Friday, June 26, 2020

मिल्कीपुर के लेखपालों ने शोक सभा कर सड़क हादसे में मारे गए साथी को अर्पित की श्रद्धांजलि






मिल्कीपुर।  जिले के सदर तहसील में तैनात रहे लेखपाल राजेश सिंह की सड़क हादसे में हुई असामयिक मौत के बाद राजस्व महकमे में शोक की लहर दौड़ गई है। मिल्कीपुर के लेखपालों ने शुक्रवार को तहसील सभागार में शोकसभा आयोजित कर दिवंगत साथी लेखपाल को श्रद्धांजलि अर्पित की। तहसील सभागार में उपजिलाधिकारी अशोक कुमार शर्मा की अध्यक्षता मेे लेखपालों ने दिवंगत लेखपाल राजेश कुमार सिंह की आत्मा की शांति हेतु 2 मिनट का मौन रखा और घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया। शोक सभा में प्रमुख रूप से मिल्कीपुर के नायब तहसीलदार हृदय राम तिवारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश लेखपाल संघ तहसील शाखा मिल्कीपुर महेंद्रर तिवारी मंत्री अजय तिवारी सहित अन्य समस्त लेखपाल एवं राजस्व कर्मी मौजूद रहे।


 

 



 



अनियंत्रित पिकअप की टक्कर से 3 वर्षीय मासूम बेटी प्रियांशी की दर्दनाक मौत






मिल्कीपुर। इनायत नगर थाना क्षेत्र के ढेमा वैश्य मोड़ के पास अनियंत्रित पिकअप की टक्कर से 3 वर्षीय मासूम बेटी प्रियांशी की दर्दनाक मौत हो गई है घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर पहुंचे इनायत नगर थाने के एसएसआई उपेंद्र प्रताप सिंह ने बालिका का शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पुलिस ने बालिका के पिता की तहरीर पर पिकअप एवं चालक अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा कायम कर लिया है।

        प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार को दोपहर करीब 12 बजे वैश्य मोड़ के पास जाखा गांव निवासी संजय की 3 वर्षीय बेटी प्रियांशी खेल रही थी इसी बीच हैरिंग्टनगंज शाहगंज रोड पर तेज रफ्तार से लापरवाही पूर्वक चलाते हुए जा रहे पिकप संख्या यूपी 42 एटी 5305 का ड्राइवर अनियंत्रित हो गया और पिक अप सड़क के किनारे खेल रही मासूम को रौंद दिया। हादसे के बाद पिकअप चालक  सड़क के किनारे पिकअप खड़ा कर मौके से भाग निकला। आस-पास मौजूद ग्रामीणों घटना के बाद मौके पर पहुंचे और विरोध जताने लगे ग्रामीणों ने इसकी जानकारी इनायत नगर पुलिस को दी आक्रोशित ग्रामीणों का तेवर भाप मौके पर पहुंचे।

       जिला पंचायत सदस्य विनय कुमार सिंह ने लोगों को समझा-बुझाकर शांत कराया। सूचना मिलते ही इनायत नगर थाने के वरिष्ठ उपनिरीक्षक उपेंद्र प्रताप सिंह पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए और उन्होंने नाराज तथा उग्र लोगों को समझा-बुझाकर बालिका का शव कब्जे में लेकर पंचायत नामा कराने के उपरांत पोस्टमार्टम को भेजा। पुलिस ने बालिका को टक्कर मारने वाली पिक अप को थाने ले गई है। मामले में पिकअप एवं चालक अज्ञाात के विरुद्ध मुकदमा कायम किए जाने हेतु बालिका के पिता संजय कुमार ने तहरीर दी है।


 

 



 



दुर्वासा ऋषि का क्रोध बना था समुद्र मंथन का कारण

अभी पृथ्वी का विकास और निर्माण पूरा नहीं हुआ था। उसको रहने लायक और मानव योग्य बनाने का उपक्रम चल रहा था। इसलिए अभी देवता, अपने दायाद बंधु, असुरों के साथ ही धरती पर रहते थे। परन्तु यह काम उनके अकेले के वश का नहीं था। इस विशाल, महान, श्रमसाध्य कार्य के लिए कई दैवीय शक्तियों और उपकरणों की आवश्यकता थी। दैवीय उपकरण सागर मंथन से ही उपलब्ध हो सकते थे और इसके लिए यह जरुरी था कि दैत्य-दानव जैसी आसुरी शक्तियों का भी सहयोग लिया जाए। इस समस्या को सुलझाने के लिए त्रिदेवों ने एक योजना बनाई और असुरों को साथ लाने का कारण गढ़ा गया .......! 

संसार में घटने वाली बड़ी घटनाओं या वाकयात के पीछे महीनों पहले निर्मित हुई परिस्थितियों या कारणों का हाथ जरूर होता है। कभी-कभी तो ये इतने मामूली होते हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता कि इनके कारण भविष्य में सारे जगत को प्रभावित करने वाली कोई घटना भी घट सकती है। फिर चाहे दुर्वासा का क्रोध हो जो देवासुर संग्राम का जरिया बन गया ! चाहे मंथरा की जिद जिसने राम-रावण युद्ध की भूमिका रच डाली ! द्रौपदी की एक हंसी ने सारे आर्यावर्त को रुदन के सागर में डुबो दिया ! आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड की हत्या प्रथम विश्वयुद्ध का कारण बन गई या फिर विश्व की 1929-30 की आर्थिक मंदी ने द्वितीय महायुद्ध का आह्वान कर डाला हो ! कौन सोच सकता था कि ऐसी बातों से भी सारा संसार आपस में एक-दूसरे के खून का प्यासा हो जाएगा ! पौराणिक काल में भी एक ऐसी ही छोटी सी बात आज तक की सबसे विस्मयकारी, अद्भुत, अकल्पनीय घटना, समुद्र मंथन का कारण बन गई थी।  

यह उस समय की बात है जब अभी पृथ्वी का विकास और निर्माण पूरा नहीं हुआ था। सिर्फ सुमेरु पर्वत के आस-पास का इलाका ही रहने योग्य हो सका था बाकी चारों ओर सब जगह पानी ही पानी था। उसको रहने लायक और मानव योग्य बनाने का उपक्रम चल रहा था। इसलिए अभी देवता, अपने दायाद बंधु, असुरों के साथ ही धरती पर रहते थे। परन्तु यह काम उनके अकेले के वश का नहीं था। इस विशाल, महान, श्रमसाध्य कार्य के लिए कई दैवीय शक्तियों और उपकरणों की आवश्यकता थी। दैवीय उपकरण सागर मंथन से ही उपलब्ध हो सकते थे और इसके लिए यह जरुरी था कि दैत्य-दानव जैसी आसुरी शक्तियों का भी सहयोग लिया जाए। पर सुर और असुर एक दूसरे के जानी दुश्मन थे ! इस समस्या को सुलझाने के लिए त्रिदेवों ने काफी सोच विचार कर एक योजना बनाई और असुरों को साथ लाने का कारण गढ़ा गया। 

एक बार दुर्वासा ऋषि को, विश्राम के दौरान, उनके आश्रम में कुछ विद्याधरों ने दिव्य संतानक पुष्पों की माला अर्पित की। माला की सुगंध दूर-दूर तक फैल रही थी। उसी समय उधर से गुजरते हुए, अपने हाथी पर आरूढ़ इंद्र ने ऋषि को प्रणाम किया। दुर्वासा ने खुश हो कर वह माला इंद्र को दे दी। पर इंद्र ने उपेक्षा पूर्वक उसे हाथी के गले में डाल दिया। पुष्पों की तेज गंध से गजराज ने परेशान माला को तोड़ अपने पैरों से कुचल डाला। अपने उपहार का तिरस्कार होता देख दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि, ''हे इंद्र ! जिस वैभव का तुम्हें इतना अभिमान है वह ख़त्म हो जाएगा और उसके साथ ही तुम भी श्री हीन हो जाओगे !'' इंद्र की किसी भी अनुनय-विनय का ऋषि पर कोई असर नहीं हुआ। श्राप के कारण इंद्र निस्तेज हो गया ! उसके साथ ही अमरावती और देवों की शक्तियों का भी ह्रास हो गया। इस बात की खबर मिलते ही असुरों ने अपने शक्तिशाली राजा बलि के नेतृत्व में स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर उसे वहां से निष्काषित कर दिया। इंद्र सहित सारे देवता विष्णु जी के पास गए और उनसे अपनी विपदा कही। तब विष्णु ने उन्हें दानवों की मदद से समुद्र मंथन करने की सलाह दी। दानवों को मनाने के लिए उन्हें अमृत का लालच देने की सलाह भी दी। अमरत्व की लालसा में असुर राजी हो गए।

क्षीरसागर, जो आज हिंद महासागर कहलाता है, को मंथन के लिए चुना गया ! मदरांचल पर्वत को, जो आज के बिहार के बांका जिले में स्थित है, मथानी  का रूप तो दे दिया गया पर अथाह सागर में उसको टिकाना सबसे बड़ी समस्या बन गई ! तब फिर विष्णु जी ने देवताओं की सहायता के खातिर कच्छप का रूप ले सागर के बीचोबीच अपने को स्थिर कर मदरांचल को अपनी पीठ पर टिका लिया। नेती के रूप में वासुकि नाग की सहायता ली गई। उसके घोर कष्ट को देखते हुए उसे गहन निद्रा का वरदान दिया गया। फिर भी विष्णु जानते थे कि मंथन के दौरान रगड़ से वासुकि को अपार कष्ट होगा जिससे उसकी जहरीली फुफकार निकलेगी उससे देवताओं की रक्षा जरुरी होगी। इसलिए उन्होंने इंद्र से कहा कि मंथन के पहले तुम सब आगे बढ़ कर वासुकि के मुंह को थाम लेना और असुरों से कहना कि हम तुमसे श्रेष्ठ हैं, इसलिए हम मुंह की ओर रहेंगे। इंद्र ने जब ऐसा किया तो असुर भड़क गए और बोले, अरे इंद्र ! तुझे अभी भी लाज नहीं आती जो हमसे हारने के बाद भी अपने आप को श्रेष्ठ समझता है ! तुम सब अधम हो और अधम ही रहोगे। इसलिए पूंछ वाला हिस्सा ही तुम्हारा उचित स्थान है। देवता तो चाहते ही यही  थे, वे बिना ना-नुकुर किए दूसरी तरफ चले गए। जैसा कि विष्णु जी ने सोचा था वैसा ही हुआ कुछ ही देर में वासुकि की फुफकार से असुरों पर कहर टूट पड़ा। फिर जैसे-तैसे मंथन पूरा हुआ। देवताओं की कुटिलता से असुर फिर मात खा गए ! फिर जो कुछ भी हुआ वह जग तो जाहिर है ही। 

यह अपने समय का एक अकल्पनीय उपक्रम था ! कोई सोच सकता था भला कि दुर्वासा के एक श्राप से सारे जगत में कैसी उथल-पुथल मच जाएगी। शिव को विष पान करना पड़ जाएगा ! देवता अमर हो जाएंगे ! सूर्य-चंद्र ग्रहण होने लगेंगे ! राक्षसी महिषि का वध संभव हो पाएगा ! इत्यादी...इत्यादी...!

 

भारत विजय 






पढ़ लिख  कर  जग  में  ऊँचा  नाम करे। 

बढ़ते रहे पथ पर भारत विजय भाव भरे।

 

ज्ञान  ज्योति  फैलाए   तम का नाश करे। 

बढ़ते रहे पथ पर भारत विजय भाव भरे। 

 

अवगुण  दूर  हो सद्गुण  का संचार करे। 

बढ़ते रहे पथ पर भारत विजय भाव भरे। 

 

परहित रहे  भावना दया  भाव  हृदय धरे। 

बढ़ते रहे पथ पर भारत विजय भाव भरे। 

 

निर्बल गरीब दीन दु:खी पर उपकार करे। 

बढ़ते रहे पथ पर भारत विजय भाव भरे। 

 

देश हित रहे तैयार मातृभूमि का सम्मान करे। 

बढ़ते  रहे  पथ पर  भारत  विजय  भाव भरे। 

 

मिल  जुल  कर  रहे  हृदय  से  प्रेम  रस झरे। 

बढ़ते  रहे  पथ  पर  भारत  विजय भाव भरे। 

 

ब्रह्मानंद गर्ग "सुजल"

जैसलमेर(राज.)