चरित्र मानव जीवन की अमूल्य निधि एवं मानवता का शृंगार है। सदाचार ही जीवन है। सदाचार ही पृथ्वी पर स्वर्ग को उतारता है, पर आज हमारे देश में उसका शनैः शनैः ट्ठास होता जा रहा है। सदियों की साधना से अर्जित जीवन-मूल्यों का पतन हो रहा है। अतः देश में अनेक समस्यायें उत्पन्न होती जा रही हैं जिन्होंने हमारे राष्ट्र के विकास को अवरु( कर रखा है। इनमें भ्रष्टाचार की समस्या भी एक है।
आज हमारे देश में रिश्वत का बाजार सर्वत्र गर्म है। आज अनुचित रूप से पैसा देकर अपनी इच्छानुसार कार्य कराया जा सकता है। न्याय तक क्रय किया जा सकता है। घूस देने वाले के समक्ष कठिनाइयों के पर्वत चूर-चूर हो जाते हैं। विपत्तियों के बादल तिरोहित हो जाते हैं, निराशा का अन्धकार समाप्त हो जाता है। सुख की पियूस वर्षा होने लगती है, आनन्द का सागर लहराने लगता है। सब प्रकार की सुविधायें प्रदान करने के कारण इसको 'सुविधा शुल्क' नाम से विभूषित किया गया है।
उत्कोच ने देश में त्राहि-त्राहि मचा रखी है। इसके आतंक से प्रतिभा पलायन कर गयी है। सदगुण कन्दराओं में जा छिपे हैं न्याय सिर धुन रहा है, शासन गूंगा, बहरा और अपंग हो गया है। घूस के संरक्षण में गधे घी पी रहे हैं।, कौए सम्मान पा रहे हैं, हत्या, लूटमार आदि जघन्य अपराध पनप रहे हैं, पापी निर्भय होकर विचर रहे हैं, नारियों की इज्जत लूटी जा रही है, हरिजनों पर कहर ढाया जा रहा है। कहां गये मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन आदर्श? कहाँ गये योगिराज कृष्ण के गीता के उपदेश? ''धनपराव विषतै विषभारी।'' उक्ति के अनुसार क्या अब घूस के रूप में प्राप्त परायाधन विष के समान घातक नहीं है? शरीर के लिये नहीं तो आत्मा के लिये यह अवश्य घातक सि( होगा।
राजनैतिक पार्टियां लोकतंत्र के नाम पर 65 वर्षों से एक ऐसी राजशाही कायम करने का प्रयास कर रही हैं जिसमें पूँजीपति तो ऐश कर रहे हैं लेकिन राष्ट्र की आम जनता की हालत बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा नहीं है कि मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ आम जनता में आक्रोश नहीं था। लेकिन सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है जो अब समाप्त हो चुकी है। अब जनता जाग गयी है उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आन्दोलन छेड़ दिया है। यह आन्दोलन विश्व का एकमात्र ऐसा आन्दोलन बन गया है जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि हमारे संसद में सिर्फ भ्रष्ट लोग ही अपना कब्जा जमाये बैठे हैं। वहां भी सच्चे ईमानदार तथा जनता के प्रति जवाबदेही वाले सांसद हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी संख्या कम है या वे भ्रष्ट राजनैतिक पार्टियों से सम्ब( हैं। अगर जनता पूर्ण रूप से जग गयी तो भ्रष्ट व्यवस्था का अन्त निश्चित है लेकिन अभी भी राजनेता इस मुगालते में हैं कि जनता पिछली सब बातों को भूलकर उनके चक्रव्यूह में फंस जायेगी और वे फिर सत्ता में बैठकर जनता के विकास, स्वास्थ्य तथा मूलभूत सुविधाओं की लूट बदस्तूर जारी रखेंगे लेकिन यह दूर की कौड़ी साबित होने वाली है। आज से 2000 साल पहले चार्वाक )षि ने एक सूत्र दिया था कि - यावेत जिवेत सुखम जिवेत्, )णम् कृत्वा घृतम पिवेत, भस्मिभूतस्य शरीरस्य पुनरौ जन्मकुताः? यह सूत्र दो हजार वर्षों से धार्मिक साहित्यों में बन्द था। इस सूत्र को हमारे राजनेताओं नें अक्षरशः सत्य कर दिखाया। आज राजनीति पैसा कमाने का आसान जरिया बन गयी है। हर राजनेता देश को लूटने में मस्त है कोई रोकने वाला नहीं है। ये चाहते हैं कि वे जब तक जिये सुख से जियें और विदेशों से कर्ज लेकर घी पियें क्योंकि उनके इस शरीर का क्या एकदिन तो उसे आग में जल जाना है। उन्हें पता है कि उनका जन्म पुनः मनुष्य योनि में नहीं होना है क्योंकि इस जन्म में उन्होंने गि(ों को भी पीछे छोड़ दिया है। गि( तो मरे हुये शव को नोचकर खाते हैं, ये तो देश की तीन चैथाई जनता के हक को ऐसे नोचकर खा रहे हैं कि औद्योगिक क्रान्ति के बावजूद देश की जनता भरपेट भोजन के लिये तरस रही है। ऊपर से राजनेताओं का तुर्रा यह है कि भ्रष्टाचार आम जनता के अन्दर समा गया है इसे समाप्त करना मुश्किल ही नहीं असम्भव है। लेकिन इन्हें कौन समझाये कि संसार में जितने भी चर और अचर प्राणी हैं उनकी पहली आवश्यकता आहार होती है। आहार जब राजनेता हड़प कर जाते हैं तो बेचारा गरीब किस प्रकार अपना तथा अपने परिवार का पेट भरे। जहां अभाव है वहां से सुचिता तथा आदर्श की उम्मीद करना ही बेमानी है। जिन लोगों को आदर्श स्थापित करना चाहिए वे तो कुछ और कर रहे हैं। देश की आजादी से अब तक तो आम जनता में इस व्यवस्था के खिलाफ रोष बढ़ा है और देश के कुछ खास लोगों का अप्रत्याशित रूप से कोष। ये पिछले 65 वर्षों से लोकतंत्र तथा देश की सर्वोच्च तथा पवित्र संसद पर कब्जा जमाये बैठे हैं। जब तक इन जनद्रोहियों तथा देश द्रोहियों की चलती रहेगी तब तक देश की गरीब जनता का भला होने वाला नहीं। एक समाज तभी उन्नत हो सकता है जब सही मायने में लोकतन्त्र स्थापित हो और यह तभी संभव है जब देश की जनता एक जुट होकर लोकतन्त्र स्थापित करने का प्रण ले।
इस देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने में हमारे आपके पूर्वजों की कुर्बानियां जुड़ी हैं। उनकी कुर्बानियों का लाभ देश के कुछ खास लोगों तक ही सीमित है। जिन्हें लाभ मिलना चाहिये उन्हें रोटी तथा सिर छुपाने के लाले पड़े हैं। कितने ताज्जुब की बात है कि आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी देश का विकास सिर्फ शहर तक ही सीमित है। हर प्रदेश के किसान आत्महत्या जैसे घृणित कार्य करने को मजबूर हैं। यह इस वर्तमान व्यवस्था की नाकामी ही है। राजनेताओं ने आम जनता को अंधेरे में रखकर देश की सम्पदा की ऐसी लूट मचा रखी है कि इन्होंने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। अंग्रेजों ने जो लूटा उसका कुछ हिस्सा देश में भी लगा दिया लेकिन ये लोग तो देश का पैसा लूटकर विदेशों में जमाकर अप्रत्यक्ष रूप से विदेशियों की मदद कर रहे हैं। यह राष्ट्र द्रोह है इसलिये देश की समस्त देशभक्त जनता खासकर नौजवान पीढ़ी का कर्तव्य बनता है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था से देश को मुक्त कराया जाये, अगर इस भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्ति न मिली तो ये देश को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ''ये खेत बेंच देंगे, खलिहान बेच देंगे। ये देश बेंच देंगे, ईमान बेच देंगे। इनसे बच के रहना यारो। इनका बस चले तो, देश के हर इंसान को बेच देंगे।''
अगर देश इस भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्त हो गया तो कोई कारण नहीं कि देश एक बार फिर सोने की चिड़िया न बने। इसके लिये जरूरत है राष्ट्र के प्रति युवा समर्पण की, क्योंकि युवा ऊर्जा से परिपूर्ण होता है युवा शक्ति ही वास्तविक राष्ट्रशक्ति होती है। राष्ट्र की पहचान युवाओं की आदर्शवादी विचारधारा से बनती है। युवा जब अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करता है तो वह भगवान का अवतार बन जाता है। युवा शक्ति द्वारा ही राष्ट्र सवल बनते हैं। सेवा और समर्पण से राष्ट्र का निर्माण होता है। विश्व में जितनी भी क्रान्तियां एवं विकास हुआ है उसका शत-प्रतिशत श्रेय युवाओं को जाता है। अगर देश के युवा जग गये तो राम राज्य आना तय है।