वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार ने 7 से 11 अक्टूबर, 2019 तक विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), जिनेवा में आयोजित विश्व कपास दिवस समारोह में भाग लिया। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ); संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (यूएनसीटीएडी); अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केन्द्र (आईटीसी) और अंतर्राष्ट्रीय कपास सलाहकार समिति (आईसीएसी) के सहयोग से विश्व व्यापार संगठन ने विश्व कपास दिवस समारोह का आयोजन किया था। केन्द्रीय कपड़ा मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी समारोह के पूर्ण सत्र में भाग लिया, जिसमें राष्ट्राध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख शामिल हुए थे।
डब्ल्यूटीओ ने कॉटन 4 देशों - बेनिन, बुर्किना फासो, चाड और माली के अनुरोध पर इस समारोह का आयोजन किया था। इन चारों देशों ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष 7 अक्टूबर को विश्व कपास दिवस के रूप में मान्यता देने के लिए आवेदन दिया था। विश्व कपास दिवस में कपास के विभिन्न फायदों जैसे प्राकृतिक रेशे के गुण, कपास के उत्पादन, रूपान्तरण, व्यापार और उपभोग से लोगों को होनेवाले लाभ आदि को रेखांकित किया गया। विश्व कपास दिवस समारोह में पूरी दुनिया की कपास अर्थव्यवस्ताओं की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया। कपास, विश्व की अल्प विकसित, विकासशील और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत ने 2011 से 2018 के दौरान 7 अफ्रीकी देशों - बेनिन, बुर्किनो फासो, माली, चाड, यूगांडा, मालावी और नाइजीरिया - के लिए 2.85 मिलियन डॉलर का कपास प्रौद्योगिकी सहायता कार्यक्रम (कॉटन टैप-1) लागू किया। प्रौद्योगिकी सहायता कार्यक्रम कपास और कपास आधारित कपड़ा एवं परिधान उद्योग को इन देशों में प्रतिस्पर्धी बनाने पर केन्द्रित था। इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किए गए। कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि कार्यक्रम की समाप्ति के बाद एक परियोजना प्रारंभ करने की मांग की गई।
जिनेवा में आयोजित सहभागी सम्मेलन में कपड़ा मंत्री ने घोषणा करते हुए कहा कि भारत अफ्रीका के लिए कपास प्रौद्योगिकी सहायता कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत करेगा। पांच सालों की अवधि वाले दूसरे चरण में कार्यक्रम के आकार और कवरेज में बढ़ोत्तरी हुई और अफ्रीका के अन्य 5 देशों माली, घाना, टोगो, जाम्बिया और तंजानिया - का कार्यक्रम में शामिल किया गया। कॉटन टीएपी कार्यक्रम में सी-4 (बेनिन, बुर्किना, फासो, चाड और माली) देशों समेत कुल 11 अफ्रीकी देशों में शामिल किया गया है।
कपास का पूरी दुनिया में उत्पादन होता है और एक टन कपास से औसतन 5 लोगों को पूरे साल भर रोजगार मिलता है। कपास सूखा-प्रतिरोधी फसल है और बंजर भूमि के लिए आदर्श फसल है। यह विश्व की कुल 2.1 कृषि-योग्य भूमि में उगाया जाता है तथापि यह दुनिया की कपास जरूरत के 27 प्रतिशत की पूर्ति करता है। कपास के रेशे का उपयोग कपड़े और परिधान के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा कपास के बीज से खाद्य तेल और पशुओं के लिए आहार का भी उत्पादन किया जाता है।
केन्द्रीय कपड़ा मंत्री विश्व कपास दिवस के दौरान 7 अक्टूबर, 2019 को जिनेवा में चरखा चलाते हुए
पश्मीना शॉल को बढ़ावा
भारत सरकार हथकरघा विपणन सहायता (एचएमए) के तहत पश्मीना शॉल समेत सभी हथकरघा उत्पादों को पूरे देश में विपणन सुविधाएं प्रदान कर रही है। हथकरघा विपणन सहायता, राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) का हिस्सा है। वर्ष 2016-17 से विभिन्न राज्यों में कुल 678 हथकरघा विपणन कार्यक्रम/एक्सपो आयोजित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य पूरे देश के बुनकरों को अपने उत्पादों के विक्रय में सहायता प्रदान करना है। उक्त उत्पाद को भी वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीयन और सुरक्षा) अधिनियम, 1999 के तहत आवेदन संख्या 46 के माध्यम से कश्मीर पश्मीना के रूप में पंजीकृत किया गया है।
भारत सरकार ने एकीकृत टेक्सटाइल पार्क योजना (एसआईटीपी) के तहत जम्मू और कश्मीर में 2 टेक्सटाइल पार्कों को मंजूरी दी है।
क्रमांक
|
टेक्सटाइल पार्क का नाम
|
जिला
|
भारत सरकार की हिस्सेदारी
|
1.
|
जे एंड के टेक्सटाइल पार्क, कठुआ, जम्मू
|
कठुआ
|
39.70
|
2.
|
कश्मीर वूल एंड सिल्क टेक्सटाइल पार्क, घट्टी, जम्मू व कश्मीर
|
कठुआ
|
40.00
|
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने अगस्त, 2019 में पश्मीना उत्पादों की शुद्धता के प्रमाणन के लिए पहचान, चिन्ह और लेबल के संदर्भ में भारतीय मानकों को प्रकाशित किया है।
प्रमाणन से पश्मीना में मिलावट को समाप्त करने में मदद मिलेगी तथा इससे लद्दाख के घुमंतू और स्थानीय कारीगरों के हितों की रक्षा भी की जा सकेगी। लद्दाक के घुमंतू और स्थानीय कारीगर ही पश्मीना के कच्चे माल के उत्पादक हैं। इससे ग्राहकों को पश्मीना के शुद्धता पर भरोसा होगा।
पश्मीना के बीआईएस प्रमाणन से नकली और निम्न स्तर के उत्पादों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी, जिन्हें आज बाजार में शुद्ध पश्मीने के रूप में बेचा जा रहा है।
भारत में तकनीकी वस्त्र उद्योग
तकनीकी वस्त्र ऐसी सामग्री व उत्पाद है, जो सुंदरता के बजाए अपने तकनीकी गुणों और कार्यात्मक विशेषज्ञों के लिए निर्मित किए जाते हैं। तकनीकी वस्त्रों के उपयोग के तहत अनुप्रयोगों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जैसे - कृषि-वस्त्र; चिकित्सा-वस्त्र; भू-वस्त्र; संरक्षण-वस्त्र; औद्योगिक-वस्त्र; खेल-वस्त्र आदि। तकनीकी वस्त्रों के प्रयोग से कृषि, बागवानी और जलीय कृषि के उत्पादन में वृद्धि हुई है; सैन्य, अई-सैन्य, पुलिस और सुरक्षा बलों को बेहतर सुरक्षा मिली है; राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों के लिए मजबूत परिवहन अवसंरचना का निर्माण हुआ है तथा लोगों के स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता में सुधार हुआ है। भारत में तकनीकी वस्त्र के लिए अपार संभावनाएं हैं और इसमें उद्योग तथा अनुप्रयोग दोनों शामिल हैं।
तकनीकी वस्त्र आधुनिक युग के कई अनुप्रयोगों का अग्रदूत है, जिसकी उपस्थिति जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में है। इसमें उत्पादन, दक्षता और लागत अर्थशास्त्र के उच्च स्तर को पाने की क्षमता है। यह कई इंजीनियरोंग और सामान्य अनुप्रयोगों के लिए नवोन्मेषी समाधान दे सकता है। व्यावसायिक उपयोग के अलावा, सरकार ने विभिन्न मिशनो, कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए तकनीकी वस्त्र को अनिवार्य कर दिया है। इनमें शामिल हैं : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय बागवानी मिशन तथा राजमार्गों, रेलवे तथा बंदरगाहों का अवसंरचना विकास आदि। देश में तकनीकी वस्त्र उद्योग के तेजी से विकास के लिए सरकार ने निम्न पहलों की शुरूआत की है-
विदेश व्यापार नीति के तहत नाम पद्धति की सुसंगत प्रणाली (एचएसएन) में 207 तकनीकी वस्त्र उत्पादों को शामिल किया गया है।
अनुप्रयोगों के विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी वस्त्र के लाभ प्राप्त करने के लिए 10 केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों में अनिवार्य उपयोग के लिए 92 अनुप्रयोग क्षेत्रों की पहचान की गई है। वर्ष 2019 के अप्रैल-जून तिमाही के दौरान तकनीकी वस्त्रों के निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने 348 तकनीकी वस्त्र उत्पादों के लिए मानक विकसित किए हैं।
उद्योग जगत के अनुरोध पर, वस्त्र मंत्रालय ने अपने कौशल विकास कार्यक्रम, समर्थ में 6 अतिरिक्त पाठ्यक्रमों को शामिल किया है।
तकनीकी वस्त्र क्षेत्र में नए सिरे से आधारभूत सर्वेक्षण का काम आईआईटी, दिल्ली को दिया गया है।
मंत्रालय ने 23 अक्टूबर, 2019 को सरकारी खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश जारी किया है। आदेश में तकनीकी वस्त्र के 10 क्षेत्रों के लिए न्यूनतम स्थानीय खरीद की अनुशंसा की गई है।
वर्ष 2015 में प्रस्तुत तकनीकी वस्त्र सर्वेक्षण के आधार पर तकनीकी वस्त्रों के बाजार का अनुमान वर्ष 2017-18 के लिए 1,15,217 करोड़ रुपये है। पिछले अध्ययन में वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान नहीं लगाया गया है, लेकिन वर्तमान के रूझानों और सरकार के पहलों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि तकनीकी वस्त्रों का बाजार वर्ष 2020-21 में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का होगा।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि-वस्त्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए योजना
पूर्वोत्तर क्षेत्र में कृषि-वस्त्र के उपयोग से किसानों की औसत आय में 67 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। फसल चक्र में 3 से 4 फसलों की वृद्धि हुई है, क्योंकि क्षेत्र में पूरे साल भर खेती की जाती है। इससे पानी की खपत में 30-45 प्रतिशत तक की कमी आई है और इसने पक्षियों और ओलों से फसलों के नुकसान को रोका है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में भू-तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए योजना
ढांचागत संरचना के परियोजनाओं में भू-तकनीकी वस्त्रों भू-तकनीकी पहलों के उपयोग से सड़क और पहाड़ के ढलानों जैसे अवसंरचना में रख-रखाव की अवधि लम्बी हुई है और सेवा देने की अवधि का विस्तार हुआ है।
राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (एऩआईएफटी)
पंचकूला (हरियाणा) और रांची (झारखंड) में दो नए एनआईएफटी परिसर स्थापित किए जाएंगे। वर्तमान में पूरे भारत में एनआईएफटी के 16 परिसर हैं -
क्रमांक
|
निफ्ट परिसर
|
राज्य
|
1.
|
बेंगलुरु
|
कर्नाटक
|
2.
|
भोपाल
|
मध्यप्रदेश
|
3.
|
भुवनेश्वर
|
ओडिशा
|
4.
|
चेन्नई
|
तमिलनाडु
|
5.
|
गांधीनगर
|
गुजरात
|
6.
|
हैदराबाद
|
तेलंगाना
|
7.
|
जोधपुर
|
राजस्थान
|
8.
|
कांगड़ा
|
हिमाचल प्रदेश
|
9.
|
कन्नूर
|
केरल
|
10.
|
कोलकाता
|
पश्चिम बंगाल
|
11.
|
मुंबई
|
महाराष्ट्र
|
12.
|
नई दिल्ली
|
नई दिल्ली
|
13.
|
पटना
|
बिहार
|
14.
|
रायबरेली
|
उत्तर प्रदेश
|
15.
|
शिलांग
|
मेघालय
|
16.
|
श्रीनगर
|
जम्मू और कश्मीर
|
परिधानों और पोशाकों के हाल के रूझानों को देखते हुए और निफ्ट द्वारा किए गए संभावना-अध्ययन के आधार पर निफ्ट अपने दो परिसरों में शैक्षणिक सत्र 2020-21 से निम्न स्नातक पाठ्यक्रमों की शुरुआत करेगाः-
निफ्ट शिलांग
- डिजाइन में स्नातक (टेक्सटाइल डिजाइन)
- डिजाइन में स्नातक (फैशन कम्युनिकेशन)
निफ्ट भोपाल
- डिजाइन में स्नातक (फैशन कम्युनिकेशन)
- डिजाइन में स्नातक (फैशन डिजाइन)
- फैशन टेक्नोलॉजी में स्नातक (परिधान उत्पादन)
उपरोक्त पाठ्यक्रम इन परिसरों में चल रहे मौजूदा पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त होंगे।
स्वीकृत टेक्सटाइल पार्क
सरकार एकीकृत टेक्सटाइल पार्क (एनआईटीपी) के लिए योजना लागू कर रही है, जो कपड़ा इकाइयों की स्तापना के लिए विश्वस्तरीय ढांचागत संरचना के निर्माण के लिए समर्थन प्रदान करेगा। सरकार परियोजना लागत के 40 प्रतिशत तक का अनुदान देगी और इसकी ऊपरी सीमा 40 करोड़ रुपये निर्धारित की गई है। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू व कश्मीर राज्यों में पहली दो इकाइयों (प्रत्येक राज्य के लिए) की स्थापना में सरकार परियोजना लागत का 90 प्रतिशत तक अनुदान के रूप में देगी और प्रत्येक टेक्सटाइल पार्क के लिए ऊपरी सीमा 40 करोड़ रुपये निर्धारित की गई है।
योजना मांग आधारित है। एसआईटीपी योजना के तहत वस्त्र मंत्रालय ने 59 टेक्सटाइल पार्कों को मंजूरी दी है, जिनमें से 22 टेक्सटाइल पार्क पूरे हो गए हैं और शेष निर्माण क विभिन्न चरमों में हैं। विवरण निम्न हैः-
क्रमांक
|
पार्क का नाम
|
स्थान
|
राज्य
| |
|
1.
|
इस्लामपुर एकीकृत टेक्सटाइल पार्क
|
इस्लामपुर
|
महाराष्ट्र
| |
2.
|
लातूर एकीकृत टेक्सटाइल पार्क
|
लातूर
|
महाराष्ट्र
| |
3.
|
अमीतारा ग्रीन हाईटेक टेक्सटाइल पार्क
|
अहमदाबाद
|
गुजरात
| |
4
|
कर्णराज टेक्सटाइल पार्क
|
सूरत
|
गुजरात
| |
5
|
शाहलॉन टेक्सटाइल पार्क
|
सूरत
|
गुजरात
| |
6
|
पलसाना टेक्सटाइल पार्क
|
सूरत
|
गुजरात
| |
7
|
शांति इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
सूरत
|
गुजरात
| |
8
|
सत्यराज इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
इचलकरंजी
|
महाराष्ट्र
| |
9
|
धुले वस्त्र पार्क
|
धुले
|
महाराष्ट्र
| |
10
|
श्री गणेश इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
धुले
|
महाराष्ट्र
| |
11
|
आलिशान इको टेक्सटाइल पार्क
|
पानीपत
|
हरियाणा
| |
12
|
गुंटूर टेक्सटाइल पार्क
|
गुंटूर
|
आंध्रप्रदेश
| |
13
|
तारकेश्वर वस्त्र पार्क
|
नेल्लोर
|
आंध्रप्रदेश
| |
14
|
ब्रैंडिक्स इंडिया अपेरल सिटी प्राइवेट लिमिटेड
|
विशाखापत्तनम
|
आंध्रप्रदेश
| |
15
|
गुजरात इको टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
16
|
मुंद्रा एसईजेड टेक्सटाइल एंड अपैरल पार्क लिमिटेड
|
कच्छ
|
गुजरात
| |
17
|
फेयरडाइल टेक्सटाइल पार्क प्रा. लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
18
|
व्रज इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
अहमदाबाद
|
गुजरात
| |
19
|
सयाना टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
20
|
डोड्डालपुर इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
डोड्डबल्लापुर
|
कर्नाटक
| |
21
|
मेट्रो हाई-टेक सहकारी पार्क लिमिटेड
|
इचलकरंजी
|
महाराष्ट्र
| |
22
|
प्राइड इंडिया कोऑपरेटिव टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
इचलकरंजी
|
महाराष्ट्र
| |
23
|
बारामती हाई टेक टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
बारामती
|
महाराष्ट्र
| |
24
|
पूर्णा ग्लोबल टेक्सटाइल्स पार्क लि.
|
हिंगोली
|
महाराष्ट्र
| |
25
|
लोटस इंटीग्रेटेड टेक्स पार्क
|
बरनाला
|
पंजाब
| |
26
|
ताल कपड़ा और परिधान पार्क लिमिटेड
|
नवांशहर
|
पंजाब
| |
27
|
लुधियाना इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
लुधियाना
|
पंजाब
| |
28
|
किशनगढ़ हाई-टेक टेक्सटाइल वीविंग पार्क लिमिटेड
|
किशनगढ़
|
राजस्थान
| |
29
|
नेक्स्ट जेन टेक्सटाइल पार्क प्राइवेट लिमिटेड
|
पाली
|
राजस्थान
| |
30
|
जयपुर इंटीग्रेटेड टेक्सक्राफ्ट पार्क प्राइवेट लिमिटेड
|
जयपुर
|
राजस्थान
| |
31
|
पल्लेदम हाई-टेक बुन पार्क
|
पल्लादम
|
तमिलनाडु
| |
32
|
कोमारपलायम हाई-टेक बुन पार्क लिमिटेड
|
कोमलारपालयम
|
तमिलनाडु
| |
33
|
करूर इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
करुर पार्क
|
तमिलनाडु
| |
34
|
मदुरै इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क लिमिटेड
|
मदुरई
|
तमिलनाडु
| |
35
|
द ग्रेट इंडियन लिनेन एंड टेक्सटाइल इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी, उथुकुली
|
त्रिपुर जिला
|
तमिलनाडु
| |
36
|
पोचमपल्ली हैंडलूम पार्क लिमिटेड
|
भुवनगिरी
|
तेलंगाना
| |
37
|
व्हाइट गोल्ड टेक्सटाइल पार्क
|
रंगारेड्डी
|
आंध्र प्रदेश
| |
38
|
होजरी पार्क
|
हावड़ा
|
पश्चिम बंगाल
| |
39
|
प्राग ज्योति टेक्सटाइल पार्क
|
डारंग
|
असम
| |
40
|
हिंदूपुर व्यापर अपैरल पार्क लिमिटेड
|
अनंतपुरम
|
आंध्र प्रदेश
| |
41
|
मास फैब्रिक पार्क (इंडिया लिमिटेड)
|
नेल्लोर
|
आंध्र प्रदेश
| |
42
|
सूरत सुपर यार्न पार्क लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
43
|
केजरीवाल इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क
|
सूरत
|
गुजरात
| |
44
|
जम्मू और कश्मीर वस्त्र पार्क
|
कठुआ
|
जम्मू व कश्मीर
| |
45
|
गुलबर्गा टेक्सटाइल पार्क
|
गुलबर्गा
|
कर्नाटक
| |
46
|
एसआईएमए वस्त्र प्रसंस्करण केंद्र
|
कुड्डालोर
|
तमिलनाडु
| |
47
|
ईआईजीएमईएफ परिधान पार्क लिमिटेड
|
कोलकाता
|
पश्चिम बंगाल
| |
48
|
अस्मीता इंफ्राटेक लि.
|
ठाणे
|
महाराष्ट्र
| |
49
|
देसन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा. लिमिटेड
|
धुले
|
महाराष्ट्र
| |
50
|
आरजेडी इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल
पार्क प्रा.लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
51
|
कश्मीर ऊन और रेशम वस्त्र पार्क
|
घाट्टी
|
जम्मू व कश्मीर
| |
52
|
फर्रुखाबाद कपड़ा पार्क
|
फर्रुखाबाद
|
उत्तर प्रदेश
| |
53
|
ईको-टेक्सटाइल पार्क
|
बरेली
|
उत्तर प्रदेश
| |
54
|
एनएसपी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड
|
सूरत
|
गुजरात
| |
55
|
हिंगनघाट एकीकृत वस्त्र पार्क
|
विदर्भ
|
महाराष्ट्र
| |
56
|
पल्लवदा टेक्निकल टेक्सटाइल्स पार्क प्रा.
|
इरोड
|
तमिलनाडु
| |
57
|
हिमाचल टेक्सटाइल पार्क
|
उना
|
हिमाचल प्रदेश
| |
58
|
कांचीपुरम पेरारीग्नार अन्ना सिल्क पार्क
|
कांचीपुरम
|
तमिलनाडु
| |
59
|
कल्पना अवाडे टेक्सटाइल पार्क
|
कोल्हापुर
|
महाराष्ट्र
| |
योजना के तहत उत्तर प्रदेश में दो टेक्सटाइल पार्कों को मंजूरी दी गई हैः-
क्रमांक
|
पार्क का नाम
|
स्तान
|
मंजूरी का वर्ष
|
भारत सरकार का अनुदान (करोड़ रुपये में)
|
वर्तमान स्थिति
|
1.
|
फर्रुखाबाद टेक्सटाइल पार्क
|
फर्रुखाबाद
|
2016
|
40.00
|
मंजूरी दी गई
|
2.
|
इको-टेक्स टेक्सटाइल पार्क
|
बरेली
|
2015
|
40.00
|
मंजूरी दी गई
|
वस्त्र उद्योग क्षेत्र में क्षमता निर्माण
सरकार ने वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए कौशल विकास योजना 'समर्थ' को मंजूरी दी है। इस योजना में वस्त्र क्षेत्र के संपूर्ण मूल्य श्रृंखला (धागा कातने और बुनाई को छोड़कर) को शामिल किया गया है और इसे तीन वर्षों के लिए (2017-18 से 2019-20) पूरे देश में लागू किया गया है। इस योजना के लिए 1300 करोड़ रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है और इसके तहत 10 लाख लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। योजना की मुख्य विशेषताएं हैः-
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सामान्य नियमों के प्रावधानों के साथ जोड़ा गया है और योजना के तहत पेश किए गए पाठ्यक्रम राष्ट्रीय कौशल योग्यता कार्य योजना (एनएसक्यूएफ) के अनुरूप हैं।
- कार्यान्वयन और निगरानी में आसानी के लिए वेब आधारित एमआईएस।
- प्रशिक्षण लक्ष्य के आवंटन से पहले प्रशिक्षण केन्द्रों का भौतिक सत्यापन।
- संगठित क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण समाप्ति के तीन महीनों के अंदर 70 प्रतिशत अनिवार्य नियुक्ति।
- प्रमाणित प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण जो प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण (टीओटी) पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण हुए हों।
- आधार सक्षम बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली (एईबीएएस)।
- संपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग।
- नौकरी मिलने के बाद भी जानकारी रखना
- निगरानी और कार्यान्वयन की आसानी के लिए विभिन्न हितधारकों हेतु मोबाइल ऐप।
- हाशिए के सामाजिक समूहों और आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता ।
- लोक शिकायत निवारण तंत्र।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत आंतरिक शिकायत समिति।
14 अगस्त, 2019 को नई दिल्ली में 'समर्थ' के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम के संचालन के लिए राज्य सरकार की एजेंसियों ने वस्त्र मंत्रालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
राज्य सरकार की एजेंसियों का ब्यौरा निम्न हैः-
क्रमांक
|
कार्यान्वयन करनेवाली एजेंसी का नाम
|
राज्य
|
1.
|
अरुणाचल प्रदेश हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट्स सोसायटी लि.
|
अरुणाचल प्रदेश
|
2.
|
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हैंडलूम टेक्नोलॉजी, कन्नूर
|
केरल
|
3.
|
हैंडलूम एवं हैंडीक्राफ्ट्स विंग, डायरेक्टरेट ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज
|
मिजोरम
|
4.
|
हैंडलूम एंड टेक्सटाइल
|
तमिलनाडु
|
5.
|
तेलंगाना स्टेट टेक्सटइल कॉम्प्लेक्स कोपरेटिव सोसाइटी
|
तेलंगाना
|
6.
|
यूपी इंडस्ट्रियल कोपरेटिव एसोसिएशन लि.
|
उत्तर प्रदेश
|
7.
|
खादी विलेज इंडस्ट्रीज बोर्ड (यूपीकेवीआईबी)
|
उत्तर प्रदेश
|
8.
|
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरप्रेनेरशिप डेवलपमेंट, कानपुर
|
उत्तर प्रदेश
|
9.
|
उत्तराखंड स्किल डेवलपमेंट सोसाइटी, देहरादून
|
उत्तराखंड
|
10.
|
डायरेक्ट ऑफ हैंडलूम एंड टेक्सटाइल, आंध्र प्रदेश
|
आंध्र प्रदेश
|
11.
|
असम स्किल डेवलपमेंट मिशन
|
असम
|
12.
|
हैंडलूम टेक्सटाइल एंड सेरिकल्चर डिपार्टमेंट
|
असम
|
13.
|
मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम
|
मध्य प्रदेश
|
14.
|
डायरेक्टेरेट ऑफ स्किल डेवलपमेंट
|
त्रिपुरा
|
15.
|
कर्नाटक स्टेट टेक्सटाइल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कोरपोरेशन लिमिटेड
|
कर्नाटक
|
16.
|
डिपार्टमेंट ऑफ टेक्सटाइल, कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, डायरेक्टरेट ऑफ हैंडलूम एंड टेक्सटाइल, गर्वमेंट ऑफ मणिपुर
|
मणिपुर
|
17.
|
डायरेक्टरेट ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स
|
हरियाणा
|
18.
|
डायरेक्टरेट ऑफ सेरिकल्चर एंड वेविंग
|
मेघालय
|
19.
|
डायरेक्टेर ऑफ हैंडलूम, सेरिकल्चर एंड हैंडीक्राफ्ट
|
झारखंड
|
20.
|
जम्मू व कश्मीर इंटरप्रेन्योरशिप* डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट
|
जम्मू और* कश्मीर
|
21.
|
इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट, ओडिशा
|
ओडिशा
|
* समझौता ज्ञापन पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।
योजना के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरु करने के लिए मंत्रालय ने संगठित एवं पारंपरिक क्षेत्रों में 4 लाख कौशल लक्ष्य का आवंटन 18 राज्यों के सरकारी एजेंसियों को तथा पारंपरिक क्षेत्र में वस्त्र मंत्रालय के संगठनों (केन्द्रीय रेशम बोर्ड; हस्तशिल्प विकास आयुक्त; हथकरघा विकास आयुक्त और राष्ट्रीय जूट बोर्ड) को किया है। योजना के दिशा-निर्देशों के अनुरूप वस्त्र मंत्रालय के परिसंघों को पैनल तैयार करने तथा लक्ष्य आवंटित करने की प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी है।
'समर्थ' योजना के शुरु होने से लेकर अब तक आवंटित धनराशि तथा उपयोग की गई धनराशि का ब्यौरा निम्न हैः-
वर्ष
|
धनराशि आवंटित (करोड़ रुपये में)
|
उपयोग की गई धनराशि (करोड़ रुपये में)
|
2017-18
|
100.00
|
100.00
|
2018-19
|
42.00
|
16.98
|
2019-20 अब तक
|
100.50
|
17.39
|
कुल
|
242.50
|
134.37
|
योजना के तहत शुरु किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रम के कार्यान्वयन के सभी आयामों की निगरानी के लिए एक वेब आधारित केन्द्रीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) प्रारंभ की गई है। पैनल के लिए प्रस्ताव, प्रशिक्षण केन्द्र सत्यापन, प्रशिक्षु पंजीयन, आधार सक्षम बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली, मूल्यांकन और प्रमाणन, प्रशिक्षुओं को नौकरी दिलाना और उनके बारे में जानकारी रखना; कार्यान्वयन सहयोगियों को भुगतान जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रम के सभी आयामों को समर्थ के वेब आधारित एमआईएस से जोड़ दिया गया है।
राज्य और केन्द्र के करों व उपकरों पर छूट (आरओसीएसटीएल)
परिधान और तैयार वस्त्रों के निर्यात में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए मंत्रिमंडल ने 6 मार्च, 2019 को राज्य और केन्द्र के करों व उपकरों पर छूट सम्बन्धी योजना को मंजूरी दी। यह छूट आईटी आधारित स्क्रिप्ट प्रणाली के जरिये अधिसूचित दरों पर 31 मार्च, 2020 तक के लिए मान्य होगी।
पावरटेक्स इंडिया
पावरटेक्स इंडिया के अंर्तगत 4797 हथकरघाओं (लूम) को उन्नयन योजना के तहत पावरलूमों में तब्दील किया गया है और इसके लिए 44.98 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है। समूह कार्यस्थल (वर्कशेड) योजना के तहत 141 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और इसके लिए 7.64 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है। यार्न बैंक योजना के तहत 8 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और सके लिए 5.27 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है। 12 क्रेता-विक्रेता बैठकें आयोजित की गईं और सके लिए 1.35 करोड़ रुपये जारी किए गए। 4.58 करोड़ रुपये की लागत से 19 पावरलूम सेवा केन्द्रों का निर्माऩ किया गया।
रेशम उत्पादम में वृद्धि
रेशम उद्योग के विकास के लिए एकीकृत योजना
भारतीय रेशम उद्योग के विकास के लिए 5 प्रौद्योगिकी पैकजों के लिए पेटेन्ट प्राप्त किए गए; 50 अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया गया और 55 प्रौद्योगिकी पैकेजों का विस्तार किया गया है। केन्द्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) के अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान के द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के तहत 13,885 व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया गया है।
पिछले वर्ष 2017-18 क दौरान कच्चे रेशम का कुल उत्पादन 31,906 मीट्रिक टन रहा, जबकि 018-19 के दौरान उत्पादन बढ़कर 35,468 मीट्रिक टन हो गया र इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। बीवोल्टाइन कच्चे रेशम का उत्पादन वर्ष 2018-19 के दौरान रिकार्ड 6,987 मीट्रिक टन रहा और इसमें पिछले वर्ष की तुलना में 18.95 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। प्रति हेक्टेयरर कच्चे रेशम का उत्पादन 2014-15 में 96 किलोग्राम था, जो 2018-19 के दौरान बढ़कर 106 किलोग्राम हो गया।
रेशम उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) के माध्यम से वस्त्र मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं।
सीएसबी 'समग्र' रेशम योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्धन योजना (एनईआरटीपीएस) के तहत 38 परियोजनाओं के माध्यम से किसानों के हितों की रक्षा करता है। किसानों को नर्सरी निर्माण, शहतूत की बेहतर किस्मों का पौधारोपण, सिंचाई, चावकी पालन केन्द्र, कीट पालन केन्द्रों का निर्माण; पालन उपकरण और घर-घर जाकर विसंक्रमण आदि के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है। इसके अंतर्गत 42,026 लाभार्थियों को सहायता प्राप्त हुई है और 32,552 एकड़ में शहतूत के बागान विकसित किए गए हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में कच्चे रेशम का उत्पादन 2013-14 के 4,602 मीट्रिक टन से बढ़कर 2018-19 में 7,482 मीट्रिक टन हो गया है और भारत के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई है। इससे जनजातीय समुदायों को रोजगार मिला है और उन्हें आजीविका के टिकाऊ साधन प्राप्त हुए हैं। इसका ककून उत्पादन, कच्चे रेशम का उत्पादन, रोगमुक्त लेइंग की खपत आदि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा रेशम-कीट पालन से आय बढ़ी है और वार्षिक पारिवारिक आय में वृद्धि हुई है।
ककून उत्पादन बढ़ाने, रेशम कीट और शहतूत की बेहतर किस्म की विकसित करने और तकनीकी पैकेज के जरिये अरूचिकर कार्य को न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए सुदृढ़ अनुसंधान और विकास प्रणाली
बीवोल्टाइन ककून से 3ए-4ए किस्म के कच्चे रेशम के उत्पादन के लिए देश में स्वचालित रीलिंग मशीनें (एआरएम) स्थापित की गई हैं।
केन्द्रीय रेशम बोर्ड और राज्य सरकारों ने रेशम-कीट पालन के विकास हेतु अतिरिक्त कोष की व्यवस्था की है और इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) आदि का समन्वय किया गया है।
कच्चे रेशम और रेशम कपड़े के आयात पर मूल सीमा शुल्क क्रमशः 10 प्रतिशत और 20 प्रतिशत है। इससे घरेलू रेशम उद्योग को मजबूती मिली है। यह भारतीय रेसम के निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाता है।
वस्त्र और जूट वस्त्र उद्योग
देश की अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है और पश्चिम बंगाल समेत पूर्वी क्षेत्र का यह प्रमुख उद्योग है। जूट का रेशा सुनहला होता है और यह सुरक्षित पैकेजिंग के सभी मानकों जैसे प्राकृतिक रेशा, नवीकरणीय, जैव-अपघटन, पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद को पूरा करता है। अनुमान है कि जूट उद्योग प्रत्यक्ष रूप से 3.7 लाख लोगों को रोजगार देता है और लगभग 40 लाख कृषि परिवारों की आजीविका को समर्थन प्रदान करता है।
जूट उद्योग का विकास
जूट किसानों के कल्याण के लिए जूट-आईकेयर (आईसीएआरई-बेहतर कृषि और उन्नत अपगलन अभ्यास) योजना लॉन्च की गई है। इसका उद्देश्य गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए जूट की खेती में वैज्ञानिक अभ्यासों को बढ़ावा देना है। वर्तमान/नए जूट मिलों में आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए चयनित मशीन अधिग्रहण (आईएसएपीएम) योजना लागू की गई है।
जूट उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने तथा पंजीकृत जूट निर्यातकों को विदेशी मेलों/बीएसएम में भाग लेने तथा व्यापार प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने के लिए निर्यात बाजार विकास सहायता योजना (ईएमडीए) लॉन्च की गई है। जूट उद्यमियों को अपने उत्पादों का मेट्रो शहरों, राज्यों की राजधानियों और पर्यचन स्थलों में खुदरा विक्रय केन्द्रों के जरिए प्रदर्शन और विपणन के लिए जूट उत्पाद खुदरा बिक्री केन्द्र और थोक आपूर्ति योजना लागू की गई है।
'सुलभा शौचालय' एक श्रमिक कल्याण योजना है। इसके अंतर्गत जूट मिलों को श्रमिकों की सुविधा के लिए शौचालय निर्माण हेतु सहायता दी जाती है। जूट/एमएसएमई श्रमिकों की बेटियों को प्रोत्साहन देने की योजना भी लागू की गई है, जिसके तहत बालिकाओं को 10वीं और 12वीं कक्षा में उत्तीर्ण होने पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
मूल्य संवर्धित जूट उत्पादों के उत्पादन के लिए आवश्यक नए/प्रशिक्षण कार्यबल निर्माण, स्वरोजगार के अवसरों के निर्माण के लिए तथा वर्तमान तथा नए उद्यमियों के बीच समन्वय के लिए जूट एकीकृत विकास योजना (जेआईडीएस) लॉन्च की गई है। एमएसएमई इकाइयों तथा कारीगरों को परिवहन लागत समेत जूट मिल की कीमत पर जूट के कच्चे माल की आपूर्ति के लिए जूट कच्चा माल बैंक (जेआरएमबी) योजना लागू की गई है।
भारतीय जूट उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भारतीय जूट उद्योग अनुसंधान संघ (आईजेआईआरए) का गठन किया है। इसके तहत विभिन्न अनुसंधान गतिविधियां शुरु की गई हैं, जैसे जूट पौधे का त्वरित गलन, जूट के कठोर जड़ को काटने के लिए मुलायम बनाना, जूट का पर्यावरण-अनुकूल और तेल-रहित प्रसंस्करण आदि।
उत्पाद विकास के क्षेत्र में आईजेआईआरए ने जूट के हल्के थैले, ग्रामीण सड़क निर्माण के लिए जूट ज्यो-टेक्सटाइल, जूट-थर्मोप्लास्टिक, जूट वस्त्रों के लिए जैव-अपघटन अनुकूल बारीक परत (लेमीनेशन) आदि विकसित किए हैं। आईजेआईआरए ने उच्च गुणवत्ता युक्त उत्पाद जैसे जूट आधारित एअर-फिल्टर, जूट की छड़ी और प्रक्रिया अपशिष्ट से कीमती रसायन, जूट आधारित सेनेटरी नैपकिन आदि की विकसित किए हैं।
व्यापक हथकरघा विकास कार्यक्रम
व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) का लक्ष्य पहचान के योग्य भौगोलिक स्थलों पर मेगा हथकरघा क्लस्टरों का विकास करना है। एक क्लस्टर में लगभग 15,000 हथकरघे होने चाहिए। सरकार 5 वर्षों के दौरान 40 करोड़ रुपये का योगदान देगी। जांच अध्ययन और कच्चे माल की उपलब्धता सम्बन्धी अध्ययन का पूरा खर्च केन्द्र सरकार वहन करेगी, जबकि रोसनी की इकाइयों, प्रौद्योगिकी उन्नयन और उपकरणों के लिए होने वाले खर्च में सरकार 90 प्रतिशत का योगदान देगी। डिजाइन स्टूडियो/मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स के अवसंरचना निर्माण, विपणन विकास, निर्यात के लिए सहायता आदि घटकों पर होने वाले खर्च में सरकार 80 प्रतिशत का योगदान देगी। विकसित करने के 8 मेगा हथकरघा क्लस्टरों को चुना गया है। ये हैं-वाराणसी (उत्तर प्रदेश), शिवसागर (असम), विरुधूनगर ( तमिलनाडु), मुर्शिदाबाद (पं बंगाल), प्रकासम और गुंटूर जिले (आंध्र प्रदेश), गोड्डा और निकटवर्ती जिले (झारखंड), भागलपुर (बिहार) और त्रिची (तमिलनाडु)। सीएचसीडीएस के तहत 1.75 लाख हथकरघा बुनकरों को कवर किया गया है और विभिन्न हस्तक्षेपों के लिए पिछले 5 वर्षों के दौरान 131.91 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है।
राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) के तहत राज्य सरकारों द्वारा प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर ब्लॉक स्तर के 294 क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है। इसके अंतर्गत 1.6 लाख हथकरघा बुनकरों को कवर किया गया है और विभिन्न कार्यक्रमों के लिए पिछले 4 वित्तीय वर्षों और वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान 165.99 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है।
मुद्रा योजना के तहत 35952 बुनकरों को 181.68 करोड़ रुपये ऋण के रूप में दिए गए हैं। 8611 हथकरघा श्रमिकों को कौशल उन्नयन प्रशिक्षण दिया गया है तथा 7285 लाभार्थियों को 7417 हथकरघा संवर्धन सहायता (एचसीसी) वस्तुएं वितरित की गई हैं।
हथकरघा विकास के लिए 34 आकांक्षी जिलों को 38.77 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी गई है। कारीगरी और बुनकरों को विभिन्न योजनाओं और लाभों के बारे में जानकारी देने के लिए पूरे देश में हस्तकला सहयोग शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। बुनकरों की आय बढ़ाने के लिए हथकरघा क्लस्टरों से टेक्सटाइल कंपनियों को जोड़ा गया है। कंपनी अधिनियम के तहत बुनकरों की उत्पादक कंपनियों, सोसायटियों और सीएचजी का गठन किया जा रहा है।
हथकरघों का आधुनिकीकरण
वाणिज्यिक सूचना और सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस), कोलकाता के अनुसार 2018-19 में 29.93 लाख गांठों का आयात हुआ और 42.83 गांठों का निर्यात हुआ (31 जनवरी, 2019 तक)। कपास सलाहकार बोर्ड (सीएबी) के द्वारा पिछले 3 वर्षों के लिए आयात और निर्यात की मात्रा समेत कापस का वार्षिक लेखा निम्न हैः-
मात्राः लाख गांठों में (प्रति गांठ 170 किलोग्राम)
|
फसल वर्ष
|
प्रारंभिक स्टॉक
|
उत्पादन
|
आयात
|
खपत
|
निर्यात
|
अंतिम स्टॉक
|
2016-17
|
36.44
|
345.00
|
30.94
|
310.41
|
58.21
|
43.76
|
2017-18
|
43.76
|
370.00
|
15.80
|
3019.06
|
67.59
|
42.91
|
2018-19 (P)
|
42.91
|
337.00
|
22.00
|
311.50
|
50.00
|
40.41
|
देश की मांग और आपूर्ति को ध्यान में रखते है, उपरोक्त विवरण के अनुसार देश में कपास की पर्याप्त उपलब्धता है।
वस्त्र मंत्रालय लागू कर रहा है- (i) पूरे देश में रेशा आपूर्ति योजना। इसके तहत पूरे देश में बुनकरों को मिल ग्रेट की कीमत पर सभी किस्मों के रेशे उपलब्ध कराए जाएंगे। इस योजना को राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम के जरिये लागू किया जा रहा है। योजना के अंर्तगत माल-भाड़े का भुगतान किया जाता है और डिपो संचालक एजेंसियों को 2 प्रतिशत डिपो संचालन शुल्क के रूप में दिया जाता है। हथकरघा के लिए जूती, घरेलू रेशम, ऊन और लिनन धागों के लच्छे के लिए 10 प्रतिशत सब्सिडी की भी सुविधा है।
(ii) पावरलूम क्षेत्र में यार्न बैंक योजना विशेष उद्देश्य के लिए बनी कंपनी (एसपीवी)/पावरलूम बुनकरों के संघ के लिए 2 करोड़ रुपये के ब्याज रहित ऋण की सुविधा है ताकि वे थोक दरों पर धागे खरीद सकें और छोटे बुनकरों को किफायती कीमत पर धागे बेच सकें। पूरे देश में 89 यार्न बैंक कार्यरत हैं, जिन्होंने सरकार से कुल 26.17 करोड़ रुपये का ब्याज रहित ऋण प्राप्त किया है। पावरलूम बुनकरों को धागे की आपूर्ति में कोई बाधा/अभाव नहीं है।
वस्त्र मंत्रालय राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) के तहत ब्लॉक स्तर के क्लस्टरों के जरिये कपड़ा बुनने, रंगने, डिजाइन बनाने आदि के लिए कौशल उन्नयन प्रशिक्षण दे रही है। इसके तहत बुनकरों को उन्नत पावरलूम/उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं ताकि वे कपड़े की गुणवत्ता बेहतर कर सकें तथा उत्पादन बढ़ा सके। एनएचडीपी/सीएचसीडीएस के तहत 2015-16 से 2019-20 (18 नवंबर, 2019) तक 436 ब्लॉक स्तर के क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है। इसमें देश के कुल 303366 लाभार्थी बुनकार कवर किए गए हैं। तमिलनाडु के लिए 52 ब्लॉक स्तर के क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है और ससे 58268 बुनकरों को लाभ प्राप्त होगा।
हथकरघा बुनकरों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई), और महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना (एमजीबीबीवाई) में पंजीकृत पूरे देश में हथकरघा बुनकरों और श्रमिकों को जीवन और दुर्घटना बीमा कवरेज की सुविधा दी गई है। हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण योजना के तहत लाभों एवं कुल वार्षिक प्रीमियम, भारत सरकार, एलआईसी और पीएमजेजेबीवाई/पीएमएसबीवाई एवं एमजीजीबीवाई के अंतर्गत पंजीकृत बुनकरों/श्रमिकों के अंशदान का ब्यौरा निम्न हैः-
योजना घटक
|
आयु समूह
|
बीमा कवरेज
|
लाभ (रुपये में)
|
वार्षिक प्रीमियम
|
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना (पीएमजेजेबीवाई)
|
18- 50 वर्ष
|
प्राकृतिक मृत्यु
|
2,00,000
|
330 रुपये
हिस्सेदारी
भारत सरकार 150/- रुपये
एलआईसी - 100/- रुपये
बुनकर/श्रमिक - 80/- रुपये
|
दुर्घटना से मृत्यु
|
2,00,000
|
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (बीएमएसबीवाई)
|
18- 50 वर्ष
|
प्राकृतिक मृत्यु
|
2,00,000
|
12/- रुपये
भारत सरकार वहन करती है।
|
दुर्घटना से मृत्यु
|
2,00,000
|
आंशिक विकलागंता
|
1,00,000
|
महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना (एमजीबीबीवाई)
|
51- 59 वर्ष
|
प्राकृतिक मृत्यु
|
60,000
|
470/- रुपये
हिस्सेदारी भारत सरकार - 290/- रुपपये
एलआईसी - 100/- रुपये
बुनकर/श्रमिक - 80/- रुपये
|
दुर्घटना से मृत्यु
|
1,50,000
|
पूर्ण विकलांगता
|
1,50,000
|
आंशिक विकलांगता
|
75,000
|
वस्त्र मंत्रालय ने बुनकरों और उनके परिवारों को शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। एनआईओएस दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था के जरिये हथकरघा बुनकरों को डिजाइन, विपणन, व्यापार, विकास आदि विशिष्ट विषयों में 10वीं और 12वीं तक की शिक्षा सुविधा प्रदान करता है। जबकि इग्नू हथकरघा बुनकरों व उनके बच्चों की आकांक्षाओं के अनुरूप सुविधाजनक और विकल्प सहित शिक्षा प्राप्ति का अवसर प्रदान करता है। वस्त्र मंत्रालय अनुसूचित जाति, जनजाति, बीपीएल और बुनकर परिवार की महीलाओं को एनआईओएस/इग्नू पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने पर कुल शुल्क का 75 प्रतिशत अनुदान के रूप में देता है।
हस्तशिल्पों का उन्नयन
वस्त्र मंत्रालय के विकास युक्त कार्यालय (हस्तशिल्प) के निम्म योजनाओं के तहत हस्तशिल्प कारीगरों को प्रत्यक्ष लाभ के जरिये वित्तीय सहायता दी जाती हैः-
(i). हस्तशिल्प कारीगरों के लिए मुद्रा ऋण (ब्याज में छूट सहित)
मुद्रा ऋण सहायता के तहत कारीगरों/बुनकरों को अपनी ऋण आवश्यकताओं के लिए 3 वर्षों तक ऋण के 6 प्रतिशत ब्याज दर में छूट दी जाती है। इसके लिए अधिकतम ऋण धनराशि 1,00,000 रुपये निर्धारित की गई है। कारीगरों को मुद्रा ऋण सुविधा प्राप्त करने हेतु बढ़ावा देने के लिए ऋण धनराशि का 20 प्रतिशत मार्जिन मनी के रुप में दिया जाता है। यह राशि 10,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। हस्तशिल्प सेवा केन्द्र कारीगरों को ऋण सुविधा प्राप्त करने, बैंकों में आवेदन जमा करने और जागरुकता बढ़ाने के लिए सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।
(ii) निर्धनता में कारीगरों को सहायता (पेंशन योजना)
इस योजना के तहत ऐसे करीगरों को वित्तीय सहायता दी जाती है, जिन्हें शिल्प गुरू पुरस्कर/राष्ट्रीय पुरस्कार/राष्ट्रीय मेधा प्रमाण पत्र/राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है और उनकी आयु 60 वर्ष से अधिक है तथा उनकी वार्षिक आय 50,000 रुपये से कम है। निर्धन परन्तु उत्कृष्ट कारीगरों को 3500 रुपये प्रति महीने की वित्तीय सहायता दी जाती है।
(iii) हस्तशिल्प कारीगरों के लिए बीमा योजना
पीएमजेजेबीवाई और पीएमएसबीवाई के तहत 18-50 वर्ष के आयु-वर्ग वाले कीरगरों/श्रमिकों को जीवन, दुर्घटना और विकलांगता बीमा की सुविधा दी गई है। 51-59 वर्ष आयु-वर्ग के हस्तशिल्प कारीगर/श्रमिक जो आम आदमी बीमा योजना (एएबीवाई) के तहत पंजीकृत हैं, उन्हें संशोधित आम आदमी बीमा योजना (समन्वित एएबीवाई) में शामिल कर लिया गया है।
(iv) एनआईओएस और इग्नू के साथ समझौता
वस्त्र मंत्रालय और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। हस्तशिल्प कारीगरों और उनके बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए इंजिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और विकास आयुक्त कार्यालय (हस्तशिल्प) के बीच एक अन्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के हतह एस/एसटी/बीपीएल और महिला कारीगरों के शिक्षा शुल्क की 75 प्रतिशत धानराशि के अनुदान का प्रावधान है। समझौते में हस्तशिल्प कारीगरों और उनके बच्चों के लिए विशेष पाठ्यक्रमों के निर्माण का प्रावधान है। एनआईओएस ने वाराणसी क्षेत्र में जरी जरदोजी शिल्प के लिए 15 प्रशिक्षण कार्यक्रमों की मंजूरी दी है। मानव संसाधन विभाग के प्रतिष्ठित संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाएगा। अब तक 99 अनुसूचित जाति के कारीगरों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है और वे अपनी बढ़ी हुई आय से आजीविका अर्जित कर रहे हैं।
वस्त्र मंत्रालय राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) के तहत हस्तशिल्पों के विकास और प्रोत्साहन के लिए विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन करता है।
एनएचडीपी के घटक निम्न हैः-
- अम्बेडर हस्तशिल्प विकास योजा के तहत कारीगरों का प्राथमिक सर्वेक्षण और एकत्रीकरण।
- डिजाइन और प्रौद्योगिकी उन्नयन
- मानव संसाधन विकास
- कारीगरों को प्रत्यक्ष लाभ
- ढांचागत संरचना और प्रौद्योगिकी सहायता
- अनुसंधान और व कास
- विपणन सहायता और सेवाएं
सीएचसीडीएस के घटक निम्न हैः
- मेगा क्लस्टर
- हस्तशिल्पों का एकीकृत विकास और प्रोत्साहन (आईडीपीएच) के तहत विशेष परियोजनाएं
उत्तर प्रदेश में कारीगरों के समग्र विकास के लिए अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना (एएचवीवाई) के तहत क्लस्टर विकास परियोजा लागू करने के लिए सरकार ने पहल की है। राज्य में पिछले 3 वर्षों के दौरान 62 क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है और इससे 31,000 कारीगरों को लाभ मिला है। सीएचसीडीएस के तहत उत्तर प्रदेश में 4 मेगा हस्तशिल्प क्लस्टरो- मिर्जापुर-भदोही, मुरादाबाद, बरेली और लखनऊ को मंजूरी दी गई है। इसके अलावा 21 ब्लॉक स्तर के क्लस्टरों को भी मंजूरी दी गई है।
'पहचान' पहल के तहत 23.68 लाख कारीगरों को 31 मार्च, 2019 तक पहचान पत्र दिये जा चुके हैं। पहचान पहल के तहत 50,000 नए कारीगरों का पंजीयन किया जाएगा। एचआरडी योजना के तहत 309 हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्रस्ताव दिया गया है और ससे 7600 कारीगरों को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा।
भारतीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए 5,754 उन्नत उपकरण किट वितरित किए गए हैं और डिजाइन तथा प्रौद्योगिकी उन्नयन योजना के तहत 2000 उपकरण किट वितरित किए जाएंगे। 327 हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं और इससे 6720 कारीगरों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है।
63 घरेलू और 54 अंतर्राष्ट्रीय विपणन कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं और इनसे 12075 कारीगरों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है। वर्ष 2019-20 के लिए 190 घरेलू और 80 अंतर्राष्ट्रीय विपणन कार्यक्रम प्रस्तावित हैं।