Sunday, November 17, 2019

‘‘जान बची तो लाखो पाए’’

1.  वैसे तो मैं बहुत गरीब इन्सान हूँ
 मगर बाईं आँख से परेशान हूँ
 अपने आप चलती है।
2. लोग समझते हैं कि चलाई गई है
 एक बार क्लास में
 एक लड़की बैठी थी पास में।
3. नाम था सुरेखा उसने हमें देखा
 और मेरी बाईं आँख चल गयी
 लड़की हाय-हाय करके क्लासें निकल गई।
4. थोड़ी देर बाद हमें है याद
 प्रिंसिपल ने हमें बुलाया, लम्बा चैड़ा लेक्चर सुनाया
 हमने कहा हमसे भूल हो गई।
5. तो बोले ऐसा भी होता है भूल में,
 शर्म नहीं आँख चलाते हो स्कूल में।
 इससे पहले कि हम हकीकत बयान करते।
6. फिर चल गयी, प्रिंसिपल को खल गई।
 हुआ यह परिणाम
 स्कूल से कट गया नाम।
7. मुश्किल थी तमाम
 मिला एक काम
 तो इन्टरव्यू में खड़े थे।
8. एक लड़की थी आगे खड़ी, उसकी नजर हम पर पड़ी
 और मेरी बाईं आँख चल गई,
 लड़की उछल गयी।
9. दूसरे उम्मीदवार चैंके 
 लड़की का पक्ष लेकर भौंके,
 फिर क्या था मार-मार कर जूते चप्पल तोड़ दिया।
10. हम सिर पर पाँव रखकर भागे
 लोग पीछे हम आगे
 घबराहट में घुस गये एक घर में,
11. भयंकर पीड़ा हो रही थी सर में।
 बुरी तरह हाँफ रहे थे
 हाथ पैर -काँप रहे थे।
12. तभी पूछा घरवाली ने कौन?
 हम खड़े रहे मौन,
 वो फिर से पूछी कौन,
13. वह बोली, बतलाते हो या किसी को बुलाऊँ
 और इससे पहले कि जबान हिलाऊँ
 फिर चल गई वो मारे गुस्से के जल गई।
14. बुरी तरह से चीखी,
 साक्षात दुर्गा सी दिखी,
 बात ही बात में लोग हो गये इकट्ठा,
15. मच गया हंगामा 
 चड्ढी बना दिया पैजामा
 बनियान बन गया कुर्ता और हमें बना दिया भुर्ता।
16. हम चीखते रहे और मारने वाले हमें पीटते रहे
 भगवान जाने गुस्सा कब तक निकालते रहे।
 और जब हमें आया होश।
17. तो देखा अस्पताल में पड़े थे
 डाॅ. और नर्स घेर कर खड़े थे।
 नर्स बोली दर्द कहाँ है हमने कहा बतलाते है,
 इससे पहले की हम जबान हिलाते
 फिर मेरी बाईं आँख चल गयी
 नर्स कुछ न बोली पर डाॅ. को खल गई।
18. बोले इतने सीरियस हो फिर भी ऐसी हरकत करते हो इस हाल में,
 शर्म नहीं आती मुहब्बत करते हो अस्पताल में।
19. डाॅ. और नर्स के जाते ही आया एक वार्ड व्बाय 
 बोला भाग जाओ चुपचाप, नहीं तो जानते हो आप 
 अगर बात बढ़ गई और डाॅ. को खल गई।
20. तो मेरा क्या बिगड़वा देगा?
 मरा हुआ कहकर जिन्दा गड़वा देगा
 अब तो विकल्प एक, जिन्दगी रहे चाहे जाए।
21. हम यह कह झटके से निकले
 ''जान बची तो लाखों पाए।।''


आधुनिक शिक्षा प्रणाली 

हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी अजीब है। सभी को एक ही साँचे में ढालती चली जाती हैं। सभी के दिमाग का स्तर, सोचने समझने, विचारने एवं स्मरण करने की शक्ति में विभिन्नताएँ है परन्तु किसी एक विषय - वस्तु को लेकर हमारे व्यक्तित्व एवं बौद्धिक स्तर का आकलन करना उचित नहीं। वर्तमान में उच्च से उच्च अंक प्राप्ति ही विद्यार्थियों का एक मात्र लक्ष्य रह गया है। अब कुछ विद्यालय इस तरह के खुलने लगे हैं जिसमें वैज्ञानिक, तकनीकी, वाणिज्य आदि की शिक्षा दी जाने लगी है। ये विद्यालय भी दो प्रकार के होते हैं एक जिससे परीक्षा लेने के पश्चात दाखिला होता है और दूसरे जिनमें एक लम्बी रकम लेकर दाखिल होना है।
जिन्दगी में सफल होने के लिए कुछ गुणों की आवश्यकता होती है। यह न तो परिस्थितियों को समझने की सूझ-बूझ देती है और न उनसे संघर्ष करने की शक्ति/सत्य यह है कि जब पढ़ाई समाप्त हो जाती है तब जिन्दगी को असली पढ़ाई ठोकरे खा-खाकर आदमी सीखता है और वह ही सच्ची पढ़ाई होती है।
शिक्षा तो वह होती है जिसका एक - दो वाक्य भी यदि कान में पड़ जाए और मनुष्य उसे जीवन में ग्रहण कर ले तो उसका यह जीवन ही सफल न हो जाए बल्कि संसार-सागर से भी उद्धार हो जाए। 


संगीत एवं स्वर  

संगीत   -  स्वर
  सा  -  समझ
  रे  -  रिआज
  गा  -  ज्ञान, गुण
  म  -  माया
  प  -  परमेश्वर
  ध  -  ध्यान
  नि.  -  निर्गुण, निराकार
  सा  -  साज
संगीत के ये स्वर मात्र संगीत तक सीमित न होकर वरन् सम्पूर्ण सृष्टि एवं जीवन को अपने इन स्वरों में समाहित किए हुए हैं। प्रकृति के हर रूप में मानों यही स्वर गूँज रहे हो, चाहें वह वर्षा की पहली बूँद का धरा से मिलन हो, चाहे उगते हुए सूर्य की पहली किरण हो या ढलते हुए सांझ की लुप्त होती प्रभा। प्रकाशित होते चांद की चंद्रिका या फिर बदली में छिपते हुए से सितारों की आभा, खिलती हुई कलियों को माधुर्य हो या सागर से मिलती निर्झर सी जल-धारा। प्रकृति के हर रूप में बस यही संगीत-स्वर। इस सृष्टि के रचनाकार श्री ब्रह्मा जिनके साथ वीणावादिनी माँ सरस्वती विद्मान है जिनकी वीणा से उद्ीण्त ये स्वर जिसने जीवन में रस भर दिया। 
संगीत के प्रारम्भिक स्वर की अपनी ही परिभाषा है इन्हें यही सूक्ष्म तथा गहराई के साथ विचारा जाए तो जिस प्रकार मनुष्य जीवन में किसी भी विषय वस्तु को पाने की अभिलाषा रखता है, जिज्ञासा पनपती है जिससे उसमें सं. समझ होती है जब किसी विषय - वस्तु की समझ होगी तभी वह इंसान ''र'' से रिआज अभ्यास करें गा और गा गुण या ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हो सकेगा। अधिक ज्ञान से माया रूपी दानव मानव के मस्तिष्क को अपने में जकड़ लेती है। मायावी माया से मुक्ति पाने का एकमात्र मार्ग प - परमेश्वर, परमात्मा की ओर उन्मुख करता है जो मात्र ध्यान - योग के करने मात्र से मिल सकते हैं। ध्यान का निरंतर अभ्यास करते हुए ही हमें ईश्वर के निर्गुण निराकार रूप का ज्ञान प्राप्त होगा।
अतः संगीत एवं जीवन जीने की कला में काफी समानताएं हैं।


कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक अपराध

  ''जन्म दिया समाज को जिसने, 
   कोई सम्मान नहीं इस तल पे।
बन गई वह भी अछूती,
   पैदा हुई जो लड़की बनके।।''
यह बहुधा कहा गया है कि जीवन के युद्ध में जिसको कि मनुष्य परिस्थितियों के विरुद्ध लड़ता है, नारी की भूमिका द्वितीय पंक्ति की रहती है, यह बात निश्चित ही महत्वपूर्ण है किन्तु आज हम पुरुष और नारी में कोई भेद नहीं करते हैं। जहां तक दोनों की क्षमता का प्रश्न है, यह सिद्ध हो चुका है कि नारी की क्षमताओं का कुल योग पुरुष की क्षमताओं के कुल योग से कम नहीं, किन्तु हम देखते हैं कि हमारे समाज में नारी की स्थिति वह नहीं है जो होनी चाहिए। 
वही महज पुत्र की चाहत में कन्या भू्रणों की गर्भ में हत्या होने लगी है। परिवार में बच्ची का जन्म एक निराशा का अवसर होता है जबकि लड़के का जन्म आनंद और उत्सव मनाने का 1 सामाजिक जीवन का रथ एक पहिए से नहीं चल सकता, किन्तु फिर भी न जाने क्यों दूसरे पहिए के महत्व की पहचान कम है।
सामाजिक प्रभाव -
कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसी समस्या बन चुकी है जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। कन्या भ्रूण हत्या पर प्रशासन अंकुश लगाने में नाकाम है। स्त्री - पुरुष का आनुपातिक संतुलन बिगड़ रहा है। आंकड़ो पर यदि निगाह डाली जाए तो एक हजार पुरुष में 898 महिलाएँ हैं। कन्या भ्रूण हत्या में अनपढ़ - गंवार नहीं बल्कि उच्च शिक्षित अभिजात्य वर्ग के लोग अधिक शामिल हैं। अब पढ़े - लिखे सम्पन्न परिवारों में भी बालिका अवांछित मानी जाती है। आखिर कब थमेगी कन्या भ्रूण हत्या? कैसे बदलेगा सामाजिक चिंतन?
प्रस्तुत समस्या का कारण-
यदि हम कारण की तरफ मुख करेंगे तो इसका मुख्य कारण अपनी संस्कृति में ही पाऐंगे। दहेज देने की प्रथा। माता-पिता जन्म से ही कन्या को एक ऋण की तरह देखते हैं इसलिए उसकी असमय मृत्यु में ही वह अपनी भलाई समझते हैं।
''स्वप्न सजाए थे कैसे माँ ने,
चूर हो गये एहसास उसी के। 
ठोकर मारा उसके अंग को,
जो देखा लड़की समाज ने।''
विज्ञान का दुरुपयोग- 
कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने में अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों का काफी योगदान है। हालांकि अल्ट्रासाउण्ड केन्द्रों पर लिंग परीक्षण नहीं किया जाता है, लेकिन पर्दे के पीछे का खेल जग जाहिर है। यह बातें महज कागजों में हैं। कन्या भू्रण हत्या को एक पैसा कमाने का जरिया माना जाता है और इसके अलावा कुछ नहीं।
समाधान-
कन्या भू्रण हत्या करने या कराने वालों का सामाजिक बहिष्कार हो।
लिंग परीक्षण करने वाले केन्द्रों संचालकों, चिकित्सकों को चिन्हित-दण्डित किया जाए।
दहेज जैसी कुप्रथा को खत्म किया जाए।
महिलाओं को जागरूक करने के लिए विशेष जन- जागरण अभियान चलाया जाए।
प्रचार माध्यम के जरिये लड़की-लड़का में भेद की भावना खत्म किया जाए।
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक अपराध के अलावा धार्मिक - पौराणिक दृष्टि से भी घृणित कार्य है। समाज को इस तथ्य से अवगत कराया जाए।
महिला की सहमति के बगैर कन्या भ्रूण हत्या सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को विशेष भूमिका निभानी होगी।
उपसंहार-
अब भी बहुत देर नहीं हुई है। आइए हम नारी को वह स्थिति प्रदान करें जिसकी वह अधिकारिणी है। अब लड़कियाँ वायुयान उड़ा रही हैं। अंतरिक्ष में पहुँच चुकी हैं। इसके बावजूद कन्या भू्रण हत्या समझ से परे है। समस्या जड़ मूल से खत्म करने के लिए लोगों को सामाजिक चिंतन में परिवर्तन करना होगा तभी कन्या जन्मदर में गिरावट थमेंगी।