Monday, January 13, 2020

सत्र 2020-21 के लिए जवाहर नवोदय विद्यालयों के लिए प्रवेश परीक्षा 561 जिलों के 8252 केंद्रों में सुचारू रूप से संपन्न

सत्र 2020-21 के लिए जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश परीक्षा आज 561 जिलों के 8252 केंद्रों में आयोजित की गई। जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) में छठी कक्षा में नामांकन हर साल चयन परीक्षा के माध्यम से होता है। यह मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से छात्रों के चयन के लिए आयोजित सबसे बड़ी परीक्षाओं में से एक है। सत्र 2020-21 के लिए आवेदक-सीट का अनुपात 63:1 है। सत्र 2020-21 के लिए छठी कक्षा में 48000 सीटों पर प्रवेश के लिए 30,46,506 आवेदकों ने ऑनलाइन मोड के माध्यम से पंजीकरण कराया जिनमें  46.19% लड़कियां, 19.05% एससी, 29.23% एसटी और 83.91% ग्रामीण उम्मीदवार हैं। इसी परीक्षा में पिछले साल 30,10,710 उम्मीदवारों ने पंजीकरण कराया था जिसमें से 45.2% लड़कियां, 18.13% एससी, 27.42% एसटी और 81.26% ग्रामीण उम्मीदवार थे।


 


जवाहर नवोदय विद्योलयों की प्रवेश नीति के अनुसार, जिले में कम से कम 75% सीटें ब्लॉक स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों से चयनित उम्मीदवारों द्वारा भरी जाती हैं और शेष सीटें जिला स्तर पर मेरिट के आधार पर भरी जाती हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए सीटों का आरक्षण संबंधित जिले में उनकी आबादी के अनुपात में प्रदान किया जाता है, बशर्ते कि किसी जिले में ऐसा आरक्षण राष्ट्रीय औसत (एससी के लिए 15% और एसटी के लिए 7.5%) से कम नहीं होगा। लेकिन, दोनों श्रेणियों (एससी और एसटी) को मिलाकर अधिकतम 50% सीट आरक्षित की जाती है। कुल सीटों का न्यूनतम 33% लड़कियों द्वारा भरा जाता है। भारत सरकार के नियमों के अनुसार दिव्यांग बच्चों के लिए आरक्षण (अर्थात आर्थोपेडिक रूप से दिव्यांग, श्रवण बाधित और नेत्रहीन दिव्यांग) का प्रावधान है। एनवीएस प्रणाली ने आबादी के वंचित वर्ग के उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूरा किया है। अभी लगभग 40% छात्राएं हैं। एससी और एसटी के मामले में, यह वर्तमान में कुल छात्र संख्या का लगभग 44% है। पिछले साल प्रवेश पाने वाले लगभग 93% उम्मीदवार ग्रामीण छात्र थे।



संगीत भारत की सांस्कृतिक विरासत के मूल में है, यह लोगों को एकजुट करता है और उन्हें आपस में जोड़ता है

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि संगीत भारत की सांस्कृतिक विरासत के मूल में है और यह न केवल तसल्ली देता है बल्कि लोगों को एकजुट कर उन्हें आपस में जोड़ता भी है।


आज तंजावुर जिले के थिरुवैयारु में श्री त्यागराज के 173वें आराधना महोत्सव का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि कला लोगों को जोड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि संगीत, चित्रकला और कला हमारी सभ्यता के महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं।


हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण और सुरक्षा का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति और मूल्य हमारी पहचान हैं। यह हमें औरों से अलग पहचान दिलाता है। इसने हमें पूरी दुनिया में सम्मान दिलाया है।


संत संगीतकार त्यागराज को श्रद्धांजलि देते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हें भारत के महानतम संगीतकारों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि सदगुरु त्यागराज 18वीं शताब्दी में संगीतकारों की सबसे प्रतिष्ठित त्रिमूर्ति में से एक थे, बाकि दो श्यामा शास्त्री और श्री मुथुस्वामी दीक्षितार थे।


उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन में संत त्यागराज के योगदान को निर्धारित या अनुमानित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अपने गीतों में न केवल नैतिक और दार्शनिक सच्चाइयों को दर्शाया बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में भी अमल में लाया। उनकी शैली सरल, सुंदर और आकर्षक थी जो विद्वानों से लेकर साधारण लोगों तक को अपील करती थी।


संत त्यागराज को विभिन्न रागों में अनगिनत अमर गीतों के संगीतकार के रूप में प्रशंसा करते हुए श्री नायडू ने कहा कि श्री त्यागराज की रचनाएं संगीत की दुनिया के लिए खजाना है और हमारे दिलों में हमेशा के लिए रहेंगी। उन्होंने कहा कि संत त्यागराज का दिल भगवान राम की भक्ति में रमा था और उनके गीत भावनाओं से भरे हुए हैं जो आपके दिल को छू जाते हैं।


हर साल त्यागराज आराधना महोत्सव के आयोजन की परंपरा की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि संत त्यागराज को श्रद्धांजलि देने के लिए इस वार्षिक कार्यक्रमों में लोगों की रुचि और भागीदारी बढ़ रही है।


उपराष्ट्रपति ने स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों से बच्चों को हमारी समृद्ध संस्कृति के विविध तत्वों के प्रति संवेदनशील बनाने का आह्वान किया। उन्होंने ने कहा कि बच्चों को जातक कथाओं को पढ़ने से लेकर प्राचीन भारत के स्थापत्य चमत्कारों का अनुभव करते हुए हमारी संस्कृति के विभिन्न आकर्षक पहलुओं का पता लगाने और उनसे जीवन के सबक सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।


हमारी संस्कृति के खजाने को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें संत त्यागराज जैसे महान पुरूषों के बारे में जानना चाहिए और उनकी शानदार सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए और इसकी चमक से प्रेरणा लेनी चाहिए।


उपराष्ट्रपति ने हर साल होने वाले वार्षिक आराधना समारोह के आयोजन की परंपरा को बनाए रखने के लिए त्यागब्रह्म महोत्सव सभा के श्री मूपनार परिवार की सराहना की।


इस अवसर पर तमिलनाडू के पर्यटन मंत्री श्री थिरु वेल्लामंडी एन. नटराजन, त्यागब्रह्म महोत्सव सभा के अध्यक्ष श्री जी.के. वासन और सभा के सचिव श्री ए.के. पलानीवेल सहित कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं।



लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति की बधाई

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष के त्योहारों की पूर्व संध्या पर सभी नागरिकों को बधाई दी है।


अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा- ‘मैं लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, भोगली बिहू, उत्तरायण और पौष के अवसर पर भारत और विदेशों में रह रहे सभी नागरिकों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। भारत त्योहारों का देश है। देश भर में विभिन्न नामों और रूपों के तहत मनाए जाने वाले त्यौहार हमारे किसानों की अथक मेहनत के लिए हमारे सम्मान के प्रतीक हैं। ये त्योहार उनके परिवार और समुदाय के साथ नई फसल की खुशी साझा करने के प्रतीक हैं जो देश की आत्मा में एक-दूसरे से लिप्त हैं। सभी समुदाय आपसी प्रेम, स्नेह और भाईचारे की भावना के साथ इन त्योहारों को मनाते हैं। देश के भौगोलिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक एकीकरण में इस तरह के त्योहारों का अमूल्य योगदान है। मुझे विश्वास है कि ये त्यौहार शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और एकता की भावना को और मजबूत करने में मदद करेंगे, और राष्ट्र की समृद्धि और खुशी को और बढ़ाएंगे।”



प्रधानमंत्री ने कोलकाता पोर्ट ट्रस्‍ट के150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्‍य में आयोजित समारोह में  हिस्‍सा लिया

 


प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज कोलकाता में कोलकाता पोर्ट ट्रस्‍ट के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित समारोह में हिस्‍सा लिया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कोलकाता के रवीन्‍द्र सेतु (हावड़ा ब्रिज) पर एक प्रकाश एवं ध्‍वनि कार्यक्रम का शुभारंभ भी किया। उन्‍होंने समारोह स्‍थल पर दर्शनीय सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों को भी देखा। ये कार्यक्रम प्रकाश और ध्‍वनि शो के आरंभ किए जाने के अवसर पर आयोजित किए गए थे।


 समारोह में पश्चिम बंगाल के उपराज्‍यपाल श्री जगदीप धनकड़, मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई गणमान्‍य लोग मौजूद थे। रवीन्‍द्र सेतु को कम ऊर्जा खपत वाले विभिन्‍न रंगों के 650 एलईडी बल्‍बों से सजाया गया था। बेहद खूबसूरत रौशन की यह सजावट पुल निमार्ण में इंजीनियरिंग का एक कमाल माने जाने वाले हावड़ा ब्रिज को  अनोख रूप  देगा और पर्यटकों और स्‍थानीय लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेगा।  


 रवीन्‍द्र सेतु का निमार्ण 1943 में किया गया था। इस पुल की 75 वीं वर्ष गांठ पिछले साल मनाई गई थी। इसे  पुल निर्माण इंजीनियरिंग का एक कमाल माना जाता है क्‍योंकि पुल के हिससों को जोड़ने के लिए इसमें किसी तरह के नट बोल्‍ट का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। इसके निर्माण में 26 हजार 500 टन इस्‍पात का इस्‍तेमाल किया गया है जिसमें से 23 हजार टन इस्‍पात बेहद उच्‍च श्रेणी का है।