Sunday, March 15, 2020

हमें विमान ईंधन को जीएसटी के तहत लाने की जरूरत है: हरदीप सिंह पुरी

नागरिक उड्डयन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि नागर विमानन उद्योग ने विस्तार के एक नए युग की शुरुआत की है जो सस्‍ती विमानन सेवा (एलसीसी), आधुनिक हवाई अड्डों, घरेलू विमानन कंपनियों में एफडीआई, उन्‍नत सूचना प्रोद्योगिकी और क्षेत्रीय संपर्क पर हमारे बढ़ते जोर से संचालित है। हैदराबाद में आज ‘विंग्स इंडिया 2020’ में बोलते हुए श्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा,  ‘हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां हमें विमान ईंधन को जीएसटी के दायरे में लाने की आवश्यकता है। इसके लिए विभिन्‍न राज्‍यों की सहमति आवश्‍यक होगी।’


उन्होंने आगे कहा कि कोरोनावायरस से उत्पन्न मौजूदा स्थिति विशेष तौर पर नागरिक उड्डयन क्षेत्र के लिए चुनौती है। उन्‍होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय द्वारा व्यक्तिगत तौर पर इसकी निगरानी की जा रही है और निर्देश दिए जा रहे हैं। इसके पहला सबूत मिलने के कुछ ही घंटों के भीतर हमने 12 सबसे अधिक प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। हमने इसका विस्‍तार करते हुए दुनिया भर के किसी भी देश से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग को शामिल किया है। हमारे हवाई अड्डे दुनिया भर में हवाई अड्डों के संचालन के लिए एक बेंचमार्क स्‍थापित करते हैं, विशेष रूप से वे 30 हवाई अड्डे जहां उचित स्क्रीनिंग पहले से ही की जा रही है। हमने दुनिया भर से आने वाली 10,876 उड़ानों की स्क्रीनिंग की है जिसमें 11,71,061 यात्री शामिल हैं। इनमें से 3,225 यात्रियों को आगे की स्क्रीनिंग की आवश्यकता है।’


तेलंगाना सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं संचार और नगर प्रशासन एवं शहरी विकास मंत्री श्री केटी रामाराव ने कहा कि विमानन एवं एयरोस्पेस के क्षेत्र में विकास के लिए हमारे पास आपार संभावनाएं मौजूद हैं। हमारा ध्यान कौशल विकास और एमआरओ बुनियादी ढांचा एवं विदेशी निवेश पर केन्द्रित होना चाहिए। उन्होंने कहा पर्याप्‍त विदेशी निवेश के साथ-साथ रोजगार सृजन के लिहाज से एमआरओ क्षेत्र मे अपार संभावनाएं मौजूद हैं। आज समापन सत्र के दौरान मंत्रालय में मुख्य अतिथि श्री हरदीप सिंह पुरी थे। उनके साथ श्री के टी रामा राव, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री अरविंद सिंह और फिक्की की नागरिक उड्डयन समिति के चेयरमैन एवं एयरबस इंडिया के प्रबंध निदेशक श्री आनंद स्टैनली उपस्थित थे। इस दौरान विमानन उद्योग के परिदृश्‍य पर भी चर्चा की गई। मुख्य बातें इस प्रकार हैं:


· पिछले 18 वर्षों में घरेलू यातायात में 14 गुना वृद्धि हुई है। अंतरराष्‍ट्रीय यातायात सहित कुल यातायात में 8.2 गुना वृद्धि हुई है। · कनेक्टिविटी के लिहाज से विमान्‍न उद्योग का भविष्य उज्‍ज्‍वल है। उड़ान योजना के माध्यम से बढ़ती कनेक्टिविटी ने प्रति व्यक्ति यात्राओं को 0.1 प्रति व्यक्ति से बढ़ाकर 0.5 प्रति व्यक्ति करने में मदद की है।  · फिक्की के अध्ययन के अनुसार हर मिनट एक विमान लैंड करता है या उड़ान भरता है और भारत में हवाई यात्रियों की संख्‍या 1 अरब तक हो जाएगी।


· अगले कुछ वर्षों में एमआरओ के बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने से 100% भारतीय विमानों की सर्वि‍सिंग भारत में ही की जाएगी।  · 2040 तक नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने फिक्‍की के साथ मिलकर एक योजना तैयार की है ताकि विमानों के कलपुर्जों का 100% विनिर्माण भारत में ही सुनिश्चित हो सके।


आयोजन के दौरान श्री हरदीप सिंह पुरी की उपस्थिति में विभिन्न हितधारकों के बीच चार समझौता ज्ञापनों पर भी हस्ताक्षर किए गए। वे इस प्रकार हैं:  · नागर विमानन मंत्रालय की कृषि उड़ान योजना के तहत रास-अल-खैमाह इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट और स्पाइसजेट लिमिटेड के बीच त्रि-पक्षीय समझौता ज्ञापन का आदान-प्रदान।


· तेलंगाना सरकार, जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट और एयरबस बिजलैब।


· तेलंगाना सरकार और डीजेआई।


· तेलंगाना सरकार, एशिया पैसिफिक एफटीओ और मरुत ड्रोन्‍स।


सत्र के दौरान स्वच्छ्ता पखवाड़ा पुरस्‍कार 2019 की घोषणा भी की गई। इसमें विमानन कंपनियों, हवाई अड्डों और विमानन क्षेत्र में संगठनों द्वारा किए गए उल्‍लेखनीय कार्यों को मान्यता दी गई। विजेताओं के नाम इस प्रकार हैं:






























































पुरस्कार श्रेणी



प्रथम



दूसरा



तीसरा



सांत्वना



निजी एयरलाइन



विस्तारा



गोएयर



एयरएशिया और इंडिगो



स्पाइसजेट



निजी हवाई अड्डे



कोच्चि इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड



बेंगलूरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड



मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमि‍टेड



उपलब्‍ध नहीं



नागर विमानन मंत्रालय के तहत पीएसयू



एयर इंडिया लिमिटेड



पवन हंस लिमिटेड



भारतीय विमानपत्‍तन प्राधिकरण



उपलब्‍ध नहीं



एएआई के तहत स्वच्छ और सुरक्षित हवाई अड्डे (50 लाख और इससे अधिक सालाना यात्री)



कोलकाता



चेन्नई



जयपुर



उपलब्‍ध नहीं



एएआई के तहत स्वच्छ और सुरक्षित हवाई अड्डे (15 से 50 लाख सालाना यात्री)



मदुरै



चंडीगढ़



त्रिवेंद्रम



उपलब्‍ध नहीं



एएआई के तहत स्वच्छ और सुरक्षित हवाई अड्डे (10 से 15 लाख सालाना यात्री)



उदयपुर



वडोदरा



विजयवाड़ा



उपलब्‍ध नहीं



नागर विमानन मंत्रालय के अधीन सरकारी संगठन



आईजीआरयूए (इंदिरा  गांधी राष्ट्रीय उडन अकादमी)



डीजीसीए  (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय)



बीसीएएस (नागर विमानन सुरक्षा ब्‍यूरो)



उपलब्‍ध नहीं




Saturday, March 14, 2020

विदेशी निवेश और 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम

‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के शुभारंभ के बाद अप्रैल 2014 से दिसंबर 2019 के दौरान  भारत में 335.33 अरब डॉलर का एफडीआई प्रवाह हो चुका है, जो अप्रैल 2000 से अभी तक भारत में आए कुल एफडीआई का लगभग 51 प्रतिशत है। 2018-19 में भारत में 62 अरब डॉलर का एफडीआई आया था, जो किसी एक वित्त वर्ष का सबसे ऊंचा स्तर है। वित्त वर्ष के आधार पर   एफडीआई प्रवाह और एफडीआई पूंजी प्रवाह का विवरण तालिका-1 में दिया गया है। राज्यवार एफडीआई पूंजी प्रवाह के आंकड़े अक्तूबर 2019 तक के हैं और इसका विवरण तालिका 2 में दिया गया है।


‘मेक इन इंडिया’ कोई योजना नहीं बल्कि एक पहल है जिसकी शुरुआत निवेश को आसान बनाने, नवाचार को प्रोत्साहन, सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण ढांचे का विकास, कारोबारी सुगमता और कौशल विकास को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से सितंबर, 2014 में की गई थी। साथ ही इस पहल का उद्देश्य निवेश के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने, आधुनिक और सक्षम बुनियादी ढांचे का निर्माण, विदेशी निवेश के लिए नए क्षेत्रों को खोलना और सकारात्मक सोच के साथ सरकार व उद्योग के बीच भागीदारी कायम करना था।


मेक इन इंडिया पहल से कई उपलब्धियां हासिल की है और वर्तमान में मेक इन इंडिया 2.0 के अंतर्गत 27 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग 15 विनिर्माण क्षेत्रों के लिए कार्य-योजनाओं का समन्वय कर रहा है, वहीं वाणिज्य विभाग 12 सेवा क्षेत्रों के लिए कार्य-योजनाओं का समन्वय कर रहा है।


वहीं केन्द्र सरकार के कई मन्त्रालयों/विभागों और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत समय-समय पर निवेश प्रोत्साहन और सरलीकरण गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। स्थापित विनिर्माण इकाइयों से संबंधित आंकड़ों का केन्द्रीय स्तर पर रख-रखाव नहीं किया जाता है।


     


संलग्नक - I


 






















































क्र.स.



वित्तीय वर्ष



एफडीआई पूंजी प्रवाह


 


(धनराशि मिलियन डॉलर में)



एफडीआई प्रवाह


 


(धनराशि मिलियन डॉलर में)



1



2014-15



29,737



45,148



2



2015-16



40,001



55,559



3



2016-17



43,478



60,220



4



2017-18 (पी)



44,857



60,974



5



2018-19  (पी)



44,366



62,001



6



2019-20  (पी) (दिसंबर 2019 तक)



36,769



51,429



 



कुल



239,208



335,331



 


स्रोतः भारतीय रिजर्व बैंक और डीपीआईआईटी


 


संलग्नक - II


 


अक्तूबर 2019 से दिसंबर 2019 तक राज्यवार एफडीआई पूंजी प्रवाह का विवरण


 








































































































































































क्र.सं.



राज्य



प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पूंजी प्रवाह की धनराशि (मिलियन डॉलर में)



प्रवाह के साथ प्रतिशत



1



महाराष्ट्र



3133.5



29.34



2



दिल्ली



2441.44



22.88



3



कर्नाटक



2384.53



22.35



4



गुजरात



871.53



8.16



5



तमिलनाडु



525.3



4.92



6



हरियाणा



447.01



4.19



7



तेलंगाना



310.79



2.91



8



राजस्थान



157.84



1.48



9



आंध्र प्रदेश



64.6



0.61



10



पश्चिम बंगाल



58.67



0.55



11



गोवा



52.93



0.50



12



पंजाब



45.48



0 43



13



उत्तर प्रदेश



37.12



0.35



14



मध्य प्रदेश



30.94



0.29



15



केरल



29.12



0.27



16



उत्तराखण्ड



11.3



0.11



17



हिमाचल प्रदेश



9.97



0.09



18



असम



2.55



0.02



19



चंडीगढ़



2.23



0.02



20



ओडिशा



2.03



0.02



21



पुड्डुचेरी



0.45



0.00



22



झारखण्ड



0.44



0.00



23



बिहार



0.09



0.00



24



दादर एवं नगर हवेली



0



0.00



25



राज्य का उल्लेख नहीं



53.47



0.50



 



कुल योग



10673.34



 



स्रोतः भारतीय रिजर्व बैंक


 


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल ने आज  राज्य सभा में लिखित जवाब के माध्यम से यह जानकारी दी है।


 



जैव कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहन  

कृषि क्षेत्र में जैविक कीटनाशक दवाइयों के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति ने रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में जैव कीटनाशकों के पंजीकरण के लिए सरल दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कीटनाशक अधिनियम, 1968 की धारा 9 (3 बी) के अंतर्गत अनंतिम पंजीकरण के दौरान आवेदक को रसायनिक कीटनाशकों के विपरीत जैविक कीटनाशकों की व्यावसायिक बिक्री की अनुमति होगी।


भारत सरकार परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर) और पूंजीगत निवेश सब्सिडी योजना (सीआईएसएस) की जैविक कृषि योजना के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल प्रक्रियाओं के साथ टिकाऊ कृषि उत्पादन की दिशा में काम कर रही है। इनके माध्यम से जैविक बीज और खाद के इस्तेमाल तथा रसायन मुक्त कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे लोगों की सेहत में भी सुधार होगा।


परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत 3 साल की अवधि के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सहायता उपलब्ध कराई जा रही है, जिसमें से डीबीटी के माध्यम से किसानों को 31 हजार रुपये (62 प्रतिशत) उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यह सहायता जैव उर्वरकों, जैव कीटनाशकों, वर्मीकम्पोस्ट, वानस्पतिक अर्क, उत्पादन/खरीद, फसल बाद प्रबंधन आदि के लिए दी जा रही है।


एमओवीसीडीएनईआर के अंतर्गत जैविक सामग्रियों, बीज/पौध रोपण सामग्री के वास्ते 3 साल के लिए प्रति हेक्टेयर 25 हजार रुपये की सहायता दी जा रही है।


पूंजीगत निवेश सब्सिडी योजना के अंतर्गत भारत सरकार सालाना 200 टन क्षमता वाली जैविक उर्वरक इकाई की स्थापना के लिए राज्य सरकार/सरकारी एजेंसियों को 160 लाख रुपये प्रति यूनिट की अधिकतम सीमा के आधार पर 100 प्रतिशत सहायता उपलब्ध कराकर जैविक उर्वरकों के उत्पादन को प्रोत्साहन दे रही है। इसी प्रकार व्यक्तिगत/निजी एजेंसियों को पूंजी निवेश के रूप में 40 लाख रुपये प्रति यूनिट की सीमा के साथ लागत की 25 प्रतिशत तक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। यह सहायता राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही है।


परम्परागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत पिछले 3 साल (2016-17, 2017-18, 2018-19) और वर्तमान वर्ष (2019-20) के दौरान क्रमशः 152.82 करोड़ रुपये, 203.46 करोड़ रुपये, 329.46 करोड़ रुपये और 226.42 करोड़ रुपये का व्यय किया जा चुका है।


एमओवीसीडीएनईआर के अंतर्गत पिछले 3 साल (2016-17, 2017-18, 2018-19) और वर्तमान वर्ष (2019-20) के दौरान क्रमशः 47.63 करोड़ रुपये, 66.22 करोड़ रुपये, 174.78 करोड़ रुपये और 78.83 करोड़ रुपये का व्यय किया जा चुका है।


पूंजीगत निवेश सब्सिडी योजना के अंतर्गत 2016-17 और 2017-18 के दौरान नाबार्ड ने कोई धनराशि का वितरण नहीं किया। हालांकि 2018-19 के दौरान 276.168 लाख रुपये का वितरण किया गया।


जैव कीटनाशकों के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए एकीकृत पेस्ट प्रबंधन योजना के अंतर्गत किसान क्षेत्र विद्यालय (फार्मर फील्ड स्कूल) और मानव संसाधन विकास कार्यक्रम (2 और 5 दिन) के माध्यम से किसानों को शिक्षित किया जा रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों की प्रयोगशालाओं में भी जैव कीटशानकों (ट्राइकोडर्मा, मेटाझिझियम, ब्यूवेरिया आदि) का विस्तार और उनका किसानों को वितरण किया जा रहा है। एकीकृत पेस्ट प्रबंधन के अंतर्गत बीते 5 साल (2015-16 से 2019-20) के दौरान 3472 फार्मर फील्ड स्कूल और 647 मानव संसाधन विकास कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है। इनके माध्यम से 1,04,160 किसानों और 25,880 कीटनाशक विक्रेता और राज्य सरकार के अधिकारी प्रशिक्षण हासिल कर चुके हैं।


केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज राज्य सभा में एक लिखित जवाब के माध्यम से यह जानकारी दी।          



प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों में लिप्त पाई गईं बंगाल केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एसोसिएशन और कुछ दवा कंपनियां

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने बंगाल केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एसोसिएशन (बीसीडीए), उसकी दो जिला समितियों मुर्शिदाबाद डिस्ट्रिस्ट कमिटी और बर्धवान डिस्ट्रिक्ट कमिटी और उनके पदाधिकारियों को प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3 (3) (बी) के प्रावधानों (धारा 3 (1) के साथ ही पढ़ें) के उल्लंघन के साथ ही प्रतिस्पर्धा-रोधी प्रक्रियाओं को अपनाने का दोषी पाया है। बीसीडीए द्वारा इन प्रतिस्पर्धा-रोधी प्रक्रियाओं को अपनाया गयाः (1) दवा कंपनियों नए स्टॉकिस्टों को दवा की आपूर्ति से पहले पश्चिम बंगाल के कम से कम कुछ जिलों से पिछले स्टॉक की उपलब्धता की जानकारी (एसएआई)/बीसीडीए से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होता है; (2) डिस्ट्रिक्ट कमिटी के माध्यम से उनको एसएआई जारी करने के एवज में संभावित स्टॉकिस्टों से पैसा वसूला करती हैं; और (3) दवा कंपनियों के प्रचार सह वितरक (पीसीडी) एजेंट को पश्चिम बंगाल में संबंधित दवा कंपनियों की दवाओं का विपणन शुरू करने से पहले बीसीडीए को दान के रूप में पैसा देकर उससे उत्पाद उपलब्धता जानकारी (पीएआई) हासिल करनी होती थी।


इसके अलावा सीसीआई ने पाया कि दवा कंपनियों एल्केम लैबोरेटरीज (एल्केम) और मैकलॉयड फार्मास्युटिकल्स (मैकलॉयड) का बीसीडीए से प्रतिस्पर्दा-रोधी समझौता है, जिसमें ये कंपनियां संभावित स्टॉकिस्टों को ऑफर लेटर ऑफ स्टॉकिस्टशिप (ओएलएस) जारी करने के बाद उनसे बीसीडीए से लिया गया एसएआई /एनओसी /स्वीकृति पत्र /सर्कुलेशन पत्र की मांग किया करती थीं। इसके बाद ही दवा कंपनियां आपूर्ति शुरू करती थीं। इस प्रकार आयोग ने एल्केम और मैकलॉयड को अधिनियम की धारा 3 (1) के प्रावधानों के उल्लंघन का दोषी पाया। साथ ही सीसीआई ने उनके कई अधिकारियों को अधिनियम की धारा 48 की शर्तों के तहत दोषी पाया।


इस क्रम में सीसीआई ने बीसीडीए, उसकी मुर्शिदाबाद और बर्धवान जिला समितियों, उनके पदाधिकारियों, दवा कंपनियों एल्केम और मैकलॉयड्स, उनके संबंधित अधिकारियों को ऐसी प्रक्रियाओं पर रोक लगाने और इससे बचने के निर्देश दिए। हालांकि, सीसीआई ने कहा, बीसीडीए ने कहा कि सीसीआई के पूर्व के एक आदेश के क्रम में प्रक्रियाओं में सुधार का भरोसा दिलाया है। इस मामले में सीसीआई ने किसी भी इकाई पर कोई जुर्माना नहीं लगाने का फैसला किया है।


आयोग इस मामले में विस्तृत आदेश बाद में जारी करेगा।