससे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

       अब दोनों अपनी जिंदगी का एक नया निर्णय ले चुके थे। अगले ही दिन वो एक अनाथाश्रम पहुंचे और वहां से एक बहुत प्यारी सी, छोटी सी परी को अपनी बेटी बनाकर ले आए।

        अब राधिका उस नन्ही सी परी के लालन-पालन में ऐसा व्यस्त हुई कि समय का पता ही न चला। उसकी वह लाडली बेटी अब बड़ी हो गई थी और इंजीनियरिंग की परिक्षा पास कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगी। 'स्नेहा', ये नाम माता-पिता ने बड़े स्नेह से अपनी बेटी को दिया था और बेटी भी अपने नाम को सार्थक करते हुए अपने माता-पिता को अत्यधिक स्नेह करती थी।

 

रंजना मिश्रा ©️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 

 

गरीबी शिक्षा में बाधक नहीं है 




हम जिस युग में जी रहे हैं उसमे आधुनिक तकनीकी हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है जिसे सिखने या इस्तेमाल करने के लिए शिक्षा की अहमियत होती है. शिक्षा हम सभी के उज्जवल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है. हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं. ये तो हम हमेसा से सुनते आये हैं की शिक्षा पर दुनिया के हर एक बच्चे का अधिकार है. देश के विकास के लिए प्रत्येक बच्चे का शिक्षित होना बेहद जरुरी है। 

लेकिन हमारे देश भारत में क्या इन बातों पर अमल किया जाता है? सभी इस बात से वाकिफ हैं की भारत में गरीब लोगों की संख्या मध्यवर्गीय और अमीर लोगों की तुलना में कई ज्यादा है. इस गरीबी के कारण ऐसे कई लाख बच्चे हैं जिन्हें प्राथमिक शिक्षा भी नसीब नहीं होती और बचपन से ही उन्हें बाल श्रम के दलदल में ढकेल कर उनका मासूम सा बचपन छीन लिया जाता है। 

गरीबी के कारण केवल एक परिवार को ही नहीं बल्कि उस देश को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. अशिक्षित लोगों की संख्या बढ़ने से देश के उन्नति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। 

हमारे देश की हालत को सुधारने का एक मात्र रास्ता है शिक्षा. शिक्षा लोगों की सोच को सकारात्मक बनाती है और नकारात्मक विचारों को दूर भगाती है. आज मै आपके लिए एक अनोखा विषय लेकर आई हूँ जिसके बारे में आपको जानना जरुरी है ताकि जब भी आप किसी गरीब बच्चे को शिक्षा प्राप्त ना करते हुए देखें तो आप उसे सही सलाह दे सकते हैं. उस विषय का नाम है गरीबी शिक्षा में बाधक नहीं है पर निबंध. ये निबंध अपने बच्चों के साथ भी शेयर कीजिये ताकि उन्हें भी इस निबंध के माध्यम से शिक्षा के महत्व के बारे में पता चल सके। 

गरीबी एक ऐसी समस्या है जो हमारे पुरे जीवन को प्रभावित करने का कार्य करती है. गरीबी एक सामाजिक समस्या है जो इंसान को हर तरीके से परेशान करती है. इसके कारण एक व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर आदि जैसी सारी चीजें ख़राब हो जाती है. आज के समय में गरीबी को दुनिया के सबसे बड़ी समस्याओं में से एक माना जाता है। 

गरीबी में जीवन जीने वाले व्यक्तियों को ना तो अच्छी शिक्षा की प्राप्ति होती है ना ही उन्हें अच्छी सेहत मिलती है. भारत में गरीबी देखना बहुत आम सा हो गया है क्योंकि ज्यादातर लोग अपने जीवन की मुलभुत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर सकते हैं। 

 गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा है और अशिक्षा से अज्ञानता पनपती है. गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा तो छोडिये सामान्य शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाते हैं. शिक्षा का अधिकार सभी लोगों को है लेकिन गरीबी के कारण ऐसा नहीं हो पाता है. हमारी भारत सरकार गरीब लोगों के लिए कई सारे अभीयान चलाती है लेकिन अशिक्षित होने के कारण गरीबों तक उस अभियान की जानकारी नहीं पहुँच पाती है। 

गरीब लोगों में जागरूकता और जानकारी का अभाव तथा उनका गैर प्रगतिशील नज़रिया एक ऐसा मुलभुत कारण है जिसे गरीबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जानकारी तथा जागरूकता की कमी के कारण गरीब लोग सरकारी कार्यक्रमों का लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं. इसलिए प्राथमिक शिक्षा भी गरीबों के लिए बहुत ही जरुरी होता है। 

गरीबी इसलिए होती है क्योंकि गरीब लोगों के 7 से 8 बच्चे होते हैं. उन्हें छोटे परिवार के फायदों के बारे में जागरूक बनाये जाने की जरुरत है. बहुत से गरीब लोगों की ये सोच रहती है की उनका बच्चा पढ़ लिख कर क्या करेगा उसके बदले अगर वो छोटी उम्र से ही ढाबों और कारखानों जैसी जगहों पर काम करेगा तो घर में दो पैसे आ जायेंगे. ये लोग तरक्की करना नहीं चाहते। 

लेकिन विद्या एक ऐसा धन है जिसे ना तो कोई चुरा सकता है और ना ही कोई छीन सकता है. यह एक मात्र ऐसा धन है जो बाँटने पर कम नहीं होता बल्कि इसके विपरीत बढ़ता ही जाता है. शिक्षा हमें जीवन में एक अच्छा चिकित्सक, इंजिनियर, पायलट, शिक्षक आदि जो भी हम बनना चाहते हैं वो बनने के योग्य बनाती है। 

बेहतर शिक्षा सभी के लिए जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है. यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है. आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व क्या है ये गरीब परिवार और पिछड़ी जाती के लोगों को बताना अति आवश्यक है तभी वो अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेंगे। 

शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चलायी जा रही है ताकि सभी की शिक्षा तक पहुँच संभव हो. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के महत्व और लाभों को दिखाने के लिए टीवी और अखबारों में बहुत से विज्ञापनों को दिखाया जाता है क्योंकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी और शिक्षा की ओर अधूरी जानकारी के कारण पढाई करना नहीं चाहते हैं। 

भारत सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान 2001 से शुरू किया गया है, शिक्षा अभियान के अंतर्गत शिक्षा के स्तर को सुधारना मुख्य उद्देश्य है. इसमें मुख्य रूप से 7 वर्ष की उम्र से 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को मुफ्त में प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती है। 

सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य सभी को शिक्षित करके उन्हें अपने पैर पर खड़ा करना है जिससे समाज का कल्याण हो सके. इसके अलावा बालक बालिका का अंतर समाप्त करना, देश के हर गांव शहर में प्राथमिक स्कूल खोलना और मुफ्त शिक्षा प्रदान करना, निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, स्कूल ड्रेस देना, शिक्षकों का चयन करना, उन्हें लगातार प्रशिक्षण देते रहना, स्कूलों में अतिरिक्त कक्षा का निर्माण करना आदि सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य में शामिल हैं। 

बालिका छात्रों तथा कमजोरवर्गों के बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है. डिजिटल दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाएगी। 

स्कूली शिक्षा बिना अमीरी गरीबी का भेदभाव किये सभी बच्चों को मिलनी चाहिए क्योंको ये सभी के जीवन में एक महान भूमिका निभाती है. शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा जैसे तिन प्रभागों में विभाजित किया गया है. शिक्षा के सभी भागों का अपना महत्व और लाभ है. प्राथमिक शिक्षा आधार तैयार करती है जो जीवन भर मदद करती है। 

माध्यमिक शिक्षा आगे के अध्ययन के लिए रास्ता तैयार करती है और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा भविष्य और पुरे जीवन का अंतिम रास्ता तैयार करती है. उचित शिक्षा भविष्य में आगे बढ़ने के बहुत सारे रास्ते बनाती है. यह हमारे ज्ञान स्तर, तकनिकी कौशल और नौकरी में अच्छी स्थिति को बढाकर हमें मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से मजबूत बनाता है। 

पहले भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत सख्त थी और सभी वर्गों के लोग अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे. ज्यादा पैसे लगने की वजह से विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना बहुत कठिन था. लेकिन अब शिक्षा प्रणाली में बदलाव किये गए हैं जिससे शिक्षा में आगे बढ़ना सरल और आसान हो गया है। 

भारत सरकार द्वारा शिक्षा प्रणाली को सभी स्तर के लोगों के लिए सुलभ और कम खर्चीली बनाने के लिए कई नियम और कानून बनाये गए हैं और उन्हें लागु किया गया है. शिक्षा का पूरा तंत्र अब बदल दिया गया है। 

हम अब 12वीं कक्षा के बाद दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम यानि डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से अपनी पढाई घर बैठे ही पूरी कर सकते हैं. दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से हम आसानी से किसी भी बड़े और प्रसिद्ध विश्वविध्यालय में बहुत कम शुल्क पर प्रवेश ले सकते हैं। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों ने उच्च अध्ययन को इतना सरल और सस्ता बना दिया है की पिछड़े क्षेत्रों के लोग भविष्य में शिक्षा और सफलता तक अपनी पहुँच प्राप्त कर सकते हैं। 

शिक्षा के बहुत से लाभ होते हैं पहला तो ये की गरीबी की स्थिति को सुधारने में सक्षम होता है. शिक्षा के कारण लोगों को समाज में मान सम्मान मिलता है और इज्जत मिलता है. नौकरी के ढेरों अवसर मिलते हैं जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगता है। 

शिक्षा के कारण ही कई तरह के आविष्कार हुए हैं. इन अविष्कारों से मनुष्य का जीवन और भी आसान हो गया है. अच्छी शिक्षा की वजह से अच्छे अच्छे इंजीनियर, डाॅक्टर, वैज्ञानिक एवं व्यवसायी आदि बनते हैं, जो समाज को काफी कुछ देते हैं जिनसे अनगिनत लोगों को कई फायदे मिलते हैं। 

शिक्षा के वजह से ही व्यापार का विकास होता है और देश की आय में बढ़ोतरी होती है. अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना जैसे कई सारे मुद्दों के बारे में सोचने समझने की काबिलियत प्रदान करता है.। 

समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा तथा भेदभाव जैसे ऐसी समस्याएं हैं जो आज के समय में विश्व भर को प्रभावित कर रही है. इसे देखते हुए हमें इन कारणों की पहचान करनी होगी और इनसे निपटने की रणनीति बनाते हुए समाज के विकास को सुनिश्चित करना होगा क्योंकि गरीबी का सफाया समग्र विकास के द्वारा ही संभव है।

 

प्रफुल्ल सिंह 

शोध प्रशिक्षिक एवं साहित्यकार

लखनऊ, उत्तर प्रदेश


 

 




"जब हमारे अन्नदाता ही नहीं होंगे तो हम खाएंगे क्या ??""

हाल ही में जो सभी का पेट भरते है हमारे किसान उनकी हत्या बिहार के कटिहार जिले में कर दी गई । आखिर दोस्तों कब थमेगी हमारे अन्नदाता पर ज़ुल्म !

दोस्तों एक तरफ तो हमारे अन्नदाता उनके लागत का उचित मूल्य और अत्यधिक कर्ज होने व फसल बर्बाद हो जाने के कारण आए दिन खुदकुशी जैसे कदम उठाने को मजबूर होते हैं ,तो वही दूसरी तरफ हमारे अन्नदाता का इस प्रकार से खुलेआम हत्या आखिर क्यों नहीं सरकार हमारे किसानों के लिए सुरक्षा कानून बनाती है?

दोस्तों देखना आप कोविड 19 जैसी वैश्विक महामारी के कारण गिरती अर्थव्यवस्था को भी हमारे कृषक वर्ग ही पटरी पर लाएंगे।

दोस्तों ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकनोमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट और इसके साथ ही इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनामिक रिलेशंस के एक अध्ययन के मुताबिक भी भारत में पिछले दो दशकों से खेती लगातार घाटे का सौदा बनी हुई है। दोस्तों आज आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी कृषि घाटे का सौदा बनी हुई है इसके लिए सरकारी नीति ही कहीं ना कहीं परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जिम्मेदार  है । साथियों हम देखते हैं  कि हमारे यहां मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए अनाज की कीमत कम रखने पर जोर दिया जाता है जिसके कारण ही किसानों को कम कीमत मिलती है। अगर हम देखें तो बिहार में एक किसान की मासिक आय औसतन 3,558 रूपये हैं तो वही पश्चिम बंगाल में 3980 रूपये  हैं l जबकि दोस्तों पंजाब के एक किसान की मासिक आय 18,059 रुपए तक है।

दोस्तों अगर किसानों की आय को दोगुना भी कर दिया जाता है तब भी देखें तो यह आय अन्य छोटी नौकरियों और मामूली कारोबार की तुलना में बहुत ही कम है । अब आप समझ सकते हैं कि हमारे अन्नदाता आए दिन आत्महत्या जैसे कदम क्यों उठाते हैं ?

मेरे दोस्तों जैसा कि आप भी जानते  हैं कि देश में हरित क्रांति के जनक प्रोफेसर एम .एस .स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 18 नवंबर 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था। यह आयोग ने अपने सुझाव मे बताया था कि फसल उत्पादन मूल्य से 50 प्रतिशत ज्यादा कीमत किसानों को मिले और गांवो में किसानों के मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जाए व फसल बीमा की सुविधा पूरे देश में हर फसल के लिए मिले इसके साथ ही सरकार की मदद से किसानों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दर कम करके 4 फ़ीसदी किया जाए और लगातार प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में किसान को मदद पहुंचाने के लिए एक एग्रीकल्चर रिस्क फंड का गठन किया जाए।

लेकिन हम देख रहे हैं कि आज तक इस पर अमल नहीं किया गया है मैंने तो खुद जो नाबार्ड के माध्यम से फार्मर क्लब बनाकर किसानों को संगठित करके उनको जागरूक व हर संभव मदद करने का योजना है उसमें खुद काम किया लेकिन हमने देखा किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कोई विशेष रूचि नहीं लेता कोई भी संस्था।

दोस्तों केंद्र सरकार के कृषि विकास व किसानों की आमदनी दो गुना करने के तमाम दावों के बावजूद किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और दूसरी तरफ 4 दिन पहले ही हमारे बिहार के कटिहार जिले के अन्नदाता को  बदमाशों ने तो मार ही दिया ।।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो कि रिपोर्ट के मुताबिक फिर एक बार निराशाजनक आंकड़े सामने आए हैं। एनसीआरबी के मुताबिक दोस्तों 2016 में 11,379 किसानों ने खुदकुशी की है। वैसे एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड इन इंडिया शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में 2015 में 12,602 आत्महत्याओं के मुकाबले 2016 में खुदकुशी के कुल मामलों में कमी देखने को तो मिली है। दोस्तों किसान आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र लगातार पहले स्थान पर आज भी बना हुआ है। हमारा देश  ऐसा है जो दुनिया की सातवीं  सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, दोस्तों आप कह सकते हो ऐसे देश में हजारों की संख्या में किसानों का मरना बहुत ही चिंताजनक और अफसोस जनक मामला है। यह आंकड़ा देखकर आप भी सहम जाएंगे की हमारे यहां औसतन हर 46 मिनट में हमारे देश में कहीं ना कहीं एक किसान आत्महत्या जरूर करता है। अब मेरा सवाल यह है कि सरकार की कृषि क्षेत्र की गुलाबी तस्वीर पेश करने की तमाम कोशिशों के बावजूद किसानों की खुदकुशी रुकने का नाम क्यों नहीं ले रही है ??

हमारे अन्नदाताओ की आत्महत्या की यह तस्वीर कहीं सरकार की दोषपूर्ण नीतियों का नतीजा तो नहीं है ना ?

दोस्तों मेरे को कहने की जरूरत नहीं है कि किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला हमारे नीति निर्माताओं की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों का ही नतीजा है। ऐसी नीतियां जिनसे गरीब और गरीब हो रहे हैं और अमीर और अमीर हो रहा है। जरा आप भी सोचिए क्या कारण है कि एक किसान मंडी में टमाटर प्याज 50 पैसे प्रति किलो बेचने जाता है लेकिन खरीददार और बिचौलिया 20 -25 पैसे प्रति किलो देने के लिए कहता है और वह किसान एक ट्रैक्टर से टमाटर को जमीन पर रौंदकर चला जाता है? उस किसान का जब लागत ही नहीं निकल पाएगा भाड़ा गाड़ी भी नहीं निकल पाएगा तो वह किसान 20- 25 पैसे प्रति किलोग्राम बेचने के बजाय टमाटर प्याज को जमीन पर फेंकना बेहतर समझता है ।।

दोस्तों एनसीआरबी के 2015 के रिपोर्ट के मुताबिक किसानों की आत्महत्या का सबसे प्रमुख कारण कर्ज में डूबने का ही रहा था। ध्यान से देखें तो गरीबी और बिमारी भी किसानों की आत्महत्या की अहम वजह होती है। गरीबी और बीमारी भी दोस्तों आय से सीधे जुड़ी हुई होती है, गरीबी के कारण ही लोग इलाज के लिए ऋण लेते हैं और निम्न आय के कारण कर्ज चुका  नहीं पाते हैं . और  धीरे- धीरे नतीजतन ब्याज बढ़ते रहने के कारण कर्ज के पहाड़   बढ़ता जाता है, जिसके बोझ को हमारे अन्नदाता सह नहीं पाते हैं।। दोस्तो इसी कृषि  की बदतर हालात के कारण ही किसान अपने बच्चों को खेती के बजाय कोई नौकरी करने की सलाह देते हैं और यही कारण है कि एक बड़ी आबादी गांव से शहर की ओर लगातार पलायन कर रही है। यह तस्वीर दोस्तों भारत के भविष्य के लिए खतरे की घंटी जैसी है। क्योंकि जब हमारे अन्नदाता ही नहीं रहेंगे तो हम खाएंगे क्या?

आप सभी ने भी देखा मेरे दोस्तों जब कोविड-19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन किया गया तो देश के बड़े-बड़े महानगरों और दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर के रुप में अपने गांव को छोड़कर गए हुए लोगों में अधिकतर युवा वर्ग के लोग हमारे किसान परिवार से ही थे, जब लॉकडाउन किया गया था तो हजारों किलोमीटर पैदल चलने को यह प्रवासी मजदूर मजबूर हुआ जिसमें से कुछ लोग किसी बस, ट्रक और ट्रेन के नीचे दबकर मारे गए तो कुछ लोग हमने देखा कि भूखे- प्यासे मारे गए जिनमें हमारे अन्नदाता के भी बच्चे थे । यह अन्नदाता के बच्चे अपने घर के माली स्थिति को सुधारने के लिए गए थे जो  जाकर बड़े-बड़े महानगरों में किसी कंपनी या अपना छोटा- मोटा रोजगार करते थे।। आपको बता दें कि चीन में छोटे और सीमांत किसानों को ब्याज मुक्त या निम्न ब्याज दरों पर कर्ज दिया जाता है और भी दूसरे देशों में किसानों के लिए कई प्रकार के सुरक्षा कानून है फिर हमारे यहां क्यों नहीं किसानों के लिए सुरक्षा कानून बनता है ??

कवि विक्रम क्रांतिकारी (चिंतक/पत्रकार / आईएएस मेंटर/अध्येता

दिल्ली विश्वविद्यालय - अध्येता 9069821319