Monday, October 21, 2019

ज्योतिष एवं रोग

समीर कुमार श्रीवास्तव


ईश्वर करें:
''मेरी नासिका पुरों में श्वास,
कण्ठ में वाणी, आंखों में दृष्टि,
कानों में स्वर एवं शीश पर केंश रहें
मेरे दाँत कभी न टूटें न कलुषित हों,
मेरी भुजाओं में बल, जंघाओं में शक्ति, एवं पैरांे में गति रहे।
 मेरे कदम सदैव मजबूती से बढ़े। मेरे सर्वांग सुचारू रूप से काम करते रहें तथा मेरी आत्मा सदैव अविजित रहे।'' 
 आधुनिक जीवन की आपाधापी में यद्यपि विकसित चिकित्सा विज्ञान की कृपा से आम इंसान की आयु में बढ़ोत्तरी हुई है, परन्तु सेहत का ग्राफ पहले युग के मुकाबले अधिक नीचे आ गया है। 25 से 40 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते आज के नवयुवक असामान्य रोगों के शिकार हो जाते हैं। जंक फूड, तनाव ग्रस्त स्थितियां एवं विपरीत स्थितियों में संघर्ष करने के कारण शरीर की जीवंतता बड़ी जल्दी क्षीण होने लगती है। तरह-तरह की चिकित्सा पद्धति की उपलब्धता के बावजूद 'तीर या तुक्का' की तरकीब लगाई जाती है कि प्राकृतिक न सही तो होम्योपैथिक और होम्योपैथिक न सही तो आयुर्वेदिक और कुछ नहीं तो एलोपैथिक तो है ही अन्तिम उपाय। इसी कारण आज के माहौल में ज्योतिष संबंधी भेषज ज्ञान की उपयोगिता और प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। मानव शरीर पूर्ण रूप से 12 राशियों, 27 नक्षत्रों तथा 9 ग्रहों से प्रभावित होता है। जिस समय जीव माता के गर्भ में होता है उस समय ग्रहों से आने वाली किरणें माता के गर्भ को प्रभावित करती है।
 आकाश में जो ग्रह बलवान होकर भ्रमण कर रहा होता है और उस समय उस ग्रह से सम्बन्धित अवयव का निर्माण हो रहा होता है तो वह अवयव मजबूत हो जाता है और जब उस ग्रह की दशा चलती है तो जातक को उस अंग से सम्बन्धित कष्ट होता है।
 कुछ लोगों का तर्क है कि इन सुदूर स्थित ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ना केवल एक काल्पनिक सोच है और तथ्य से परे है। परन्तु यह तो विज्ञान भी मानता है कि चन्द्रमा के प्रभाव से ही सागर में ज्वार-भाटा आता है। अतः यह स्पष्ट है कि द्रव पर तो यह प्रभाव कारगर होता ही है, तो फिर मानव शरीर पर क्यों नहीं होगा जो 80 प्रतिशत द्रव पदार्थों से ही बना है।
 शरीर च नवच्छिद्रं व्याधिग्रस्तं कलेवरम्।
 औषधं जाहनवीतोयं वैद्यो नारायणो हरिः।।
 अर्थात् ये शरीर नौ छिद्रों से युक्त और व्याधिग्रस्त है, इसके लिए गंगाजल ही औषध और भगवान नारायण ही वैद्य है।


कला ही जीवन है और जीवन ही कला

 कला हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है इसके बिना जीवन सम्भव नही है। कला का दूसरा नाम सांस्ड्डतिक जीवन है।
 कला 'कल' धातु से बना हुआ संस्कृत का वह शब्द है जिसका अर्थ सुन्दर एवं मधुर है 'कल' आनन्द यति ''इतिकला'' अर्थात् जो मानव के मन मस्तिष्क और आत्मा को आनन्द विभोर कर दे वह कला कहलाती है। अंग्रेजी और फ्रेंच  में 'आर्ट' लैटिन में आर्टम और आर्स शब्द से कला को व्यक्त किया गया है। लैटिन में आर्स शब्द का वही तात्पर्य है जो संस्ड्डत की धातु 'अर' का। अर अर्थात बनाना, रचना करना या पैदा करना।
 कला को अभिव्यक्ति, आनन्द प्राप्ति सत्यम् शिवम् और सुन्दरम् की भावनाओं को अनुभूति कराने का साधन कहा गया है। यदि कला को सूक्ष्म रूप से देखे तो तीन भेद स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते है।
आचरण विषयक कला- इसके माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होता है। इस कला को उपदेशात्मक कला भी कह सकते हैं।
 ललित कला- इसके अन्तर्गत आनन्द देने वाली संगीत कला जो श्रोता को भाव विभोर सांस्ड्डतिक सांसारिक संतापो से विमुक्त कर ब्रह्मलीन कराती है। मूर्तिकला और चित्रकला में जान फूंकने वाले कलाकारों के माध्यम से हमें उस ब्रह्म का ज्ञान होता है, जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया है।
उदार कला- शेष सभी विषय जो मानव मात्र के लिए हितकर है और उसके लिये उपयोगी होते हुए भी आनन्द की अनुभूति कराते हैं, इसके अन्तर्गत आते हैं।
 विज्ञान, काव्य और साहित्य विद्या के अन्तर्गत आते है। सभी प्रकार की कलाएं एवं समस्त ज्ञान जिससेे रसानुभूति के साथ-साथ कौशल का भी हमें आभास होता है, उपविद्या के अन्तर्गत आती है। हमारा लोक जीवन बहुत विशाल है साथ ही साथ गहराई लिए हुए भी। भारतीय इतिहास का कोई भी युग ऐसा नहीं है जिसमें पुरातत्व की सामग्री कहीं न कहीं कला रूप में दृष्टि गोचर न हो, )ग्वेद में कला के व्यापक प्रयोग के साथ-साथ रामायण में महाराजा दशरथ के महल को कला शिल्पियों द्वारा सुसज्जित करना तथा इन्द्रजीत ;मेघनादद्ध के रथ पर कला का मोहक चित्रण किया गया। महाभारत में फर्श इस प्रकार बनवाये गये थे, जहाँ पानी भरे होने का भ्रम होता था दीवारों पर द्वार होने का भ्रम उत्पन्न होता था। अजन्ता एवं एलोरा गुफाओं की चित्रकला, प्राचीन भारत की विकसित कला का बेजोड़ नमूना है। मुगलकालीन युग में अकबर चित्रकला का विशेष प्रेमी था तथा शाहजहां भी अच्छे कलाकारों को पसन्द करता था।
 कला एवं संस्कृति, सृजनात्मकता एवं सौन्दर्य को प्रत्यक्ष करने का साधन है। प्रत्येक कलात्मक रचना में सौन्दर्य की अनुभूति होती है। और उसमें हमें श्री भी दृष्टिगोचर होती है। श्री और सौन्दर्य को देखने के लिए सहृदय होने की आवश्यकता है।
रूप भेदाः, प्रमाणान्ति, भाव, लावण्य योजनम्।
सदृश्य वार्णिका भंग इति चित्र शडांगकम्।।
 वास्तव में कला सत्य की खोज के समय ज्ञान का विश्लेषण करने और जीवन का मूल्यांकन करने में पूर्ण सहयोग करती है।


भ्रष्टाचार, उन्मूलन एवं सम्पूर्ण परिवर्तन

 चरित्र मानव जीवन की अमूल्य निधि एवं मानवता का शृंगार है। सदाचार ही जीवन है। सदाचार ही पृथ्वी पर स्वर्ग को उतारता है, पर आज हमारे देश में उसका शनैः शनैः ट्ठास होता जा रहा है। सदियों की साधना से अर्जित जीवन-मूल्यों का पतन हो रहा है। अतः देश में अनेक समस्यायें उत्पन्न होती जा रही हैं जिन्होंने हमारे राष्ट्र के विकास को अवरु( कर रखा है। इनमें भ्रष्टाचार की समस्या भी एक है। 
 आज हमारे देश में रिश्वत का बाजार सर्वत्र गर्म है। आज अनुचित रूप से पैसा देकर अपनी इच्छानुसार कार्य कराया जा सकता है। न्याय तक क्रय किया जा सकता है। घूस देने वाले के समक्ष कठिनाइयों के पर्वत चूर-चूर हो जाते हैं। विपत्तियों के बादल तिरोहित हो जाते हैं, निराशा का अन्धकार समाप्त हो जाता है। सुख की पियूस वर्षा होने लगती है, आनन्द का सागर लहराने लगता है। सब प्रकार की सुविधायें प्रदान करने के कारण इसको 'सुविधा शुल्क' नाम से विभूषित किया गया है। 
 उत्कोच ने देश में त्राहि-त्राहि मचा रखी है। इसके आतंक से प्रतिभा पलायन कर गयी है। सदगुण कन्दराओं में जा छिपे हैं न्याय सिर धुन रहा है, शासन गूंगा, बहरा और अपंग हो गया है। घूस के संरक्षण में गधे घी पी रहे हैं।, कौए सम्मान पा रहे हैं, हत्या, लूटमार आदि जघन्य अपराध पनप रहे हैं, पापी निर्भय होकर विचर रहे हैं, नारियों की इज्जत लूटी जा रही है, हरिजनों पर कहर ढाया जा रहा है। कहां गये मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन आदर्श? कहाँ गये योगिराज कृष्ण के गीता के उपदेश? ''धनपराव विषतै विषभारी।'' उक्ति के अनुसार क्या अब घूस के रूप में प्राप्त परायाधन विष के समान घातक नहीं है? शरीर के लिये नहीं तो आत्मा के लिये यह अवश्य घातक सि( होगा।
 राजनैतिक पार्टियां लोकतंत्र के नाम पर 65 वर्षों से एक ऐसी राजशाही कायम करने का प्रयास कर रही हैं जिसमें पूँजीपति तो ऐश कर रहे हैं लेकिन राष्ट्र की आम जनता की हालत बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा नहीं है कि मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ आम जनता में आक्रोश नहीं था। लेकिन सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है जो अब समाप्त हो चुकी है। अब जनता जाग गयी है उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आन्दोलन छेड़ दिया है। यह आन्दोलन विश्व का एकमात्र ऐसा आन्दोलन बन गया है जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि हमारे संसद में सिर्फ भ्रष्ट लोग ही अपना कब्जा जमाये बैठे हैं। वहां भी सच्चे ईमानदार तथा जनता के प्रति जवाबदेही वाले सांसद हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी संख्या कम है या वे भ्रष्ट राजनैतिक पार्टियों से सम्ब( हैं। अगर जनता पूर्ण रूप से जग गयी तो भ्रष्ट व्यवस्था का अन्त निश्चित है लेकिन अभी भी राजनेता इस मुगालते में हैं कि जनता पिछली सब बातों को भूलकर उनके चक्रव्यूह में फंस जायेगी और वे फिर सत्ता में बैठकर जनता के विकास, स्वास्थ्य तथा मूलभूत सुविधाओं की लूट बदस्तूर जारी रखेंगे लेकिन यह दूर की कौड़ी साबित होने वाली है। आज से 2000 साल पहले चार्वाक )षि ने एक सूत्र दिया था कि - यावेत जिवेत सुखम जिवेत्, )णम् कृत्वा घृतम पिवेत, भस्मिभूतस्य शरीरस्य पुनरौ जन्मकुताः? यह सूत्र दो हजार वर्षों से धार्मिक साहित्यों में बन्द था। इस सूत्र को हमारे राजनेताओं नें अक्षरशः सत्य कर दिखाया। आज राजनीति पैसा कमाने का आसान जरिया बन गयी है। हर राजनेता देश को लूटने में मस्त है कोई रोकने वाला नहीं है। ये चाहते हैं कि वे जब तक जिये सुख से जियें और विदेशों से कर्ज लेकर घी पियें क्योंकि उनके इस शरीर का क्या एकदिन तो उसे आग में जल जाना है। उन्हें पता है कि उनका जन्म पुनः मनुष्य योनि में नहीं होना है क्योंकि इस जन्म में उन्होंने गि(ों को भी पीछे छोड़ दिया है। गि( तो मरे हुये शव को नोचकर खाते हैं, ये तो देश की तीन चैथाई जनता के हक को ऐसे नोचकर खा रहे हैं कि औद्योगिक क्रान्ति के बावजूद देश की जनता भरपेट भोजन के लिये तरस रही है। ऊपर से राजनेताओं का तुर्रा यह है कि भ्रष्टाचार आम जनता के अन्दर समा गया है इसे समाप्त करना मुश्किल ही नहीं असम्भव है। लेकिन इन्हें कौन समझाये कि संसार में जितने भी चर और अचर प्राणी हैं उनकी पहली आवश्यकता आहार होती है। आहार जब राजनेता हड़प कर जाते हैं तो बेचारा गरीब किस प्रकार अपना तथा अपने परिवार का पेट भरे। जहां अभाव है वहां से सुचिता तथा आदर्श की उम्मीद करना ही बेमानी है। जिन लोगों को आदर्श स्थापित करना चाहिए वे तो कुछ और कर रहे हैं। देश की आजादी से अब तक तो आम जनता में इस व्यवस्था के खिलाफ रोष बढ़ा है और देश के कुछ खास लोगों का अप्रत्याशित रूप से कोष। ये पिछले 65 वर्षों से लोकतंत्र तथा देश की सर्वोच्च तथा पवित्र संसद पर कब्जा जमाये बैठे हैं। जब तक इन जनद्रोहियों तथा देश द्रोहियों की चलती रहेगी तब तक देश की गरीब जनता का भला होने वाला नहीं। एक समाज तभी उन्नत हो सकता है जब सही मायने में लोकतन्त्र स्थापित हो और यह तभी संभव है जब देश की जनता एक जुट होकर लोकतन्त्र स्थापित करने का प्रण ले।
इस देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने में हमारे आपके पूर्वजों की कुर्बानियां जुड़ी हैं। उनकी कुर्बानियों का लाभ देश के कुछ खास लोगों तक ही सीमित है। जिन्हें लाभ मिलना चाहिये उन्हें रोटी तथा सिर छुपाने के लाले पड़े हैं। कितने ताज्जुब की बात है कि आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी देश का विकास सिर्फ शहर तक ही सीमित है। हर प्रदेश के किसान आत्महत्या जैसे घृणित कार्य करने को मजबूर हैं। यह इस वर्तमान व्यवस्था की नाकामी ही है। राजनेताओं ने आम जनता को अंधेरे में रखकर देश की सम्पदा की ऐसी लूट मचा रखी है कि इन्होंने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। अंग्रेजों ने जो लूटा उसका कुछ हिस्सा देश में भी लगा दिया लेकिन ये लोग तो देश का पैसा लूटकर विदेशों में जमाकर अप्रत्यक्ष रूप से विदेशियों की मदद कर रहे हैं। यह राष्ट्र द्रोह है इसलिये देश की समस्त देशभक्त जनता खासकर नौजवान पीढ़ी का कर्तव्य बनता है कि इस भ्रष्ट व्यवस्था से देश को मुक्त कराया जाये, अगर इस भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्ति न मिली तो ये देश को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ''ये खेत बेंच देंगे, खलिहान बेच देंगे। ये देश बेंच देंगे, ईमान बेच देंगे। इनसे बच के रहना यारो। इनका बस चले तो, देश के हर इंसान को बेच देंगे।''
 अगर देश इस भ्रष्ट व्यवस्था से मुक्त हो गया तो कोई कारण नहीं कि देश एक बार फिर सोने की चिड़िया न बने। इसके लिये जरूरत है राष्ट्र के प्रति युवा समर्पण की, क्योंकि युवा ऊर्जा से परिपूर्ण होता है युवा शक्ति ही वास्तविक राष्ट्रशक्ति होती है। राष्ट्र की पहचान युवाओं की आदर्शवादी विचारधारा से बनती है। युवा जब अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करता है तो वह भगवान का अवतार बन जाता है। युवा शक्ति द्वारा ही राष्ट्र सवल बनते हैं। सेवा और समर्पण से राष्ट्र का निर्माण होता है। विश्व में जितनी भी क्रान्तियां एवं विकास हुआ है उसका शत-प्रतिशत श्रेय युवाओं को जाता है। अगर देश के युवा जग गये तो राम राज्य आना तय है। 


नैनोटैक्नोलाॅजी: सुनहरा भविष्य

 जिस प्रकार तरल पदार्थ मापने की इकाई लीटर है तथा लम्बाई या दूरी नापने की इकाई मीटर है। उसी प्रकार दूरी का एक अति सूक्ष्म मात्रक नैनोमीटर हैं यह 1 मीटर का एक अरब भाग होता है। नैनो का अर्थ होता है बौना अर्थात छोटा, 1 बिलियनवाॅ भाग (1 अरबवाॅ भाग, 1 नैनोमीटर = 10-9 मीटर) इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अगर हम हाइड्रोजन के 10 अणुओं को एक के बाद एक सटाकर बिछा दे तो मात्र यह 10 अणु ही एक नैनोमीटर लम्बे हो पायेंगे। अतः ''आज के समय कोई ऐसा पदार्थ या संयंत्र, उपकरण अथवा इसका कोई ऐसा भाग जिसका आकार एक नैनोमीटर या इसके आसपास हो और पूरी तरह से कार्यशील होकर प्रौद्योगिकी के उपयोग में आये, उससे जुड़ा हुआ विज्ञान नैनोटैक्नोलाॅजी कहलाता है।''
 नैनो की सूक्ष्मता का अनुमान आप इस बात से लगा सकते है मानव के एक बाल की मोटाई 80, 000 नैनोमीटर होती है, एक लाल रक्त कोशिका 5000 नैनोमीटर की होती है तथा 1 इंच 25 करोड़ 4 लाख नैनोमीटर होते हैं। डी.एन.ए. का एक अणु 2.5 नैनोमीटर का होता है।
 नैनोटैक्नोलाॅजी की शुरूआत:-
 जब भी नैनोटैक्नोलाॅजी के विषय में हम पीछे मुड़कर देखते है तो हमारा ध्यान 1959 में प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमेन द्वारा बहुत ही लोकप्रिय लेक्चर There is Plenty of room at the bottom की तरफ जाता है जिसमें सर्वप्रथम उन्होंने नैनोमीटर स्तर पर पदार्थ के गुण और उससे बनने वाली वस्तुओं के संभावित विषय पर चर्चा की थी नैनोटेक्नोलाॅजी शब्द का प्रथम इस्तेमाल सर्वप्रथम टोकिया विश्वविद्यालय के नोरिओं तानीगुची ने 1974 में प्रकाशित अपने एक शोध पत्र में किया था लेकिन इस विज्ञान के बारे में जनचेतना का श्रेय अमरिका के फोरसाइट नैनोटैक संस्थान के संस्थापक निदेशक एरिक डेªक्सलर को जाता है जिन्होंने 1986 में अपने बहुत ही प्रसिद्ध दस्तावेज ''एन्जिन आॅफ क्रियेशन: द कमिंग नैनोटैक्नोलाॅजी'' को प्रकाशित किया। एरिक ड्रेसलर को नैनोटैक्नोलाॅजी के जनक के नाम से जाना जाता है। आज कल ये नैनोरेक्स नामक कम्पनी के मुख्य तकनीकी अधिकारी है।
 आज जो शोध   हो रहे है उनका केन्द्र बिन्दु दूसरी तकनीकियों के साथ नैनो का सामन्वय है। वास्तव में ऐसी अनेक प्रौद्योगिकियाॅ है जाहॅ आज नैनोकण, नैनो पाउडर, नैनो नलिकाओं   का सफलता से उपयोग हो रहा है। इस सूक्ष्म स्तर (नैनोस्तर) पर पदार्थ का व्यवहार बिल्कुल ही अलग होता है। उसकी रासायनिक प्रतिक्रिया क्षमता बहुत तीव्र हो जाती है। उसकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है। यहाॅ तक कि उसका रंग भी बदल जाता है। इस प्रकार हमारी दुनिया के सामानान्तर एक और दुनिया है जिसे नैनो विश्व कहा जा सकता है।
 ताँबे को नैनो स्तर पर लाने के बाद कमरे के तापमान पर ही इसका लचीलापन इतना अधिक बढ़ जाता है कि इसके तार को खींचकर 50 गुने लम्बे किये जा सकते है जिंक आॅक्साइड जो सफेद होता है नैनोस्तर पर पारदर्शी हो जाता है तथा एल्युमीनियम को नैनोस्तर पर लाने से वह खुद ही आग पकड़कर भस्म हो जाता है। उद्योगों से लेकर पर्यावरण, औषधियों, विज्ञानों और यहां तक कि बहुत सी घरेलू वस्तुओं में भी इसके उपयोग पर कई प्रयोग चल रहे है।
 साबुन, कपड़े, प्लास्टिक जैसे बहुलकों में जिंक नैनोकण तथा चाँदी के नैनोकणों का उपयोग किये जाने की संभावना है जिससे इनकी गुणवत्ता में कई गुना वुद्धि हो जाती है इन्हीं कणों का उपयोग सूक्ष्मजीव-रोधी, एन्टी बैक्टीरियल, एन्टीबायोटिक तथा एन्टीफंगल क्रीमों में उपयोग करके दिन-प्रतिदिन की वस्तुओं को इस कदर सुग्राही तथा प्रभावी बनाया जा सकेगा कि इन वस्तुओं के 100 प्रतिशत परिणाम नजर आयें।
 विश्व में ऊर्जा संकट को ध्यान में रखते हुए ठोस आॅक्साइड ईधन सैलों में  लैथेनम, सीरियम, स्ट्राॅन्शियम टाइटेनेट नैनोकणों और टेंटेलम नैनो कणों का उपयोग करके अगली पीढ़ी की लीथियम आयन बैट्रियों में बदलकर सर्वश्रेष्ठ बनाया जा रहा है। इसी प्रकार सौर ऊर्जा सैलों में बहुत ही उच्च शुद्धता वाले सिलिकाॅन नैनोकणों का उपयोग करके उनकी कार्यक्षमता के साथ-साथ कार्यकाल में वृद्धि की जा रही है।
नैनोटैक्नोलाॅजी की औषधि विज्ञान में भूमिका:- बहुत से नैनोकणों का उपयोग तो औषधि विज्ञान व जीव-विज्ञान में सीमा रहित हैं जैसे- कैल्शियम फाॅस्फेट के नैनो क्रिस्टल को इस्तेमाल करके क्रत्रिम हड्डी के ऐसे पदार्थ का निर्माण किया गया है जो हर हालत में अपनी गुणवत्ता वाले ग्.तंल चित्रों के लिये विशेष रूप से वे, जिनसे दांतों का परीक्षण किया जाता है, टंगस्टन आॅक्साइड नैनोकणों का उपयोग किया जा रहा है। यहां तक कि कैंसर के प्रभावी उपचार में भी इसके असीमित इस्तेमाल की संभावना है जिन पर अनुसंधान चल रहा है।
नैनोरोबोट्स अथवा नैनोबोटस:-
 नैनोबोट्स बहुत छोटे कण (0.5 से 3 माइक्रोमीटर के रोबोट) होते है कि ऐसे कल पुर्जों से बने होते हैं जिनका आकार 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है। इसमें कार्बन की नैनोनलिकाओं जिन्हें फुलरीन्स कहते हैं, का उपयोग कर इलेक्ट्रानिक चिप्स बनाये जाते है इन रोबोट्स को शरीर के अन्दर रक्तवाहिनियों आदि में आसानी से प्रविष्ट कराया जा सकता है। इन नैनोरोबोटों से, प्रारम्भिक रूप से बगैर किसी ऐन्टीबायोटिक का इस्तेमाल कर रोग जनक बैक्टीरिया को तो नष्ट किया जा सकता है लेकिन वहीं दूसरी ओर हानि रहित व सामान्य जीवाणुओं को हानी पहुंचाये बिना भी बचाये रखा जा सकता है। ऐसे नैनोरोबोट्स शरीर की सामान्य प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि कर सकते हैं। बाहर से जब कोई अनचाहा रोगाणु प्रवेश करेगा तो ऐसी नैनो मशीनें उसमें पंक्चर कर उसके प्रभाव को समाप्त कर सकेगी।
 ऐसी क्रीम का भी प्ररीक्षण किया जा चुका है जिसमें नैनोरोबोट्स होते है। इस क्रीम में उपस्थित नैनोरोबोटों की सहायता से मृत व खराब त्वचा व पिम्पल्स को हटाकर त्वचा में अच्छी सौन्दर्यता प्रदान की जा सकती है। इस प्रकार भविष्य में मेक-अप की सामग्री नैनोटैक्नोलाॅजी के द्वारा उत्पादित हो सकेगी।
नैनो टैक्नोलाॅजी द्वारा कम्प्यूटर:-नैनो टैक्नोलाॅजी से बनने वाले भविष्य के कम्प्यूटर न केवल तेज रफ्तार वाले होंगे - क्योंकि उनमें कार्बन की नैनोनलिका द्वारा बने चालक की चिप्स होगी- बल्कि वे आकर में भी छोटे होंगे। एक विशेष प्रकार के क्वाण्टम कम्प्यूटर्स का निर्माण भी नैनो टैक्नोलाॅजी से ही संभव हो पायेगा। नैनो टैक्नोलाॅजी का उपयोग न सिर्फ उच्च प्राद्योगिकी में अपितु सुरक्षा विज्ञान और अन्य शाखाओं में हो रहा है। इसी प्रकार नैनो प्रोद्योगिकी का अन्य कई क्षेत्रों में भी जैसे जैव-प्रौद्योगिकी, क्वाॅटम कम्प्यूटर्स में महत्वपूर्ण उपयोग है। जिनके क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान हो रहा है।
 परन्तु नैनो टैक्नोलाॅजी के असीमित उपयोगों के साथ कुछ हानियाँ (पर्यावरणीय खतरे) भी हैं। जिनको दूर करने के संबंध में प्रयास (अनुसंधान) हो रहे हैं।