पॉलिटिकल साइंस के सेमिनार में एक विद्यार्थी का बयान था कि मेरा तो यक़ीन लोकतंत्र पर से सन 1996 में ही उठ गया था..
कहने लगा कि ये उन दिनों की बात है जब एक शनिवार को मैं मेरे बाक़ी तीनों बहन भाई, मम्मी पापा के साथ मिलकर रात का खाना खा रहे थे ।
पापा ने पूछा:- कल तुम्हारे चाचा के घर चलें या मामा के घर?
हम सब भाइयों बहनों ने मिलकर बहुत शोर मचा कर चाचा के घर जाने को कहा, सिवाय मम्मी के जिनकी राय थी कि मामा के घर जाया जाए।
बात बहुमत की मांग की थी और अधिक मत चाचा के खेमे में पड़े थे ...बहुमत की मांग के मुताबिक़ तय हुआ कि चाचा के घर जाना है। मम्मी हार गईं। पापा ने हमारे मत का आदर करते हुए चाचा के घर जाने का फैसला सुना दिया। हम सब भाई बहन चाचा के घर जाने की ख़ुशी में जा कर सो गये।
रविवार की सुबह उठे तो मम्मी गीले बालों को तौलिए से झाड़ते हुए बमुश्किल अपनी हंसी दबा रहीं थीं..उन्होंने हमसे कहा के सब लोग जल्दी से कपड़े बदल लो हम लोग मामा के घर जा रहें हैं।
मैंने पापा की तरफ देखा जो ख़ामोशी और तवज्जो से अख़बार पढ़ने की एक्टिंग कर रहे थे.. मैं मुंह ताकता रह गया..
बस जी! मैंने तो उसी दिन से जान लिया है कि लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर... और वोटर को इज़्ज़त ... सब ढकोसले है।
"असल फैसला तो बन्द कमरे में उस वक़्त होता है जब ग़रीब जनता सो रही होती है"
इसके बाद उस विद्यार्थी ने पोलिटिकल साइंस छोड़कर इकोनॉमिक्स ले ली।
Wednesday, October 30, 2019
लोकतंत्र में बहुमत की राय का आदर और वोटर को इज्जत सिर्फ ढकोसला
क्या मोदी जी आजादी का इतिहास दोहराने की कोशिश तो नहीं कर रहे?
देश का जब संविधान लिखा जा रहा था तो जवाहरलाल नेहरू को नींद नहीं आ रही थी क्योंकि संविधान को एक अछूत बाबा साहब अम्बेडकर लिख रहे थे।
नेहरू रात में ही गाँधी के पास गया, गांधी सो रहा था,नेहरू ने गाँधी को जगाया । नेहरू ने गांधी से कहा-बापू आप सो रहे हैं और मुझे नींद नहीं आ रही है क्योंकि अम्बेडकर संविधान लिख रहा है न जाने अपने लोगों के लिए क्या-क्या लिख देगा। गांधी ने मुस्करा कर कहा - अरे पंडित क्यों चिंता करता है, लागू तो तुझे ही करना है ।
बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान में दलित व पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। संविधान लागू हो गया। आजाद भारत में प्रथम आम चुनाव हो गया था पूरे देश में कांग्रेस की सरकार बनी। सभी राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने। सरकारी कर्मचारियों की भर्ती होनी थी। नेहरू ने गांधी से पूछा कि - बापू आरक्षण का क्या करना है? तब गांधी ने एक छोटी सी पर्ची पर गुप्त तरीके से लिख कर दिया कि- "पंडित वेकेंसी निकालो और भर्ती की पूरी प्रक्रिया पूरी करो लेकिन दलित व पिछड़ों को नहीं लेना है और उनकी खाली वेकेंसी के सामने लिखना है कि-कोई योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला " यह सुन कर नेहरू खुश हो गया और बोला कि बापू मैं समझ गया।
पूरे देश में कर्मचारियों की भर्ती निकाली,प्रक्रिया पूरी की गयी लेकिन पूरे देश के मुख्यमंत्रियों पर वह गांधी की पाती गुप-चुप पहुंचायी गयी। दलित पिछड़ों को भर्ती नहीं किया गया । उनकी वेकेंसी के सामने लिख दिया गया कि " कोई योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला " यह देख कर बाबा साहब अम्बेडकर बहुत दुखी हुए तब उन्होंने कहा कि - " शिक्षित बनो "
आज वही गांधी की पाती सरकार द्वारा फिर अमल में लायी जा रही है। 61 फीसदी वेकेंसी के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिला कह कर वेकेंसी खाली छोड़ दी गयीं हैं।
मेरे चंद गुनाहों की किताब
वो मेरे चंद गुनाहों की किताब रखता है
नौसिखिया है, इश्क़ में हिसाब रखता है
नींद आएगी नहीं उसे किसी भी सूरत में
आँखों में बे - हिसाब मेरे ख्वाब रखता है
कहता है कि मेरे निशाँ तक मिटा देगा
और आँगन में मुझे माहताब* रखता है
बुझा कर रौशनी पूरे घर में सूना बैठा है
और पलकों में छुपाके मेरे आब रखता है
जिन सवालों से मुझे घेरने की कोशिशें हुईं
अपने होंठों पर उनके खूब जवाब रखता है
*आब-चमक
*माहताब-चाँद
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
संपूर्ण समर्पण और त्याग का छठ पर्व
पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
किंवदंती के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने छह दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगा छिड़क कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।
छठ पूजा का महत्व एवं विधि
छठ पूजा : अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को देते हैं अर्घ्य
नवरात्रि और दूर्गा पूजा की तरह छठ भी हिंदूओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। छठ पूजा को लेकर हिन्दुओं में काफी आस्था होती है। हालांकि अब यह पर्व हर जगह मनाया जाने लगा है, लेकिन मुख्य रुप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। इस दौरान डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्य देव की बहन हैं और सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख-शांति व धन-धान्य प्रदान करती हैं।
कार्तिक छठ पूजा का है विशेष महत्व
भगवान भाष्कर की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, चैत्र शुक्ल की षष्ठी व कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को। चैत्र शुक्ल की षष्ठी को काफी कम लोग यह पर्व मनाते हैं, लेकिन कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व है।
क्यों की जाती है छठ पूजा
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। भगवान भास्कर की कृपा से सेहत अच्छी रहती है और घर में धन धान्य की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी छठ पूजन का विशेष महत्व है।
कौन हैं छठ माता और कैसे हुई उत्पत्ति?
छठ माता को सूर्य देव की बहन बताया जाता है, लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ माता भगवान की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। अपने परिचय में वे कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है। संतान प्राप्ति की कामना करने वाले विधिवत पूजा करें, तो उनकी मनोकामना पूरी होती है। यह पूजा कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।
पौराणिक ग्रंथों में इसे रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के बाद माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है।
चार दिनों तक चलती है छठ पूजा
छठ पूजा चार दिनों तक चलती है और इसे काफी कठिन और विधि-विधान वाला पर्व माना जाता है। इसके लिए पूजा से पहले काफी साफ-सफाई की जाती है। घर के आस-पास भी कहीं गंदगी नहीं रहने दी जाती।
नहाय-खाय
पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दिन लौकी-भात (लौकी की सब्जी और चावल, दाल आदि) की परंपरा है। पूजा के दौरान बाजार में लौकी की कीमत भी काफी बढ़ जाती है। नहाय खाय के दिन व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं।
खरना
छठ पूजा के तहत नहाय-खाय के दूसरे दिन खरना होता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना उपवास किया जाता है। शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाकर खायी जाती है और लोगों के बीच इसका प्रसाद भी वितरित किया जाता है। इसमें नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खीर बनाने में भी गुड़ का इस्तेमाल होता है।
खरना के दूसरे दिन घी में बनता है प्रसाद
खरना के दूसरे दिन षष्ठी को छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ का विशेष महत्व होता है। अर्घ्य के लिए ठेकुआ बनता है वह पूरी तरह से घी में ही बनाया जाता है। ठेकुआ बनाने के लिए <span style="font-f
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