Sunday, May 31, 2020

 "कलयुग के रिश्ते"

आधुनिक युग में सबसे चिंतनीय विषय है,तो वो है खराब होते रिश्ते,इसके पीछे कहीं न कहीं ऐसे मनुष्यों का हाथ है जिनकी सोच का स्तर अत्यन्त निकृष्ट है व दूसरों को बहकाकर रिश्तों में दरार पैदा करना इनका पेशा है। अगर देखा जाय तो हर तरफ रिश्ते तार-तार हो रहे हैं।पारिवारिक रिश्तों की बात की जाए तो इस समय इन रिश्तों का सबसे बुरा हाल है।लोग दूसरे के बहकावे में आकर अपनो से रिश्ते तोड़ देते हैं।और जो लोग बहकाने वाले होते हैं,वो समझते हैं कि उनके कारनामे छिप जाएँगे।ऐसा नही है,मनुष्य से गलती हो सकती है,कि वो गलत ना पकड़ पाए,परन्तु उसके(ईश्वर) बारे में सोचिए जो बहुत बड़ा सी०सी०टी०वी० कैमरा रखे हुए है और उसके कैमरे की क्वालिटी इतनी बढ़िया है,की उससे कोई नही बच सकता।

                                          अक्सर दूसरों के द्वारा कानों में जहर भर देने के कारण हम अच्छे से अच्छे रिश्ते तोड़ देते हैं,पर एक बार भी हम विचार नही करते कि जो दूसरा कोई हमे बहका रहा है वो सच भी कह रहा है या नही।बस इसी गलती के कारण अच्छे से अच्छे रिश्ते हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं।इस कलयुग में होशियार होने की जरूरत है क्योंकि जो आपका बहुत करीबी है वही आपको गर्त में धकेल देगा,अतः सतर्क रहिये और अपने आंख से देखी व कान से सुनी बात पर ही विश्वास कीजिये।ऐसा कर के उनके मुंह पर तमाचा जड़ दीजिये जिनकी सोच निम्न कोटि की है।

 

 

""क्या भारत के ग्रामीण अब कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बन रहे हैं

क्या  भारत के ग्रामीण इलाके अब कोरोना वायरस का नया हॉटस्पॉट बन रहे हैं? दोस्तों पहले ज्यादातर नए मामले देश के शहरों से ही सामने आ रहे थे l लेकिन अब ग्रामीण इलाकों की हिस्सेदारी भी बढ़ने लगी है ,जो कि बहुत ही चिंता का विषय है l दोस्तों लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर ग्रामीण इलाकों की तरफ लौट रहे हैं l जिस कारण से इन ग्रामीण इलाकों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है l दोस्तों अगर प्रत्येक राज्य सरकार शुरुआती समय में पहल किया होता और जो प्रवासी मजदूर है या जो भी व्यक्ति वंचित है परेशान है उसके रहने खाने और उसके सुरक्षा की गारंटी लिया होता तो शायद हमारे देश का यह तबका अपने घरों के तरफ हजारों किलोमीटर भूखे ,प्यासे पैदल जाने को मजबूर नहीं होता और यह शहरों की बीमारी शायद गांव तक नहीं पहुंच पाती जिस प्रवासी मजदूरों ने उस शहर को बनाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दिया कई पीढ़ियां उस शहर को बसाने में अपना जीवन खपा दिया l लेकिन उस शहर ने इस वैश्विक महामारी से उपजी इन वंचित लोगों की परेशानी के लिए आगे बढ़कर मदद नहीं किया बल्कि हजारों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर किया और बहुत से प्रवासी मजदूर गरीब तबके के लोग अपने मंजिल तक पहुंचने से पहले ही मौत के मुंह में समा गए l कोई प्रवासी मजदूर अपने गांव की तरफ जाने के लिए हजारों किलोमीटर परिवार के साथ पैदल चला रास्ते में भूखे प्यासे मारा गया तो कोई ट्रक के नीचे कुचल गया तो कोई ट्रेन के नीचे आकर मारा गया और अगर में कोई किसी तरह  से बच भी गया तो भेड़ -बकरियों की तरह क्वॉरेंटाइन में रख दिया गया जहां उचित व्यवस्था ही नहीं है l जैसा कि हम देख रहे हैं कि अब ग्रामीण भारत में भी कोरोना  वायरस का केस  दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ,जो कि बहुत ही चिंता का विषय इसलिए हमें अब ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की जरूरत है अगर नहीं किया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे l दोस्तों भारत में जितने हॉस्पिटल , बेड्स है उनमें अगर देखा जाए तो ग्रामीण इलाकों के हिस्से सिर्फ 33% बेड्स आते हैं और डॉक्टरों की भारी कमी है l अगर आंकड़ों के मुताबिक देखें  तो भारत में सरकारी अस्पतालों के पास इस समय करीब 7 लाख बेड्स है पूरे भारत में और इनमें से ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली का हालात बहुत बुरा है l इसीलिए दोस्तों पलायन के साथ बढ़ता संक्रमण का खतरा राज्य सरकारों के लिए भी चिंता का विषय है l दोस्तों प्रवासी मजदूरों की घर वापसी ने अब ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना वायरस से खतरे को बढ़ा दिया है l लेकिन मेरा सवाल यह है आपसे कि क्या इसके लिए सिर्फ प्रवासी मजदूर ही जिम्मेदार हैं? दोस्तों हम जानते हैं कि जो प्रवासी मजदूर उस शहर को बनाने के लिए अपना कई पीढ़ियों से जीवन दांव पर लगाकर शहर को सवार थे रहें वह शहर राज्य उनको अपना या नहीं इस वैश्विक महामारी में इन प्रवासी मजदूरों के पास लॉक डाउन के दौरान अपना सब कुछ गंवाने के बाद, घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था l और इसके लिए मैं अपने देश के सिस्टम को जिम्मेदार मानता हूं l क्या जो  प्रवासी मजदूरों ने उस शहर राज्य को बनाने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगाया l क्या उनके रहने -खाने का जिम्मेदारी नहीं ले सकती थी सरकार उनको आश्वासन नहीं दे सकती थी कि हम हैं आपके साथ हर प्रकार का मदद किया जाएगा? लेकिन ऐसा नहीं हुआ अगर हुआ होता तो यह वंचित प्रवासी गरीब मजदूर कभी भी हजारों किलोमीटर पैदल चलकर इस मुश्किल दौर में नहीं जाते l लेकिन कहते हैं ना मरता क्या ना  करता? दोस्तों जो भी हो आदिकाल से मानव जीवन संघर्षों से घिरा रहा है l जीवन के साथ संघर्ष था, हैं और रहेगा l देश- काल और परिस्थितियों के अनुसार इस संघर्ष की प्रबलता में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता हैl दोस्तों हमें जीवन जीने के तौर-तरीकों में बदलाव लाना होगा l और इन वंचित प्रवासी मजदूरों के लिए हम जितना कर सकते हैं अपनी सामर्थ्य अनुसार हमें उनकी मदद के लिए कदम बढ़ाने की जरूरत है l दोस्तों हर बदलाव बेहतरी के लिए होता है l जीवन के इस संघर्ष में इंसान ही विजयी होगाl और देखना फिर सब कुछ पहले जैसा होगा l इसलिए हमें इंसानियत छोड़नी नहीं चाहिए l इस वैश्विक महामारी में हमारा साहस और सावधानी ही खत्म करेगा इस परेशानी को इसलिए हमें सावधान रहना है सुरक्षित रहना है और आस-पड़ोस के वंचित तबकों के लिए दिल- खोलकर मदद करने की जरूरत हैl

दहेज़

दहेज़ के नाते जब उसे दी जाती थी यातनाएं

वो अपने परिवार के लिए ख़ामोशी से सब सहती

अक्सर उसके पैरों को जलाया जाता गर्म चिमटों से

भूखी प्यासी वो तड़पती रहती कई कई दिन रात

मगर कभी नहीं मांग करती अपने मायके से कुछ

वो लड़की है वो जानती है मायके की परिस्थिति

पता है बैंकों से लोन लेकर की गई है उसकी शादी

दर्द,प्रताड़ना को रोज़ सहती लेकिन ख़ामोश रहती

एक दिन ससुराल वालों ने मिट्टी का तेल डाल 

जला दिया उस बहू को जिसके हृदय में लक्ष्मी बसती थी

तड़प और प्यास से वो चिल्लाती रही पापा भैया मां

मगर दहेज के लोभी उसे जलता देख हंसते रहे

 बेटी को मुखाग्नि देते वक़्त पिता ने बस यहीं कहा

"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"

न्याय के देवी ने आंखों में फ़िर बांध लिया काली पट्टी

स्वतंत्र हो कर घूमने लगे उसके ससुराल वाले 

मगर पिता ने वादा पूरा किया उन्हें सजा दिलवाया

मुकदमें के लिए मां ने बेच दी मंगलसूत्र भाई ने छोड़ दी पढ़ाई

आख़िर में पिता की ये बात सच निकली

"बेटी नहीं होती पराया धन,बेटी तुझे न्याय दिलाऊंगा"

 

 

बिहार में पांचवी लाकडाउन का प्रभाव और उम्मीद 

पिछले दो महीने से पूर्ण लाॅकडाउन को 1 जून 2020 से सोशल डिस्टेसिंग के कुछ शर्तो के साथ होटल,  रेस्टूरेन्ट,  परिवहन धार्मिक स्थल तथा माॅल को खोलने के लिए भारत सरकार द्वारा अनुमति देने की घोषणा की गयी है।यह पुरी तरह से बंद पड़ी आर्थिक गलियारो को गति देने के लिए लिया गया कदम माना जा रहा है।जबकि कोरोना संक्रमित लोगो की तादाद निरंतर बढ़ रही जो देश  में अभी तक एक लाख तीस हजार पार कर चुकी है जबकि मौत का आँकड़ा पाँच हजार के करीब पहुँच चुका है ।ऐसे में आर्थिक गलियारे का खुलना एक जोखिम तो है ही पर उससे भी कहीं ज्यादा जरूरत भी है।

आर्थिक मंदी 

बिहार पहले से ही आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है जब अचानक शराबबंदी कर एक बड़े रिवेन्यू को अचानक बंद कर दी गयी।एक तरफ बाढ़ और सूखा से तंग बिहार का सबकुछ कृषि पर आश्रित है।इसमें बाजार का बंद होना निश्चित ही आर्थिक समस्या उत्पन्न कर रहा था।

पलायन

बिहार की बड़ी आबादी दूसरे प्रदेशों में काम करती है जो इस समय बिहार में है।उनकी स्थिति को देखा जया तो सबसे ज्यादा खराब हैं ।परदेश की आमदनी शून्य हो चुकी है और यहाँ सारे काम बंद फिर उनकी जीविका के आगे गहरा संकट हैं । ऐसे में बाजार का खुलना उन लोगों को बड़ी राहत देगी। विशेषकर रिक्शा चालक, आटो चालक, रेरी वाले, फुटपाथ दुकानदार, ट्रेनो में स्टेशनो पर सामान बेचने वाले, फेरी करने वाले,  खेतिहर मजदूर,  निर्माण कार्य के मजदूर,  ईट भट्ठे के मजदूर,  सड़क के मजदूर और विभिन्न प्रकार के मैकेनिक के लिए यह एक अच्छी खबर मानी जाएगी।

कोरोना का  भय 

वही दूसरी ओर देखा जाए तो बिहार में कोरोना का ग्राफ अब तेजी से बढ़ने लगा है। ऐसे में और अधिक सावधानियाँ बरतने की जरूरत है।बिहार की चिकित्सा व्यवस्था और राज्यों के अपेक्षा लचर मानी जाती है।यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी शिक्षा की कमी है।ऐसे में यदि ग्रामीण क्षेत्रों में इसने पांव फैलाये तो हालात बिगड़ सकती है।वैसे अभी भी सबकुछ राज्य सरकार पर डिपेन्ड करता है कि वह किस प्रकार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराती है ।प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़नेवाली है । क्योंकि यह दौर चुनौतीपूर्ण है ।

व्यवसायी की समस्या

 टूट चुकी आर्थिक चेन को पुनः पटरी पर लाना भी सरल कार्य न होगा।दो महीने के बाद पड़े बाजार और उत्पादन को काफी प्रभावित किया एक चेन जो बनी हुई थी कंपनी से डिस्ट्रीब्यूटर,  रिटेलर फिर कस्टमर वो प्रायः पुनः स्थापित कर गति लाना किसी चुनौती से कम नहीं।यह स्थिति सभी के साथ है।जिससे व्यापारी वर्ग चिन्तित है। 

वेरोगारी की समस्या बिहार में सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। विकट रूप ले चुका वेरोजगारी और भी परेशानी का सबब बना जब सारे परदेशी भी यही आकर बैठे हैं ।सरकार को भी इनकी संख्या देखकर हाथ पाँव फूलने लगे है।

बेरोजगारों का इतिहास

आज जिसे देखो वेरोजगारी पर भाषण दे सकता है लेकिन यह वेरोजगारी की शूरूआत कहाँ से हुई क्या बिहार नब्बे के दशक में वेरोजगार था या नब्बे के बाद हुआ ? 1990से 2005 के बीच सभी चीनी उद्योग बंद हुए। जुट मीले बंद हुए। वस्त्र उद्योग बंद हुए। बुनकर का पलायन आरंभ हुआ। मिथिला पेंटिग्स पर प्रभाव पडा।छोटे मझोले उद्योग बरौनी उद्योग बंद हुए।औद्योगिक वित्त निगम का हाल खस्ता हुआ। सब उन दिनों हुए जब बिहार की सत्ता समाजवादियो के हाथो में थी और तो और 1990से लेकर 2005 तक सभी तरह की बहाली बंद कर दी गयी जिससे सरकारी संस्थानो और शिक्षण संस्थानो पर बुरा प्रभाव पड़ा जो आज तक ठीक नही हो सका।

वेरोजगारी की मार सह रहा बिहार 1900 से 2020 तक इस स्थिति में  पहुँच चुकी है जिसका मंजर हमने लाक डाउन में  देखा है। आखिर इसकी जिम्मेदारी तो दोनो ही कार्यकाल के सरोकारों को ही लेनी होगी।आखिर 30 वर्षो से ऐसा क्या कारण रहे की इतने बड़े पैमाने पर पलायन होता रहा और सरकारें सिर्फ विज्ञापन देकर सोती रही।यह अगर विकास की परिभाषा है तो बहुत चिन्ताजनक है।इन 30 वर्षो के दौरान बिहारी नेताओं की वेतहाशा दौलत में वृद्धि हुई है जबकि यहाँ की जनता दिन प्रतिदिन नीचे जा रहे।प्रति व्यक्ति आय आज बिहार की देश की औसत आय से भी कम है । वेरोजगार युवक को रोजगार देने का विजन क्या होगा उसका अभी तक किसी मंच से व्याख्या नही की गयी कैसे रोजगार सृजन करेंगे।बिहार बाढ से प्रवाहित होती है उसके लिए क्या योजनायें है।

समाधान की उम्मीद सरकार से

बिहार की बेहतरी के लिए सरकार को उन उपायो पर जल्द गौर करना होगा जिससे रोजगार मिल सके बंद उद्योगो के लिए सोचना होगा क्योंकि उद्योग के बिना रोजगार की कल्पना करना तथ्य से परे है ।अब पानी सर से ऊपर जा चुका है तो सरकारों की कार्यप्रणाली दुरूस्त करने की आवश्यकता है। यही जमीनी हकीकत है जिस पर कोई समीकरण लागू नही होता सिर्फ उद्योग के समीकरण से ही पलायन रूक सकता है । बिहारवासी बहुत उम्मीद के साथ सरकार की ओर देख रही है अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि वह कितने की आशा को बरकरार रख पाती है।

                                   आशुतोष 

                                  पटना बिहार