इलाहाबाद के बारे मंे मैं बहुत सुन चुकी थी पर कभी जानें का अवसर न मिला इस समय इलाहाबाद में कुंभ के मेलें की बहुत चर्चा थी। हमें कुल तीन दिन का विद्यालय से अवकाश प्राप्त हुआ तभी योजना बनी संगम यात्रा की। संध्या समय ही हमारे पूरें परिवार की बैठक हुई। पिताजी ने प्रश्न किया संगम यात्रा के लिए कौन-कौन तैयार है मेरी वहाँ जाने की अधिक लालसा के कारण मेरा हाथ पहले उठा और पिता जी ने अवकाश होने के कारण मेरी वहाँ जाने की हामी भी भरी। उसी दिन तैयारी होने लगी कुंभ जाने की। पिताजी ने कहा कम से कम बोझ के साथ हमें संगम यात्रा करनी चाहिए। अगले दिन हम अपना-अपना समान लेकर पिताजी के आने का इंतजार कर रहे थे सारी तैयारी हो चुकी थी। संध्या को जब पिताजी आए तो नाश्ता करके तंुरत ही चलने की ठानी। हालाकि हमने तीन बजे जाने के लिए कहा था लेकिन शाम के पाँच बज चुके थे। फिर हमें कल्यानपुर से बस और भइया दोनों को पिकअप करना था। उधर मेंरे बड़े भाई भी तैयार थे। हमने सबसे पहले कल्यानपुर से झकरकटी तथा फिर वहाँ से इलाहाबाद की बस पकड़ी। पूरें पाँच घण्टे की यात्रा के बाद हम इलाबाद के आलीशान चर्च के सामने कुद देर के लिए रूकें उस समय रात के एक बज रहे थे। उसके बाद हम आगे बढ़े सीक्वेरटी के कारण हमें आगे बढ़ने में बाधा थी। मेरे बड़े भाई ने इलाहाबाद में अपने कई दिन व्यतीत किए इस कारण उन्हें छोटे रास्तों का पता था। वे हमें पुल के नीचें वाले रास्ते से सीधे संगम तट पर ले गए। सुबह तीन बजे हमने संगम में स्नान किया। फिर एक ऊँची पहाड़ी से कुभ की लाइटिंग सिस्टम देखने लगे कुछ देर रूककर हम आगे बढ़े। ठंड अधिक होने के कारण हमे आग का सहारा लेना पड़ा। तीन चार चाय और कुद नाश्ता करने के बाद हम अखाड़े देखने गए। अखाड़े का मतलब यहाँ कुश्ती लड़ने वाले स्थान से नहीं बल्कि गुरूओं के ठहरने वाले स्थान से है। सबकी अपनी अलग-अलग शोभा है। वहाँ हमने भारतीय गुरूओं व संतो के अलावा भारतीय संस्कृति से मुग्ध होकर भारतीय गुरूओं से दीक्षा लिए हुए गोरे लोगो की भी देखा। वे भारतीय गुरूओं व संतो की वेशभूषा में संगम की सुन्दरता को अपने कैमरों के अंदर कैद करने की पूरी कोशिश कर रहे थे। अखाड़े घूमने के बाद हम पाताल में गए। यकीन नहीं होगा आप लोगों को कि हम जहाँ एक किले पर गए। काफी पुराना किला जहां एक पतले से रास्ते से पाताल की ओर वहाँ हर भगवान की मूर्ति रखी थी जहाँ पर कुछ नुमाइंदे भगवाद के नाम पर लोगों को लूटने की पूरी कोशिश कर रहे थे। वहाँ मुझे कुछ खास प्रसन्नता नहीं हुई लेकिन वहाँ की सुन्दरता अपने में ही एक विशेषता रखती है। वहाँ से हम बड़े हनुमान जी के मन्दिर गए वहाँ हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा है। कुछ लोगों ने उस प्रतिमा के बारे में हमें बताया कि अंग्रेजों ने प्रतिमा उठाने की बहुत कोशिश कि लेकिन जितना उसे उठाना चाहा वह उतना ही धसती गयी तथा वहाँ की यह विशेषता है कि जब भी गंगा तट पर बाढ़ आती है। तो संगम की लहरें इन्हीं के पैरों का स्पर्श करके वापस चली जाती हैं। हम वहाँ से थोड़े विश्राम के लिए पार्क में गए और वहाँ नाश्ता करने के बाद मैं, दीदी और बड़े भाई के साथ कंुभ का मेला देखने गए। वहाँ से कुछ ज्वेरली खरीद कर हम वापस पार्क में आए तथा आश्रम में गए वहाँ सत्संग के पश्चात रात का खाना होटल पर खाने के बाद। हम फिर आश्रम में लौट आए तथा रात में विश्राम वहीं किया। सुबह हम फिर पहुँचे गंगा के तट पर स्नान हमने सुबह 4 बजे ही कर लिया उस समय सर्दी का कोई ठिकाना न था। टेम्परेचर 0.50 था। सुबह की चाय व नाश्ते के बाद ही हम वहाँ के प्रसिद्ध मन्दिर गए जो कि पाँच मन्जिल का बना हुआ है फिर परिवार के लिए मार्केट से कुछ न कुछ खरीद कर हम एक नयी ऊर्जा तथा ढेर सारी थकावट लेकर कानपुर लौट आए। सचमुच संगम का बखान करना बहुत कठिन। वहाँ की व्यवस्था देखने यो
गय है पाँच साल के अन्तर्गत यह कुभ मेला लगता है। यहाँ की व्यवस्था सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ पर आकर शरीर में तथा मस्तिष्कि में एक नयी ऊर्जा का संचार होता है। संगम में हर जगह भक्ति रस बहता है जिसें हम हर क्षण ग्रहण करते हे। मैं संगम यात्रा एक बार फिर करूगी यह संकल्प लेकर मैं वहाँ से रवाना हुयी। यहाँ पर सिर्फ हम लोग ही नहीं अपितु देश-विदेश से कई लोग आते है तथा इस मोहक सुन्दरता से लुब्ध होकर हमारे धर्म तथा संस्कृति की दीक्षा लेते है। इसीलिए इलाहाबाद के संगम की ''तीर्थराज'' के नाम से जाना जाता है।
Tuesday, October 29, 2019
मेरी संगम यात्रा
क्या है आई.टी.आई.
आप लोग कम्प्यूटर पर कई गेम्स खेलते होगे और कागज का राॅकेट भी बनाने होंगे। लेकिन क्या आप खुद कम्प्यूटर बनाना चाहते हैं?
चलिए, आपको भारत के इंजीनियरिंग के सबसे बड़े स्कूल आई आई टी (इंडियन इंस्ट्टियूट) आॅफ टेक्नोलाॅजी को आई. आई. टी. के नाम से जाना जाता है। भारत में इस समय रगत शहरों में आई. आई. टी. है। आई आई टी कानपुर, दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, खड़गपुर, रूड़की और गुवाहाटी।
इंजीनियर बनने के लिए आपको 12 वीं मंे साईस (फिजिक्स, कैमिसट्री, मैथ्स) की पढ़ाई करनी होगी। बी.ए., बी. काम डिग्री-कोर्स तीन साल का है। लेकिन इंजीनियर का ग्रेजुएट प्रोग्राम अमूमन चार साल को होता है। इन साल आई आई टी में बी. टेक, बी काॅम, बी. आक, में एडमिशन लेने के लिए लगभग ढाई लाख बच्चे हर साल परीक्षा देते हैं। इनमें से सिर्फ पाँच हजार बच्चों को ही प्रवेश मिल पाता है।
जो भी बी. टेक. या फिर, बी.एस. सी. के लिए आई आई टी में एडमिशन लेना चाहता हैं, उसे सबसे पहले जे. ई. ई. (ज्वांइट एंटेªए एग्जाम) देना पड़ता है। स्श्रोता आई आई टी और देश के एक-दो और अच्छे-अच्छे इंजीनियरिग कालेज में प्रवेश के लिए एंटेªस टेस्ट होता है। लेकिन हर आई आई टी में अलग-अलग एंटेªस टेस्ट न होकर ही टेस्ट होता है। और इस ही कहते है, जे. ई. ई.।
मान लीजिए कि आप इंजीनियर बनना चाहते हैं। और आई आई टी कानपुर या आई आई टी गुवाहाटी में एडमिशन लेना चाहते हैं। तो आप, दिल्ली में ही जे. ई. ई. एग्जाम दे सकते हैं। यानि कि आपको इन स्श्रतों आई-आई टी में अलग-अलग फार्म भरकर टेस्ट देने की जरूरत नहीं है। एक ही टेस्ट के बाद उतने ही ऊपर आपका रैंक होगा, उतने ही आप इंजीनियर बनने के एक कदम नजदीक आते जाएंगे और अपने मनपंसद आई आई टी में पढ़ पाएंगे।
इंजीनियरिंग के कई तरह के कोर्स होते हैं। जैसे-ऐरोस्पेस, बोया टेक्नोलाजी, केमिकल, सिविल, कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक्स, इनफार्मेशन टेक्नोलाॅजी आदि।
इसके अलावा आप पाँच साल के इंटीग्रेटेड एम. टेक. प्रोगाम में भी एडमिशन ले सकते हैं। आई आई टी के विभिन्न संस्थानो में अब मैनेजमेट की भी पढ़ाई करवायी जाती है। जैसे कि एम. बी. ए., इन टेक्नोलाजी मैनजमेंट, एम. बी. ए., इन मैनेजमेट सिस्टम और एम. बी. ए. इन टेलीकाॅम सिस्टम मैनेजमेट और है। आई आई टी से आप पी. एच. डी. की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं।
आई आई टी का इतिहास
हमारे देश में आजादी से पहले कोई भी ऐसा कालेज नहीं था जहाँ टेक्नोलाजी की पढ़ाई होती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वायसराय की कार्य कारी समिति ने एक टेक्नोलाजी इंस्टिट्यूट बनाने की सलाह दी। फिर पं. बंगाल के मुख्यमंत्री डाॅ. बी. सी. राॅय ने एक कमेटी बनाई, जिसने कहा कि हमारे देश में टेक्नोलाजी की जरूरत को समझते हुए उत्तर दक्षिण और पूर्व-पश्चिम में एक-एक इंस्ट्टियूट बनाना चाहिए। इसके बाद पहला आई. आई. टी. 1950 में खड़गपुर, में बनाया गया। फिर 1958 में मुंबई, 1959 में कानपुर और चेन्नई तथा 1961 में दिल्ली में आई आई टी की शुरूआत हुई। फिर 1994 में असम और 2001 में पहले से ही चल रही यूनिवर्सिटी आॅफ रूडकी को आई. आई. टी. रूडकी में बदला गया।
जाड़े जी
जाड़े जी! ओ जाड़े जी! तेरे बजें नगाड़े जी,
डर के मारे कूलर पंखें भागे छोड़ अखाड़े जी।
ऊनी कपड़ों ने फिर आकर अपने झडें गाड़े जी,
बैठ तुम्हारे मेल टेªन पर बिना किरायें भाड़े जी।
जाड़े जी! ओ जाड़े जी!.................
आए पहलवान कुहरें जी
उनको कौन लताड़े जी, जाड़े जी ओ जाड़े जी
तेरे बजे नगाड़े जी।।
सूरज जी तो चले आ रहे,
छिपकर आड़े-जी, जाड़े जी! ओ जाड़े जी!
तेरे बजे नगाड़े जी।।
कुछ प्रेरक प्रसग-
हमें अच्छी सीख चाहे जहाँ से गिले ग्रहण करनी चाहिए। महापुरूषों के जीवन से हमें विशेष रूप से शिक्षा मिलती हे। उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों से न केवल शिक्षा मिलती है, उनके जीवन के प्रेरक प्रसगोंसे जीवन के लिए पे्ररण मिलती है। उन आदर्शो का बोध होता है जो हमारे जीवन को सुखमय एवं सफल बनाने के लिए आवश्यक है।
चूहा और बिल्ली
बिल्ली मौसी बोली, बेटा! आओ-आओ,
मैं आई हूँ हरिद्धार से,
लो थोड़ा सा पेड़ा खाओ।
चूहा बोला, बस, बस, मौसी,
तुम मुझको न ऐसे बहकाओ।
तुम तो मुझको खा जाओगी,
दूर रहो बस पास न आऊँ।
बिल्ली बोली बेटा, मैने,
छोड़ दिया है पाप कमाना।
हरि नाम मैं हूँ जयती,
जल्दी से स्वर्ग मुझे है जाना।
इसी बीच चूहा लगा सोचने,
यह डायन है कैसी बदली।
इस बीच मौका पाकर,
बिल्ली उसके ऊपर ऊछली।
चूहा था चालाक झट,
घुस गया बिल के अन्दर।
रहगई बिल्ली हाथ मसल कर।।