Saturday, March 14, 2020

मंत्रिमंडल ने यूरिया इकाइयों के निर्धारित मूल्‍यों के निर्धारण हेतु संशोधित नई मूल्‍य निर्धारण योजना-III में संशय की स्थितियों को दूर करने की मंजूरी दी

 प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्‍यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने यूरिया इकाइयों के निर्धारित मूल्यों के निर्धारण हेतु संशोधित नई मूल्य निर्धारण योजना-III  (एनपीएस-III ) में संशय की स्थितियों को दूर करने की मंजूरी दी।


संशोधित नई मूल्य निर्धारण योजना-III 2 अप्रैल, 2014 को अधिसूचित की गई थी। हालांकि, इस अधिसूचना की अस्‍पष्‍ट भाषा के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। उपरोक्‍त निर्णय से इस अधिसूचना के सहज कार्यान्‍वयन में मदद मिलेगी जिसके परिणामस्‍वरूप 30 यूरिया विनिर्माण इकाइयों के अनुदान में 350 रुपये प्रति मीट्रिक टन की अतिरिक्‍त निर्धारित लागत प्रदान की जा सकेगी। संशोधित एनपीएस-III के लागू होने से मौजूदा यूरिया इकाइयों को इस प्रस्‍ताव में उल्लिखित सीमा के अनुसार निर्धारित लागत में उनकी वास्‍तविक वृद्धि की सीमा तक लाभ मिलेगा। इससे यह सुनिश्चित भी होगा कि किसी भी इकाई को अनुचित रूप से लाभ न मिले।


इससे यूरिया इकाइयों के एक लगातार संचालन में मदद मिलेगी जिसके परिणामस्‍वरूप किसानों को यूरिया की निरंतर और नियमित आपूर्ति सुलभ होगी।


इस अनुमोदन से उन यूरिया इकाइयों को 150 रूपये/मीट्रिक टन का विशेष मुआवजा भी मिलेगा जो 30 साल से अधिक पुरानी हैं और गैस में परिवर्तित हैं। इस मुआवजे से इन इकाइयों को प्रोत्‍साहन मिलेगा ताकि वे सतत उत्‍पादन के लिए व्‍यवहार्य बनी रहें।



भूजल ने हिमालयी स्लिप और जलवायु को प्रभावित किया

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज़्म) (आईआईजी) के शोधकर्ताओं ने भूजल में मौसमी बदलावों के आधार पर शक्तिशाली हिमालय को घटते हुए पाया। चूंकि हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु को प्रभावित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्त पोषित अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि जल-विज्ञान किस प्रकार जलवायु को प्रभावित करता है।


हिमालय की तलहटी और भारत-गंगा का मैदानी भाग डूब रहा है, क्योंकि इसके समीपवर्ती क्षेत्र भूस्खलन या महाद्वीपीय बहाव से जुड़ी गतिविधि के कारण बढ़ रहे हैं। जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च में प्रकाशित नए अध्ययन से पता चलता है कि सामान्य कारणों के अलावा, भूजल में मौसमी बदलाव के साथ उत्थान पाया जाता है। पानी एक चिकनाई एजेंट के रूप में कार्य करता है, और इसलिए जब शुष्क मौसम में पानी होता है, तो इस क्षेत्र में फिसलन की दर कम हो जाती है।


अब तक किसी ने भी जल-विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण से बढ़ते हिमालय को नहीं देखा है। प्रो सुनील सुकुमारन के दिशा-निर्देश में अपनी पीएचडी के लिए कार्यरत अजीत साजी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्होंने इस अभिनव प्रिज्म के माध्यम से इस गतिविधि को देखा। पानी के भंडारण और सतह भार में भिन्नताएं पाई जाती हैं, जिसके कारण मौजूदा वैश्विक मॉडलों के इस्तेमाल से इन्हें निर्धारित करने के लिए काफी मुश्किल हैं।


हिमालय में, ग्लेशियरों से मौसमी पानी के साथ-साथ मानसून की वर्षा, क्रस्ट की विकृति और इससे जुड़ी भूकंपीयता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भू-जल में कमी की दर भूजल की खपत के साथ जुड़ी हुई है।


शोधकर्ताओं ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) डेटा का एक साथ उपयोग किया है, जिससे उनके लिए हाइड्रोलॉजिकल द्रव्यमान की विविधताओं को निर्धारित करना संभव हो गया है। 2002 में अमेरिका द्वारा लॉन्च किए गए ग्रेस के उपग्रह, महाद्वीपों पर पानी और बर्फ के भंडार में बदलाव की निगरानी करते हैं। इससे आईआईजी टीम के लिए स्थलीय जल-विज्ञान का अध्ययन करना संभव हो पाया।


अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, संयुक्त जीपीएस और ग्रेस डेटा उप-सतह में 12 प्रतिशत की कमी होने का संकेत देता है। यह स्लिप बताता है कि फूट तथा हैंगिंग वाल के सापेक्ष कितनी तेजी से खिसकता है। यह स्लिप मुख्य हिमालयी दबाव (मेन हिमालयन थ्रस्ट) (एमएचटी) में होती है, जो हाइड्रोलॉजिकल विविधताओं और मानवीय गतिविधियों के कारण होती है।



एचआईएल (इंडिया) लिमिटेड ने ‘ग्राहक भुगतान पोर्टल’ लॉन्‍च किया

भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ विजन को ध्‍यान में रखते हुए रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के रसायन एवं पेट्रोरसायन विभाग के अधीनस्‍थ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम एचआईएल (इंडिया) लिमिटेड ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के सहयोग से ‘ग्राहक भुगतान पोर्टल’ लॉन्‍च किया है। एचआईएल (इंडिया) लिमिटेड के इस ‘कस्‍टमर पेमेंट पोर्टल’ का उद्देश्‍य अपने ग्राहकों से विभिन्‍न ऑनलाइन तरीकों से भुगतान प्राप्‍त करना है, ताकि बकाया धनराशि का त्‍वरित एवं सुगम संग्रह हो सके।



एचआईएल (इंडिया) लिमिटेड के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक डॉ. एस.पी.मोहं‍ती, निदेशक (वित्‍त) श्री अंजन बनर्जी और सरकारी व्‍यवसाय विभाग के प्रमुख श्री आर.के.जगलान और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के क्षेत्रीय प्रमुख (दक्षिण दिल्‍ली) श्री जी.के.सुधाकर राव ने यह पोर्टल लॉन्‍च किया।




प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सार्क देशों से एक मजबूत रणनीति बनाने का आह्वान किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सार्क देशों से एक मजबूत रणनीति बनाने का आह्वान किया है। उन्‍होंने यह भी सुझाव दिया कि इन रणनीतियों पर वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिये विचार-विमर्श किया जा सकता है और आपस में एकजुट होकर सार्क देश दुनिया के सामने एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण पेश कर सकते हैं एवं स्‍वस्‍थ धरती सुनिश्चित करने में बहुमूल्‍य योगदान दे सकते हैं।


प्रधानमंत्री ने अपने कई ट्वीट में कहा है कि दक्षिण एशिया में ही वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा रहता है, अत: दक्षिण ए‍शिया के देशों को अपने यहां रहने वाले लोगों का अच्‍छा स्‍वास्‍थ्‍य सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से कोई भी कसर नहीं छोड़नी चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार नोवल कोरोना वायरस (कोविड-19) से लड़ने के लिए विभिन्‍न स्‍तरों पर अपनी ओर से अथक कोशिश कर रही है।