Monday, November 11, 2019

क्यों कायस्थ 24 घंटे के लिए नही करते कलम का उपयोग

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी  थी कलम !!उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था |



 परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं  यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ  है ?
कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग  दीपावली के दिन पूजन के  बाद कलम रख देते है और फिर  यमदुतिया के दिन  कलम- दवात  के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I


इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है ?
ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीढ़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I


कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने  गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की  व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I


ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान  चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I


सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I 
#तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर **
( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) 
में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद  भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: *कलम दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और *#यमदुतिया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है


कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से  दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है I


Thursday, October 31, 2019

कठिन उपासना

आया पर्व उपासना का
साफ होते घाट
डाला दौड़ा सज रहे
माताएँ करे उपवास।।
आरोग निरोग मन्नतें का
डूबते उगते सूर्य का
गंगा के तटपर देखो
दूध से हो रहा अभिषेक।।
बज रही है हर तरफ 
छठी मैया की गीत
वातावरण में फैला
मीठे मीठे संगीत।।
आस्था की बाढ सी आयी
जिसे देखो वो छठी मैया के गुण गायी
चार दिनो की उपासना करते है लोग
गंगा में डूबकी लगा पवित्र होते हैं लोग।
पटना का छठ है मनोरम
फैलाता जन मानस को संदेश
स्वच्छता पवित्रता का यह पर्व
आपसी भाईचारे का देता संदेश
आओ सब मिलकर बनायें और विशेष।।


                                आशुतोष


लोक संस्कृति से मिलता है संस्कार

छात्रों में गजब की संघर्ष करनेएपरिस्थति से लड़ने के साथ.साथ अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए जुझारूपन होता है। विशेषर ग्रामीण छात्रों मेंए इनका संघर्ष प्रायः बचपन से ही शूरू हो जाता है।बस निखारने के लिए थोडी देख रेख की जरूरत होती है। गाँव की लोक संस्कृति से इनका लगाव शूरू से होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखते गाँव में ये पलते है बचपन में स्कूल और कोचिंग के साथ घर और खेतो में काम मवेशियों की देखभाल और पढाई करना तो पडता ही है साथ ही गरीबी से जूझना भी पडता है न मन पसंद कपडे होते और न खाने की मनपसंद चीजेंए दिक्कतों से नित रू.ब. रू होकर जैसे तैसे मैट्रिक तो गाँव में पास कर लेते हैं फिर शहरो में एडमिशन और खाने की भी गंभीर संकट से गुजरना होता हैए पर इतनी छोटी उम्र में भी इनकी परिपक्वता देखते ही बनती है।जो इन्हें लोक नाटको और पौराणिक कहानियो के जरिये बचपन में मिलता है।वही इनकी स्टेमिना को बरकरार रखता है।साथ ही साथ हमारे पर्व त्योहारो पर उनकी आस्था और  बीतते वक्त के साथ प्रगाढ होता जाता है जो कही न कही उन्हें आत्मबल और लोगो से जोडता जाता है साथ ही साथ उनका संस्कार भी अच्छा हो जाता है।समाजिक गतिविधियों का ज्ञान जितना बढेगा संस्कार उतने ही निखरेंगे और सफलता मिलेगी।
पिताजी किसी तरह कर्ज लेकर या खेतो को गिरवी रखकर पढाई कराते है । विद्यार्थी भी चित से पढता है पर मन तो शहर की रंग विरंगी दुनिया देखकर हर कदम पर खर्च करना चाहता है।दोस्तो के आगे कई बार लज्जित होना पडता है। शहर की चाटूकारिता से अनभिज्ञ गाँव का लड़का मन मसोस मसोस कर फिर कभी के लिए टाल जाता है।दरअसल सीमित पैसे जो उसके पढाई के लिए दिए जाते उसकी जिम्मेदारी को निभाकर वो सिर्फ अपनी मंजिल की ओर देखता रहता है। कभी भूलचूक से कुछ खर्च हो भी जाता है तो वह अफसोस करता है। अपने पिता के परिश्रम के लिए सोचता भी है।शहर के माहौल में धीरे धीरे वह गति पकडता है।बोलचाल भाषा को लेकर भी दिकक्ते आती है जिसके कारण लज्जित होकर नित सीखना पड़ता है। इसी तरह कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभवो के साथ काँलेज की पढाई पूरी होती है।
               दर असल शुरू से गाँव के परिवेश में रहकर शहर आये लड़को को कई दैनिक परेशानियों से गुजरना होता है जिसमें भोजन कपडे बुक फीस कई ऐसी चीजे है जिसकी परेशानी से लड़कर वह परिपक्वता हासिल करता है उसमें परिस्थिति से लड़ने और समयानुकूल कार्य करने की आदत बन जाती है जो उसके सफलता का मार्ग बनाता है जब वह हाईयर एजुकेशन प्राप्त कर लेता है तो एक परिपक्व मानसिकता के साथ बडा से बडा कम्पीटीशन फेश कर अव्वल दर्जे से पास करता है।यही कारण है कि शहर  के लडकेध्लडकियों के मुकाबले गाँव की सफलता दर ज्यादा है वैसे भी गाँव ने ही अव्वल दर्जे के सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधिकारीए सेना के अधिकारी जवान देश को दिए है जो निरंतर जारी है।इनमें देशभक्ति का जज्वा कूटकूट कर भरा होता है।इसलिए तो कहा गया है ग्रामीण लोक संस्कृति और उसका ज्ञान ही हमारी पूँजी है। 


Wednesday, October 30, 2019

लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर और वोटर को इज्जत सिर्फ ढकोसला

पॉलिटिकल साइंस के सेमिनार में एक विद्यार्थी का बयान था कि मेरा तो यक़ीन लोकतंत्र पर से सन 1996 में ही उठ गया था..
कहने लगा कि ये उन दिनों की बात है जब एक शनिवार को मैं मेरे बाक़ी तीनों बहन भाई, मम्मी पापा के साथ मिलकर रात का खाना खा रहे थे ।
पापा ने पूछा:- कल तुम्हारे चाचा के घर चलें या मामा के घर?
हम सब भाइयों बहनों ने मिलकर बहुत शोर मचा कर चाचा के घर जाने को कहा, सिवाय मम्मी के जिनकी राय थी कि मामा के घर जाया जाए।
बात बहुमत की मांग की थी और अधिक मत चाचा के खेमे में पड़े थे ...बहुमत की मांग के मुताबिक़ तय हुआ कि चाचा के घर जाना है। मम्मी हार गईं। पापा ने हमारे मत का आदर करते हुए चाचा के घर जाने का फैसला सुना दिया। हम सब भाई बहन चाचा के घर जाने की ख़ुशी में जा कर सो गये।
रविवार की सुबह उठे तो मम्मी गीले बालों को तौलिए से झाड़ते हुए बमुश्किल अपनी हंसी दबा रहीं थीं..उन्होंने हमसे कहा के सब लोग जल्दी से कपड़े बदल लो हम लोग मामा के घर जा रहें हैं।
मैंने पापा की तरफ देखा जो ख़ामोशी और तवज्जो से अख़बार पढ़ने की एक्टिंग कर रहे थे.. मैं मुंह ताकता रह गया..
बस जी! मैंने तो उसी दिन से जान लिया है कि लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर... और वोटर को इज़्ज़त ... सब ढकोसले है।
"असल फैसला तो बन्द कमरे में उस वक़्त होता है जब ग़रीब जनता सो रही होती है"
इसके बाद उस विद्यार्थी ने पोलिटिकल साइंस छोड़कर इकोनॉमिक्स ले ली।