गोंडा विकासखंड बभनजोत के अंतर्गत ग्राम पंचायत कमालपुर में सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर खाद्यान्न का वितरण प्रत्येक माह शासन के मानसा रूप किया जा रहा है सभी लोग कोरोना जैसे महामारी बीमारी से जहां परेशान हैं। सभी लोग दूर-दूर बैठकर राशन ले रहे हैं। राशन लेने आये लोगों ने बताया कि हम लोगों को पूरा राशन मिलता है। यहां पर कोटेदार द्वारा कभी भी घटतौली नहीं की जाती है। कोटेदार राम कुमार सिंह ने बताया कि जितना जिसका होता है पूरा राशन दिया जाता हैं। गांव के कुछ लोग गलत तरीके से मुझे बदनाम करने की साज़िश करते रहते हैं। लेकिन उन लोगों का मंसूबा कभी पूरा नहीं होता है। पूरे इमानदारी के साथ शासन की मंशा रूप राशन वितरण किया जाता है सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाता है राशन लेने जो भी ग्रामीण आते हैं उनके लिए सैनिटाइजर और साबुन पानी की व्यवस्था भी की गई है
Wednesday, June 3, 2020
राधा का कृष्ण ज्ञान
एक बार कृष्ण के सखा उद्धव जी जो ज्ञान और योग सीख कर उसकी महत्ता बताने में लगे थे तब ,कृष्ण ने उन्हें एक चिट्ठी लिख कर दी जिस पर कृष्ण ने लिखा था कि " मैं अब वापस नहीं आऊंगा तुम सभी मुझे भूल जाओ और योग में ध्यान लगाओ " और कहा कि इसे ले जाकर ब्रज के लोगों को दिखाना और योग के महत्व से उन्हें परिचित करवाना ।उद्धव जी के लिए परमब्रह्म का लिखा लेख वेद समान था वे उसे संभाले संभाले ब्रज में गए और कृष्ण विरह में व्याकुल राधा जी को वह पाती दिखाई , राधा रानी ने उसे पढ़े बिना गोपियों को दे दी और गोपियों ने उसे पढ़े बिना उसके कई टुकड़े कर आपस में बाँट लिया । उद्धव जी बौखला गए , चिल्लाने लगे अरे मूर्खो इस पर जगदगुरु ने योग का ज्ञान लिखा है , क्या तुम कृष्ण विरह में नहीं हो जो उनका लिखा पढ़ा तक नहीं ।
तब राधा जी ने उद्धव को समझाया--
उधौ तुम हुए बौरे, पाती लेके आये दौड़े...हम योग कहाँ राखें ? यहां रोम रोम श्याम है "
अर्थात हे !उधौ कृष्ण तो यहां से गए ही नहीं ... कृष्ण होंगे दुनिया के लिए योगेश्वर यहां पर तो अब भी वो धूल में सने हर घाट वृक्ष पर बंसी बजा रहे हैं । बताओ कहाँ है विरह ...?
यह ज्ञान आज के युग के लिए एक मार्ग दर्शन है , जब कि हम कृष्ण को आडम्बरों में खोजते हैं ...।
आखिर क्यों नहीं हो पाया राधा कृष्ण का भौतिक मिलन :---
मथुरा जाते समय राधा रानी ने कृष्ण का रास्ता रोका था , मगर कृष्ण ने उन्हें समझाया था कि यदि मैं तुमसे बंध गया तो मेरे जन्म का प्रायोजन व्यर्थ चला जाएगा, जगत में पाप और अधर्म का साम्राज्य फैलता ही जाएगा ।मैं प्रेमी बनकर संहार नहीं साध सकता , मैं ब्रज में रहकर युद्ध नहीं रचा सकता , मैं बांसुरी बजाते हुए चक्र धारण नहीं कर सकता , और यह सत्य भी है कि राधा से विरह के बाद कृष्ण ने कभी बांसुरी को हाथ नहीं लगाया ...।
कृष्ण ने मथुरा जाते समय राधा से साथ चलने को कहा था , किन्तु राधा भी कृष्ण की गुरु थीं , वे समझ सकती थीं कि जिसे संसार को मोह से मुक्ति का पथ सिखाना है , उसे मोह में बाँध कर मैं समय चक्र को नहीं रोकूंगी ,और उन्होंने कृष्ण से वचन लिया कि वे जब अपने जन्म -अवतार के सभी उद्देश्यों को पूर्ण कर लें तब लौट आएं , और ऐसा हुआ भी कृष्ण अपने जन्म के सभी प्रायोजनों को पूर्ण कर , और अपने अवतार के कर्तव्य से मुक्त हो सदैव राधा के हो गए ।वे अब ना द्वारिका में मिलते हैं, और ना ही कुरुक्षेत्र में , वे तो आज भी ब्रज की भूमि पर राधा रानी के साथ धूल उड़ाते दौड़ते जाते हैं...दूर तक...।
राधा के कृष्णा से कुछ कड़वे संवाद जिनका उतर भगवान कृष्ण के पास भी नहीं था:--
भगवान कृष्ण से द्वारकाधिश कृष्णा और राधा स्वर्ग में विचरण कर रहें थे, तभी अचानाक दोंनो एक-दूसरे के सामने आ गए कृष्ण तो विचलित हो गए और राधा प्रसन्नचित हो उठी, कृष्ण सकपकाए और राधा मुस्कुराई। इससे पहले कि कृष्ण कुछ कहते इतने राधा बोल उठी-- ‘ कैसे हो द्वारकाधीश ...??
जो राधा उन्हें, कान्हा कान्हा कह के बुलाया कर ती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया...।
फिर भी कृष्ण अपने आपको संभालते हुए बोले राधा से, “ मैं तो तुम्हारे लिए आज भी वही कान्हा हूँ "।
तुम्हारे बिना मेरा हाल कैसा होगा राधे...?
राधा बोली मेरे साथ ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ न तुम्हारी याद आई न आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हैं कभी भुले ही कहाँ थे जो तुम याद आते...।
कुछ कडवे सच और प्रश्न सुन पाए तो सुनाऊ आपको ...?
क्या तुमने कभी सोचा की इस तरक्की में तुम कितना पिछड गए... ?
यमुना के मिठे पानी से जिंदगी शुरु की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुँच गए ...?
एक ऊंगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दसों ऊंगलिओ पर चलने वाली बांसुरी को भूल गए ...?
कान्हा जब तुम प्रेम से जुडे थे तो जो उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाते थे...प्रेम से अलग होने पर उसी ऊंगली ने क्या क्या रंग दिखाया... ?
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी, कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फर्क होता है बताऊ ...?
अगर तुम कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते, सुदामा तुम्हारे घर नही आते... ।
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है , युद्ध में आप मिटाकर जीतते है और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं ...। कान्हा प्रेम में डुबा हुआ आदमी, दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुःख नहीं देता...।
आप तो बहुत सी कलाओं के स्वामी हो, स्वप्न दूर द्रष्टा हो , गीता जैसे ग्रंथ के दाता हो, पर आपने ये कैसे-कैसे निर्णय किया अपनी पूरी सेना कौरवों को सोंप दी, और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया। सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो पालक होता है, उनका रक्षक होता है। आप जैसे महान ज्ञानी उस रथ को चला रहा था, जिस रथ पर अर्जुन बेठा था । आपकी प्रजा को ही मार रहा था, अपनी प्रजा को मरते देख आपमें करुणा नहीं जगी।
क्यों, क्योंकि आप प्रेम से शुन्य हो चुके थे आज धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधिश वाली छवि को ढुंढ्ते रह जाओगे ।हर घर, हर मंदिर, में मेरे साथ ही खडे नजर आओगे। आज भी मैं मानती हूँ कि लोग आपकी लिखी हुई गीता के ज्ञान की बातें करते है ।
उनके महत्व की बात करते है, मगर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते है..., और गीता मे कहीं मेरा नाम भी नही लेकिन गीता के समापन पर राधे-राधे करते है”...।
राधा-कृष्ण प्रेम की एक रोचक कथा--
यह एक दिलचस्प कहानी है जो राधा और कृष्ण के अंनत प्रेम के संबंध को दर्शाती हैं। राधा ने भगवान कृष्ण से विवाह नहीं किया था, बल्कि राधा के लिए कृष्ण के अतृप्त प्रेम को देखकर दासियों को ईर्ष्या होती थी।
एकबार राधा को परेशान करने के लिए उन्होंने एक शरारती योजना बनाई और उन्होंने गर्म दूध का गरमागरम तपता हुआ कटोरा लिया है और उन्होंने राधा को वह कटोरा दिया और कहा कि कृष्ण ने यह दूध का कटोरा उनके लिए भेजा है, और राधा ने गर्म दूध पी लिया।
जब दासियाँ कृष्ण के पास लौटी, तो उन्होंने कृष्ण के दर्दनाक छाले देखे। यह दर्शाता है कि कृष्ण राधा के हर छिद्र में रहते हैं, इसलिए गर्म दूध से राधा को कुछ नहीं हुआ, लेकिन गर्म दूध ने कृष्ण को प्रभावित किया। श्री कृष्ण ने उनके सभी दर्द और दुखों को खुद पर ले लिया...।
--राधा-कृष्ण प्रेम आधारित दूसरी कहानी--
यह राधा और कृष्ण के बीच गहन प्रेम को दर्शाती एक और प्यारी कहानी है। एक बार श्रीकृष्ण बहुत बीमार हो गए थे। कृष्ण ने कहा कि अगर उनको उनके किसी प्रेमी या सच्चे भक्त द्वारा चरणामृत मिलेगा, तो वह ठीक हो जाएगें। सभी गोपीयों से पूछा गया, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव से भय हो कर स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि वे अपने चरणों का जल श्रीकृष्ण को पिलाकर पाप नहीं कर सकती।
जब राधा को जब इस स्थिति के बारे में पता चला, तो राधे ने कहा: “जितने चरणामृत की ज़रूरत है आप उतना ले सकते है। मुझे तब सुख मिलेगा, जब तक मेरे प्रभु अपने दर्द और बीमारी से मुक्त नहीं हो जाते।” राधा ने सहृदय प्रेम के साथ चरणामृत दिया। यह इस तथ्य के कारण है; यह माना जाता है कि राधा भगवान कृष्ण से विवाह नहीं कर सकी। राधा कृष्ण को उनके दिल से आंतरिक रूप से प्रेम करती थी लेकिन फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण को उनकी बीमारी से बचाने के लिए कृष्ण को चरणामृत दिया।
राधा और कृष्ण दिव्य प्राणियों में से एक थे और उनका प्यार अनन्त था। चाहे वे विवाह करते या नहीं, उनके प्रेम ने उन्हें हमेशा के लिए एकजुट कर दिया और आज भी लोग उनकी पूजा करते हैं,राधे-कृष्ण कहते हैं...!!राधे-कृष्ण...राधे-कृष्ण...!!
रीमा मिश्रा"नव्या"
आसनसोल(पश्चिम बंगाल)
कबीर को जानकर,मानिए
कबीर अपने आप में अप्रतिम हैं,विलक्षण हैं,अद्वितीय हैं।कबीर समाजशास्त्री हैं,कबीर भाषा वैज्ञानिक हैं,कबीर नायक है,कबीर सर्वोत्तम संत शिरोमणि हैं,कबीर प्रखर समाजसुधारक हैं,कबीर एकदम सरल और सहज हैं,कबीर जनवादी साहित्यकार हैं,कबीर सधे हुए पूर्ण साधक हैं,कबीर मानवता के प्रतीक हैं,कबीर धैर्यवान है,कबीर संयमी और संतोषी प्रवृति के हैं,कबीर पूर्णतया सामजिक है,कबीर सत्यता के प्रणेता और पांखड के धुर विरोधी हैं।इसलिए कबीर जैसा कोई और नहीं है सिर्फ और सिर्फ कबीर के अलावा,इसलिए तो कबीर,कबीर है और इनकी तुलना किसी से की ही नहीं जा सकती क्योंकि ये आत्मिश्वास और जज्बा केवल कबीर में ही है कि--"राम कबीरा एक भयो,कोय ना सके पहचानी"।ये कबीर ही है जो शरीर में रहते हुए डंके की चोट पर एलान कर देने का साहस रखते हैं कि-"मैं ना मरिबो,मरिबो संसारा,मुझको मिला जिलावनहारा"।धर्म के नाम पर धंधे और पांखड की दुकानों के विरोध करने का तरिका कबीर के पास विलक्षण है,वो कहते हैं कि-"पत्थर पूजे हरि मिले,मैं पूजूं पहाड़"।इससे बढ़कर और क्या हो सकता है कि कबीर आर्थिक,सामाजिक,व्यावसायिक न्याय के पक्षधर हैं और बोल रहे हैं कि--"साईं इतना दीजिए,जामे कुटुंब समाए..."।दूसरी और कबीर का भाव देखिए,कबीर हर बात से ऊपर हैं,और झटके में ही हर चीज का समाधान देते हैं कि--"कबीरा खड़ा बाजार में,सबकी मांगे ख़ैर,ना काहुँ से दोस्ती ना काहुँ से बैर"।मतलब साफ़ है एक ऐसा मानवतावादी विचार जो हर वाद-विवाद से ऊपर है,निर्लेप है,निर्वेर है।यदि आज अभी और तत्काल ये बातें देश में लागू हो जाए तो यकीन मानिए कि देश की आधी से ज्यादा समस्या तो वैसे ही हल हो जाएंगी।विश्वभर के तमाम अर्थशास्त्री भी हैरान हैं कि कबीर ने तो कमाल ही कर दिया।संयम,सहशीलता के बारे में कबीर का साफ़ मत है कि--"धीरे-धीरे रये मना,धीरे सब कुछ होय..."।यही वह दर्शन कि हम हर समस्या का सामना कर लेते हैं और उस समस्या से उभर भी जाते हैं।शायद कहीं अन्यत्र इस तरह का उदाहरण नहीं मिल पाएगा।पारिवारिक परम्परा के निर्वहण में किस तरह से सामंजस्य बैठना है,इसमें मानों कबीर ने पी एच डी की डिग्री हासिल की हो।यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि कबीर परिवार निज परिवार न होकर समस्त संसार ही उनका परिवार है। कबीर की भाषा वैज्ञानिकता को देखिए कि भाषा कबीर को नहीं मोड़ पाती बल्कि कबीर भाषा को अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ते हैं और वही छंद बन जाता है,वही काव्य सर्वोच्च हो जाता है।स्वयं भाषा कबीर के समक्ष नतमस्तक है।यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भाषा कबीर की सहचरी है,अनुगामिनी है।कबीर के हाथों में भाषा खेलती हुई-सी प्रतीत होती है।आध्यत्मिकता के भी शिखर पुरुष हैं कबीर और देखिए कबीर की बाणी क्या कहती है।कबीर साफ़ लिखते हैं कि--"मौको कहाँ ढूंढे बन्दे,मैं तो तेरे पास में...."।ध्यान दीजिए जितने भी हमने इस-उस तरह के प्रतीक खड़े कर रखे हैं,उनको एक झटके में ध्वस्त कर देते हैं और फिर कहते हैं कि--"खोजी होय तो तुरंत मिलैहो,पल भर की तलाश में"।प्रेम का अपना विज्ञान है और उस विज्ञान को कबीर भली-भांति न केवल समझते हैं बल्कि उसके माध्यम से गली-सड़ी वर्ण-व्यवस्था को ही चुनौती देते हुए कहते हैं कि--"पौथी पढ़-पढ़ जग मुआ,पंडित भया ना कोय...ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।"जात-पात के भी जबदस्त खिलाफ रहे कबीर और जो कबीर ने कहा,वह सम्भवतः किसी और की हिम्मत नहीं रही कहने की।सच में आज भी कबीर के जीवन और दर्शन में समस्त संसार की तमाम समस्याओं को चटकी में हल करने की क्षमता है। गजब है,कबीर का और हमारा दुर्भाग्य कि आज भी हम कबीर को तो मानते हैं,कबीर की नहीं मानते।कबीर को पहले जानिए फिर कबीर को नहीं कबीर की मानिए यकीनन आप खुद-ब खुद कबीर हो जाएंगे।
कृष्ण कुमार निर्माण
जीवन के साथ जीविका भी
जब से इंसानियत की शुरुआत हुई तभी से हमारा सामना महामारियों से होता आ रहा है । हर महामारी के बाद इंसानी सभ्यता ज्यादा मजबूत होकर उभरी है ।शुरुआत के दौर में तो हम स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से बहुत कच्चे थे, परंतु इंसानों ने अपनी सुझबूझ और जिजीविषा से हर महामारी को मात दी । कुछ नुकसान जरुर हुआ , लेकिन उनकी काट खोज कर हमनें उन्हें मृतप्राय कर दिया । कोरोना भी इससे अलहदा नहीं होगा । हमें सिर्फ साहस की कोशिश और नजरिये की आवश्यकता है । पहले लाॅकडाउन से चौथे लाॅकडाउन तक देखा जाए तो सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज समान पाएंगे-- भय । हर तरफ , हर आदमी डरा हुआ है, क्या ये डर कोरोना के इलाज की दवा है ? हम ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं जिसे जानते ही हैं , हमारे पास लड़ने का कोई हथियार भी नहीं है । अगर अपनी पुराण गाथाओं में खोज करते हैं तो आपको ऐसे युद्घ कौशल की जानकारी मिलेगी जो हथियारों के बिना लड़ी जाती थी । वह समस्त ज्ञान को एकत्रित कर लड़ी जाने वाली लड़ाई थी, डरना नहीं,साहसी बनना । सावधानी के साथ बाहर निकालना , सारी हिदायतों का पालन करते हुए अपना काम करना, ईमानदार और उदार बनना कोरोन से लड़ने वाले सिपाही की पहचान है ।
कोरोना के सिपाही कई प्रकार के लोग हैं -- जैसे एक सिपाही वह है जो अस्पतालों में रात - दिन बिमारी से जुझारू है । वह ईमानदारी से आपना कार्य करता है , दुसरा जो दूर खेतों - खलिहानों में , फुल - फलों के बगीचों में , छोटे - बड़े उद्योगों में लगातार मेहनत कर उत्पादन की श्रृंखला को टूटने नहीं दे रहा है । तृतीय सिपाही वह है जो सिपाही के वस्त्रों में हर सड़क के चौराहे पर खड़ा मिलता है और वाह हमें रोकता है, निषेध करता है , कभी मुँह से तो कभी डन्डे से बात करता है, जब वह डन्डे से बात करता है तो वह हारा हुआ , अकुशल सिपाही होता है लेकिन उसे हम देखकर उन अनगिनत सिपाहियों को नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं , जो हर लाॅकडाउन में न लाॅक होते हैं और न डाउन होते हैं ? चौथा सिपाही वह है जो अपनी प्रेरणा से अपनी चोटी मुट्ठी में बड़ा संकल्प बान्धकर खाना - पीना - मास्क - ग्लव्स लेकर कभी यहाँ तो कभी वहाँ स्वप्रेरणा से भागता दिखाई देता है । पांचवा सिपाही वह है जो सा
सहानुभुतिपूर्वक हर किसी की तकलीफ सुन रहा है और सद्भावपूर्वक उसे सही मार्गदर्शनकर रहा है । गही है जो हमारे घरों - सडकों - पेड़ों पर रहने वाले बेजुबानों के लिए कहीं पानीभर देता है तो कहीं रोटी डाल देता है ।
यह है जो हमारे उस प्राचीन गणित को सही साबित करना चहता है जिससे एक और एक , दो नहीं ग्यारह होते हैं । यह गलत गणित नही है , हमारे गलत गणित को सही करने वाला शाश्वत गणित है । आप लाॅकडाउन में घरों के भीतर ही नहीं , घरों के बाहर क्या कर रहें हैं और किस नजर से कर रहे हैं यहीं बताएगा की आप स्वयम ही कोरोना हैं की कोरोना के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई के सिपाही हैं । प्रतिकूल हालात में यह जंग अपने चरम सीमा की ओर अग्रसर हो रहा है । इन्सान हारता नहीं, हालात हार जाते हैं, ऐसे ही प्रतिकूल हालात कोरोना के रूप में आज हमारे सामने है । हर बदलाव बेहतरी के लिये होता है , जीवन के इस संघर्ष में इन्सान ही विजयी होगा और फिर सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा ।
इसी आशा और विश्वास के साथ हम इस संघर्षपूर्ण जीवन में नित्य अग्रसर होते जा रहे हैं । स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस से घबराने की जरुरत नहीं है । आगामी कुछ दिनों में यह समान्य फ्लू की तरह हो जाएगा और हमें इसके साथ जीवन जीने की आदत डालनी होगी साथ हीं इन आदतों को हम कुछ एहतियात कदमों के जरिए सुनिश्चित कर सकते हैं । ऐसे ही कुछ कदमों में *ई - मिटिंग , शारिरीक दुरी, घर का खाना , अपशिष्ट पदार्थ का जिम्मेदारी से निस्तारण, ऑफिस में ज्यादा अन्दर - बाहर न करना , एक - दुसरे से 6 फीट की दुरी , हर समय मास्क का प्रयोग , किसी भी सतह को छूने पर अपने हाथों को सैनीटाइज करें , अपने हाथ को 20 सेकेंड तक धोते रहें इत्यादि* आता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में विभिन्न बिमारियों और वजहों ( कोरोना से अलग ) से रोजाना डेढ़ लाख मौतें होती हैं । अकेले सिर्फ भारत में ऐसी मौतों का आंकड़ा 25 हजार है । ये भयावह तस्वीर हमें बताती है कि कोरोना से डरना नहीं , हमें लड़ना है । जहां तक कुछ विशेषज्ञ यह दावा क्र रहे हैं कि भारत में अभी पीक आना बकी है तो वह वायरोलाॅजी के बारे में जानते नहीं । बतौर विशेषज्ञ वाह अपनी राय दे रहे हैं । मेरा मानना है कि भारत में ना पीक आया है और न आएगा । अगले माह तक इसमें अवश्य कमी आएगी । प्रकृति में कोई चीज स्थायी नहीं होती । इंसानी सभ्यता की शुरुआत से महमारियां आ रही हैं और खत्म भी हुईं हैं ।इसी तरह से कोरोना भी जल्द खत्म हो जाएगा ।
लड़ने का समय है , जीतने का समय है क्योंकी जीवन एक संघर्ष है और वर्तमान घटनाओं को देखते हुए हमें सतर्कता से अपने काम को करते हुए इस महामारी पर भी विजय प्राप्त कर लेना है ।
विजय तभी प्राप्त होती है जब हम असली मोर्चे पर अपने दम - खम के साथ डटे रहें, इसलिए मै एक बार फिर कहूँगा की लड़ने का समय है, हारने का नहीं - जितने का समय है ।