Friday, December 6, 2019

क्या लिखूँ?

रोज काल का ग्रास बन रही आसिफा,

फिर कैसे मैं श्रृंगार लिखूँगा ।

देश चल रहा नफरत से ही,

फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा ।

 

वंचित हैं जो अधिकार से अपने,

उनका मैं अधिकार लिखूँगा ।

दुष्टों को मारा जाता है जिससे,

अब मैं वही हथियार लिखूँगा ।

 

रोज जवान मर रहे सीमा पर,

कब तक मैं उनकी बली सहूँगा ।

मर रही जनता रोज देश की,

कब तक मैं ये अत्याचार सहूँगा ।

 

आसिफा, ट्विंकल ना जाने कौन-कौन ?

अब इनकी चित्कार लिखूँगा ।

हाँ, देश चल रहा नफरत से ही

फिर कैसे मैं प्यार लिखूँगा ।

 

सौरभ कुमार ठाकुर (बालकवि एवं लेखक)

मुजफ्फरपुर, बिहार

गरीब बेटियों  व बेटो के सपनो साकार करने के लिए आगे आया.उस्मान हुनर इंस्टिट्यूट

मोहम्मद रिज़वान अंसारी की कलम से


जहाँ बच्चों को मिलती हैं फ्री शिक्षा और हुनर



शुक्लागंज उन्नाव।  आज की गरीबी में बेटी बेटो की पढाईयो के खर्च पूरे न होने पर परिवार को उनकी पढ़ाई रोकना पडती है कहि न कही बच्चों के अपने सपने भी बचपन मे जो सुने होते हैं कि मेरे बेटा डॉक्टर बनेगा बेटी फैशन डिजाइनर बनेगी  इंग्लिश में बात करेंगे ये सपने अक्सर मा बाप बच्चों के साथ देखते हैं लेकिन बच्चे के बड़े होने तक धीरे धीरे ये सपने परिवार की परेशानियों के आगे टूट जाते हैं इन्ही सपनो को लेकर आज हुनर इंस्टीट्यूट के उस्मान ने इन गरीबो को हुनर और फ्री स्पीकिंग फ्री फैशन डिजाइनर के कोर्स कराने  की शुरुवात की जो कि लगभग 1 वर्ष पूर्व इसकी शुरुवात की थी वो शुरवात आज कहि न कही 1 रोशनी की तरह उम्मीद की किरण बनकर सामने आने लगी इस कार्य को हुनर इंस्टीट्यूट  को 1 वर्ष पूरे होना पर हुनर इंस्टिट्यूट के चेयरमैन उस्मान ने मेघावी छात्र छात्राओं को पुरुस्कार देकर उनका हौसला बढ़ाया और संस्था के द्वारा युही गरीबो की मदद के लिए तातपर्य रहने का प्रयत्न किया|



Monday, December 2, 2019

मरा हुआ सिस्टम , सोई हुई कौम  बताओ तुमको बचाएगा कौन ? 

मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी
मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं
क्या लड़की हूँ,
बस इसी लिये गुनहगार थी मैं


कुछ कहते हैं छोटे कपड़े वजह हैं
मैं तो घर से कुर्ता और सलवार पहनकर चली थी
फिर क्यों नोचा गया मेरे बदन को
मैं तो पूरे कपडों से ढकी थी


मैंने कहा था सबसे
मुझे आत्मरक्षा सिखा दो
कुछ लोगों ने रोका था
नहीं है ये चीजें लड़की जात के लिए कही थी


मुझे साफ-साफ याद है
वो सूरज के आगमन की प्रतीक्षा करती एक शांत सुबह थी
जब मैं स्कुटी में बैठकर घर से चली थी
और मेरी स्कुटी खराब हो गई थी तो स्कुटी के साथ कुछ मुल्लों की नियत भी खराब हो गई थी 
मैं उनके सामने गिड़गिड़ाई थी
अलग बगल में बैठे हर इंसान से मैंने
मदद की गुहार लगाई थी


जिंदा लाश थे सब,
कोई बचाने आगे न आया था
आज मुझे उन्हें इंसान समझने की अपनी सोच पर शर्म आयी थी
फिर अकेले ही लड़ी थी मैं उन हैवानों से
पर खुद को बचा न पायी थी


उन्होंने मेरी आबरू ही नहीं मेरी आत्मा पर घाव लगाए थे
एक स्त्री की कोख से जन्मे दूसरी को जीते जी मारने से पहले जरा न हिचकिचाए थे
खरोंचे जिस्म पर थी और घायल रूह हुई थी
और बलात्कार के बाद मुझे जिंदा जलाया गया उस समय किसी के आँख में पानी नहीं था कितना कष्ट हुआ मेरे रूह को क्या मेरी कोई जिंदगानी नहीं थी मेरे कोई सपने नहीं थे  ?
अंत में 


मरा हुआ सिस्टम , सोई हुई कौम 


बताओ प्रियंका तुमको बचाएगा कौन ? 


तुरन्त मुकदमें का निपटारा

बहुत पहले एक कहानी पढ़ी थी कि एक दफा बीजिंग शहर के एक मुहल्ले में एक युवती का बलात्कार हुआ। ये खबर किसी तरह चेयरमैन क्रांतिकारी माओ त्से तुंग तक पहुंची। वह खुद पीड़ित लड़की से मिले। उन्होंने उस लड़की से पूछा "जब तुम्हारे साथ जबरदस्ती किया जा रहा था तो तुम मदद के लिये चिल्लाई थी?" लड़की ने हां में सर हिलाया।


चेयरमैन माओ ने उस लड़की के सर पर प्यार से हाथ रखा और नरमी से कहा "मेरी बच्ची! क्या तुम उसी ताक़त के साथ दोबारा चिल्ला सकती हो?" लड़की ने कहा "जी हां।"


चेयरमैन माओ के आदेश पर कुछ सिपाहियों को आधे किलोमीटर के सर्कल में खड़ा कर दिया गया और उसके बाद लड़की से कहा कि अब तुम उसी ताक़त से चीखो। लड़की ने ऐसा ही किया माओ ने उन सिपाहियों को बुलाया और हर एक से पूछा गया कि लड़की की चीख सुनाई दी या नहीं? सभी सिपाहियों ने कहा कि लड़की की चीख सुनाई दी गई।


चेयरमैन माओ ने अब सिपाहियों को आदेश दिया कि आधे किलोमीटर के उस इलाक़े के तमाम मर्दों को गिरफ्तार कर लिया जाए और तीस मिनट के अंदर अगर मुजरिम की पहचान न हो सके तो गिरफ्तार मर्दों को गोली मार दिया जाए।


फौरन आदेश का पालन हुआ और दिये गये मुहलत को बमुश्किल अभी दस मिनट ही हुए होंगे कि मुजरिम की पहचान हो गई और अगले बीस मिनट के अंदर अंदर मुजरिम को पकड़कर चेयरमैन माओ के सामने लाया गया। लड़की ने शिनाख़्त की मौक़े पर फैसला हुआ और मुजरिम का भेजा उड़ा दिया गया।


जुर्म से सज़ा तक की अवधि लगभग तीन घंटे की रही होगी। इसे कहते हैं फौरन इंसाफा मिलना जिस कारण आज चीन हर क्षेत्र में प्रगति पर है।
                       
पता नही कौन मोमबत्तियाँ पकड़ना सिखा गए हमे,वरना नारी सम्मान मैं तो लंका दहन और महाभारत करने की संस्कृति रही है हमारी हमारी