Saturday, January 11, 2020

पेट्रोलियम रोड टैंकरों को व्‍यावसायिक सुगमता देने के लिए कागज रहित लाइसेंसिंग प्रक्रिया लांच की गई

 


प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के डिजिटल इंडिया तथा व्‍यावसायिक सुगमता के विजन के अनुरूप वाणिज्‍य तथा उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन तथा आंतरिक व्‍यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने पेट्रोलियम नियम 2002 के अंतर्गत पेट्रोलियम की आवाजाही के लिए रोड टैंकरों को पेट्रोलियम तथा विस्‍फोटक सुरक्षा संगठन (पीईएसओ) के माध्‍यम से कागजरहित लाइसेंसिंग प्रक्रिया लांच की।


यह कागजरहित तथा हरित भारत के लिए महत्‍वपूर्ण कदम है, जिससे पेट्रोलिमय रोड टैंकर मालिकों के जीवन और व्‍यवसाय की सहजता मिलेगी। डि‍जिटलीकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए इस प्रक्रिया में आवेदनों को ऑनलाइन रूप से दाखिल करना है। इसमें फीस का ऑनलाइन भुगतान भी है। फीस का भुगतान बिना किसी मानवीय हस्‍तक्षेप के सीधे तौर पर संबंधित अधिकारी के आईडी में हो जाएगा। आवेदन प्रोसेस करने के प्रत्‍येक चरण में एसएमएस तथा ई-मेल के माध्‍यम से आवेदकों को सूचना दी जाएगी। आवेदन में दोष या लाइसेंस मंजूरी या स्‍वीकृति की सूचना दी जाएगी।


नई प्रक्रिया प्रत्‍येक चरण में आवेदक को अद्यतन करेगा। संबंधित अधिकारी द्वारा लाइसेंस जारी करने पर ई-मेल तथा एसएमएस संदेश मिलेंगे और लाइसेंस इलेक्‍ट्रॉनिक रूप में भेज दिया जाएगा। इन सभी कामों में छपाई तथा शारीरिक रूप से लाइसेंस पहुंचाने की कोई आवश्‍यकता नहीं होगी।


यह असाधारण कदम एक लाख से अधिक पेट्रोलियम रोड टैंकर मालिकों को लाभ देगा। रोड टैंकर मालिक पेट्रोलियम नियम 2002 के अंतर्गत जारी कुल लाइसेंसों के आधे से अधिक हैं। टीईएसओ की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से लाइसेंस की प्रमाणिकता का सत्‍यापन किया जा सकता है। इससे पेट्रोलियम तथा गैस उद्योग में क्रांति आएगी।   



प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने बजट-पूर्व पहल के तहत अर्थशास्त्रियों एवं कारोबारी हस्तियों के साथ आयोजित बैठक की अध्‍यक्षता की

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने भारत में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था के लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए सभी हितधारकों से पूरे फोकस के साथ ठोस एवं अथक प्रयास करने का आह्वान किया है।



प्रधानमंत्री श्री मोदी विभिन्‍न वरिष्‍ठ अर्थशास्त्रियों; प्राइवेट इक्विटी/उद्यम पूंजीपतियों (वेंचर कैपिटलिस्ट); विनिर्माण, यात्रा एवं पर्यटन, परिधान व एफएमसीजी तथा विश्लेषिकी (एनालिटिक्स) क्षेत्रों की कारोबारी हस्तियों और कृषि, विज्ञान व प्रौद्योगिकी एवं वित्‍त के क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ संवाद कर रहे थे।


यह बैठक बजट-पूर्व पहल के तहत आज नई दिल्‍ली स्थित नीति आयोग में आयोजित की गई।


प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्‍हें इस बात से अत्‍यंत प्रसन्‍नता हुई कि दो घंटे की खुली परिचर्चा के दौरान जमीनी स्‍तर पर कार्य कर रहे लोगों के साथ-साथ अपने-अपने विशिष्‍ट क्षेत्रों में कार्य कर रही हस्तियों के भी अनुभवों से रूबरू होने का अवसर मिला।


उन्‍होंने कहा कि इससे नीति निर्माताओं और विभिन्‍न हितधारकों के बीच सामंजस्‍य बढ़ जाएगा।


प्रधानमंत्री ने कहा कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था का आइडिया अचानक नहीं आया है और यह देश की अंतर्निहित मजबूती की गहरी समझ पर आधारित है।


उन्‍होंने कहा कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में खपत करने की सुदृढ़ क्षमता घरेलू अर्थव्‍यवस्‍था के बुनियादी तत्‍वों की मजबूती के साथ-साथ इसके फिर से तेज विकास के पथ पर अग्रसर होने की क्षमता को भी दर्शाती है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि विभिन्‍न सेक्‍टरों जैसे कि पर्यटन, शहरी विकास, बुनियादी ढांचागत क्षेत्र और कृषि आधारित उद्योगों में अर्थव्‍यवस्‍था को आगे ले जाने के साथ-साथ रोजगार सृजन की भी अपार क्षमता है।


उन्‍होंने कहा कि खुली परिचर्चाओं के साथ-साथ इस तरह के फोरम में विचार मंथन से सकारात्‍मक विचार-विमर्श और विभिन्‍न मुद्दों की गहरी समझ विकसित होने का मार्ग प्रशस्‍त होता है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे सकारात्‍मक माहौल को बढ़ावा मिलेगा और इसके साथ ही समाज में इस तरह की भावना पनपेगी कि ‘हम यह कर सकते हैं’।


भारत को असीमित संभावनाओं वाला देश बताते हुए प्रधानमंत्री ने सभी हितधारकों से वास्‍तविकता एवं अवधारणा के बीच की खाई को पाटने के लिए अपनी ओर से अथक प्रयास करने का अनुरोध किया।


उन्‍होंने कहा, ‘हम सभी को निश्चित तौर पर मिल-जुलकर काम करना चाहिए और एक राष्ट्र की तरह सोचना शुरू कर देना चाहिए।’


इन परिचर्चाओं में 38 प्रतिनधियों ने भाग लिया जिनमें विभिन्‍न अर्थशास्‍त्री जैसे कि श्री शंकर आचार्य, श्री आर नागराज, सुश्री फरजाना अफरीदी, वेंचर कैपिटलिस्ट श्री प्रदीप शाह, उद्योगपति श्री अप्पाराव मल्लवरापु, श्री दीप कालरा, श्री पतंजलि गोविंद केसवानी, श्री दीपक सेठ, श्री श्रीकुमार मिश्रा, विषय विशेषज्ञ श्री आशीष धवन और श्री शिव सरीन भी शामिल थे।


गृह मंत्री श्री अमित शाह, केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग तथा एमएसएमई मंत्री श्री नितिन गडकरी, रेल एवं वाणिज्‍य मंत्री श्री पीयूष गोयल और कृषि एवं किसान कल्‍याण तथा ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री श्री नरेन्‍द्र तोमर, विभिन्‍न मंत्रालयों के सचिव, नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष श्री राजीव कुमार और नीति आयोग के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) श्री अमिताभ कांत ने भी इस बैठक में भाग लिया।




श्री धर्मेन्‍द्र प्रधान ‘पूर्वोदय’ को लॉन्च करेंगे

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के विकास के संबंध में प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप इस्‍पात मंत्रालय ‘पूर्वोदय’ की शुरूआत करेगा। इसके लिए इस्‍पात मंत्रालय सीआईआई और जेपीसी के साथ भागीदारी कर रहा है। समेकित इस्‍पात केन्‍द्र के जरिये ‘पूर्वोदय’ के तहत देश के पूर्वी इलाकों को तेज विकास किया जाएगा। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री श्री धर्मेन्‍द्र प्रधान 11 जनवरी, 2020 को कोलकाता के दी ओबरॉय ग्रैंड में ‘पूर्वोदय’ की शुरूआत करेंगे। उल्‍लेखनीय है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के विशेष विकास की आवश्‍यकता पर बल दिया है, ताकि इस क्षेत्र की संभावनाओं का उपयोग हो सके और क्षेत्र का विकास सुनिश्चित हो सके।


विश्‍वस्‍तरीय इस्‍पात केन्‍द्र बन जाने से ‘पूर्वोदय’ को बल मिलेगा और पूर्वी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में तेजी आएगी। इस केन्‍द्र में अतिरिक्‍त इस्‍पात क्षमता के लिए 70 अरब डॉलर का पूंजी निवेश करना होगा, जिससे केवल इस्‍पात उत्‍पादन के जरिेये लगभग 35 अरब डॉलर का जीएसडीपी प्राप्‍त होगा। ऐसे केन्‍द्र को स्‍थपित करने से रोजगार सृजन होगा, जिसके तहत इस क्षेत्र में 2.5 मिलियन से अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा शहरों, स्‍कूलों, अस्‍पतालों, कौशल विकास केन्‍द्रों आदि का भी विकास होगा। इन राज्‍यों के सर्वाधिक अविकसित क्षेत्रों में होने वाले विकास के जरिये पूर्वी भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति संभव होगी। इस प्रकार पूर्व और देश के अन्‍य क्षेत्रों के बीच असमानता कम होगी।


पृष्‍ठभूमि


      भारत के पूर्वी क्षेत्र में समृद्ध संसाधन मौजूद हैं, लेकिन विकास के संदर्भ में वह अन्‍य राज्‍यों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। ओडिशा, झारखंड, छत्‍तीसगढ, पश्चिम बंगाल और उत्‍तरी आंध्र प्रदेश जैसे देश के पूर्वी राज्‍यों में लौह अयस्‍क लगभग 80 प्रतिशत, कोकिंग कोल 100 प्रतिशत और पर्याप्‍त मात्रा में क्रोमाइट, बॉक्‍साइट और डोलोमाइट जैसे खनिज पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में पारादीप, हल्दिया, विज़ाग और कोलकाता जैसे बड़े बंदरगाह भी मौजूद हैं। इसके अलावा तीन प्रमुख राष्‍ट्रीय जलमार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग इस क्षेत्र को देश के कई इलाकों से जोड़ते हैं। इन सुविधाओं के बावजूद ये राज्‍य आर्थिक विकास के मद्देनजर भारत के अन्‍य राज्‍यों से बहुत पीछे हैं।


      भारत 5 ट्रिलियन अर्थव्‍यवस्‍था बनने की दिशा में अग्रसर है और इस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए 5 पूर्वी राज्‍य महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उल्‍लेखनीय है कि राष्‍ट्रीय इस्‍पात नीति में इस्‍पात उत्‍पादन बढ़ाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है, जिसके तहत 75 प्रतिशत से अधिक की क्षमता इस क्षेत्र में मौजूद है। आशा की जाती है कि 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन क्षमता में से 200 मीट्रिक टन क्षमता इस क्षेत्र में मौजूद है। सरकार ने फैसला किया है कि अगले 5 वर्षों के दौरान 100 लाख करोड़ रुपये अवसंरचना में निवेश किया जाएगा। इसके मद्देनजर प्रधानमंत्री आवास योजना, जलजीवन मिशन, सागरमाला, भारतमाला जैसी विभिन्‍न योजनाओं के जरिये निर्माण तथा अवसंरचना विकास में तेजी आएगी।


एकीकृत इस्‍पात केन्‍द्र


      ओडिशा, झारखंड, छत्‍तीसगढ, पश्चिम बंगाल और उत्‍तरी आंध्र प्रदेश में स्‍थापित होने वाले प्रस्‍तावित एकीकृत इस्‍पात केन्‍द्र के जरिये पूर्वी भारत के सामाजिक-आर्थिक को नई दिशा मिलेगी। इस्‍पात क्षमता को बढ़ाने के अलावा इस केन्‍द्र से मूल्‍य संवर्धन क्षमता में भी  इजाफा होगा। समेकित इस्‍पात केन्‍द्र के 3 प्रमुख तत्‍व हैं, जिनमें ग्रीनफील्‍ड इस्‍पात संयंत्रों की स्‍थापना के जरिये क्षमता संवर्धन, एकीकृत इस्‍पात संयंत्रों के निकट इस्‍पात उप केन्‍द्रों का विकास और उपयोगी अवसंरचना के जरिये पूर्व में सामाजिक-आर्थिक परिदृश्‍य को बदलना शामिल है।


इस्‍पात मंत्रालय द्वारा की गई पहलें


      इस केन्‍द्र को वास्‍तविकता में बदलने के लिए मंत्रालय ने कई पहलें की हैं। केन्‍द्र सरकार के मंत्रालय, राज्‍य सरकारें और निजी क्षेत्र ‘पूर्वोदय’ से जुड़े हैं। इस्‍पात मंत्रालय ने विभिन्‍न हितधारकों के साथ इस दिशा में कई पहलें की हैं-



  1. केन्‍द्र सरकार के मंत्रालयों, राज्‍य सरकारों और उद्योग के साथ परामर्श करने के बाद इस्‍पात उप केन्‍द्रों के निर्माण और उन्‍नयन के लिए नीति बनाई गई है। इस्‍पात उप केन्‍द्रों के लिए कलिंग नगर और बोकारो को प्रायोगिक स्‍थानों के रूप में चिह्नि‍त किया गया है। संबंधित राज्‍यों सरकार के सहयोग से कार्यबलों और कार्य समूहों का गठन किया गया है। इन उप केन्‍द्रों के संचालन के लिए विस्‍तृत योजना तैयार की जा रही है।

  2. ग्रीनफील्‍ड मार्ग के जरिये क्षमता संवर्धन को आसान बनाने के प्रयास के तहत एक नीति तैयार की जा रही है, ताकि भूमि अधिग्रहण, कच्‍चे माल की उपलब्‍धता जैसी चुनौतियों का समाधान किया जा सके। इसके लिए केन्‍द्र सरकार के मंत्रालयों, राज्‍य सरकारों और उद्योग के हितधारकों के साथ परामर्श किया जा रहा है।

  3. 12 प्रमुख इस्‍पात जोनों के लिए अवसंरचना परियोजनाओं और महत्‍वपूर्ण लॉजिस्‍टक परियोजनाओं को चिह्नित किया गया है। ये 12 प्रमुख इस्‍पात जोन कलिंगनगर, अंगुल, राउरकेला, झारसुगुड़ा, नगरनार, भिलाई, रायपुर, जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर, कोलकाता, विज़ाग में स्थित हैं।


केन्‍द्रीय विद्युत मंत्री ने राज्‍य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 जारी किया

केन्‍द्रीय विद्युत, नवी और नवीकरणीय ऊर्जा एवं कौशल विकास तथा उद्मिता राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री राजकुमार सिंह ने आज नयी दिल्‍ली में राज्‍य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 जारी किया जो जो 97 महत्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऊर्जा दक्षता (ईई) पहल की प्रगति पर नजर बनाए रखता है। यह सूचकांक 09-10 जनवरी 2020 को प्रवासी भारतीय केंद्र, में आयोजित समीक्षा, योजना और निगरानी बैठक के अवसर पर जारी किया गया।


यह सूचकांक एलायंस फॉर एफिशिएंट इकॉनमी तथा ऊर्जा दक्षता ब्‍यूरो द्वारा मिलकर विकसित किया गया है। यह राज्‍यों को ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु से संबधित लक्ष्‍यों को हासिल करने में मदद करेगा। इसके साथ ही यह ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में राज्‍यों द्वारा की गई प्रगति और राज्‍यों तथा देश के एनर्जी फुट प्रिंट के प्रबंधन पर भी नजर रखने में सहायक होगा।


 पहला ऐसा सूचकांक ‘राज्‍य ऊर्जा दक्षता तैयारी सूचकांक 2018’  पहली अगस्‍त 2018 को जारी किया गया था जो राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2018 से आगे उठाया गया कदम था। । इसी दिशा में आगे अब राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 जारी किया गया है जिसमें गुणात्मक, मात्रात्मक और परिणाम आधारित संकेतकों के माध्‍यम से पांच अलग अलग क्षेत्रों जैसे भवन निर्माण उद्योग, नगर पालिका, परिवहन, कृषि,एमएसएमई क्‍लस्‍टरों और डिस्‍काम में ऊर्जा दक्षता के पहलों ,कार्यक्रमो और परिणामों का आकलन किया जाना है।


सूचकांक के लिए जरूरी डेटा राज्‍यों से अधिकार प्राप्‍त एजेंसियों की मदद से संबंधित राज्‍यों के विभागों जैसे डिस्‍कॉम, श‍हरी विकास विभाग तथा अन्‍य विभागों से एकत्र किया गया। इस इस वर्ष, नीति और विनियमन, वित्तपोषण तंत्र, संस्थागत क्षमता, ऊर्जा दक्षता उपायों को अपनाने और ऊर्जा बचत के प्रयासों और उपलब्धियों के आधार पर कुल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का आकलन किया गया है।


तर्कसंगत तुलना के लिए राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों को कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति (टीपीईएस) पर आधारित चार समूहों में बांटा गया है, जो पूरे राज्य की वास्तविक ऊर्जा मांग (बिजली, कोयला, तेल, गैस, आदि) क्षेत्रों में पूरा करने के लिए आवश्यक हैं। टीपीईएस ग्रुपिंग राज्यों को प्रदर्शन की तुलना करने और अपने सहकर्मी समूह के भीतर सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में मदद करेगा। टीपीईएस पर आधारित चार श्रेणियों के तहत, हरियाणा, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पुडुचेरी और चंडीगढ़ को राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 में प्रगतिशील राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में दर्शाया गया है।


राज्‍यों द्वारा की गई प्रमुख पहलें


राज्‍य ऊर्जा दक्षता सूचकांक 2019 दर्शाता है कि राज्यों द्वारा की गई अधिकांश पहलें नीतियों और विनियम से संबंधित हैं। बीईई द्वारा मानकों और लेबलिंग (एस एंड एल), ईसीबीसी, परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (पीएटी), आदि के कार्यक्रमों के तहत तैयार की गई पहली-पीढ़ी की ऊर्जा दक्षता नीतियों में से अधिकांश को राज्‍यों  ने अच्‍छी तरह से अपनाया है और अगले चरण में उन्हें ऊर्जा बजत पर अधिक ध्‍यान केन्द्रित करने की आवश्‍यकता है। बचत प्राप्त करने के लिए। इस वर्ष राज्यों द्वारा भेजी गई प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण के आधार पर, राज्य की एजेसिंयों के लिए एक तीन-बिंदुओं वाले एजेंडे का सुझाव दिया गया है:


नीति निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की सक्रिय भूमिका: नीतियों से ज्‍यादा नीतियों के कार्यान्‍वयन पर ध्‍यान केन्द्रित करने पर जोर



  1. डेटा संकलन तथा सार्वजनिक रूप से उसकी उपलब्‍धता की व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाना: इस वर्ष का सूचकांक तैयार करते समय राज्‍य की एजेसियों ने विभिन्‍न विभागों से डेटा प्राप्‍त करने में सक्रियता दिखाई। हालांकि उन्‍हें इस दिशा में और अच्‍छे तरीके से काम करने के लिए विभिन्‍न विभागों और निजी क्षेत्रों के साथ बेहतर तालमेल बैठाना होगा।

  2. ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम की विश्‍वसनीयता बढ़ाने के उपायआम उपभोक्ताओं के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जुड़ाव वाले कार्यक्रमों के महत्‍व को सुनिश्चित करना ऊर्जा दक्षताबाजार में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए राज्‍यों को ऊर्जा बचत कउपायों के अनुपालन के साथ साथ स्‍वतंत्र रूप से इन पर निगरानी रखने की भी व्‍यवस्‍था करनी होगी जो कि ऊर्जा दक्षता नीतियों और कार्यक्रम का अहम हिस्‍सा हैं।