हमारे एक परिचित खाने के निमन्त्रण में, लगातार इक्कीस वर्षों से प्रथम आ रहे हैं।
पच्चीस आदमियों का खाना अकेले ही,
बड़े मजे से खा रहे हैं।
हमने एक दिन उनसे पूछा,
मित्र आश्चर्य है मँहगाई के इस दौर में भी,
तुम इतना खा रहे हो।
हमारी बात सुनकर वे कुछ उदास हो गए।
पहले कुछ दूर खड़े थे, मगर अब पास हो गए।
बोले- अरे हम कहाँ।
कुछ हमसे भी अधिक खा रहे हैं।
और इतना खाकर भी मजे से पचा रहे हैं।
विधायक विधान खा रहे हैं,
सांसद संविधान खा रहे हैं।
नेता ईमान खा रहे हैं,
पुजारी भगवान खा रहे हैं।
पण्डित पुराण खा रहे हंै,
मुल्ला कुरान खा रहे हैं।
और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,
जो समूचा हिन्दुस्तान खा रहे हैं।
Monday, October 21, 2019
नेता ईमान खा रहे हैं
जीवन पथ
यदि जीना है तुमको हरदम, जीवन को तुम जीने दो,
जीवन की संकट घड़ियों में, मत जीवन को तुम मरने दो।
जीवन तो है एक पहेली, कठिनाई है संग सहेली,
कठिनाई को तुम सुलझाओ, सुलझेगी हर एक पहेली।
जीवन की उलझी राहों में, मत उलझाओ अपने मन को,
मन उलझेगा यदि राहों में, नहीं मिलेगा बल इस तन को।
जीवन की सीढ़ी यह तन है, तन पर है अधिकार तुम्हारा,
यदि यह तन ही टूट गया तो, जीवन रह जाए बिना सहारा।
जीवन को आसान न समझो, उलझोगे तुम जगह-जगह पर,
यदि उलझन को उलझन समझे, थक जाओगे जगह-जगह पर।
उलझन की परवाह न करना, कठिनाई से नहीं डरो तुम,
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ, जीवन को जीवन समझो तुम।
जीवन का यह मूल मंत्र है, हँस कर जी लो इस जीवन को,
खुद के हँसने से जग हँसता, मस्ती मिलती है जीवन को।
हँसते-हँसते बढ़ते जाओ, पथ प्रशस्त कर दो जीवन का,
इसी भाँति तुम जीते जाओ, हर पल फूल बने जीवन का।
स्टैण्डिग दावत
दोस्तों मानो या न मानो,
स्टैंडिग दावत में खाना,
बड़ी टेढ़ी खीर है।
एक दिन हमें भी,
जाना पड़ा बारात में,
बीवी बच्चे भी थे साथ में,
ऊपर से शोपीस,
अन्दर से सूखे थे।
क्या करें सुबह से भूखे थे।
जैसे ही खाने का सन्देशा
आया हाल में,
भगदड़ मच गई पण्डाल में,
एक के ऊपर एक बरसने लगे,
जो मिला सब झपटने लगे।
एक अपनी प्लेट में
थोड़े चावल लेकर आया,
उससे कहीं ज्यादा अपना
कुरता फाड़ लाया।
दूसरा गरीब व लाचार था,
इसलिए कपड़े उतारकर पहले से
ही तैयार था।
रोटी तो किसी तरह पा गया,
बस अचार का इन्तजार था।
अगली एक महिला थी,
जिसकी साड़ी पनीर की,
सब्जी से सनी थी।
किनारे पर खड़ी होकर,
नेत्रों को भिगो रही थी।
पड़ोसन से मंागी थी,
इसलिए रो रही थी।
अगला खुद लड़की का बाप था,
जिसके प्राण कण्ठ में अटके थे।
घराती सारे खा रहे थे,
बराती सड़क पर खडे़ थे।
संकल्प और लक्ष्य
संकल्प और लक्ष्य मनुष्य के कार्यों को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आदतों को संकल्प और लक्ष्य की शक्ति द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है। व्यर्थ में बड़े से बड़ा नुकसान हो जाता है और जीवन की महत्वपूर्ण बातें धरी की धरी रह जाती है। यदि हम कोई लक्ष्य लेकर चलते हैं तो उसे संकल्प द्वारा, कर्म द्वारा, यथार्थ रीति द्वारा और आदतों को नियन्त्रित रखते हुये पूर्णतः की ओर बढ़ सकते हैं। जिस प्रकार सोना को साफ करने तथा उसमें चमक लाने के लिये आग में तपाना पड़ता है, उसी प्रकार सदा अपने लक्ष्य और संकल्प में अटल रहना पड़ता है। सभी के जीवन में उत्थान तथा पतन का भी समय आता है। विवेकी पुरुष की दृष्टि में परमात्मा की प्राप्ति श्रेयस्कर है। परमात्मा और आत्मा का संयोग उनके एकत्व का बोध परमार्थ माना गया है। जीवन में सुख - शान्ति तथा अध्यात्मिक उन्नति का मुख्य आधार भी यही है। दृष्टि से वृत्ति स्वयं बदल जाती है। वृत्ति के अनुसार बु(ि प्रभावित होती है। गुण और विशेषताऐं व्यक्ति की बु(ि से ही समझी जाती है। जैसे - हंस की पहचान उसके मोती ग्रहण करने करने से होती है। बु(ि संस्कार का एक वाहन है। बु(ि को श्रेष्ठ बल भी कहा गया है। बु(ि द्वारा ही संकल्प को दिशा दी जा सकती है। अभी नहीं तो कभी नहीं का संकल्प लक्ष्य तक ले जाने में सहायक होता है। व्यक्ति स्वयं भी विशेष है, और समय भी विशेष है। संकल्प को छोड़कर व्यर्थ की तरफ नहीं जाना चाहिए। यदि व्यक्ति हीन भावना से ग्रसित है तो वह संकल्प भी नहीं कर सकता है । विपरीत परिस्थितियों को देखकर अंशमात्र भी विचलित नहीं होना चाहिये।