Saturday, May 2, 2020

""वैश्विक महामारी मे घरेलू हिंसा से कैसे बचे""




वैश्विक महामारी ने विश्व समुदाय के सभी देशों संस्थानों व व्यक्तियों के जीवन और सोच को प्रभावित किया है मेरा मानना है कि हर प्राकृतिक आपदा कोई न कोई सीख देती है हमें लेकिन दुख की बात यह है कि लगभग 100 वर्ष पहले भी एक वैश्विक महामारी स्पेनिश फ्लू के कारण दुनिया की बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था लेकिन मानव समाज ने उसकी अनदेखी करते हुए एकांगी  विकास की राह पकड़ी लेकिन इस बार खास बात यह  है कि एकांगी  विकास के मानको पर सबसे आगे रहने वाले देश भी बुरी तरह आहत हुए हैं दोस्तों अब पूरे विश्व समुदाय को मानवता के अस्तित्व पर आने वाली संभावित संकटों से बचाव के रास्ते तलाशने होंगेl

दूसरी तरफ नौकरी जाने की चिंता से देश में घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं लॉकडाउन से घरों में बंद लोगों में आपसी तनाव के मामले बढ़ रहे हैं दिल्ली महिला आयोग के मुताबिक लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के प्रति दिन आ रहे हैं मामले 1400 से अधिक कॉल वही अपहरण और दुष्कर्म के मामले घटे हैं पहले से दोस्तों लॉकडाउन के कारण घरों में कैद हुए पति- पत्नी के रिश्ते में दरार आ रही हैं इस दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं मैं खुद अपने आस- पड़ोस में ऐसी घटनाएं देखा दोस्तों लॉकडाउन में अनेक क्षेत्रों की नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है नौकरियों को खोने  की चिंता से लोगों में तनाव बढ़ा है और इसकी वजह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए हैं दोस्तों पुरुषों को अपने रोजगार की चिंता सता रही है और मध्यम वर्ग के पास आय का कोई साधन नहीं बचा है और शर्मिंदगी के कारण वह किसी से मदद लेने में भी संकोच कर रहे हैं यही कारण है कि यह तनाव घरेलू हिंसा के रूप में सामने आ रहा है दोस्तों पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनीयो गुटेरेस ने कई बार टवीट कर महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा की तरफ लोगों का ध्यान खींचा उन्होंने कहा कि शांति का मतलब केवल युद्ध के ना होने की स्थिति नहीं है यह  घरेलू वातावरण में महिलाओं और बच्चों के प्रति हिंसा ना होने से भी है इसलिए दोस्तों घरेलू हिंसा को रोकने के लिए ध्यान रखें कि शिकायत करने और ताने देने की बजाय प्रशंसा कर काम लेने की तकनीक हमेशा ज्यादा कारगर होती हैं अगर आपका साथी कोई काम बेहतर ढंग से नहीं कर पा रहा है तो इसके लिए उसे दोष देने की बजाय उसे खुद करने की कोशिश करें और अपने काम में व्यस्त रहें मनुष्य का स्वभाव खुद को दूसरों के मुताबिक ढालने की वजह अपने मुताबिक बदलने की कोशिश होती है इसीलिए अक्सर घरेलू हिंसा या किसी प्रकार का तनाव होता है

कवि विक्रम क्रांतिकारी(अंतरराष्ट्रीय चिंतक -विक्रम चौरसिया)

दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता -9069821319

लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लिखें l


 

 



 

विश्व हास्य दिवस पर विशेष

बात बेबात हँस लिया करो यार

अब ये तो सही सही नहीं पता कि हर बात पर लोगों का मुखड़ा उखड़ा क्यों रहता है पर आप यकीन मानिए मुझे तो बहुत हँसी आती है।आप पूछोगे कि बिना हँसी की बात के तो हँसी नहीं आती।लो जी ये भी कोई बात हुई मुझे तो इसी बात पर पर हँसी आ रही है कि हँसने के लिए भी हँसी की बात चाहिए।ये तो वही बात हुई कि कोई गौर वर्णा अप्सरा हो और आप कहें कि उसमें अदाएं ही नहीं है।अरे भाई जब गौर वर्ण अप्सरा ही हो गई तो फिर उसकी हर बात में,उसकी चाल में,उसके बोल में,उसके नयनों में अदाएं हो होंगी ही।अब हँसने के लिए हँसी की बात का होना तो बिल्कुल भी जरुरी नहीं जी।अब मुझे ही देख लो मुझे तो अपने आप पर ही हँसी आती है कि आखिर विश्व रचयिता ने मेरा निर्माण ही क्यों किया?मुझे तो दर्पण में अपना मुखड़ा देखकर ही हँसी आ जाती है और सोचता हूँ कि हाय निर्दयी काल!!इतने सुन्दर  मुखड़े को भी तू खा जाएगा फिर दुनिया में रह ही क्या जाएगा?मुझे तो अपनी नादानियों पर भी हँसी आती है कि आखिर मैं ये इतनी सारी नादानियां करता ही क्यों हूँ।कभी-कभी तो मैं सोचता हूँ कि शायद बेमाता ने मुझे नादानियां करने के लिए ही मेरा निर्माण किया है और फिर यह सोचकर ही हँसी आ जाती है कि आखिर निर्माण का निर्माण ही क्यों हुआ?लो जी मुझे तो इस बात पर भी हँसी आ जाती है कि आखिर लोग हँसते क्यों नहीं,कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके पेट में गुड़गुड़ हो रही है।मुझे तो बहुत हँसी आती है।कभी-कभी तो अपने आप ही अकेले में लेटा होता हूँ तो तब भी हँसी आ जाती है।शुक्र है ये हँसी कोई हसीना नहीं है वरना तो पता नहीं कौन इसे अपने आगोश में लेकर छोड़ता ही नहीं।मुझे तो अक्सर सार्वजनिक शौचालय में बैठे ठाले भी हँसी आ जाती है कि लोग यहाँ अपना लेखन और वर्तनी दोष फुरसत में सुधारने आते हैं क्या?पता नहीं कैसी-कैसी कारीगरी करते हैं साहब?मुझे तो अपनी जेबों पर भी हंसी आती है कि आखिर जब तुम्हें धन रखना ही नहीं था फिर दर्जी ने तुम्हें लगाया ही क्यों?मुझे तो बात-बात पर हँसी आती है।अब पता नहीं लोगों को क्यों नहीं हँसी आती?कई तो इतने गजब के लोग होते हैं कि जिनको हँसी की बात पर भी हँसी नहीं आती साहब।उनका क्या करें,अब मुझे ही देख लो मुझे तो इस बात पर भी हँसी आ रही है कि आखिर मैं यह हास्य व्यंग्य क्यों लिख रहा हूँ और लिखते-लिखते हँस भी रहा हूँ।अब पता नहीं लोग क्यों नहीं हँसते।मेरा तो हँसते सबसे यहीं कहना है कि हँस लिया करो यार,हँसने की कोई फीस या टैक्स नहीं लगता।कभी बात पर हँस लिया करो तो कभी बिना बात भी हँस लिया करो।चलो अब तो मेरा ये व्यंग्य पढ़कर ही हँस लो यार।वो गाना तो आपने सुना ही होगा कि--हर फ़िक्र को मैं धुएँ में उड़ाता चला गया।हँसो भाई हँसो वरना कहीं ऐसा न हो कि लोग तुम पर हँसने लग जाए।

अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार एसोसिएशन जिलाध्यक्ष ने विधवाओं की पेंशन भिजवाने की माँग

दैनिक अयोध्या टाइम्स,रामपुर-अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार एसोसिएशन जिलाध्यक्ष मो.शुऐब खान एडवोकेट जिलाधिकारी रामपुर आपसे सादर अपील है कि जैसे कि आप इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते हमारे ज़िला रामपुर की अवाम के लिए रात दिन एक करके जो जी तोड़ मेहनत आप और पूरा ज़िला प्रशासन व अन्यो से भी आप करा रहे है बेशक़ आपके कार्य सराहनीय है लेकिन इन सबके बीच हमारे कुछ पुरुष व विशेषतौर पर महिलाएं जो समय की मार झेल रहे है उन्हें देखकर मानो दिल से आह निकल पड़े ऐसे में वक़्त की मार के साथ साथ हालातो की भी मार पड़ रही है और ऐसे कठोर समय मे भी लोगो की पेंशन अभी तक नही आ पा रही है।जबकि विधवाओं की पेंशन तो लगभग सितंबर 2019 से ही नही आई है और मुस्लिमों के लिए रमज़ान का मुबारक महीना भी चल रहा है जिसमे खाना पीना भी मयस्सर कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है सभी तरफ से वक़्त की मार पड रही है आपसे इस कठोर समय मे उम्मीद की जाती है कि लोगो की रुकी हुई पेंशन के लिए आप जल्द से जल्द कार्यवाही शुरू कर लोगो को विशेषतौर पर विधवा महिलाओं के खाते में डलवाने की कृपा करें जिससे उन बेसहाराओं के किसी हद तक आंसू पोछने की कोशिश करे आपकी महान कृपा होगी।

 

राजनीति पर बेअसर कोरोनावायरस का प्रहार

राजनीति से आज हम सभी परिचित है। कोई भी व्यक्ति व्यक्ति राजनीति से आज अछूता हो ऐसा होना मुश्किल है। राजनीति के हम अपने देश में सालों से अच्छे-बुरे रंग देखते आएं हैं। राजनीति में अनेकों उतार चढ़ाव सालों से देखने को मिलते हैं। अपने लाभ के लिए राजनीतिक पार्टियां और व्यक्तियों द्वारा अनेक कार्य किए जाते हैं। ऐसा होना आज के समय में आम जनता को कोई नई बात नहीं लगती है।
लेकिन यदि आज जब सम्पूर्ण विश्व कोरोनावायरस से लडने में लगा हुआ है और किसी भी तरह से कोरोनावायरस से अपने देशवासियों को बचाने में लगा हुआ है। उस समय में भी यदि हमारा देश राजनीति से ऊपर उठकर देश की आम जनता के जीवन की परवाह ना करें। तब हम कैसे उस राजनीतिक सोच का समर्थन करेंगे।


जहां बस जीत और स्वार्थ की सोच हो। आम व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा का मुद्दा उनके लिए कर्तव्य ना हो कर एक बोझ हो जाएं।  हम स्वार्थी हो कर अपनी पार्टी या अपने राज्य को बचाने का प्रयास करें। यह सोचे बिना की जीवन सभी का जरूरी है, चाहे वह किसी भी राज्य से हो। देश सब से मिलकर बनता है। एक राज्य या शहर पूरे भारत की पहचान नहीं है।


कोरोनावायरस के गंभीर बिमारी है। इस में समझदारी से फैसले लेने की जरूरत है। किंतु अपने ही राज्य में रहने वालों को अपने राज्य में आने से रोकने की कोशिश करना यह सोच कर कि यदि वह राज्य में आएंगे तो कोरोनावायरस संक्रमित सदस्यों की संख्या में बढ़त आएगी। इस तरह का फैसला आप की राजनीति कुर्सी के लिए सही हो सकता है। किन्तु इंसानियत और मनुष्य जीवन के आधार पर सही नहीं है। 


यदि आपके राज्य में किसी अन्य राज्य से आए व्यक्ति कार्य करते हैं और इस समय लॉक डाउन की वजह से अपने घर जाने में असमर्थ हैं। तो उनकी खाने पीने की व्यवस्था करना आपकी जिम्मेदारी है। आप यह सोच कर कि वह हमें वोट नहीं देते या फिर वह इस राज्य के सदस्य नहीं है उनकी जरूरतों की ओर से मुंह नहीं मोड़ सकते।


यदि आपके राज्य मैं रहने वाले नागरिक  किसी अन्य राज्य में फंसे हुए और अपने परिवार के पास आने की कोशिश में लगे हुए हैं। तो इस लॉक डाउन में सरकार को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उनकी मदद करनी चाहिए। स्पेशल ट्रेन और बस केवल केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी ना बनकर राज्य सरकारों की भी जिम्मेदारी है। जहां वह इस वक्त है और जहां वह जाना चाहते हैं, दोनों सरकारों को आपस में एक दूसरे से सहयोग करके। समझदारी से फैसले लेते हुए, सभी नियमों का पालन करते हुएं। सभी व्यक्तियों को उनके घरों तक पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए। बिना यह सोचे कि वह किस वर्ग का है। अमीर हो या गरीब, सरकार को सब की शुद्ध लेनी आवश्यक है।


किसी राज्य के नागरिक यदि अन्य राज्य में कार्य करने के लिए प्रतिदिन आते जाते हैं और इस वजह से किसी राज्य को यह डर है। कि उस राज्य में क्रोना वायरस फैल जाएगा। तो ऐसे राज्य को, अपने राज्य में  अन्य राज्यों से आने वाले नागरिकों को रोकने की कोशिश करने के स्थान पर। अन्य राज्यों की  सरकार से बात करके ऐसे कुछ इंतजाम करने चाहिए कि इस समय अपने कर्तव्य को पूर्ण करने वाले वह व्यक्ति जो बिना अपनी फिक्र किए प्रत्येक दिन कार्य कर रहे हैं। उन्हें अपने घर से दूर रहते हुए भी परेशानियों का सामना ना करना पड़े।


ऐसा करना हमारा उनके प्रति कर्तव्य है ना की एहसान। हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए ना कि उसे भागने की कोशिश करनी चाहिए। जब वह व्यक्ति अपने कर्तव्य को निभाने के लिए प्रत्येक दिन प्रयास कर रहे हैं तो हमें भी अपने कर्तव्य उनके प्रति निभाने की संपूर्ण कोशिश करनी चाहिए।


यदि हम अपने राज्य में रहने वाले व्यक्तियों को बेसहारा छोड़ देंगे या फिर किसी अन्य राज्य पर उसका बोझ डालते हुए, अपनी जिम्मेदारियों से हाथ छुड़ा लेंगे। तो इस तरह की राजनीति किसी भी तरह से हमारे देश के लिए और देश के लोगों के लिए लाभदायक नहीं हो सकती है। शायद इस प्रकार के फैसलों से हम क्रोना वायरस के संक्रमण से बच जाएं। किंतु यहां भी विचार करने की आवश्यकता है कि हम देश के नागरिकों के प्रतिनिधि कर अपनी किस तरह की तस्वीर सभी के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।


किसी प्रकार के दबाव में या दिखावे में आकर हमारी सरकारें अक्सर फैसले लेती हैं किंतु इस परेशानी के समय में यदि हमारी सरकारें इस सोच से ऊपर उठकर इंसानियत की सोच को सामने रखकर फैसले ले तो कोरोनावायरस के बुरे दौर में हमें अपने देश के प्रतिनिधियों से कुछ अच्छे विचार सीखने को मिलेंगे। जिन्हें आने वाले समय में याद रखा जा सकेगा। जब भी हमारे देश पर किसी भी प्रकार की विपदा आएगी तो आज के प्रतिनिधियों की मिसाल दी जा सके। हमें ऐसे कार्य करने की आवश्यकता है। ना कि ऐसे कार्य करें जोकि हमें इंसान होने के नाम पर शर्मसार करें। साथ ही एक राज्य के प्रतिनिधि होने के स्थान पर कलंक भी लगाए।


क्रोना वायरस दौर है, एक नई सोच का और नए विचारों का यहां पर हमें अपनी आदतों के साथ-साथ अपनी वह सोच भी छोड़ने होगी जहां पर हम स्वार्थी होकर फैसले लिया करते थे। अब हमें सब के बारे में सोचना होगा क्योंकि यह देश किसी एक राज्य से नहीं बल्कि 130 करोड़ देशवासियों से मिलकर बनता है। यह देश सभी का है और इसीलिए इसके फैसले सभी के लिए होने चाहिए, ना कि कुछ चुने हुए लोगों के लिए।
       राखी सरोज