Saturday, May 2, 2020

भारत का अनुसंधान और विकास तथा वैज्ञानिक प्रकाशनों पर व्यय बढ़ा है

अनुसंधान और विकास में भारत का सकल व्यय 2008 से 2018 के बीच बढ़कर तीन गुना हो गया है जो मुख्य रूप से सरकार द्वारा संचालित है और वैज्ञानिक प्रकाशनों ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थानों में ला दिया है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत आने वाले राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना (एनएसटीएमआईएस) द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण 2018 पर आधारित अनुसंधान और विकास सांख्यिकी तथा संकेतक 2019-20 के अनुसार है।


विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, “राष्ट्र के लिए अनुसंधान और विकास संकेतकों पर रिपोर्ट उच्च शिक्षा, अनुसंधान और विकास गतिविधियों और  समर्थन, बौद्धिक संपदा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में प्रमाण-आधारित नीति निर्धारण और नियोजन के लिए असाधारण रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेज है। जबकि अनुसंधान और विकास के बुनियादी संकेतकों में पर्याप्त प्रगति देखना खुशी की बात है, जिसके तहत वैज्ञानिक प्रकाशनों में वैश्विक स्तर पर नेतृत्व शामिल है। कुछ ऐसे भी और क्षेत्र हैं जिन्हें मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है।”


एनएसएफ डेटाबेस (आधारभूत आंकड़े) के अनुसार, रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रकाशन में वृद्धि के साथ, देश विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है तथा साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पी.एचडी. में भी तीसरे नंबर पर आ गया है। 2000 के बाद प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या दोगुनी हो गई है।


यह रिपोर्ट तालिका और ग्राफ़ के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतकों के विभिन्न इनपुट-आउटपुट के आधार पर देश के अनुसंधान और विकास परिदृश्य को दिखाता है। ये सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास में निवेश, अनुसंधान और विकास के निवेशों से संबंधित है; अर्थव्यवस्था के साथ अनुसंधान और विकास का संबंध (जीडीपी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नामांकन, अनुसंधान और विकास में लगा मानव श्रम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी कर्मियों की संख्या, कागजात प्रकाशित, पेटेंट और उनकी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तुलनाओं से जुड़ा हुआ है।


इस सर्वेक्षण में देशभर में फैले केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्च शिक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग और निजी क्षेत्र के उद्योग से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के 6800 से अधिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं को शामिल किया गया और 90 प्रतिशत से अधिक प्रतिक्रिया दर प्राप्त कर लिया गया था।


रिपोर्ट के कुछ मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:


 


अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में भारत का सकल व्यय वर्ष 2008 से 2018 के दौरान बढ़कर तीन गुना हो गया है



  • देश में अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) (जीईआरडी) पर सकल व्यय पिछले कुछ वर्षों से  लगातार बढ़ रहा है और यह वित्तीय वर्ष 2007-08 के 39,437.77 करोड़ रूपए से करीब तीन गुना बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1,13,825.03 करोड़ रूपए हो गया है।

  • भारत का प्रति व्यक्ति अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय वित्तीय वर्ष 2017-18 में बढ़कर 47.2 डॉलर हो गया है जबकि यह वित्तीय वर्ष 2007-08 में 29.2 डॉलर पीपीपी ही था।

  • वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.7 प्रतिशत ही अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) पर व्यय किया, जबकि अन्य विकासशील ब्रिक्स देशों में शामिल ब्राजील ने 1.3 प्रतिशत, रूसी संघ ने 1.1 प्रतिशत, चीन ने 2.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका ने 0.8 प्रतिशत किया।


केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं द्वारा बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) का समर्थन काफी बढ़ गया है



  • वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान डीएसटी और डीबीटी जैसे दो प्रमुख विभागों ने देश में कुल बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) के समर्थन में क्रमश: 63 प्रतिशत और 14 प्रतिशत का योगदान दिया।

  • सरकार द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लिए गए कई पहल के कारण बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी वित्तीय वर्ष 2000-01 के 13 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 24 प्रतिशत हो गया।

  • 1 अप्रैल 2018 तक देश में फैले अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) प्रतिष्ठानों में लगभग 5.52 लाख कर्मचारी कार्यरत थे।


 


वर्ष 2000 से प्रति मिलियन आबादी में शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है



  • भारत में प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर वर्ष 2017 में 255 हो गया जबकि यही वर्ष 2015 में 218 और 2000 में 110 था।

  • वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान प्रति शोधकर्ता भारत का अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय 185 (‘000 पीपीपी डॉलर) $) था और यह रूसी संघ, इज़राइल, हंगरी, स्पेन और यूके (ब्रिटेन) से कहीं ज्यादा था।

  • भारत विज्ञान और अभियांत्रिकी (एस एंड ई) में पीएचडी प्राप्त करने वाले देशों में अमेरिका (2016 में 39,710) और चीन (2015 में 34,440) के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है।


एनएसएफ डेटाबेस के अनुसार भारत वैज्ञानिक प्रकाशन वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर आ गया है



  • वर्ष 2018 के दौरान, भारत को वैज्ञानिक प्रकाशन के क्षेत्र में एनएसएफ, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार क्रमश: तीसरा, पांचवें और नौवें स्थान पर रखा गया था।

  • वर्ष 2011-2016 के दौरान, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार भारत में वैज्ञानिक प्रकाशन की वृद्धि दर क्रमशः 8.4 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत थी, जबकि विश्व का औसत क्रमशः 1.9 प्रतिशत और 3.7 प्रतिशत था।

  • वैश्विक शोध प्रकाशन आउटपुट में भारत की हिस्सेदारी प्रकाशन डेटाबेस में भी दिखाई हे रही है।


विश्व में रेजिडेंट पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में भारत 9 वें स्थान पर है



  • वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में कुल 47,854 पेटेंट दर्ज किए गए थे। जिसमें से, 15,550 (32 प्रतिशत) पेटेंट भारतीय द्वारा दायर किए गए थे।

  • भारत में दायर किए गए पेटेंट आवेदनों में मैकेनिकल (यांत्रिकी), केमिकल (रसायनिक), कंप्यूटर / इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन (संचार) जैसे विषयों का वर्चस्व रहा।

  • डब्ल्यूआईपीओ के अनुसार, भारत का पेटेंट कार्यालय विश्व के शीर्ष 10 पेटेंट दाखिल करने वाले कार्यालयों में 7 वें स्थान पर है



जेएनसीएएसआर की प्रोफेसर अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में अंतर्राष्ट्रीय मानद सदस्य के रूप में चयनित

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत आने वाली स्वायत्त संस्थान, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में सैद्धांतिक विज्ञान इकाई (टीएसयू) की प्रोफेसर, शोभना नरसिम्हन को अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मानद सदस्य के रूप में चुना गया है।



अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज, उन विद्वानों और नेताओं को सम्मानित करती है जिन्होंने विज्ञान, कला, मानविकी और सार्वजनिक जीवन में खुद को उत्कृष्ट साबित किया है। अंतरराष्ट्रीय मानद सदस्यों की पिछली सूची में, चार्ल्स डार्विन, अल्बर्ट आइंस्टीन और नेल्सन मंडेला जैसी हस्तियों के नाम शामिल हैं।


प्रो. नरसिम्हन जेएनसीएएसआर में कम्प्यूटेशनल नैनोसाइंस ग्रुप की प्रमुख हैं। उन्होंने नैनोमैटेरियल्स के तर्कसंगत डिजाइन पर महत्वपूर्ण काम किया है, यह जांच करते हुए कि कैसे आयाम में कमी लाने और आकार को छोटा करने से भौतिक गुणों पर प्रभाव पड़ता है। उनका काम कई अलग-अलग प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए प्रासंगिक रहा है, जैसे स्वच्छ ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिए नैनोकैटेलिस्ट्स और स्मृति भंडारण के लिए चुंबकीय सामग्री।


उसके ग्रुप ने  पूर्वानुमान लगाया है कि ऑक्साइड अधःस्तर पर जमा सोने के नैनोकणों की मॉर्फोलॉजी और प्रतिक्रियाशीलता को इलेक्ट्रॉन दाताओं या स्वीकारकर्ताओं के समर्थन से डोपिंग के द्वारा समायोजित किया जा सकता है।


प्रो. नरसिम्हन भारत और विदेशों में, एसटीईएम में महिलाओं को बढ़ावा देने में भी बहुत सक्रिय रही हैं। वह आईयूपीएपी की भौतिकी में महिलाओं के कार्य समूह की सदस्य रह चुकी हैं। 2013 से, वह ट्राएस्टे, इटली और आईसीटीपी-ईएआईएफआर, किगाली, रवांडा के अब्दुस सलाम इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स (आईसीटीपी) में भौतिकी में महिलाओं के लिए कैरियर विकास कार्यशालाओं का सह-आयोजन कर रही हैं।


पुरस्कार और मान्यताएं


वह 2011 में भारत के राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की फेलो बनीं और 2010 में स्त्री शक्ति सम्मान विज्ञान पुरस्कार और कर्नाटक सरकार का कल्पना चावला महिला वैज्ञानिक पुरस्कार 2010 भी प्राप्त किया।


प्रो. नरसिम्हन भारत सरकार द्वारा स्थापित दो समितियों की सदस्य भी रही हैं- विज्ञान में महिलाओं पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स और विज्ञान में महिलाओं पर स्थायी समिति, सरकार को सलाह देने के लिए कि कैसे वह महिला वैज्ञानिकों के विषय को बढ़ावा दे सकती है।


वह एशिया और अफ्रीका में क्वांटम एस्प्रेसो समूह के साथ-साथ एशेस्मा (अफ्रीकन स्कूल ऑन इलेक्ट्रॉनिक स्ट्रक्चर मेथड्स एंड एप्लीकेशन) के द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में सॉलिड-स्टेट फिजिक्स और डेंसिटी फंक्शनल थ्योरी पढ़ाने में भी भागीदार रही हैं। वह एशेस्मा की कार्यकारी समिति की सदस्य हैं, और रवांडा के किगाली में आईसीटीपी-ईएआईएफआर (ईस्ट अफ्रीकन इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च) के वैज्ञानिक परिषद की सदस्य भी हैं।


1996 में जेएनसीएएसआर में शामिल होने से पहले, प्रो. नरसिम्हन ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) बॉम्बे से फिजिक्स में परास्नातक और उसके बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से प्रो डेविड वेंडरबिल्ट की देखरेख में फिजिक्स में पीएचडी पूरा किया। वह न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका में ब्रुकहेवन नेशनल लैब में और फिर बर्लिन, जर्मनी में मैक्स प्लैंक सोसायटी के फ्रिट्ज हैबर इंस्टीट्यूट में एक पोस्टडॉक्टोरल के रूप में काम किया है। वह पूर्व में सैद्धांतिक विज्ञान इकाई की अध्यक्ष और साथ ही जेएनसीएएसआर में शैक्षणिक मामलों की डीन भी रह चुकी हैं।




भारत का अनुसंधान और विकास तथा वैज्ञानिक प्रकाशनों पर व्यय बढ़ा है

अनुसंधान और विकास में भारत का सकल व्यय 2008 से 2018 के बीच बढ़कर तीन गुना हो गया है जो मुख्य रूप से सरकार द्वारा संचालित है और वैज्ञानिक प्रकाशनों ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष स्थानों में ला दिया है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत आने वाले राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रबंधन सूचना (एनएसटीएमआईएस) द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सर्वेक्षण 2018 पर आधारित अनुसंधान और विकास सांख्यिकी तथा संकेतक 2019-20 के अनुसार है।



विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा, “राष्ट्र के लिए अनुसंधान और विकास संकेतकों पर रिपोर्ट उच्च शिक्षा, अनुसंधान और विकास गतिविधियों और  समर्थन, बौद्धिक संपदा और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में प्रमाण-आधारित नीति निर्धारण और नियोजन के लिए असाधारण रूप से महत्वपूर्ण दस्तावेज है। जबकि अनुसंधान और विकास के बुनियादी संकेतकों में पर्याप्त प्रगति देखना खुशी की बात है, जिसके तहत वैज्ञानिक प्रकाशनों में वैश्विक स्तर पर नेतृत्व शामिल है। कुछ ऐसे भी और क्षेत्र हैं जिन्हें मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है।”


एनएसएफ डेटाबेस (आधारभूत आंकड़े) के अनुसार, रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रकाशन में वृद्धि के साथ, देश विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है तथा साथ ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पी.एचडी. में भी तीसरे नंबर पर आ गया है। 2000 के बाद प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या दोगुनी हो गई है।


यह रिपोर्ट तालिका और ग्राफ़ के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकेतकों के विभिन्न इनपुट-आउटपुट के आधार पर देश के अनुसंधान और विकास परिदृश्य को दिखाता है। ये सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास में निवेश, अनुसंधान और विकास के निवेशों से संबंधित है; अर्थव्यवस्था के साथ अनुसंधान और विकास का संबंध (जीडीपी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नामांकन, अनुसंधान और विकास में लगा मानव श्रम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी कर्मियों की संख्या, कागजात प्रकाशित, पेटेंट और उनकी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तुलनाओं से जुड़ा हुआ है।


इस सर्वेक्षण में देशभर में फैले केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्च शिक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग और निजी क्षेत्र के उद्योग से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों के 6800 से अधिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं को शामिल किया गया और 90 प्रतिशत से अधिक प्रतिक्रिया दर प्राप्त कर लिया गया था।


रिपोर्ट के कुछ मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:


अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में भारत का सकल व्यय वर्ष 2008 से 2018 के दौरान बढ़कर तीन गुना हो गया है


 देश में अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) (जीईआरडी) पर सकल व्यय पिछले कुछ वर्षों से  लगातार बढ़ रहा है और यह वित्तीय वर्ष 2007-08 के 39,437.77 करोड़ रूपए से करीब तीन गुना बढ़कर वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1,13,825.03 करोड़ रूपए हो गया है।


 भारत का प्रति व्यक्ति अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय वित्तीय वर्ष 2017-18 में बढ़कर 47.2 डॉलर हो गया है जबकि यह वित्तीय वर्ष 2007-08 में 29.2 डॉलर पीपीपी ही था।


 वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.7 प्रतिशत ही अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) पर व्यय किया, जबकि अन्य विकासशील ब्रिक्स देशों में शामिल ब्राजील ने 1.3 प्रतिशत, रूसी संघ ने 1.1 प्रतिशत, चीन ने 2.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका ने 0.8 प्रतिशत किया।


केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं द्वारा बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) का समर्थन काफी बढ़ गया है


वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान डीएसटी और डीबीटी जैसे दो प्रमुख विभागों ने देश में कुल बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) के समर्थन में क्रमश: 63 प्रतिशत और 14 प्रतिशत का योगदान दिया।


 सरकार द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लिए गए कई पहल के कारण बाहरी अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी वित्तीय वर्ष 2000-01 के 13 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2016-17 में 24 प्रतिशत हो गया।


1 अप्रैल 2018 तक देश में फैले अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) प्रतिष्ठानों में लगभग 5.52 लाख कर्मचारी कार्यरत थे।


वर्ष 2000 से प्रति मिलियन आबादी में शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है


 भारत में प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या बढ़कर वर्ष 2017 में 255 हो गया जबकि यही वर्ष 2015 में 218 और 2000 में 110 था।


वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान प्रति शोधकर्ता भारत का अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय 185 (‘000 पीपीपी डॉलर) $) था और यह रूसी संघ, इज़राइल, हंगरी, स्पेन और यूके (ब्रिटेन) से कहीं ज्यादा था।


 भारत विज्ञान और अभियांत्रिकी (एस एंड ई) में पीएचडी प्राप्त करने वाले देशों में अमेरिका (2016 में 39,710) और चीन (2015 में 34,440) के बाद तीसरे स्थान पर आ गया है।


एनएसएफ डेटाबेस के अनुसार भारत वैज्ञानिक प्रकाशन वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर आ गया है


 वर्ष 2018 के दौरान, भारत को वैज्ञानिक प्रकाशन के क्षेत्र में एनएसएफ, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार क्रमश: तीसरा, पांचवें और नौवें स्थान पर रखा गया था।


  वर्ष 2011-2016 के दौरान, एससीओपीयूस और एससीआई डेटाबेस के अनुसार भारत में वैज्ञानिक प्रकाशन की वृद्धि दर क्रमशः 8.4 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत थी, जबकि विश्व का औसत क्रमशः 1.9 प्रतिशत और 3.7 प्रतिशत था।


वैश्विक शोध प्रकाशन आउटपुट में भारत की हिस्सेदारी प्रकाशन डेटाबेस में भी दिखाई हे रही है।


विश्व में रेजिडेंट पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में भारत 9 वें स्थान पर है


 वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान भारत में कुल 47,854 पेटेंट दर्ज किए गए थे। जिसमें से, 15,550 (32 प्रतिशत) पेटेंट भारतीय द्वारा दायर किए गए थे।


 भारत में दायर किए गए पेटेंट आवेदनों में मैकेनिकल (यांत्रिकी), केमिकल (रसायनिक), कंप्यूटर / इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन (संचार) जैसे विषयों का वर्चस्व रहा।


 डब्ल्यूआईपीओ के अनुसार, भारत का पेटेंट कार्यालय विश्व के शीर्ष 10 पेटेंट दाखिल करने वाले कार्यालयों में 7 वें स्थान पर है 




डॉ. हर्षवर्धन वीडियो ने कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से निपटने की तैयारियों की समीक्षा की

केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के मामलों की रोकथाम और प्रबंधन के लिए बिहार सरकार को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया। उन्होंने बिहार के स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडे के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एईएस के लिए हुई समीक्षा बैठक के दौरान यह विचार व्यक्त किए और पदाधिकारियों से जमीनी स्तर पर स्थिति का जायजा भी लिया। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे भी इस बैठक के दौरान उपस्थित थे।



बैठक के दौरान, एईएस से बच्चों की मृत्यु पर चिंता व्यक्त करते हुए, डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि यह जानना कष्टकर है कि गर्मियों के दौरान 15 मई से जून के महीने के बीच एक खास समय में बिहार में एईएस के कारण छोटे बच्चों की मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है। उन्होंने कहा कि कई स्तरों पर उचित हस्तक्षेप के साथ समय पर देखभाल के माध्यम से  इस मृत्यु दर को रोका जा सकता है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि एईएस के खिलाफ लड़ाई पुरानी है और वह इससे परिचित हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या के निवारण के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण के माध्यम से समय से पूर्व रक्षात्मक, निवारक और व्यापक उपाय करने की आवश्यकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एईएस के प्रकोप के दौरान 2014 और 2019 की अपनी बिहार यात्रा स्मरण करते हुए कहा कि उस वक्त भी उन्होंने स्वयं स्थिति का जायजा लेते हुए बाल-रोगियों और उनके माता-पिता से मुलाकात करके उसके मूल कारणों की जानकारी ली थी।


डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इस बार भी हम स्थिति की लगातार निगरानी कर रहे हैं और एईएस स्थिति के प्रबंधन हेतु राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में हैं। उन्होंने राज्य के अधिकारियों से प्रभावित क्षेत्रों में चौबीस घंटे निगरानी रखने और समय से निवारक कार्रवाई का सुझाव देने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से हम आने वाले समय में एईएस मामलों में वृद्धि को रोकने में सक्षम हो पाएंगे।


उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के माध्यम से राज्य सरकार को पूर्ण समर्थन और सहायता प्रदान करेगा। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि महिला और बाल विकास मंत्रालय सहित केंद्र सरकार के अन्य मंत्रालयों से भी तत्काल और दीर्घकालिक उपायों के तहत सहायता प्रदान करने का अनुरोध किया जाएगा।


बिहार राज्य को दी जा रही सहायता पर विस्तार से चर्चा करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि  स्थिति की दैनिक निगरानी के लिए विशेषज्ञों की समिति के गठन के अलावा, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), एम्स, पटना, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के बाल स्वास्थ्य प्रभाग से विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय अंतर-अनुशासनात्मक विशेषज्ञ टीम के गठन की भी तत्काल आवश्यकता है ताकि एईएस और जापानी एन्सेफलाइटिस के मामलों में राज्य की सहायता के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों में मार्गदर्शन लिया जा सके।


राज्य द्वारा तत्काल उठाए जाने वाले विशिष्ट कदमों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे रोग के लिए नए बाल चिकित्सा आईसीयू को शीघ्र क्रियाशील बनाया जाए; आसपास के जिलों में कम से कम 10 बिस्तर वाले बाल चिकित्सा आईसीयू के साथ पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कराई जाऐं;  रात्रि 10 बजे से सुबह 8 बजे के बीच भी एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध कराई जाऐं जब अधिकांश बच्चों को बुखार, दौरे, सेंसरियम आदि जैसे एईएस के लक्षण देखने को मिलते हैं; पीक आर्वस में चिकित्सकों, पैरामेडिकल और स्वास्थ्य दलों को किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करें; नवीन स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त अस्पताल और अन्य प्रस्तावित बुनियादी ढांचे में सुधार के काम में तेजी लाई जाये।


डॉ. हर्षवर्धन ने सभी को यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि कोविड ​​प्रकोप के समय में एईएस के मामलों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।


इस बैठक में सुश्री प्रीति सूदन, सचिव (एचएफडब्ल्यू), श्री राजेश भूषण, ओएसडी (एचएफडब्ल्यू), श्री संजीव कुमार, विशेष सचिव (स्वास्थ्य), सुश्री वंदना गुरनानी, एएस एंड एमडी (एनएचएम) के अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, बिहार के प्रमुख सचिव, बिहार स्वास्थ्य सुरक्षा समिति के सचिव-सह-मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बिहार के स्वास्थ्य सेवा निदेशक, एनसीडीसी दिल्ली के निदेशक, एम्स, पटना के निदेशक और बिहार के सभी जिलों के जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट भी शामिल हुए। बिहार सरकार के अधीन सभी मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्य, बिहार के सभी जिलों के राज्य निगरानी अधिकारी और बिहार के सभी जिलों के सीडीएमओ/ सीएमएचओ ने भी वेबलिंक के माध्यम से इस बैठक में भाग लिया।