Friday, July 10, 2020

बढ़ती जनसंख्या को रोकना जरुरी

दरअसल हम मूलभूत समस्याओं से अक्सर मुँह मोड़ते रहे हैं।कारण चाहे कुछ भी रहे हों लेकिन ऐसा रहा है।ये भी सच है कि वर्षोंवर्ष से हम सिर्फ तात्कालिक रूप से ही किसी चीज का इलाज करते है सार्वकालिक रूप से नहीं और परिणाम हम भुगतते ही हैं।भारत देश में अनेकानक जटिल से जटिल समस्याएँ हैं जो देश की उन्नति और प्रगति में बाधा पैदा करती हैं।जैसे गरीबी,बेरोजगारी,बेकारी,भुखमरी,शिक्षा का लगातार गिरता स्तर,महिला सुरक्षा,कानून की पालना,राजनीति में घुसता धर्म और गुंडागर्दी,स्वास्थ्य सेवाओं का गिरना आदि-आदि।इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या ऐसी भी है जो इन्हीं में कई समस्याओं की जड़ है।यदि उस समस्या का निपटारा कर दिया जाए तो सम्भवतः कई समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी।वह समस्या है निरन्तर सुरसा राक्षसी की तरह मुँह फैलाती जनसंख्या की बढ़ोतरी।यह भी जटिल समस्याओं में से एक है।आज की तारीख में समस्त विश्व में चीन के बाद भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है।यदि यही हाल रहा तो लगभग दो हजार तीस तक हम इस मामले में चीन को पछाड़ कर विश्व में पहले स्थान पर होंगे।

हमारी जनसंख्या वृदधि की दर का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि 1947 के बाद के पश्चात् मात्र पाँच दशकों में यह लगभग पैंतीस करोड़ से एक सौ चालीस करोड़ के आँकड़े को पार कर गई है।जहाँ तक कारणों की बात है तो हमारे देश में जनसंख्या की बढोतरी के अनेक कारण हैं जैसे यहाँ की जलवायु प्रजनन के लिए अधिक अनुकूल है। इसके अलावा निर्धनता,अनपढ़ता रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण मानसिकता जनसंख्या वृदधि के अन्य कारण हैं।देश में बाल-विवाह की परंपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में थोड़ी ही सही पर विद्‌यमान है और कहीं-कहीं तो यह प्रथा के रूप में अब भी प्रचलित है जिसके कारण भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं ।

शिक्षा की कमी,लोगों की सोच का वैज्ञानिक न होना भी जनसंख्या की लगातार बढ़ोतरी का एक मुख्य कारण है।आपको शायद होगा कि एक बार 1977 में इंदिरा सरकार ने जबरन ऐसा कुछ किया था जिससे जनसंख्या पर नियंत्रण लगता लेकिन उस वक्त उसी निर्णय पर उनकी काफी फजीहत भी हुई थी।परिवार नियोजन के महत्व को अज्ञानतावश लोग समझ नहीं पाते हैं । इसके अतिरिक्त पुरुष समाज की प्रधानता होने के कारण लोग लड़के की चाह में कई संतानें उत्पन्न कर लेते हैं।परन्तु इसके पश्चात् उनका उचित भरण-पोषण करने की सामर्थ्य न होने पर निर्धनता में कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं।जन्मदर की अपेक्षा मृत्यु दर कम होना भी जनसंख्या वृद्धि का ही एक कारण है क्योंकि समय के हिसाब से वैज्ञानिक प्रगति हुई जिससे चिकित्सा विज्ञान ने मृत्यु दर को कम कर दिया।ऐसी कुछ बीमारियां जो आसाध्य थी,उनका इलाज भी हमने ढूंढ लिया और परिणाम बढ़ोतरी हुई।गरीबी भी जनसंख्या के बढ़ने का एक प्रमुख कारणों में एक है।इस तरह के आंकड़े हैं कि जहां गरीबी कम है,वहां जनसंख्या की बढ़ोतरी उनकी अपेक्षा कम हुई जहां गरीबी थी।

अब सवाल यह है कि यदि जनसंख्या बढ़ती है तो फिर देश में रोजी-रोटी और रोजगार की समस्या तो बढ़ेगी ही।साथ ही गरीबी और भुखमरी भी पैदा होगी।जल,जंगल और जमीन की कमी रहेगी।कानून व्यवस्था बनाए रखने में भी कहीं न कहीं परेशानी तो जरूर आएगी।अभी बहुत पहले की बात न करें तो इस महामारी के दौरान हमने इस बात को भली-भांति देखा ही है।जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ेगी तो निश्चित रूप से गरीबी बढ़ेगी।हाल में हम देख सकते हैं कि देश में अस्सी करोड़ लोगों को तो सरकार को फ्री अनाज देना पड़ रहा है और हरियाणा जैसे प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा उच्चतम स्तर पर है।हम दो-हमारे दो का नारा भी हमने लगाकर देखा है लेकिन वो सार्थक परिणाम नहीं आए  जिसकी हम अपेक्षा करते थे।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर अंकुश लगाना देश के विकास के लिए बेहद आवश्यक है। यदि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब स्थिति हमारे नियत्रंण से दूर हो जाएगी।इस संदर्भ में सबसे पहले यह जरुरी है कि हम परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों को विस्तृत रूप देकर इसे जन-जन तक पहुंचाने का काम तीव्रता से करें।जनसंख्या वृदधि की रोकथाम के लिए न केवल प्रशासनिक स्तर बल्कि  सामाजिक,धार्मिक और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की तत्काल और सख्त जरूरत है।हरेक स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए जनमानस के प्रति जन जागरण अभियान छेड़ा जाना चाहिए।जनसंख्या को काबू करने के लिए यदि सरकार को कोई कठोर कदम भी उठाना पड़े तो उठाने से नहीं हिचकना चाहिए।कोई न कोई सख्त कानून बनाकर भी जनसंख्या को काबू किया जा सकता है।इसी संदर्भ में कुछ ऐसे निर्णय भी लिए जा सकते हैं कि जैसे दो से अधिक बच्चों वालों को नौकरी नहीं दी जायेगी,चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा।दो से अधिक बच्चे होने पर किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधाएं नहीं दी जाएगी।शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके भी इसे रोका जा सकता है।अतः में हम यही कहना चाहेंगे कि यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो फिर बहुत देर हो जाएगी।हम और हमारा देश बहुत पीछे की और चले जाएंगे।आमीन।

 

कृष्ण कुमार निर्माण

करनाल,हरियाणा।

देश को प्रकृति और विकास के बीच संतुलन की आवश्कता




कोरोना वायरस महामारी के चलते लगभग 2 माह के लॉकडाउन के बाद भारत सहित विश्व के लगभग 75 प्रतिशत देश अपनी अर्थव्यवस्थाएँ धीरे-धीरे खोलते जा रहे हैं। अब आर्थिक गतिविधियाँ पुनः तेज़ी से आगे बढ़ेंगी। परंतु लॉकडाउन के दौरान जब विनिर्माण सहित समस्त प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ बंद रहीं तब हम सभी ने यह पाया कि वायु प्रदूषण एवं नदियों में प्रदूषण का स्तर बहुत कम हो गया है। देश के कई भागों में तो आसमान इतना साफ़ दृष्टिगोचर हो रहा है कि लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ भी साफ़ दिखाई देने लगे हैं, कई लोगों ने अपनी ज़िंदगी में इतना साफ़ आसमान पहले कभी नहीं देखा था। इसका आश्य तो यही है कि यदि हम आर्थिक गतिविधियों को व्यवस्थित तरीक़े से संचालित करें तो प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

 

हर देश में सामाजिक और आर्थिक स्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इन्हीं परिस्थितियों के अनुरूप आर्थिक या पर्यावरण की समस्याओं के समाधान की योजना भी बनती है। आज विश्व में कई ऐसे देश हैं जिनकी ऊर्जा की खपत जीवाश्म ऊर्जा पर निर्भर है। इससे पर्यावरण दूषित होता है। हमारे अपने देश, भारत में भी अभी तक हम ऊर्जा की पूर्ति हेतु आयातित तेल एवं कोयले के उपयोग पर ही निर्भर रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी के दौरान हम सभी को एक बहुत बड़ा सबक़ यह भी मिला कि यदि हम इसी प्रकार व्यवसाय जारी रखेंगे तो पूरे विश्व में पर्यावरण की दृष्टि से बहुत बड़ी विपदा आ सकती है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

भारत विश्व में भू-भाग की दृष्टि से सांतवां सबसे बड़ा देश है जबकि भारत में, चीन के बाद, सबसे अधिक आबादी निवास करती है। इसके परिणाम स्वरूप भारत में प्रति किलोमीटर अधिक लोग निवास करते हैं और देश में ज़मीन पर बहुत अधिक दबाव है। हमारे देश में विकास के मॉडल को सुधारना होगा। सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना भी अब बहुत ज़रूरी है। यदि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कुछ क़दमों को छोड़ दें तो अन्यथा पर्यावरण के प्रति हम उदासीन ही रहे हैं। अभी हाल ही में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बहुत सारे ऐसे क़दम उठाए गए हैं जिनमें न केवल जन भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है बल्कि इन्हें क़ानूनी रूप से सक्षम बनाए जाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे ग्रीन इंडिया की पहल हो, वन संरक्षण के बारे में की गई पहल हो अथवा वॉटर शेड के संरक्षण के लिए उठाए गए क़दम हों। यह इन्हीं क़दमों का नतीजा है कि देश पर जनसंख्या का इतना दबाव होने के बावजूद भी भारत में अभी हाल में वन सम्पदा बढ़ी है और देश में वन जीवन बचा हुआ है।

 

प्रफुल्ल सिंह "साहित्यकार"

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

8564873029


 

 



 

गैंगस्टर की गिरफ्तारी का कॉमेडी ड्रामा

आठ पुलिसवालों की हत्या करने वाले एक खूंखार अपराधी को सात रात और सात दिनों तक उत्तर प्रदेश पुलिस की चालीस थानों की टीमें और पांच राज्यों की पुलिस दिन रात ढूंढ़ती है, किन्तु पकड़ने में असफल रहती है, और एक दिन अचानक वह उज्जैन के महाकाल मंदिर के प्रांगण में टहलता दिखाई देता है। वह सात दिनों में 1200 किमी की यात्रा करता है, गाड़ी में बैठ कर आराम से खाते पीते मंदिर पहुंचता है, वीआईपी दर्शन की पर्ची कटवा कर, इसप्रकार आराम से घूम फिर रहा था, मानो वो फरार न हो कर घूमने आया हो। 

        जिस गैंगस्टर को उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े अधिकारी तथा पांच राज्यों की पुलिस नहीं पकड़ पाई, उसे महाकाल मंदिर का एक गार्ड जिसका नाम लखन है, पहचान लेता है। वह इस पर लगातार दो घंटे तक नजर बनाए रखता है और स्थानीय पुलिस वालों को इसकी सूचना देता है और पुलिस विकास दुबे को वहां से गिरफ्तार कर लेती है।

       जब पुलिस वाले उसको पकड़ने के लिए भाग दौड़ कर रहे थे तो वह उज्जैन में महाकाल से शायद अपने बचने की प्रार्थना करने गया था कि कहीं पुलिस उसका एनकाउंटर न कर दे।इस दौरान वह दस से ज्यादा टोलप्लाजा पर टोल देने के लिए रुका होगा, लेकिन कहीं भी पहचाना नहीं गया।जबकि हर टोल प्लाजा पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं।हर टोलप्लाजा पर पुलिस रहती है, नाकाबंदी रहती है और उत्तर प्रदेश की पुलिस नोएडा से गुजरने वाली गाड़ियों की गहराई से जांच भी कर रही थी। पकड़े जाने पर विकास दुबे चिल्ला कर बोला, 'मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला।' मानो वो अपराधी न होकर कोई ब्रांड एंबेसडर हो।

        ये पूरी गिरफ्तारी फिल्मी कहानियों की तरह हुई। 2 और 3 जुलाई की रात आठ पुलिसवालों को इसने गोलियों से छलनी कर दिया था। इसकी गिरफ्तारी पर 5 लाख का इनाम था और आखिर कार ये मोस्ट वांटेड मध्य प्रदेश में उज्जैन के महाकाल मंदिर में पकड़ा गया।

 

रंजना मिश्रा ©️

विश्व जनसंख्या समस्या पर वैश्विक चेतना 2020

साल दर साल विश्व जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में हो रही वृद्धि के मद्देनजर, इस स्थिति से अनभिज्ञ हो चुकी समस्त मानव जाति को एक मंच पर लाकर उन्हें बढ़ती हुई जनसंख्या के प्रति सचेत करने की एक पहल विश्व जनसंख्या दिवस (11 जुलाई) के रूप में आयोजित की जाती है। जिसमें दुनिया के लगभग सभी देश मिलकर जनसंख्या विस्फोट से उत्पन्न हो रही समस्त समस्याओं पर आपसी विचार-विमर्श करते हुए इन समस्याओं से निजात पाने हेतु कई वैश्विक सुझावों पर सहमति जाहिर करते हैं। हालांकि इस वर्ष जनसंख्या दिवस का विषय ' परिवार योजना एक मानव अधिकार है ' के अंतर्गत स्वस्थ व सुदृढ़ परिवार की स्थापना में समस्त मानव जाति की भागीदारी को सुनिश्चित करना, मगर फिर भी हर वर्ष जनसंख्या दिवस की भाँति इस बार भी बढ़ती जनसंख्या को केंद्र में रखकर, समस्त मानव जाति को जनसंख्या के महत्व को समझाया जाएगा।
हालांकि जनसंख्या किसी भी राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। संसाधनों के मुकाबले अगर जनसंख्या की वृद्धि कम है तो यह किसी भी राष्ट्र की बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रेरित करती है। जनसंख्या वृद्धि के प्रति सचेत करते हुए, समस्त मानव जाति को इससे अनवरत घट रहे संसाधनों के प्रति जागरूक करना इस दिवस का मुख्य लक्ष्य होता है। तीव्र गति से बढ़ती हुई वैश्विक जनसंख्या कई बड़ी समस्याओं को जन्म देती है, जिसका प्रभाव मानव जाति के साथ-साथ प्राकृतिक चक्र पर भी प्रत्यक्षतः देखा जा सकता है। बात अगर स्वास्थ्य करें तो एक बच्चे को जन्म देने में प्रतिदिन लगभग 800 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, अतः हम कह सकते हैं कि जननीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन की तरफ समस्त मानव जाति को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर इन मुद्दों पर विशेष जोर दिया जाता रहा है, क्योंकि एक स्वस्थ प्रजनन एक सुदृढ़ विकास को बढ़ावा देता है।
वर्तमान समय में विश्व की जनसंख्या लगभग 7.7 अरब के पार पहुंच चुकी है, इस विशाल जनसंख्या वृद्धि में सबसे ज्यादा योगदान चीन और भारत के द्वारा किया गया है, जो कि एक चिंतनशील मुद्दा है। इस तरह की तीव्र जनसंख्या वृद्धि के मद्देनजर प्रश्न यह उठता है कि क्या हम इतनी बड़ी जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सक्षम हैं ? अगर हैं ! भी तो आखिर कब तक ? आज जनसंख्या का दबाव जिस तरह संसाधनों के ऊपर बढ़ता जा रहा है, उसे देखकर यह नहीं लगता कि हमारे मौजूदा संसाधन भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित रह सकेंगे। यूएन के एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान व्यक्त किया गया है कि 2023 तक विश्व की जनसंख्या 8 अरब तथा 2056 तक 10 अरब को पार कर जाएगी। ऐसे में यह आंकड़ें काफी चौकाने वाले हैं कि अगर ऐसा होता है तो दुनिया अनेक समस्याओं का सामना करेगी, मौजूदा जनसंख्या के भरण-पोषण, स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं व रोजगार मुहैया कराना, एक बड़ी चुनौती हो जाएगी।
आज जनसंख्या की यह तीव्र वृद्धि पूरी दुनिया के सम्मुख जनसंख्या विस्फोट के रूप में एक चुनौती बनकर खड़ी हो गई है। इस विस्फोटक चुनौती को संभालना पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम है, क्योंकि जनसंख्या और संसाधन के बीच गहरा संबंध है, अधिक जनसंख्या अधिक संसाधन का उपयोग करेगी। अतः इस तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करना पूरी दुनिया के लिए बेहद जरूरी हो गया है, जिसके लिए समस्त मानव जाति को हम दो हमारे एक या दो को अपनाते हुए, स्वास्थ्य व सुरक्षा के प्रति जागरूक होना होगा। तीव्र गति से घट रहे संसाधनों का संतुलित उपयोग व संरक्षण सुनिश्चित करना होगा, ताकि भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित व संरक्षित संसाधनों को बचाया जा सके। क्योंकि संसाधन ही किसी समाज के सुदृढ़ विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं।


रचनाकार - मिथलेश सिंह 'मिलिंद'
मरहट, पवई, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)