Monday, October 21, 2019

अपने वतन से प्यार करो

कोई मंदिर-मस्जिद जाकर फूल चढ़ाता है,
कोई चर्च-शिवालय जाकर प्रभु के भजन सुनाता है।
मातृभूमि का मंदिर ऊँचा गिरजाघर-गुरुद्वारों से,
इस मंदिर का प्रेम पुजारी अपना शीष चढ़ाता है।
शीश चढ़ाने वालों का अब हर सपना साकार करो,
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।
खोई वसुधा की पीड़ा है गीता के उपदेशों में।
करूणंा का सागर लहराता गौतम के संदेशों में।
गीता, राम, मोहम्मद सबको भारत माँ का प्यार मिला।
इसीलिये यह देश बड़ा है दुनिया भर के देशों में।
महावीर, नानक की वाणी का मिलकर सत्कार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा .....
श्वेत रंग अनुयायी है, गांधी बाबा की राहों का।
केसरिया वीर शिवाजी का रंग, हरा बहादुर शाहों का।
मंगल पाण्डे का जोश भरा, ऊधम की वीर जवानी है।
दीवानी झांसी की रानी, नेता सुभाष बलिदानी है।
इसके रगों में मिली-जुली, रणवीरों की कुर्बानी है। 
आपस में शामिल सिन्धु, व्यास, गंगा, सतलज का पानी है।
हमने अपना शीश कटाकर, देश का ऊँचा नाम किया।
लहु का चोखा रंग मिलाकर, रंग झण्डे का लाल किया।
सरहद पर खड़े सिपाही का, सीना चैड़ा हो जाता है।
जब लाल किले पर लोकतन्त्र का, प्रहरी बन लहराता है।
भारत माता का मान बढ़े, आओ कुछ ऐसे काम करें।
झण्डे की शीतल छाया में, ये सारा जग विश्राम करे।
साँसों में बसा तिरंगा है, इसका नूतन श्रृंगार करो।
सबसे बड़ी है देश की पूजा, अपने वतन से प्यार करो।


मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए

रहना है सबके बीच तो मुस्कुराइए,
वाणी में अपनी मधु, थोड़ा मिलाइए।
फलों सा बनिए कोमल, गरमाइए नहीं,
दुनिया में बन कर खुशबू फैल जाइए।
झगड़ा लड़ाई, ईष्र्या द्वेष सब बेकार है,
हर क्षण गीत प्रेम के, आप गुनगुनाइए।
सुख  दुख तो धूप छाँव है, चिंता न कीजिए,
कर दर किनार इन बातों को, सबको हंसाइए।
कह कर गए हैं बुजुर्ग, अगर स्वस्थ रहना हो तो,
सुबह-सुबह प्रतिदिन, थोड़ा घूम आइए।
जीवन में आगे बढ़ना है, हिम्मत न हारिए,
मेहनत से आप अपना रास्ता बनाइए।


चमकता इंडिया, सिसकता भारत

जब लोगों में आतंकवाद का डर हो, नक्सलवाद समाज को डरा रहा हो, ऐसे में आजाद देश की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या है। स्वतंत्रता पश्चात् जिस स्वर्णिम भारत की कल्पना लोगों के मन में थी, वह धराशायी होती जा रही है। राजनीति में बैठे लोग स्वार्थ सि( करने में लगे हुए हैं। लोग घोटालों की खबरें देख-देख कर निष्क्रिय हो चुके हैं। प्रतिक्रिया दें भी तो क्या? सेेना के अफसर हो या समाज के ठेकेदार हर कोई बस अपने बारे मंे ही सोच रहा है। एक तरफ भुखमरी से मरते बच्चे और दूसरी तरफ पिज्जा बर्गर की पार्टी देने वाले बच्चे। एक ओर टूटी टपकती छत और जर्जर दीवारों के बीच पढ़ने वाले बच्चे और दूसरी ओर ए.सी. स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे। 
एक ओर शराब की पार्टियों मंे नोट उड़ाते अय्याश युवा तो दूसरी ओर नौकरी की तलाश और सिफारिश के अभाव में जूते घिसते युवा। एक ओर परिवार के पोषण की मजबूरी के कारण देह को कष्ट देकर धूप में मजदूरी करते लोग, तो दूसरी ओर महंगी मोटर साइकिलों व कारों में घूमते लोग। एक ओर सर्व धर्म समभाव व अखण्ड भारत के नारे लगाते जन नेता, तो दूसरी तरफ दलीय राजनीति व अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए देश को धर्म व जातियों में विखण्डित करने एवं अपनी तिजोरी भरने में लगे स्वनाम राष्ट्र निर्माता। कितनी बड़ी खांई है इनके बीच। ऐसे में हम आजाद भारत की कौन-सी तस्वीर देखें। गर्व करें तो किस पर? चंद चमकते इंडियन ;अमीरद्ध पर या अधिकांश सिसकते भारतीयों ;गरीबद्ध पर। आज हमें ऐसी नीति की आवश्यकता है, जो भारत की संपूर्ण आबादी को खुशहाल रखते हुए विकास व समृद्ध की ओर ले जाए, ना कि अमीर ;इंडियनद्ध-गरीब;भारतीयद्ध के बीच की खाई को बढ़ावा दे।


नेता ईमान खा रहे हैं

हमारे एक परिचित खाने के निमन्त्रण में, लगातार इक्कीस वर्षों से प्रथम आ रहे हैं।
पच्चीस आदमियों का खाना अकेले ही,
बड़े मजे से खा रहे हैं।
हमने एक दिन उनसे पूछा,
मित्र आश्चर्य है मँहगाई के इस दौर में भी,
तुम इतना खा रहे हो।
हमारी बात सुनकर वे कुछ उदास हो गए।
पहले कुछ दूर खड़े थे, मगर अब पास हो गए।
बोले- अरे हम कहाँ।
कुछ हमसे भी अधिक खा रहे हैं।
और इतना खाकर भी मजे से पचा रहे हैं।
विधायक विधान खा रहे हैं,
सांसद संविधान खा रहे हैं।
नेता ईमान खा रहे हैं, 
पुजारी भगवान खा रहे हैं।
पण्डित पुराण खा रहे हंै, 
मुल्ला कुरान खा रहे हैं।
और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,
जो समूचा हिन्दुस्तान खा रहे हैं।