Monday, February 3, 2020

विनिवेश ने सरकार के ठोस प्रदर्शन और संपूर्ण उत्पादकता में सुधार किया और उनकी धन सृजन की संभावनाएं खोली

वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। सर्वेक्षण में जोर देकर कहा गया है कि विनिवेश से सरकार के कुल प्रदर्शन और संपूर्ण उत्पादकता में सुधार हुआ है और उसकी धन सृजन की संभावनाएं खुली हैं। इसका अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। समग्र विनिवेश, मुख्य रूप से रणनीतिक बिक्री के मार्ग के जरिए इस्तेमाल अधिक लाभ के लिए, दक्षता को बढ़ाने, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और सीपीएसई में प्रबंधन में व्यवसायिकता को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।



समीक्षा में कहा गया है कि महत्वपूर्ण निवेश का मुख्य केन्द्र बिन्दु कम महत्वपूर्ण व्यवसायों से निकालकर उसे इन सीपीएसई की आर्थिक संभावना को अधिकतम बनाने की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए। इस कदम की बदौलत पूंजी खासतौर से सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे – सड़कों, बिजली, ट्रांसमिशन लाइनों, सीवेज प्रणालियों, सिंचाई प्रणालियों, रेलवे और शहरी बुनियादी ढांचे पर इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह उत्साहवर्धक है कि निवेश और सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग द्वारा (डीआईपीएएम) प्रावधानों को सरल और कारगर बना दिया गया है।


समीक्षा के अनुसार मंत्रिमंडल ने विभिन्न सीपीएसई में विनिवेश को सिद्धांत रूप से मंजूरी दे दी है। इसे प्रबल तरीके से किए जाने की आवश्यकता है ताकि वित्तीय उपलब्धता और सार्वजनिक संसाधनों के दक्ष आवंटन में सुधार किया जा सके।


समीक्षा में कहा गया है कि 38 विभिन्न मंत्रालयों / विभागों के अंतर्गत करीब 264 सीपीएसई हैं। इनमें से 13 मंत्रालयों / विभागों में 10 सीपीएसई है जिनमें से प्रत्येक उनके अधिकार क्षेत्र में है। यह स्पष्ट है कि इनमें से अनेक सीपीएसई लाभकारी हैं, हालांकि आमतौर पर सीपीएसई का बाजार में अपेक्षाकृत कम प्रदर्शन रहता है। जैसा कि वर्ष 2014-2019 की अवधि के दौरान बीएसई सेंसेक्स के 38 प्रतिशत रिटर्न की तुलना में बीएसई सीपीएसई सूचकांक का औसत रिटर्न केवल 4 प्रतिशत रहा है।


समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि सरकार सीपीएसई में सूचीबद्ध अपने हित को पृथक कॉरपोरेट इकाई में हस्तांतरित कर सकती है। इस इकाई का प्रबंधन एक स्वतंत्र बोर्ड द्वारा किया जाएगा और इसे एक निर्धारित समय में इन सीपीएसई में सरकार के हितों का विनिवेश करने के लिए अधिदेशित किया जाएगा। इस कदम से विनिवेश कार्यक्रम में व्यवसायिकता और स्वायत्ता आएगी, जिसकी बदौलत इन सीपीएसई के आर्थिक प्रदर्शन में सुधार होगा।


समीक्षा में कहा गया है कि नवंबर, 2019 में भारत ने दशकभर से ज्यादा अरसे का अपना सबसे बड़ा निजीकरण अभियान प्रारंभ किया। चुनिंदा केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (सीपीएसई) में भारत सरकार की चुकता पूंजी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाने को “सैद्धांतिक” मंजूरी प्रदान की गई। निजीकरण से प्राप्त होने वाले दक्षता संबंधी लाभ की जांच करने तथा क्या निजीकरण के लाभ भारतीय संदर्भ में भी परिलक्षित हुए हैं या नहीं, इस बात का पता लगाने के लिए समीक्षा में उन सीपीएसई का विश्लेषण किया गया, जिनमें वर्ष 1999-2000 से 2003-04 तक की अवधि में महत्वपूर्ण विनिवेश किया गया था।


समीक्षा में प्रत्येक सीपीएसई के प्रदर्शन में हुए परिवर्तनों की भी पड़ताल की गई है। इसमें प्रत्येक कम्पनी में महत्वपूर्ण विनिवेश/निजीकरण से दस वर्ष पहले और दस वर्ष बाद की अवधि के प्रमुख वित्तीय संकेतकों में हुए सुधारों का भी अध्ययन किया गया है। पृथक रूप से अध्ययन करते हुए ऐसे प्रत्येक निजीकृत या प्राइवेटाइज्ड सीपीएसई, की शुद्ध संपत्ति, शुद्ध लाभ, सकल राजस्व, शुद्ध लाभ अंतर, निजीकरण के बाद की अवधि में हुई बिक्री में हुए सुधार की तुलना पूर्व निजीकरण की अवधि से की गई।




विश्व बैंक कारोबारी सुगमता श्रेणी में भारत ने 79 पायदानों की छलांग लगाई; 2014 के 142 वें स्थान से 2019 में 63 वें स्थान पर पहुंचा

केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की। वित्त मंत्री ने कहा कि भारत ने विश्व बैंक के कारोबारी सुगमता श्रेणी में 79 स्थानों की छलांग लगाई है। भारत 2014 के 142 वें स्थान से 2019 में 63 वें स्थान पर पहुंच गया है।



देश ने 10 मानकों में से 7 मानकों में प्रगति दर्ज की है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) कानून उन सुधारों की सूची में सबसे उपर हैं जिनके कारण श्रेणी में भारत की स्थिति बेहतर हुई है। हालांकि भारत कुछ अन्य मानकों यथा कारोबार शुरू करने में सुगमता (श्रेणी 136), सम्पत्ति का पंजीयन (श्रेणी 154), कर भुगतान (श्रेणी 115), संविदाओं को लागू करना (श्रेणी 163) आदि में अभी भी पीछे है।


पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत में कारोबार शुरू करने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं की संख्या 13 से घटकर 10 रह गई है। आज भारत में कारोबार शुरू करने के लिए औसतन 18 दिनों का समय लगता है जबकि 2009 में औसतन 30 दिनों का समय लगता था। हालांकि भारत ने कारोबार शुरू करने में लगने वाले समय और लागत में महत्वपूर्ण कमी की है लेकिन इसमें और सुधार की आवश्यकता है।


सेवा क्षेत्र को भी अपने दैनिक कारोबार के लिए विभिन्न नियामक अवरोधों का सामना करना पड़ता है। पूरी दुनिया में रोजगार और विकास के लिए बार एवं रेस्तरां को महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। यह एक ऐसा व्यापार है जिसमें कारोबार शुरू करने और बंद होने की आवृत्ति बहुत अधिक होती है। एक सर्वेक्षण दिखलाता है कि भारत में एक रेस्तरां खोलने के लिए आवश्यक लाइसेंसों की संख्या अन्य देशों की तुलना में अधिक है।


निर्माण अनुमति


पिछले 5 वर्षों के दौरान भारत ने निर्माण अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया है। 2014 में निर्माण अनुमति प्राप्त करने में लगभग 186 दिनों का समय लगता था और भण्डारण लागत का 28.2 प्रतिशत व्यय होता था। 2014 की तुलना में 2019 में 98-113.5 दिनों का समय लगता है और भण्डारण लागत का 2.8-5.4 प्रतिशत खर्च होता है।


सीमा-पार व्यापार


जबकि सरकार ने प्रक्रियात्मक तथा कागजात संबंधी जरूरतों में पहले ही काफी कटौती की है, डिजिटलीकरण बढ़ाने तथा बहुविध एजेंसियों को एक डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ने से इन प्रक्रियात्मक खामियों में और भी अधिक कमी हो सकती है तथा उपभोक्ताओं के अनुभव में काफी बेहतरी हो सकती है।


भारत में समुद्री जहाजों की आवाजाही में लगने वाले समय में निरंतर कमी हो रही है, जो 2010-11 के 4.67 दिनों से लगभग आधा होकर 2018-19 में 2.48 दिन हो गया है। यह दर्शाता है कि समुद्री पोतों के मामले में महत्वपूर्ण लक्ष्यों तक पहुंचना संभव है। हालांकि, पर्यटन अथवा विनिर्माण जैसे खास क्षेत्रों की कारोबारी सुगमता को सरल बनाने में, और अधिक लक्षित पहुंच की जरूरत है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र की नियामक तथा प्रक्रियात्मक बाधाएं दूर हों। एक बार जब प्रक्रिया तय की गई है, सरकार के समुचित स्तर – केंद्र, राज्य अथवा निगम द्वारा इसमें  सुधार किया जा सकता है।


भारत में सेवाओं अथवा विनिर्माण कारोबार स्थापित करने तथा संचालित करने में कानूनी, नियम तथा विनियमन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कई स्थानीय जरूरतें हैं, जैसे एक रेस्टोरेंट खोलने में पुलिस की स्वीकृति के लिए कागजात का बोझ। इसे ठीक किया जाना चाहिए तथा एक समय में एक क्षेत्र को सुसंगत बनाया जाना चाहिए। भारत में एक अनुबंध को लागू करने में औसतन 1445 दिनों का समय लगता है, जबकि न्यूजीलैंड में 216 दिन, चीन में 496 दिन लगते हैं। भारत में करों के भुगतान में 250 घंटे से अधिक समय लगता है, जबकि न्यूजीलैंड में 140 घंटे, चीन में 138 घंटे और इंडोनेशिया में 191 घंटे लगते हैं। इन मापदंडों में सुधार लाने की संभावना है।


बैंगलुरू हवाई अड्डे से इलेक्ट्रानिक्स सामग्रियों के निर्यात एवं आयात के मामलों के अध्ययन से पता चलता है कि किस प्रकार भारतीय उपस्कर प्रक्रियाओं को विश्व स्तरीय बनाया जा सकता है। वस्तु निर्यात संबंधी मामलों के अध्ययन से पता चला है कि भारतीय समुद्री पोतों में उपस्करों की काफी कमी है। निर्यात की तुलना में आयात की प्रक्रिया अधिक कारगर है। हालांकि, खास मामले से जुड़े अध्ययनों को सामान्य रूप में लेने के प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है, यह स्पष्ट है कि समुद्री पोतों में सीमा शुल्क निपटारे, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने तथा लदान में कई दिनों का समय लगता है, जिसे कुछ घंटों में पूरा किया जा सकता है।




लोगों को पोषण और बिजली की उपलब्‍धता से जीडीपी में तेज वृद्धि : आर्थिक समीक्षा 2019-20

आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि पोषण और बिजली तक लोगों की पहुंच से भारत के सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) में तेज वृद्धि दर्ज की गई और विनिर्माण, अवसंरचना तथा कृषि क्षेत्र से कही ज्‍यादा सेवा क्षेत्र में नए प्रतिष्‍ठानों का गठन हुआ। केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा, 2019-20 पेश की।



जीडीपी वृद्धि को निवेशकों और नीति निर्माताओं द्वारा फैसला लेने में महत्‍वपूर्ण पहलु बताते हुए आर्थिक समीक्षा में हाल की उस चर्चा को रेखांकित किया गया  है कि 2011 में अनुमान की प्रविधि की समीक्षा के बाद भारत के जीडीपी का सही अनुमान लगाया गया है या नहीं। समीक्षा में मौजूदा प्रासंगिक सामग्री और अर्थशात्रीय विधियों का लाभ उठाते हुए साक्ष्‍य की सावधानीपूर्वक जांच की गई, ताकि यह अध्‍ययन किया जा सके कि क्‍या भारत की मौजूदा जीडीपी वृद्धि अनुमानित वृद्धि से अधिक है। इसमें बताया गया कि सावधानीपूर्वक किये गए सांख्यिकीय और आ‍र्थिक विश्‍लेषण के आधार पर भारत की जीडीपी वृद्धि के गलत अनुमान का कोई साक्ष्‍य नहीं मिलता है।


समीक्षा में भारत के सांख्यिकीय अवसंरचना में सुधार के लिए निवेश की जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि भारत ने कई सामाजिक विकास संकेतकों में महत्‍वपूर्ण सुधार दर्ज किया है।


समीक्षा में विभिन्‍न प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से अलग देशों की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया है कि अन्‍य कारकों के असर को अलग करने और जीडीपी वृद्धि अनुमान पर प्रविधि समीक्षा के असर को दरकिनार करते हुए संबंधित देशों की तुलना बड़ी सावधानी के साथ करनी होगी।


समीक्षा में बताया गया है कि भारत ने निवेश बढ़ाने के लिए एफडीआई नियमों में राहत, कॉरपोरेट दरों में कटौती, महंगाई पर अंकुश, अवसंरचना के निर्माण में तेजी, व्‍यवसाय शुरू करने को आसान बनाने या कर सुधार जैसे कई कदम उठाए हैं। इसमें कहा गया है कि निवेशक यहां कई अवसर देख रहे हैं, क्‍योंकि भारत दुनिया की सबसे तेजी बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक है। इसमें यह भी कहा गया है कि देश के जीडीपी के स्‍तर और वृद्धि दर से कई महत्‍वपूर्ण नीतिगत पहलों की जानकारी मिलती है।


समीक्षा में सूक्ष्‍म स्‍तरीय साक्ष्‍य की विस्‍तार से चर्चा की गई है, जिसमें भारत के 504 जिलों में औपचारिक क्षेत्र में नए प्रतिष्‍ठानों के गठन का पता चला। समीक्षा में बताया गया है कि सूक्ष्‍म साक्ष्‍य से पता चलता है कि नए प्रतिष्‍ठानों के गठन में 10 प्रतिशत की वृद्धि से जिला स्‍तर पर 108 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर्ज की गई।           




चालू खाता घाटे में और कमी आने से भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधारः आर्थिक समीक्षा

आर्थिक समीक्षा 2019-20 में इस बात पर संतोष व्यक्त किया गया है कि भारत का बाहरी क्षेत्र भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार, एफडीआई, एफपीआई तथा ईसीपी के माध्यम से पूंजी प्रवाह, विदेशों से अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली रकम की प्राप्ति तथा सीएडी में कमी आने के कारण 2019-20 की पहली छमाही में और अधिक मजबूत हुआ है।  केन्द्रीय वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2019-20 पेश की।


सितंबर 2019 तक भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधर कर 433.7 बिलियन डॉलर हो गई। भुगतान संतुलन की स्थिति मार्च 2019 में 412.9 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार था। ऐसा चालू खाता घाटा (सीएडी) के 2018-19 के 2.1 प्रतिशत से घटकर 2019-20 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 प्रतिशत कम होने के कारण हुआ। निवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह शानदार रही और 2019-20 के पहले आठ महीनों में 24.4 बिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित हुआ। यह निवेश 2018-19 की समान अवधि की तुलना से काफी अधिक है। 2019-20 की पहली छमाही में अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई कुल रकम 2018-19 में कुल प्राप्तियों से 50 प्रतिशत से भी अधिक 38.4 बिलियन डॉलर रही। विश्व बैंक की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 17.5 मिलियन अप्रवासी भारतीयों ने भारत को 2018 में विदेशों से प्राप्त होने वाली रकम के मामले में शीर्ष पर पहुंचा दिया।


भारत का विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्थिति में है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन डॉलर रहा। सितंबर 2019 के अंत तक विदेशी ऋण का स्तर जीडीपी के 20.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहा। सकल घरेलू उत्पाद में भारत की बाहरी ऋण देनदारियां जून 2019 के अंत में बढ़ी हैं। इन देनदारियों में ऋण तथा इक्विटी घटक शामिल हैं। यह वृद्धि एफडीआई, पोर्टफोलियो प्रवाह तथा बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में बढ़ोत्तरी से प्रेरित हुई।


व्यापार संरचना


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में कमी आने के कारण 2009-14 से 2014-19 में भारत का वस्तु व्यापार संतुलन सुधरा है। वस्तुओं के निर्यात और जीडीपी अनुपात में 11.3 प्रतिशत की कमी आई। ऐसा वैश्विक मांग में कमजोरी तथा 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में अधिक व्यापार तनाव के कारण हुआ। पेट्रोलियम, तेल तथा लुब्रिकेंट (पीओएल), मूल्यवान पत्थर, ड्रग फॉर्मूलेशन तथा बाइलॉजिकल, सोना और अन्य बेशकीमती धातु निर्यात के मामले में शीर्ष पर बने रहे। सबसे अधिक निर्यात अमेरिका को किया गया। इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, चीन और हांगकांग का स्थान है।


वाणिज्यिक आयात और जीडीपी अनुपात में भी कमी आई और इससे भुगतान संतुलन की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। ऐसा आयात बास्केट में अधिक मात्रा में कच्चे तेल की उपलब्धता के कारण हुआ। सोने की कीमतों में वृद्धि के बावजूद सोना आयात का हिस्सा स्थिर बना रहा। कच्चा पेट्रोलियम, सोना, पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, कोक आदि आयात के शीर्ष पर बने रहे। भारत का सबसे अधिक आयात चीन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात तथा सऊदी अरब से होता है।


आर्थिक समीक्षा 2019-20 में कहा गया है कि गैर-पीओएल-गैर-सोना आयात जीडीपी वृद्धि के साथ सकारात्मक रूप से जोड़कर समझा जाता है, लेकिन गैर-पीओएल-गैर-तेल आयात 2009-14 से 2014-19 में जीडीपी के अनुपात में कम हुए, जब जीडीपी की वृद्धि में तेजी आई। संभवतः ऐसा खपत प्रेरित वृद्धि के कारण हुआ, जबकि निवेश दर में कमी आई। निवेश में निरंतर गिरावट के कारण जीडीपी वृद्धि की दर धीमी हो गई, खपत में कमजोरी आई, निवेश परिदृश्य निराशाजनक हुआ और परिणामस्वरूप इससे जीडीपी वृद्धि कम हो गई और साथ-साथ 2018-19 से 2019-20 की पहली छमाही में जीडीपी के अनुपात में गैर-पीओएल-गैर स्वर्ण आयात में कमी आई।


वैश्विक आर्थिक माहौल


2019 में वैश्विक परिदृश्य में अनुमानित 2.9 प्रतिशत की वृद्धि के अनुरूप वैश्विक व्यापार में 1.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। यह वृद्धि शीर्ष पर 2017 में 5.7 प्रतिशत रही। विश्व व्यापार में मंदी अनेक कारणों से दिखी। इन कारणों में निवेश में कमी, पूंजीगत सामानों में खर्च में कटौती तथा कार तथा कार के कलपुर्जों के व्यापार में गिरावट शामिल है। समीक्षा में कहा गया है कि 2020 में वैश्विक व्यापार में 2.9 प्रतिशत का सुधार होगा और वैश्विक आर्थिक गतिविधि सुधार के मार्ग पर आएगी। यद्पि व्यापार तनाव तथा वैश्विक मूल्य श्रृंखला ढांचे में परिवर्तन को लेकर भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है।


 व्यापार सहायता


विश्व बैंक द्वारा निगरानी किए जाने वाले संकेतक ‘ट्रेडिंग एक्रॉस बोडर्स’ के अंतर्गत व्यापार सहायता में भारत की रैंकिंग 2016 के 143वें स्थान से सुधर कर 68 हो गई। यह रैंकिंग कारोबारी सुगमता रिपोर्ट में लगभग 190 देशों की समग्र रैंकिंग निर्धारित करती है। डिजिटल तथा सतत व्यापार सहायता 2019 पर संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सर्वेक्षण में भारत ने न केवल व्यापार सहायता स्कोर में 69 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत का सुधार किया, बल्कि एशिया प्रशांत तथा दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र में अन्य देशों को पीछे छोड़ दिया। सर्वेक्षण में आयात के लिए डायरेक्ट पोर्ट डिलिवरी (डीपीडी) और निर्यात के लिए डायरेक्ट पोर्ट इंट्री (डीपीई) को तेजी से मंजूरी को प्रोत्साहित करने वाली योजना बताया गया। समर्थनकारी दस्तावेजों को ऑनलाइन दाखिल करने के लिए ‘ई-संचित’ और भारतीय कस्टम के लिए अगली पीढ़ी का सॉफ्टवेयर ‘तुरंत’ को भी सफल बताया गया।


व्यापार लॉजिस्टिक्स


भारत का लॉजिस्टिक्स उद्योग उभरता हुआ क्षेत्र है और यह अभी 160 बिलियन डॉलर है। लॉजिस्टिक उद्योग शीघ्र ही 215 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक के अनुसार 2018 में विश्व में भारत का स्थान सुधर कर 44वां हो गया। भारत का स्थान 2014 में 54वां था। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक मानकों के अनुसार भारत की लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी की तुलना में वर्तमान 13-14 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत पर लाना है। इसके लिए फास्ट-टैग, भारतमाला, सागरमाला तथा डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसे कदम उत्साहवर्धक होंगे।