युग-युग से नर की दासी बन, जिसने सही यातना भारी।
शूर सपूतों की हो जननी, महापीड़िता भारत नारी।।
रही सदा अनुरूप नरों के, किन्तु उपेक्षित दास अभी है।
जब नारी सम्मान बढ़ेगा, भारत का कल्याण तभी है।।
यदि मानव समाज को एक गाड़ी मान लिया जाये तो स्त्री-पुरूष उसके दो पहिये हैं दोनों स्वस्थ और मजबूत होने आवश्यक हैं। दोनों में से यदि एक भी कमजोर रहा तो गाड़ी, गाड़ी न रहकर ईधन हो जायेगी। चलती का नाम गाड़ी है; समाज का कर्तव्य है कि वह नारी नर समाज के इन दोनों पक्षों को सबल और उन्नत बनाने का प्रयत्न करें दोनों के बीच स्वस्थ संबधों का होना भी आवश्यक है। ब्रह्म के पश्चात् इस भूतल पर मानव का अवतरित करने वाली नारी का स्थान सर्वोपरि है माँ बहन पुत्री एवं पत्नी रूपों में वह देती ही है। वह ही मानव का समाज से सम्बन्ध स्थापित करने वाली है, किन्तु दुर्भाग्य यह रहा है कि इस जगत धर्ती को समुचित सम्मान न देकर पुरूष ने प्रारम्भ से अपने वशीभूत रखने का प्रयत्न किया। प्राचीन काल में भारत के ऋषि मुनियों ने नारी, के महत्व को भलीभाँति समझा था सीता जैसी साध्वी सावित्री जैसी पतिव्रता गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने इस देश की भूमि को अलंकृत किया समय के परिवर्तित होते होते ही नारी का महत्व घटना शुरू हुआ। स्त्री देवी न रहकर विलास की सामग्री बनने लगी। बिना नारी के विकास के यह समाज अधूरा है जिस प्रकार पत्नी पति की अर्धागिनी है, ठीक इसी प्रकार नारी समाज का ही अंग है अर्ध अंग के अस्वस्थ तथा अविकसित होने पर पूरा अंग ही रोगी और अविकसित रहता है। यदि मनुष्य शिव है तो नारी शक्ति यदि पुरूष विश्वासी है तो नारी श्रद्धामयी, यदि पुरूष पौरूषमय है तो नारी लक्ष्मी, किसी भी दृष्टि से वह पुरूष से कम नहीं है। वह पुत्री के रूप में पोषणीय पत्नी के रूप अभिस्मरणीय तथा माता के रूप पूजनीय है। उसमें संसार की अपूर्व शक्ति निहित है, प्रसन्न होने पर वह कमल के समान कोमल और रूष्ट होने पर चण्डी भी है वास्तव में नारी अनेक शक्तियों से युक्त अनेक रूपा है। उसके कल्याण एवं विकास की कामना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
Tuesday, October 29, 2019
नारी जागरण
समय दीजिए
1. अध्ययन के लिए समय दीजिए क्योंकि यह विवेक का आधार है।
2. ईश्वर की प्रार्थना के लिए समय दीजिए, क्योंकि यह रहस्योद्घाटन की सीढ़ी है।
3. मन चिन्तन के लिए समय दीजिए क्योंकि यह सत्य का स्त्रोत है।
4. खेलकूद के लिए समय दीजिए क्योंकि यह यौवन का यन्त्र है।
5. पे्रममय व्यवहार के लिए समय दीजिए क्योंकि यह परमात्मा का स्वरूप।
6. काम करने के लिए समय दीजिए क्योंकि यह सफलता की सीढ़ी है।
7. नेकी के लिए समय दीजिए, क्योंकि यह अशान्ति का मार्ग है।
8. हँसने के लिए समय दीजिए, क्योंकि यह जीवन का लक्ष्य है।
9. सेवा के लिए समय दीजिए क्योंकि यह जीवन का लक्ष्य है।
10. माता-पिता की सेवा के लिए समय दीजिए क्योंकि यह शिक्षा का आधार है।
11. परिश्रम के लिए समय दीजिए क्योंकि यह शिक्षा का आधार है।
12. सोचने के लिए समय दीजिए क्योंकि यह बुद्धि का यन्त्र है।
13. परोपकार के लिए समय दीजिए क्योंकि यह सम्मान का द्वार है।
पहेलियाँ
1. एक हाथ है रखा कमर पर,
हाथ दूसरा सिर के, ऊपर।
लगा रही चक्कर कुछ ऐसे
घूम रहा हो लट्टू जैसे।
2. अगर कहीं मुझको, पड़ जाता,
बड़े प्रेम से तोता खाता,
बच्चे बूढ़े अगर खा जाते,
व्याकुल हो आंखे भर लाते।
3. चाहे रखो जेब के भीतर,
चाहे रखना इसको घर पर।
देश-विदेशों तक हो आए,
सभी तरह की खबरें लाए।
4. मैं पड़ता हूँ नहीं दिखाई,
सबसे ज्यादा गति है पाई।
पल में पटना, पल में दिल्ली,
खूब उड़ाऊं सबकी खिल्ली।
5. उछल कूद कर काटूँ डाल,
मानव हैं मेरे ही लाल।
बजे मदारी का डमरू,
बांध पांव में नाचू घुंघरू।
6. एक नारी के हैं दो बालक,
दोनों एक ही रंग।
पहला चले, दूसरा सोवे,
फिर भी दोनो संग।
7. हाथ-पैर में जंजीर पड़ी है।
फिर भी दौड़ लगाता
टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गांव-शहर घूम आता।।
8. मैं जिसके पीछे लगऊं,
गुणवक्ता को और बढ़ाऊँ।
हूँ हिसाब का अंक अजूबा,
पूरा कर हूँ मैं मंसूबा।
9. सभी ग्रहों का मैं ही मुखिया,
मुझसे जगमग पूरी दुनियां।
सुबह-सुबह मैं आ जाता हैूँ।
मुखड़े पर लाली लाता हूँ।
9. सवा लाख के मेरे दांत,
खाता नहीं, दिखाता हूँ।
छोटे आंख सूप सा कान,
नाक हिलाता जाता हूँ।
10. दो भाई एक रंग के,
गहरा उसका नाता।
एक भाई बिछड़ गया तो,
दूजा काम न आता।
11. एक बना जादू का थैला,
बाहर उसका अंदर मैला।
राजा रानी उसके दास,
वह थैला है सबसे पास।
उ0- 1. कठपुतली 2. चक्की 3. हरी मिर्च 4. साइकिल 5. शन्यू 6. मोबाइल फोन 7. सूरज 8. मन 9. हाथी 10. बंदर 11. जूता 12. पेट
मेरी संगम यात्रा
इलाहाबाद के बारे मंे मैं बहुत सुन चुकी थी पर कभी जानें का अवसर न मिला इस समय इलाहाबाद में कुंभ के मेलें की बहुत चर्चा थी। हमें कुल तीन दिन का विद्यालय से अवकाश प्राप्त हुआ तभी योजना बनी संगम यात्रा की। संध्या समय ही हमारे पूरें परिवार की बैठक हुई। पिताजी ने प्रश्न किया संगम यात्रा के लिए कौन-कौन तैयार है मेरी वहाँ जाने की अधिक लालसा के कारण मेरा हाथ पहले उठा और पिता जी ने अवकाश होने के कारण मेरी वहाँ जाने की हामी भी भरी। उसी दिन तैयारी होने लगी कुंभ जाने की। पिताजी ने कहा कम से कम बोझ के साथ हमें संगम यात्रा करनी चाहिए। अगले दिन हम अपना-अपना समान लेकर पिताजी के आने का इंतजार कर रहे थे सारी तैयारी हो चुकी थी। संध्या को जब पिताजी आए तो नाश्ता करके तंुरत ही चलने की ठानी। हालाकि हमने तीन बजे जाने के लिए कहा था लेकिन शाम के पाँच बज चुके थे। फिर हमें कल्यानपुर से बस और भइया दोनों को पिकअप करना था। उधर मेंरे बड़े भाई भी तैयार थे। हमने सबसे पहले कल्यानपुर से झकरकटी तथा फिर वहाँ से इलाहाबाद की बस पकड़ी। पूरें पाँच घण्टे की यात्रा के बाद हम इलाबाद के आलीशान चर्च के सामने कुद देर के लिए रूकें उस समय रात के एक बज रहे थे। उसके बाद हम आगे बढ़े सीक्वेरटी के कारण हमें आगे बढ़ने में बाधा थी। मेरे बड़े भाई ने इलाहाबाद में अपने कई दिन व्यतीत किए इस कारण उन्हें छोटे रास्तों का पता था। वे हमें पुल के नीचें वाले रास्ते से सीधे संगम तट पर ले गए। सुबह तीन बजे हमने संगम में स्नान किया। फिर एक ऊँची पहाड़ी से कुभ की लाइटिंग सिस्टम देखने लगे कुछ देर रूककर हम आगे बढ़े। ठंड अधिक होने के कारण हमे आग का सहारा लेना पड़ा। तीन चार चाय और कुद नाश्ता करने के बाद हम अखाड़े देखने गए। अखाड़े का मतलब यहाँ कुश्ती लड़ने वाले स्थान से नहीं बल्कि गुरूओं के ठहरने वाले स्थान से है। सबकी अपनी अलग-अलग शोभा है। वहाँ हमने भारतीय गुरूओं व संतो के अलावा भारतीय संस्कृति से मुग्ध होकर भारतीय गुरूओं से दीक्षा लिए हुए गोरे लोगो की भी देखा। वे भारतीय गुरूओं व संतो की वेशभूषा में संगम की सुन्दरता को अपने कैमरों के अंदर कैद करने की पूरी कोशिश कर रहे थे। अखाड़े घूमने के बाद हम पाताल में गए। यकीन नहीं होगा आप लोगों को कि हम जहाँ एक किले पर गए। काफी पुराना किला जहां एक पतले से रास्ते से पाताल की ओर वहाँ हर भगवान की मूर्ति रखी थी जहाँ पर कुछ नुमाइंदे भगवाद के नाम पर लोगों को लूटने की पूरी कोशिश कर रहे थे। वहाँ मुझे कुछ खास प्रसन्नता नहीं हुई लेकिन वहाँ की सुन्दरता अपने में ही एक विशेषता रखती है। वहाँ से हम बड़े हनुमान जी के मन्दिर गए वहाँ हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा है। कुछ लोगों ने उस प्रतिमा के बारे में हमें बताया कि अंग्रेजों ने प्रतिमा उठाने की बहुत कोशिश कि लेकिन जितना उसे उठाना चाहा वह उतना ही धसती गयी तथा वहाँ की यह विशेषता है कि जब भी गंगा तट पर बाढ़ आती है। तो संगम की लहरें इन्हीं के पैरों का स्पर्श करके वापस चली जाती हैं। हम वहाँ से थोड़े विश्राम के लिए पार्क में गए और वहाँ नाश्ता करने के बाद मैं, दीदी और बड़े भाई के साथ कंुभ का मेला देखने गए। वहाँ से कुछ ज्वेरली खरीद कर हम वापस पार्क में आए तथा आश्रम में गए वहाँ सत्संग के पश्चात रात का खाना होटल पर खाने के बाद। हम फिर आश्रम में लौट आए तथा रात में विश्राम वहीं किया। सुबह हम फिर पहुँचे गंगा के तट पर स्नान हमने सुबह 4 बजे ही कर लिया उस समय सर्दी का कोई ठिकाना न था। टेम्परेचर 0.50 था। सुबह की चाय व नाश्ते के बाद ही हम वहाँ के प्रसिद्ध मन्दिर गए जो कि पाँच मन्जिल का बना हुआ है फिर परिवार के लिए मार्केट से कुछ न कुछ खरीद कर हम एक नयी ऊर्जा तथा ढेर सारी थकावट लेकर कानपुर लौट आए। सचमुच संगम का बखान करना बहुत कठिन। वहाँ की व्यवस्था देखने यो
गय है पाँच साल के अन्तर्गत यह कुभ मेला लगता है। यहाँ की व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ पर आकर शरीर में तथा मस्तिष्कि में एक नयी ऊर्जा का संचार होता है। संगम में हर जगह भक्ति रस बहता है जिसें हम हर क्षण ग्रहण करते हे। मैं संगम यात्रा एक बार फिर करूगी यह संकल्प लेकर मैं वहाँ से रवाना हुयी। यहाँ पर सिर्फ हम लोग ही नहीं अपितु देश-विदेश से कई लोग आते है तथा इस मोहक सुन्दरता से लुब्ध होकर हमारे धर्म तथा संस्कृति की दीक्षा लेते है। इसीलिए इलाहाबाद के संगम की ''तीर्थराज'' के नाम से जाना जाता है।