दहेज प्रथा का जब से भारतीय समाज में प्रचलन हुआ है, वह तभी से भारतीय नारी के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है। प्राचीनकाल में विवाह के अवसर पर कन्या के माता पिता वर-पक्ष को दहेज के रूप में गहने, कपड़े और दैनिक उपयोग की अनेक वस्तुएँ देते थे। कन्या की सखी - सहेलियाँ तथा परिवार के संबंधियों की ओर से भेंट स्वरूप दी जाने वाली वस्तुएँ भी दहेज में दिए जाने का प्रचलन था।
प्राचीनकाल में दहेज के लिए कोई जोर-जबरदस्ती नहीं थी। परंतु समय में परिवर्तन हुआ, उसी के अनुरूप दहेज के विवाह की अनिवार्य शर्त बन गया। गुणवती कन्याएँ भी दहेज की माँग पूरी न होने के कारण अविवाहित रहने लगीं। कन्याओं को परिवार पर बोझ समझा जाने लगा। इतना ही नहीं, कन्या उत्पन्न होने पर परिवार में उदासी छाने लगी। यहाँ तक कि देश के कई क्षेत्रों में कन्यावध का प्रचलन हो गया। अब तो दहेज की विभीषिका से बचने के लिए गर्भ में ही यह पता कर लिया जाने लगा कि उत्पन्न होने वाली संतान लड़का है या लड़की। लड़की होने की संभावना व्यक्त होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। इस प्रकार 'भ्रूण हत्या' की जाने लगी।
प्राचीनकाल में माता-पिता का प्रेम और प्रसन्नता का प्रतीक दहेज प्रथा आधुनिक काल तक आते-आते माता-पिता के साथ-साथ भारतीय नारी के लिए भी अभिशाप बन गया। नारी का मूल्यांकन दहेज पर किया जाने लगा। दहेज कम लाने के कारण पतिगृह में नारी को अनेक अपमानजनक स्थितियों से दो-चार होना पड़ रहा है। उन्हें अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक यातनाएँ दी जाने लगी हैं। इससे भारतीय नारी का जीवन नरक से भी गया - गुजरा हो गया है।
प्रायः प्रतिदिन समाचार पत्रों में दहेज के कारण किसी - न किसी महिला के जलने मरने का समाचार मिलता है।
आज समाज में नारी की श्रेष्ठता और गुणों की अपेक्षा उसके माता-पिता के धन से आंकी जाने लगी है। एक ओर तो भारतीय नारी शारीरिक रूप से वैसे ही निर्बल होती हैं, दूसरे भारतीय समाज में पति को परमेश्वर माना जाता है। यही कारण है कि पति उसे जैसे चाहे प्रताड़ित कर लेता है। भारतीय नारी बिना विरोध किए सब कुछ सहन करती जाती है।
भारतीय नारी की तथा समाज की दहेज जैसी नारी - विरोधी तथा समाज को कलंकित करने वाली कुप्रथा को जन आंदोलन चलाकर, उसके विकृत रूप को सभी के सामने प्रकट करना चाहिए। नारियों को चाहिए कि दहेज लोलुपों से विवाह करने से इन्कार करे। लड़कों की माता भी भारतीय नारी ही हैं। अतः उन्हें चाहिए कि अपने पुत्र के विवाह एक दहेज लेने और पुत्री के विवाह पर दहेज देने का तीव्र विरोध करें। दहेज से छुटकारा पाने के लिए भारतीय नारी को तथा सामाजिक मर्यादा के खोल से बाहर निकले। हमें यह आशा करनी होगी कि राजा राम - मोहन राय , ईश्वर चंद्र विद्या सागर जैसे समाज सुधारक आएँगे और दहेज प्रथा की समाप्ति में योग देंगे। हमें स्वयं आगे आना होगा। इस सामाजिक कोढ़ को समाप्त करने की शुरुआत स्वयं करनी होगी।
Monday, November 18, 2019
भारतीय नारी और दहेज
जीवन जीने की कला
विश्व में अन्य जीवधारियों की अपेक्षा मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन को अपनी मनोवृत्ति के अनुरूप ही व्याख्यायित करता है। सामान्यतः जीवन एक 'जय-यात्रा' है, जिसका शुभारंभ जन्म होने से और समाप्ति मृत्यु होने पर होती है। खाने और सोने का नाम जीवन न होकर सदैव प्रगति पथ पर बढ़ते रहने की लगन ही जीवन है। जीवन न तो भोग की वस्तु है और न ही किसी की स्थायी संपदा है। सच तो यह है कि प्रभु की कृपा से ही यह मानव देह केवल उपयोग के लिए ही प्राप्त हुई है। इसलिए व्यक्ति को प्रभु प्रदत्त मानव देह का सदुपयोग करते हुए अपने जवन को सार्थक करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
जीवन एक स्वप्निल संसार न होकर कार्य - युद्ध - क्षेत्र जैसा ही है। जीवन आदर्शवाद न होकर यथार्थ के अधिक निकट है। वह (जीवन) यथार्थ और आदर्श का समन्वित रूप है। यही समन्वित रूप ही मानव - जीवन के सुख की आधारशिला है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पल का अपना महत्व है। व्यक्ति की परिस्थितियों से ही उसकी स्थिति का निर्माण होता है। वास्तविक जीवन तो व्यक्ति के कर्तव्य पालन में ही होता है। अतीत के चिंतन को त्याग कर वर्तमान के प्रति सजग रहते हुए भविष्य को सुधारना और संवारना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा शास्त्र सम्मत वेदविहित और गुरू के आदेशों का पूर्ण निष्ठा और विश्वास के साथ आचरणों में लाने से ही संभव हो सकता है। इस प्रकार व्यक्ति को आत्म - प्रकाश के अनेक अवसर प्रतिदिन प्राप्त होंगे और इसी आत्म - प्रकाश के कारण ही वह (व्यक्ति) इहलोक और परलोक में भी महिमामंडित हो सकता है।
सभी व्यक्तियों में जीवित रहने की स्वाभाविक आकांक्षा होती है। इसके लिए वे सदैव प्रयासरत भी रहते हैं किंतु महत्वपूर्ण यह नहीं कि व्यक्ति कितनी लंबी जिंदगी जीता है। महत्वपूर्ण तो यह है कि वह अपने जीवन को किन-किन महान उद्देश्यों को अपना आदर्श मानते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचा है। जीवन की सार्थकता व्यक्ति के ऐसे ही आदर्शों और सिद्धान्तों के साथ ही बुद्धि और विवेक के समुचित उपयोग पर आधारित होती है। जीवन - यात्रा की सार्थकता का मूल्यांकन व्यक्ति के वर्ष, माह और दिनों के आधार पर किया जाता है। सौ वर्षों का निष्क्रिय, निरर्थक और उद्देश्यहीन जीवन की तुलना में बुद्धि, विवेक और अनुभव का पूर्ण मनोयोग से अपने सात्विक उद्देश्यों और श्रेष्ठ आदर्शों के प्रति सजग और तत्पर रहते हुए अल्पकालिक आयु वाला व्यक्ति अधिक सार्थक सिद्ध हो सकता है?
वस्तुतः जीवन जीने की एक कला है, जिसका आधार है व्यक्ति के श्रेष्ठ आदर्श, सात्विक उद्देश्य और कार्य पूर्ति के लिए निष्ठा से, परिपूर्ण उदात्त चिंतन। इन्हीं विशिष्टओं के आधार पर व्यक्ति अपने जीवन जीने की कला के रहस्य को सहजता से समझ सकता है।
मजदूर किसानों अब जागो
इस वसुधा का श्रेष्ठ तपस्वी
पुरुषार्थी- सच्चा - इन्सान।
निशिदिन कठिन तपस्या करता,
कहलाता मजदूर किसान।।
दिन में दिनकर ज्वाला बरसे,
चाहे हिमकर हिमपात करें।
या ऋतुराज धरा पर आकर
उनके श्रम पर राज करें।
अगणित रातों को जाग-जाग
जीवन सुख निद्रा, त्याग-त्याग।
हल-फल से मिट्टी फाड़-फाड़
नन्हें बीजों को गाड़-गाड़
निज श्रम का ध्वज फहराने हित
उस पर पाटा चलवाते हो।
श्रम सीकर से अभिसिंचित कर,
नव-जीवन उसमें लाते हो।।
शीत-शिशिर में ठिठुर-ठिठुर,
पानी से खेत पटाते हो।
कम्बल, लिहाफ, स्वेटर विहीन।
खेतों में निशा बिताते हो।।
मजदूर जो ठंडी रातों में,
अस्थियों को अस्त्र बनाते हैं।
हेमन्त शिशिर ऋतुओं से लड़
गेहूँ-सरसों उपजाते हैं।।
सोने सम सुन्दर दानों को,
हर महलों तक पहुँचाते हैं।
श्रम के फलदान के एवज में
बस तिरस्कार ही पाते हैं।
फिर जेठ दोपहरी में तप-तप,
गन्ने की फसल उगाते हैं।
अपने गुड़-शक्कर शीरा खा,
सबको चीनी भेजवाते हैं।
पश्चिम से आता गर्म पवन,
जब दीरघ दाध बढ़ाता है।
तब झुलस-झुल कर खेतों में
श्रम-तप का धर्म निभाता है।।
श्रम की गर्मी तन का सम्बल,
जाड़ों में बन जाता कम्बल।
श्रम-श्वेद तरल बन आता है
तपता तन, तर कर जाता है।।
पावस ऋतु में नित भीग-भीग
कम्पित हो लेव लगाते हो।
झुक-झुक घुटनों की टेक लिये,
कीचड़ में धान उगाते हो।
कुछ दिवस गये सारा कीचड़,
हरियाली में छिप जाता है।
श्रम तेरा छिपा हुआ उसमें
बाली -बनकर लहराता है।।
हे श्रम साधक, जग के दधिचि,
श्रम-सीकर खेतों में उलीचि।
जग को सर्वस्व समर्पित कर,
बन जाते मरु के मृग -मरीच।।
तन के मांसों का जला -जला,
खेतों में भस्म बनाते हो।
भस्मों में भस्माभूत हुये,
सूखा तन ले, घर आते हो।।
शस्य विकास, सुरक्षा हित,
ना दिवस-निशा तूने जाना।
बाढ़ अकाल बड़ विपदा से,
ना कभी हार तूने माना।।
अगणित दैवी विपदा झेले,
जल -जला, ज्वाला, जल से खेले
जब-जब भीषण विध्वंस हुआ,
उससे उन्नत उत्कर्ष हुआ।।
भू को भूकंप हिलाता है,
भीषण विध्वंस मचाता है।
तेरे अदम्य पौरुष समक्ष,
वह नतमस्तक हो जाता है।
संकट - विपदा जब -जब आयी,
बस क्षणिक क्लान्त ही कर पायीं
तेरे अनुपम धीरज समक्ष
विपदा ने सदा मात खायी।।
आवाहन
मजदूर किसानों अब जागो,
तू दानी हो कुछ मत मांगों।
हक कभी न मांगे जाते हैं,
भुजबल से छीने जाते हैं।।
पांडव मांगे थे पांच गाँव,
पा सके न कोई एक गाँव।
रण में जब अस्त्र धार आये,
आशा हक से ज्यादा पाये।
हो एक साथ यदि जग जाओ।
किंचित मन मंथन कर पाओ।
निज स्वाभिमान के रक्षाहित
हल लेकर हलधर बन जाओ।
तूँ सचमुच हो शेषावतार,
धरणी को धारण करते हो।
पर गुहतर भार लिये जग का
सब मौन भाव से सहते हो।।
अपने सहस्र फन को समेट,
बस एक बार फुफकार करो।
तू क्या हो किंचित स्मरण कर,
हे हलधर बस हुंकार भरो।
दिग्पालों तक हिल जायेंगे,
तेरे समक्ष झुक जायेंगे।
ऊँचे आसन पर बैठे सब,
काले कौवे उड़ जायेंगे।।
मतदान से जिन्हें बनाते हो,
ऊँचे आसन बैठाते हो।
जो सचमुच तेरे सेवक हैं,
उनके सेवक बन जाते हो।।
तन से श्रम-सीकर बहा-बहा
खुशियों के दीप जलाते हो।
जग को खुशियों से जग-मग कर
खुद धन - तम में सो जाते हो।।
तू दीन-बन्धु मन के महेश,
तू विध्न विनाशक हो गणेश।
निज श्रम ताप से कल्याण करो।
दीनों दुखियों की भूख हरो।।
तू सच्चे -सन्त पुजारी हो,
हर आदर के अधिकारी हो।
क्यों उपेक्षित रह जाते हो।
रह मौन सभी सह जाते हो।।
‘‘याद्दाश्त के धनी व्यक्ति’’
दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जो अपनी विचित्र व आश्चर्यजनक प्रतिभा के बल पर संसार को आश्चर्यचकित करते रहें। याद्दाश्त के धनी ऐसे लोग ही हैं जिसकी विलक्षण प्रतिभा का दुनिया ने लोहा माना है जिनकी बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका।
1. इजिप्ट के बादशाह नासर के पास 20 हजार गुलाम थे बादशाह को सभी गुलामों के नाम, जन्म, स्थान, जाति, आयु और पकड़े जाने की तारीख सब कुछ जुबानी याद थी।
2. बंगलौर के महादेवन ने 899 अंको की संख्या को दो घंटे 0 मिनट में हल कर दिया।
3. डेनमार्क के एक बैंक क्लर्क ने लगभग 3 हजार जमाकर्ताओं के बहीखाते जल जाने के बाद जबानी ही उनके नाम, स्थान, धनराशि का हिसाब सही-सही बता दिया।
4. शतरंज का जादूगर अमरीकी खिलाड़ी हैरानैल्सन एक साथ बीस शतरंज के खिलाड़ियों की चालें याद रखता था।
5. राष्ट्रपति रुजवेल्ट के सेक्रेटरी जेसए फिरली को 20 हजार महत्वपूर्ण लोगों के नाम पते, पद जुबानी याद थे।
6. राजा भोज के दरबारी श्रुतिधर में यह गुण थे कि वह 45 मिनट तक सुने हुए प्रसंग को पुनः ज्यों का त्यों शब्दशः सुना सकते थे।
7. दक्षिण अफ्रीका के फील्ड मार्शल स्मट्स के पुस्तकालय में अत्यंत उच्चकोटि की दस हजार पुस्तकें थीं। सभी पुस्तकों की एक -एक पंक्तिया उनको याद थी।