Monday, June 1, 2020

किसानों के बच्चों की स्कूल की फीस पूरी तरह से माफ करें प्रदेश सरकार: मोहम्मद हनीफ वारसी

दैनिक अयोध्या टाइम्स संवाददाता,रामपुर- वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद हनीफ वारसी ने कहा कि मजदूर किसानों के बच्चों की स्कूल की फीस पूरी तरह से माफ करें प्रदेश सरकार प्राइवेट स्कूल मनमानी तरीके से अभिभावकों से फीस वसूल रहे हैं इन तीन चार महीनों में किसान मजदूरों ने खोया है पाया कुछ नहीं है।सी बी एस ई स्कूल संचालकों ने शिक्षा को बिजनेस का धंधा बना रखा है जो स्कूल संचालक 10 साल पहले लाखों रुपए कमाता था आज वह करोड़ों मे कमा रहा है हर साल बच्चों का कोर्स बदल देना ड्रेस व जूतों में मनमानी कहां से खरीदना यह स्कूल वाले तय करते हैं जून में पढ़ाते नहीं है फिर भी लेते हैं शिक्षा को उद्योग बना रखा है लोगों ने किसी गरीब असहाय से कोई लेना देना नहीं है गरीबों के नाम से आने वाला कोठा भी पैसे लेकर भर लेते हैं किसान मजदूरों के बच्चों की फीस चाहे कोई भी स्कूल हो सभी स्कूलों की माफ कर आए प्रदेश सरकार वारसी ने यह भी कहा कि अन्नदाता जिसे किसान कहा जाता है वह भारी कर्ज में दबकर आत्महत्या कर रहा है और उसी का बेटा जिसे लोग आजकल प्रवासी मजदूर कह रहे हैं वह सड़कों पर भूखा प्यासा मर रहा है एक देश और दुनिया को पालने का काम करता है दूसरा देश को खड़ा करने में बड़ी भूमिका निभाता है आज यह दोनों योद्धा अपने ही सरकारों से नाराज हैं क्योंकि सरकारों ने इन दोनों योद्धाओं की अनदेखी की है किसान मजदूरों को कर्जा मुक्त करें देश व सभी प्रदेशों की सरकारें अन्यथा आने वाले वक्त में यही किसान मजदूर सत्ता की सीढ़ी शैतान पकड़ कर खींच लेगा इस लोक डाउन मैं किसान मजदूरों ने बहुत कुछ नुकसान उठाया है और बहुत कुछ खोया है गन्ना और गेहूं की फसल के अलावा सभी फसलें बिन मौसम बारिश से नष्ट हो गई थी जिसमें किसानों ने फसल पालने हेतु काफी लागत लगाई थी किसान बहुत कर्ज में दब गया है किसान मजदूर बैंक का भी कर्जदार है साहूकार का भी कर्जदार है बिजली विभाग का बिल भी चल रहा है इस सब कर्जा किसान कहां से देगा छोटा किसान मजदूर के पास कमाने और खाने के रास्ते भी बंद हो गए हैं शासन प्रशासन सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों पर काम कर रहा जमीनी स्तर पर हवा हवाई है जो देश कृषि प्रधान देश दुनिया में माना जाता हो उस देश के किसान मजदूर भूखे प्यासे कर्ज में दबकर आत्महत्या कर रहे हैं सड़कों पर मर रहे हैं यह देश की सरकारों के लिए प्रदेशों की सरकारों के लिए शर्म की बात है जो लोग यह समझ रहे हैं कि सत्ता हिंदू मुसलमानों को गाली देकर चलती रहेगी यह दिलों को तोड़कर चलती रहेगी उनकी गलतफहमी है कागज की नाव ज्यादा दिन पानी में नहीं तैरती मैं सभी किसान मजदूरों से अपील करना चाहता हूं एक मंच पर आएं और सरकारों से अपना अधिकार छीने अन्यथा यह सरकार रहे बच्चे छोटे किसान है उन्हें भी भूमिहीन कर देगी और और मजदूरों को भूखा प्यासा मरने के लिए सड़कों और खलियान में छोड़ देगी इसलिए ज्यादा भरोसे के लायक सरकारें नहीं है जागना होगा अपने अधिकारों के लिए घरों से निकलना होगा हिंदू मुसलमान के चक्कर में ना बटे किसान और मजदूर एक होकर घरों से निकले इस समय मौजूदा हाल में चीन की नियत हमारे देश के प्रति अच्छी नहीं है हम केंद्र की सरकार से अपील करना चाहते हैं कि चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए और जो हमारे देश में कई किलोमीटर आकर चीनी सेना डेरा जमाए हुए हैं चीनी सेना को खदेड़ कर अपनी जमीन को भारत की धरती मां को मुक्त कराएं केंद्र सरकार चीन के प्रति दोस्ताना रवैया ना रखें केंद्र सरकार देश का बच्चा-बच्चा किसान मजदूर सीमा की सुरक्षा के लिए देश की सरकार के साथ है इस मौके पर महबूब अली पाशा,इसरार अली,रईस अहमद,शोएब रजा,तालिब हुसैन,शकील अहमद,खुर्शीद अहमद आदि मौजूद रहे।

असफ़लता

असफल होना कोई बड़ी बात नही है,एक दिन मैंने फेसबुक पर एक खबर पढ़ी थी जिसमे सन 2007 में वो सड़क पर अकेले बैठ के गिटार बजाते थे।और जैसे ही सफल हुए एक बार में लाखों लोग उनकी प्रस्तुति पर तालियाँ बजाते हैं।ऐसे बहुत सारे उदाहरण इस जगत में हैं।अब्राहम लिंकन जो अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे।जो राष्ट्रपति बनने से पहले कई बार चुनाव में पराजित हुए थे तब जाकर कही उन्हें सफलता नसीब हुई। थॉमस अल्वा एडिसन जो कि बहुत ही महान वैज्ञानिक थे।उनका किसी बैठक में बहुत मजाक बनाया गया था।एक बार एक व्यक्ति ने पूछा असफलता से दुख नहीं होता उसने पूछा आपने करीब एक हजार प्रयोग किए, लेकिन आपके सारे प्रयोग असफल रहे। साथ ही, आपकी मेहनत बेकार हो गई। क्या आपको दुःख नहीं होता है?
एडिसन ने कहा मैं सोचता हूं कि मेरे एक हजार प्रयोग असफल हुए है। मेरी मेहनत बेकार नहीं गई, क्योंकि मैंने एक हजार प्रयोग करके यह पता लगाया है कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता। मेरा हर प्रयोग, बल्ब बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और मैं अपनी हर कोशिश के साथ एक कदम आगे बढ़ता हूं।और इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने वो कारनामा कर के दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना तक नही की थी।एक हजार बार असफल होने के बाद भी उन्होंने धैर्य नही छोड़ा।इस कहानी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।दुनिया के सबसे अमीर इंसान बनने से पहले बिल गेट्स ने हावर्ड कॉलेज में बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने अपना पहला बिज़नेस शुरू किया जो बुरी तरह असफल साबित हुआ।
                        दुनिया में जीनियस के तौर पर पहचाने जाने वाले वैज्ञानिक आइंस्टीन चार साल तक बोल और सात साल की उम्र तक पढ़ नहीं पाते थे। इस कारण उनके मां-बाप और शिक्षक उन्होंने एक सुस्त और गैर-सामाजिक छात्र के तौर पर देखते थे. इसके बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और ज़्यूरिच पॉलिटेक्निक में दाखिला देने से इंकार कर दिया गया।इन सब के बावजूद वे भौतिक विज्ञान की दुनिया में सबसे बड़ा नाम साबित हुए।



नोबल पुरस्कार जीतने वाले और दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए विंस्टन चर्चिल की भी कहानी संघर्ष से भरी है। स्कूली शिक्षा के दौरान चर्चिल 6वीं क्लास में फेल हुए।इसके बाद प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने हर चुनाव में वो फेल हुए लेकिन उन्होंने मेहनत करना नहीं छोड़ा।इतनी कहानियों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, और निश्चित ही धैर्य के साथ काम लेते हुए एक दिन अवश्य सफल हो सकते हैं।


         रुपेश कुमार श्रीवास्तव "रजत"
               सलेमपुर (देवरिया)
 



गंगा 

शिव की जटा से,गंगा अवतरित हुई

धरती को शुद्ध करने,जब लायी आयी।।

सुगम सरल कल कल,गंगा की धारा।

महिमा से उत्थान है, भारतवर्ष हमारा।।

 

है  जगत  की  माता, निर्मल  है  धारा।

संसार का जीवन तो,इन्ही से उभारा।।

 

कल कल बहती पावन, शुद्ध हो तन मन।

गंगा के  जल  बिना,पूरा न होय  हवन।।

 

रोम रोम निखार दे ,पवित्र पावन गंगा।

हरितक्रांति की घूरी,ये सौभाग्य हमारा।।

 

पडे जहाँ इनके चरण, जीवन उद्धार है।

अंतकाल दो बूँद से, भवसागर पार है।।

 

                                   आशुतोष 

                                 पटना बिहार 

 

 

2 जून की रोटी





दो जून की रोटी मिल रही है हमें, 

देखो जरा हम हैं कितने किस्मत वाले । 

जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 

हाथ से ठेला चलाते धूप में,गोलगप्पे,सब्जीवाला,आम वाला चिल्लाए ,

तब जाकर वह  बेचारा अपने परिवार को,

रोते-रोते आधा पेट खिलाए ।

 

सिर्फ दो जून की रोटी की खातिर बेचे,

चाट,पापड़ी, गुपचुप चने मसाले,


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


देखो तो वो फूल बेचने वाले बच्चे, ढूंढे दृष्टि आस की,

आधा तन कपड़ा पहने जो, खेती करें कपास की ।

जूते बेचने वालों के, पैरों में ही पड़ते है छाले 


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


जिन किसानों के कांधे पे हल है, उनके भी हैं आंसू झलके,

हलधर की हल-आशा जिनसे, वो हैं कितने हल्के ।

अन्नदाता करे फाँके चाहे, कितनी फसल उगाले,


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


 

कितना लाचार  कर देती है ये, दो जून की रोटी ,

और इन लाचार बिचारों का वे हैं लाभ उठाते, नीयत जिनकी है खोटी ।

तन भी कर देना पड़ता तब, औरों के हवाले,


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


कवि तो भरे पेट मे कहता है कविता, बात ये तो है कड़वी सच्ची ,

जितनी व्यथा हो कविता में ,रचना समझी जाती उतनी अच्छी ।

भूख पे कविता लिखके मैंने,लो पहन लिए मंचों पर माले,


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


 

शुक्रगुजार हूं उस ईश्वर की,मुझे दो जून की रोटी मिलती, देखो जरा हम हैं किस्मत वाले  ।


जाने कितने लोग भूखे हैं हमारे देश में,

जिन्हें नसीब नहीं होते निवाले ॥

 


    रीमा मिश्रा"नव्या"

आसनसोल(पश्चिम बंगाल)