Saturday, March 14, 2020

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री बोरिस जॉनसन के बीच टेलीफोन पर वार्ता

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री बोरिस जॉनसन के बीच आज टेलीफोन पर बातचीत हुई।



दोनों राजनेताओं ने नए दशक में भारत-ब्रिटेन रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने तर्क दिया कि इस उद्देश्य के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार करना उपयोगी होगा।


दोनों राजनेताओं ने भारत और ब्रिटेन के बीच जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में विशेषकर आपदारोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (सीडीआरआई) के संदर्भ में आपसी सहयोग पर संतोष व्यक्त किया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस वर्ष आयोजित होने वाले कॉप-26, ग्लासगो में शामिल होने के आमंत्रण के लिए प्रधानमंत्री जॉनसन को धन्यवाद दिया।


दोनों प्रधानमंत्रियों ने कोविड-19 महामारी पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ब्रिटिश स्वास्थ्य मंत्री सुश्री नदीन डोरिज के कोरोना वायरस से पीड़ित होने पर चिंता व्यक्त की और उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने श्री जॉनसन को भारत आने के लिए आमंत्रित किया।




प्रयोगशाला में लाल रक्‍त कोशिकाओं का तेजी से सृजन करने का अभिनव तरीका

लाल रक्‍त कोशिकाओं (आरबीसी) का रक्‍त–आधान (ट्रांसफ्यूजन) कई तरह की शारीरिक स्थितियों जैसे कि रक्‍त की भारी कमी, दुर्घटना संबंधी आघात, हृदय शल्‍य चिकित्‍सा में सहायक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, प्रत्यारोपण (ट्रांसप्‍लांट) सर्जरी, गर्भावस्‍था संबंधी जटिलताओं, ट्यूमर संबंधी कैंसर और रक्‍त संबंधी कैंसर के लिए एक जीवन-रक्षक उपचार है।


हालांकि, विशेषकर विकासशील देशों के ब्‍लड बैंकों में अक्‍सर रक्‍त के साथ-साथ रक्‍त के घटकों जैसे कि लाल रक्‍त कोशिकाओं का भारी अभाव रहता है।


विश्‍वभर के शोधकर्ता रक्तोत्पादक स्टेम सेल (एचएससी) से शरीर से बाहर आरबीसी का सृजन करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। इन एचएससी में रक्‍त में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को सृजित करने की विशिष्‍ट क्षमता है। विभिन्‍न समूह एचएससी से प्रयोगशाला में आरबीसी का सृजन करने में सक्षम साबित हुए हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में लगभग 21 दिनों का काफी लम्‍बा समय लगता है। इतनी लम्‍बी अवधि में प्रयोगशाला में कोशिकाओं का सृजन करने में जितनी धनराशि लगेगी उसे देखते हुए चिकित्‍सीय कार्यों के लिए बड़े पैमाने पर आरबीसी का सृजन करना काफी महंगा साबित हो सकता है।  जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पुणे स्थित राष्‍ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र (एनसीसीएस) के एक पूर्व वैज्ञानिक डॉ. एल.एस.लिमये की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस समस्‍या के समाधान  का तरीका ढूंढ निकाला है।


इस टीम ने यह पाया है कि विकास के माध्यम में ‘एरिथ्रोपोइटिन (ईपीओ)’ नामक हार्मोन के साथ ‘रूपांतरणकारी ग्रोथ फैक्‍टर β1 (टीजीएफ-β1)’ नामक एक छोटे प्रोटीन अणु की बहुत कम सांद्रता को जोड़कर इस प्रक्रिया में काफी तेजी लाई जा सकती है। यह टीम इस प्रक्रिया में लगने वाले कुल समय को तीन दिन घटाने में सफल रही है।   डॉ. लि‍मये ने बताया कि इस प्रक्रिया में बनने वाली कोशिकाओं की गुणवत्‍ता के परीक्षण के लिए अनेक तरह की जांच कराई गई और इसके साथ ही उनकी अनेक विशिष्‍टताओं पर भी गौर किया गया जिससे यह तथ्‍य उभर कर सामने आया कि इस प्रक्रिया के उपयोग से बनने वाली लाल रक्‍त कोशिकाएं (आरबीसी) बिल्‍कुल सामान्‍य थीं।


इन निष्‍कर्षों से इस दिशा में आगे शोध करने की संभावनाओं को काफी बल मिला है। शोधकर्ताओं ने एक पत्रिका ‘स्टेम सेल रिसर्च एंड थेरेपी’ में अपने अनुसंधान पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। (इंडिया साइंस वायर)



वैज्ञानिकों ने जीभ के कैंसर के लिए संभावित नई थैरेपी का मार्ग प्रशस्‍त किया

जीभ के कैंसर के लिए निकट भविष्‍य में एक नई थैरेपी मिल सकती है। हैदराबाद स्थित डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एंड डायग्‍नोस्टिक्‍स केन्‍द्र के बायोटेक्‍नोलॉजी वैज्ञानिकों ने एक नये तंत्र की खोज की है, जिससे एक कैंसर रोधी प्रोटीन परिवर्तित होने पर कैंसर को और बढ़ने से रोकता है।


मनुष्‍य की कोशिकाओं में पी53 नाम का एक प्रोटीन होता है। यह काफी मददगार है, क्‍योंकि यह कोशिकाओं के विभाजन और क्षतिग्रस्‍त डीएनए की मरम्‍मत सहित अनेक मूलभूत कार्यों को नियंत्रित करता है। यह डीएनए के साथ प्रत्‍यक्ष रूप से जुड़कर कार्य करता है, जिससे प्रोटीन बनने में मदद मिलती है, जिसकी नियमित कोशिकीय कार्यों में आवश्‍यकता होती है साथ ही यह कैंसर विकसित होने से रोकने में प्रभावी भूमिका निभाता है।


यदि बीमारी बढ़ने लगती है, तो कैंसर को रोकने में इसकी क्षमता में काफी कमी आ जाती है। हाल के अध्‍ययनों से जानकारी मिली है कि कुछ विशेष और साधारण परिवर्तित पी53 रूप कैंसर की वृद्धि में सक्रिय रहते हैं।


एक नये अध्‍ययन में सीडीएफडी के वैज्ञानिकों ने भारतीयों में होने वाले जीभ के कैंसर के दुर्लभ पी53 रूप की पहचान की है, जिससे ये म्‍यूटेंट पी53 कैंसर का कारण बनता है। इसके लिए उन्‍होंने सर्जरी के बाद मरीजों की जीभ के कैंसर के नमूने एकत्र किए और उसे टीपी53 नाम के एक जीन में बदलने के लिए स्‍क्रीनिंग की। यह जीन डीएनए में न्‍यूक्‍लीयोटाइड का अनुक्रम है, जो पी53 प्रोटीन तैयार करने के लिए सांकेतिक अंक है।  आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल कर वैज्ञानिकों ने म्‍यूटेंट पी53 प्रोटीन के जीन की पहचान की। इसमें से एक जीन जिसे एसएमएआरसीडी1 कहा जाता है, सबसे महत्‍वपूर्ण है। एसएमएआरसीडी1 एक प्रोटीन को सांकेतिक शब्‍दों में बदलता है, जो एक अन्‍य प्रोटीनों के साथ मिलकर एक मल्‍टीप्रोटीन कॉम्‍पलेक्‍स बनाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि ऐसे में एसएमएआरसीडी1 भारतीयों में जीभ के कैंसर में देखने को मिलता है। अन्‍य अध्‍ययन दर्शाते हैं कि ऐसे में एसएमएआरसीडी1 की क्षमता जीभ के कैंसर की कोशिकाओं में कैंसर को बढ़ाने की क्षमता रखती है। 


यह पहला मौका है कि एसएमएआरसीडी1 को किसी प्रकार के कैंसर का संभावित चालक बताया गया है।  अध्ययन दल के प्रमुख,  आणविक ऑन्कोलॉजी प्रयोगशाला के डॉ. एम. डी. बश्याम ने कहा, "इस अध्ययन में दी गई टिप्पणियों का महत्व है क्योंकि वे एक नए और संभावित तंत्र को प्रकट करते हैं जिसके द्वारा उत्परिवर्ती पी53 प्रोटीन कैंसर के विकास को रोकते हैं। अध्ययन के परिणामों को जीभ के कैंसर के इलाज के लिए विकसित करने के लिए नियोजित किया जा सकता है।



आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अब मास्क और हैंड सैनिटाइजर भी

विगत कुछ सप्ताहों के दौरान कोविड-19 (कोरोना वायरस) के मौजूदा प्रकोप और कोविड-19 प्रबंधन के लिए लॉजिस्टिक संबंधी चिंताओं के परिप्रेक्ष्य में तथा यह भी देखते हुए कि मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन95 मास्क) और हैंड सैनिटाइजर या तो बाजार में अधिकांश विक्रेताओं के पास उपलब्ध नहीं है अथवा बहुत अधिक कीमतों पर काफी मुश्किल से उपलब्ध हो रहे हैं, सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की अनुसूची में संशोधन करते हुए, इन वस्तुओं को दिनांक 30 जून, 2020 तक आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु के रूप में घोषित करने के लिए एक आदेश अधिसूचित किया है। सरकार ने विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत एक एडवाइजरी भी जारी की है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत, राज्य, विनिर्माताओं के साथ विचार-विमर्श करके उनसे इन वस्तुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू बनाने के लिए कह सकते हैं जबकि विधिक माप विज्ञान अधिनियम के तहत राज्य इन दोनों वस्तुओं की अधिकतम खुदरा मूल्य (एम.आर.पी.) पर बिक्री सुनिश्चित कर सकते हैं।


इन दोनों वस्तुओं के संबंध में, राज्य अपने शासकीय राजपत्र में अब केंद्रीय आदेश को अधिसूचित कर सकते हैं और इसके लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अपने स्वयं के आदेश भी जारी कर सकते हैं और संबंधित राज्यों में व्याप्त परिस्थितियों के अनुसार कार्रवाई कर सकते हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार की शक्तियां वर्ष 1972 से 1978 के आदेशों के माध्यम से राज्यों को पहले ही प्रत्यायोजित की जा चुकी हैं। अतः, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र आवश्यक वस्तु अधिनियम और चोरबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम के तहत उल्लंघनकर्ताओं के विरूद्ध कार्रवाई कर सकते हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत किसी उल्लंघनकर्ता को 7 वर्ष के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है तथा चोरबाजारी निवारण एवं आवश्यक वस्तु प्रदाय अधिनियम के तहत, उसे अधिकतम 6 माह के लिए नजरबंद किया जा सकता है। यह निर्णय सरकार और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को मास्क (2 प्लाई एवं 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन95 मास्क) और हैंड सैनिटाइजर के उत्पादन, गुणवत्ता, वितरण आदि को विनियमित करने और इन वस्तुओं की बिक्री और उपलब्धता को सहज बनाने तथा आदेश के उल्लंघनकर्ताओं आदि एवं इनके अधिमूल्यन, कालाबाजारी आदि में शामिल व्यक्तियों के विरूद्ध कार्रवाई करने के सशक्त बनाएगा। इससे आम जनता को दोनों वस्तुओं की उचित कीमतों पर अथवा अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) की सीमा में उपलब्धता बढ़ेगी। राज्यों को उपरोक्त दोनों वस्तुओं के संबंध में उपभोक्ताओं द्वारा शिकायतें दर्ज कराने के लिए राज्य उपभोक्ता हेल्पलाइन का प्रचार करने की सलाह भी दी जाती है। इस संबंध में उपभोक्ता अपनी शिकायतें राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नम्बर 1800-11-4000 पर तथा ऑनलाइन शिकायतें www.consumerhelpline.gov.in, विभाग की वेबसाइट www.consumeraffairs.nic.indsadmin-ca@nic.in और dirwm-ca@nic.insecy.doca@gov.in पर भी दर्ज करा सकते हैं।