Friday, November 15, 2019

समाजकी भलाई पर केंद्रित विषय चुनें पीएचडी शोधार्थी

 


उमाशंकर मिश्र


 


नई दिल्ली, 14 नवबंर (इंडिया साइंस वायर) : विज्ञान के पास देश की हर अनसुलझी समस्या का समाधान है। लेकिन अर्थपूर्ण वैज्ञानिक शोध के लिए जरूरी है कि पीएचडी विषय का चयन करते समय उसमें निहित समाज की भलाई और कुछ नया करने की संभावना का ध्यान रखा जाए। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने ये बातें बुधवार को वैज्ञानिक और नवीकृत अनुसंधान अकादमी (एसीआईआर) के उत्कृष्ट पीएचडी शोध प्रबंध पुरस्कार और पदारोहण समारोह के दौरान कही हैं।


 


एसीआईआर राष्ट्रीय महत्व कीएक मेटा-यूनिवर्सिटी है, जिसके अध्ययन केंद्र भारत के 23 शहरों में फैली वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की 37 प्रयोगशालाओं और छह इकाइयों में स्थित हैं। इस संस्थान का उद्देश्य भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नवीन पाठ्यक्रम, बेहतर शिक्षण-प्रशिक्षण और मूल्यांकन के जरिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नेतृत्व क्षमता का विकासकरना है।


नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर मुख्यालय में आयोजित समारोह में दस विज्ञान शोधार्थियों को उत्कृष्ट शोध प्रबंध के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया है। इसके साथ ही, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान देने वाले छह अन्य लोगों को भी अकादमी प्रोफेसर की उपाधि से नवाजा गया है।


बायोलॉजिकल साइंस विषय के पीएचडी शोधार्थी भारतीय रासायनकि जीवविज्ञान संस्थान, कोलकाता के सास्वात महापात्रा, जीनोमिक्स और एकीकृत जीवविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के मयूरेश अनंत सारंगधर और केन्द्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान, भावनगर के कौमील एस. चोकशी को इस मौके पर पुरस्कृत किया गया है।


केमिकल साइंसेज में पुरस्कृत पीएचडी शोधार्थियों में राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला, पुणे की विनीता सोनी, केंद्रीय विद्युतरसायन संस्थान, करईकुडी  के सरवाणन केआर और राष्ट्रीय अंतर्विषयी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम के सम्राट घोष शामिल थे। राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली की विजेता सिंह और केंद्रीय विद्युतरसायन संस्थान, करईकुडी  के बालाकुमार के. को फिजिकल साइंसेज में उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए पुरस्कार दिया गया है। इंजीनियरिंग साइंसेज में संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केंद्र, चेन्नई के प्रवीण जे. और राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला की शोधार्थी इंदु एलिजाबेथ को यह पुरस्कार मिला है।


जिन लोगों को अकादमी प्रोफेसर की उपाधि प्रदान की गई है, उनमें सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर गिरीश साहनी, मौलिक एवं प्रयोगात्मक रक्षा अनुसंधान में योगदान देने वाले इंजीनियर विजय कुमार सारस्वत, प्रसिद्ध अंतर्विषयी शोध वैज्ञानिक प्रोफेसर सुरेश भार्गव, जमीनी नवाचारों के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले प्रोफेसर अनिल गुप्ता, शिक्षाविद एवं प्रसिद्ध इलेक्ट्रॉनिक तथा कंप्यूटर इंजीनियर प्रोफेसर कृष्ण किशोर अग्रवाल और सूचना तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एन.आर. नारायण मूर्ति शामिल थे।


डॉ हर्ष वर्धन ने कहा कि “सीएसआईआर ने कई ऐतिहासिक काम किए हैं और दुनिया के 1200  संस्थानों में यह दसवें स्थान पर है। प्लास्टिक से डीजल और बायोमास से एथेनॉल बनाने में भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान से सब संभव है।लेकिन अब इस यात्रा को शीर्ष पर ले जाने की जरूरत है। इसके लिए हमें हर स्तर पर मेहनत और लगन से काम करना होगा।अगर शोध प्रबंध लिखने वाले शोधार्थी छोटे-छोटे विषयों पर काम करें तो देश की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है।”(इंडिया साइंस वायर)


 


 


स्मॉग से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने बनाया नया स्प्रेयर


र्दियों की दस्तक के साथ दिल्ली और आसपास के इलाके एक बार फिर स्मॉग की चपेट में हैं। चंडीगढ़ स्थित केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संस्थान (सीएसआईओ) के वैज्ञानिकों ने एक वाटर स्प्रेयर विकसित किया है, जो स्मॉग को कम करने में कारगर हो सकता है।



यह स्प्रेयर स्थिरवैद्युतिक रूप से आवेशित (इलेक्ट्रोस्टैटिक-चार्ज) कणों के सिद्धांत पर काम करता है। वाटर स्प्रेयर में स्थिरवैद्युतिक रूप से आवेशित पानी के कण पीएम-10 और पीएम-2.5 को नीचे धकेल देते हैं, जिससे स्मॉग का शमन किया जा सकता है। स्प्रेयर से एक समान पानी के कण निकलते हैं जो हवा में मौजूद सूक्ष्म धूल कणों के लगभग समान अनुपात में होते हैं।


हवा में सूक्ष्म कणों के आपस में टकराने, सूर्य की किरणों और ब्रह्मांडीय विकिरणों आदि के कारण आवेश पैदा होता है। जब छिड़काव की गई बूंदों पर ऋणात्मक चार्ज डाला जाता है, तो वे धनात्मक सूक्ष्म कणों की ओर आकर्षित होती हैं। इसी तरह, धनात्मक रूप से चार्ज सूक्ष्म कणों पर ऋणात्मक चार्ज युक्त पानी की बूंदों की बौछार करने पर वे एक दूसरे की आकर्षित होते हैं। इस कारण पानी की बूंदें और हवा में मौजूद कणों के संपर्क में आती हैं और सूक्ष्म कण भारी होकर धरातल पर बैठने लगते हैं।


शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि इस स्प्रेयर से निकलने वाली पानी की बूंदें अत्यंत छोटी होने के कारण उन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम होता है और वे देर तक हवा में ठहर सकती हैं। हवा में अधिक समय तक रहने के कारण पानी की बूंदों का संपर्क हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से बढ़ जाता है और वे भारी होकर जमीन की ओर आने लगते हैं।


इस स्प्रेयर को विकसित करने वाले प्रमुख शोधकर्ता डॉ मनोज पटेल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस स्प्रेयर में करीब 10 से 15 माइक्रोन के पानी के कण हवा में मौजूद पीएम-10 और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से टकराते हैं और उन्हें नीचे धकेल देते हैं। हवा में मौजूद ऋणात्मक रूप से आवेशित सूक्ष्म कण होने पर स्प्रेयर से भी ऋणात्मक आवेशित कण निकलते हैं। ऐसे में, स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के कण हवा में उपस्थित सूक्ष्म कणों को स्थिर करने में मदद करते हैं।”




पानी की बौछार करते हुए स्प्रेयर


" प्रदूषित हवा के कारण श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म धूल कण उद्योगों में मशीनों के संचालन में भी बाधा पैदा करते हैं। इसीलिए, इन कणों का शमन बेहद जरूरी होता है। "

वाटर टैंक और छिद्र युक्त कैनन इस उपकरण के दो प्रमुख अंग हैं, जो एक-दूसरे से आपस में जुड़े रहते हैं। आमतौर पर उपयोग होने वाले स्प्रेयर में भी टैंकर होता है। पर, गैर-आवेशित कण होने के कारण उन उपकरणों में पानी की बर्बादी अत्यधिक होती है। इस स्प्रेयर से निकलने वाले पानी के सूक्ष्म कणों के कारण पानी की बर्बादी को भी कम किया जा सकता है।


सीएसआईओ के निदेशक प्रोफेसर आर.के. सिन्हा ने बताया कि “हवा में तैरते धूल कणों को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, पानी की बड़ी बूंदों के कारण वातावरण में सूक्ष्म कणों से पानी का संपर्क नहीं होने से वे हवा में बने रहते हैं। यह तकनीक कृत्रिम वर्षा की बौछारें उत्पन्न करके हवा में मौजूद धूल कणों के शमन में मददगार हो सकती है। इसका उपयोग अपने आसपास के क्षेत्र में मौजूद धूल कणों के शमन के साथ-साथ ड्रोन की मदद से बड़े पैमाने पर भी हवा में मौजूद कणों के शमन के लिए किया जा सकता है।”


धुएं के कारण उपजे वायु प्रदूषण और कोहरे के मिश्रित रूप को स्मॉग कहते हैं। स्मॉग के कारण हवा में पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे सूक्ष्म कण लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।


डॉ मनोज पटेल ने बताया कि “प्रदूषित हवा के कारण श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म धूल कण उद्योगों में मशीनों के संचालन में भी बाधा पैदा करते हैं। इसीलिए, इन कणों का शमन बेहद जरूरी होता है।”


यह मशीन आरंभ में कीटनाशकों के नियंत्रित रूप से छिड़काव के लिए विकसित की गई थी। स्मॉग से निपटने के लिए इसमें बदलाव करके इसे नए रूप में पेश किया गया है। परीक्षण के दौरान स्मॉग नियंत्रण में इस मशीन को प्रभावी पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जल्दी ही इस तकनीक को उद्योगों को हस्तांरित किया जा सकता है।
इंडिया साइंस वायर





  •  



Monday, November 11, 2019

पाकिस्तान का नया फार्मूला अब महात्मा के वेश में घूमेंगे पाकिस्तानी एजेंट


इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आध्यात्मिक गुरु या बाबा के रूप में संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए सैनिकों या उनके परिवारों को लुभाने के लिए पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव्स (पीआईओ) द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यह नवीनतम विधि है। एक आंतरिक दस्तावेज में सेना ने अपने कर्मियों को इस जासूसी तकनीक में न फंसने की चेतावनी जारी की है।
भारतीय सेना ने अपने सैनिकों को नकली बाबाओं और आध्यात्मिक गुरुओं से सावधान रहने की चेतावनी जारी की है। सेना ने कहा है कि ये पाकिस्तानी खुफिया एजेंट हो सकते हैं, जो उन्हें फंसाने और गोपनीय जानकारी हासिल करने की कोशिश कर सकते हैं।


सैन्य अधिकारियों के अनुसार पाकिस्तानी खुफिया एजेंट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि यूट्यूब, व्हाट्सएप और स्काइप का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि सेवारत सैनिकों को निशाना बनाया जा सके। सेना ने लगभग 150 सोशल मीडिया प्रोफाइल की पहचान की है, जिन पर पाकिस्तानी एजेंट होने का संदेह है।


ये सभी एजेंट संवेदनशील जानकारी एकत्र करने के लिए सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके आश्रितों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ सोशल मीडिया प्रोफाइल जाली तरीके से महिलाओं के नाम पर बनाई गई है, पाकिस्तानी इससे सैनिकों को हनीट्रैप में फंसाने की कोशिश कर सकते हैं। 


सर्वोच्च न्याय का सर्वोच्च न्यायालय


आखिरकार! सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सबसे ऐतिहासिक, मौलिक, महत्वपूर्ण, बड़े और प्राचीन अयोध्या विवाद का सर्वोच्च न्याय कर दिया। जो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास और आमजन के मानस पटल में युगे-युगिन स्वर्ण अक्षरों में अमिट रहेगा। दिव्य न्याय में किसी की हार है ना जीत, फैसला है समुचित और सुरक्षित। या कहें ना हिंदू का, ना मुस्लमान का, ये फैसला है हिंदुस्तान का। जीता तो कानून जीता, न्याय  व्यवस्था जीती, संविधान जीता, इंसानियत जीती, देश जीता और हारा कोई भी नही। यही है सच्चा हिंदुस्तान। स्त्तुय देश ने इसे दिल से लगाया। चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष सभी ने इंसाफ का मन से सम्मान किया। बेहतर शीर्ष अदालत ने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को रेखांकित करते हुए वतन की गंगा-जमुना तहजीब को और अधिक प्रगाढ़ किया है। जिसके के लिए देश का संविधान सदा वंदनीय और न्याय का मंदिर प्रार्थनीय रहेगा।


प्रत्युत, सरजमीं में अनादिकाल से प्रचलित पंच-परमेश्वर की न्याय पंरपरा को आगे बढ़ाते हुए उच्चतम न्यायालय के पंच न्यायमूर्तियों ने पंचनिष्ठा से अपने सर्व सम्मत फैसले में अयोध्या की विवादित ढांचे वाली 2.77 एकड़ जमीन राम लला विराजमान को देकर सरकार को मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाने और मस्जिद के वास्ते पांच एकड़ जमीन उपयुक्त स्थान पर देने कहा। अदालत ने माना की सबूत है कि बाहरी स्थान पर हिन्दुओं का कब्जा था नाकि मुस्लिम का। लेकिन मुस्लिम अंदरूनी भाग में नमाज़ भी करते रहे। जबकि यात्रियों के विवरण से पता चलता है कि हिन्दू यहां पूजा करते थे। 1857 में रेलिंग लगने के बाद सुन्नी बोर्ड यह नहीं बता सका कि ये मस्जिद समर्पित थी। 16 दिसंबर 1949 को आखिरी नमाज की गई। विवरण को सावधानी से देखने की जरूरत है। वहीं गजट ने इसके सबूतों  की पुष्टि की है। अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट बोला की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष आया था कि यहां मंदिर था, इसके होने के सबूत हैं। भगवान राम का जन्म गुंबद के नीचे हुए था। प्रस्तुत, ऐतिहासिक तथ्य, प्रतिक, चिन्ह, और तर्क में प्रमाण मिले।


वस्तुत: श्री रामजन्मभूमि के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह मत देश की जनभावना, विश्वास, आस्था एवं श्रद्धा से ऊपर न्यायप्रिय है। ना राम भक्ति, ना रहीम भक्ति बल्कि देश भक्ति से परिपूर्ण है। सालों तक चली लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह विधिसम्मत अंतिम निर्णय हुआ है। जिसकी बांट सभी देशवासी लंबे से जो हो रहे थे। जो अब जाकर मुकम्मल हुआ। दौरान, श्री रामजन्मभूमि से संबंधित सभी पहलुओं का बारीकी से विचार हुआ है। पक्षों के अपने-अपने दृष्टिकोण से रखे तर्कों का मूल्यांकन हुआ। मसले के समापन की दिशा में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप परस्पर विवाद को समाप्त करने वाली पहल सरकार की ओर से अब जल्द होगी, ऐसा  विश्वास रखना होगा। अतीत की सभी बातों को भुलाकर हम सभी श्री रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण में साथ मिल-जुल कर हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए। अलावे नव मस्जिद के निर्माण में समर्पण भाव से सहयोग। कवायद हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई आपस में है भाई-भाई का बोध अनेकता में एकता भारत की विशेषता और अधिक परिलक्षित करेगा।


काबिले गौर, फैसले की खासियत यह रही कि सभी ने इसका इस्तकबाल छद्म-धर्मर्निपेक्ष को तोड़ते हुए किया है। एक पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी सर्वोच्च अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए आगे चुनौती नहीं देने की मंशा जाहिर की। और तो और दूसरे पक्ष ने भी रामादर्शों के मुताबिक इसका शालीनता, मर्यादित और सहिष्णुता से सजदा किया। इससे बढ़कर और क्या मिसाल इस देश में पेश की जा सकती है। जहां हर वर्ग खुले मन से अपने न्याय के मंदिर के आदेश को सर आंखों पर ले रहा है। येही सही अर्थों में अंखड हिंदुस्तान की पहचान है। ऐसा तो वाकई में भारत में ही मुकम्मल हो सकता है जहां शांति, अमन चैन, सौहार्द और सद्भाव के वास्ते सब सर्वस्व निछावर करने तैयार रहते हैं। जिससे आज सारे जग में हिंदुस्तान का माथा और गर्व से ऊंचा हो गया। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय, देश की 130 करोड़ जनता, कानून व्यवस्था, सरकार और जुड़े हुए एक-एक परिश्रमियों का जितना भी शुक्रिया अदा किया जाए उतना ही कम होगा। बदौलत ही देश में राम-रहीम-रमजान और दीप-अली-बजरंगली साथ दिखाई पड़ते है। सत्यमेव जयते!