Monday, October 21, 2019

गाय हिन्दू संस्कृति का टोटेम है

भारतीय संविधान के मूलाधिकारों में प्रत्येक भारतीय को अनुच्छेद २५ से २८ तक अवश्य पढ़ना चाहिए क्योकि अपने धर्म के प्रति किसी धार्मिक समुदाय के लिए क्या अधिकार प्राप्त है इसकी विशद  और पर्याप्त व्याख्या इसमें की गयी है द्य अनुच्छेद २६ में धार्मिक स्वतंत्रता की बतकही गयी और ये भी अधिकार दिया गया है कि धार्मिक मामलों में अपने कार्यो का प्रबंधन किया जा सकता है | कुछ दिन दे गौ हत्या को लेकर जिसतरह से एक संवाद समाज के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है उससे अखिल भारतीय अधिकार संगठन सहमत नहीं है और उसको लगता है कि भारतियों को अपने देश में रहने वाले धर्मो और उन धर्मो के लिए संविधान में की गयी व्यवस्था को न सिर्फ जानना चाहिए बल्कि इस बे सर पूँछ के विवाद को विराम भी देना चाहिए |
भारत का इतिहास का आरम्भ ही इस देश के उन लोगो से होता है जिनका अस्तित्व ही तब नहीं था जब वो लिखा जाना शुरू किया गया द्य यहाँ के धार्मिक देवी देवताओ की बात करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा गया कि प्रत्येक जीव जंतु को भी देवी देवताओ से जोड़ करके उन्हें जिओ और जीने दो के सिद्धांत में सम्मिलित किया जाये और ऐसा हुआ भी द्य प्रत्येक हिन्दू घर में गाय को दी जाने वाली पहली रोटी में जहा उसकी सर्वोच्चता को स्वीकार करने का तथ्य समाहित था वही यह भी वैज्ञानिकता सम्मलित थी कि गाय को ताजे भोजन में किसी भी तरह के विकार का ज्ञान आसानी से हो जाता है | हमारी  इस धार्मिक भावना को बल दिया गया हमारे परम देव महादेव की सवारी नंदी बैल से जिसका प्रमाण सिंधुघाटी सभ्यता में भी प्रमाणित है और देवासुर संग्राम के समय हुए समुद्रमंथन में निकली काम धेनु गाय से | याज्ञवल्क्य स्मृति हो या फिर नचिकेता के पिता द्वारा दिए जाने वाले गौ के दान का वर्णन हो सभी में हिन्दू संस्कृति में गाय को समुचित स्थान मिला है द्य गाय को सिर्फ इस लिए माँ का दर्ज नहीं प्राप्त हो गया क्योकि हम भारतियों को भावना में बहने की आदत है बल्कि इस लिए ऐसी व्यवस्था सामने आई क्योकि गाय के दूध में उन्ही तत्वों का समावेश है जो ज्यादातर मानव माँ में पाया जाता है | इसी लिए मानव माँ के दूध पिलाने में अक्षमता की स्थति में एक नवजात शिशु को जिन्दा रखने में गाय का दूध एक संजीविनी साबित हुआ है इस लिए गाय हमारे बीच माँ बन कर प्रतिष्ठित हुई है |मानवशस्त्र एक ऐसा विषय है जो हर समस्या का एक समुचित समाधान देने में सक्षम रहा है | इसी लिए आज आपको टोटेम शब्द से परिचित करना चाहता हूँ द्य टोटेम एक काल्पनिक व्यक्ति या वास्तु या पशु को प्रतीक रूप में एक समूह द्वारा दी जाने वाली मान्यता है जिससे वो अपने समूह के के जन्म या अस्तित्व को जोड़ते है | जैसा कि मैंने पहले कहा कि हिन्दू संस्कृति है और इसी लिए ब्रिटेन के विधि विशेषज्ञ  भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को वहा की शैली हिंदुत्व से जोड़ कर देखते है| और इसी लिए गाय हिन्दू संस्कृ का टोटेम है न कि उसको एक जानवर की तरह देख कर आंदोलन किया जा रहा है और ऐसा नहीं है कि टोटेम जैसी स्थिति कोई कृत्रिम स्थिति है | मुंडा जनजाति का टोटेम हेम्ब्रम ( बकरा ) है तोडा जनजाति का टोटेम भैस है | ये जनजातियां इस जानवरों को इतना पवित्र मानती है कि ना तो इनको मारते
 है और ना ही इनको कहते है द्य भैस को पलने वाले पुजारी पुलोल कहलाते है द्यकुछ दिन पहले तक तोडा में ये मान्यता प्रचलित थी कि अगर उनके समाज में पैदा हुई लड़की भैस के बाड़े में पूरी रात जिन्दा रह गयी तो उसे समाज में सम्मलित कर लिया जाता था द्य ऐसे में अगर स्वतंत्र भारत के बहुसंख्यक समुदाय की संस्कृति के अनुरूप उसके टोटेम गाय को अक्षुण्ण रखने के प्रयास किया जा रहे है जो बुराई क्या है ? क्या संविधान के मूलाधिकारों से आच्छादित किसी धर्म के मूल्य या संस्कृति इस लिए संरक्षित नहीं रहने चाहिए क्योकि वो समूह बहुसंख्यक है | अगर आब ए जम जम ( मक्का जाने वाले ये पानी लेट है जो उतना ही पवित्र है जितना हिन्दू के लिए गंगा ) या होली वाटर( ईसाईयों का पवित्र जल ) का संरक्षण हो सकता है तो गंगा को क्यों दूषित किया गया| जिस चरस के लिए होली वाटर का मूल्य था उस चार्ल्स ने हिन्दुओ के पवित्र गंगा जल को १९३२ में पहला नल गनगा नदी में वाराणसी में खोल कर क्यों गन्दा किया ? क्या आधुनिक भारत का संविधान जो धर्म निरपेक्षता की वकालत करता है उसका बहुसंख्यक के धार्मिक मूल्यों के प्रति वचनबद्ध होना साम्प्रदायिकता है ? तो इस से यह भी स्पष्ट है कि आज भी भारत में आने वाले लोगो का भारत में संविधान के अनुसार चलना अच्छा नहीं लग रहा है|  संयुक्त राष्ट्र संघ के १०९ कन्वेंशन में जब ये बात उठी कि भारत के मूल लोग कौन है ? तो भारत ने कहा कि भारत में सभी लोग मूल निवासी ही है और ये बात इस लिए उठी क्योकि अमेरिका में वहा के मूल निवासी रेड इंडियन को मार कर गोर लोग बसे थे| जब मूल की बात हो रही है तो मूल धर्म के संरक्षण पर इतनी हाय तौबा क्यों | क्या किसी धर्म के सर्वमान्य टोटेम को इस लिए मरने दिया जाये क्योकि उस देश में और धर्म के लोग भी रहते है I निश्चित रूप से ये गलत परम्परा है और असंवैधानिक है | किसी की धार्मिक भावना को चोट पहुचाना है द्य एक धर्मिक तथ्य के कारन ही तो कोई गैर मुस्लिम मक्का नहीं जा सकता और पूरी दुनिया उसका पालन करती है तो फिर भारत जैसे देश में जहा एक धर्म के लोगो के लिए गाय माता है तो उन्ही लोगो के सामने गाय मारना , खाना क्यों सही हो सकता है और अपने धर्म का प्रचार और उसको बचाये रखना जब मूलाधिकार है तो उसके लिए सरकार , उच्चतम न्यायालय सभी का जिम्मेदार होना लाजमी है क्योकि सरकार कोई भी हो वो भी 


संविधान के अंतर्गत ही है और अगर संविधान  बनने के बाद किसी सरकार में किसी


 धर्म के भवना ओ न समझते हुए उनके धर्मिक टोटेम के प्रति कठोर कदम नहीं उठाये 
तो इसके लिए किसी सरकार द्वारा उठाये गए कदम को साम्प्रदायिकता के आईने 


में देखना और उस प्रयास का गलत प्रचार करना एक असंवैधानिक कार्य है और देश संविधान , कानून को ना मैंने वालो को देश हित वाला नहीं कहा जा सकता द्य जब दुनिया के हर धर्म के पवित्र स्थान , पानी आदि के लिए दुनिया में अपने नियम है तो दुनिया


 के विशाल धर्म के लोगो के मंदिर , पानी और पशु की वैसे ही मान्यता और सुरक्षा होनी चाहिए जैसी दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म की पवित्रता के लिए चाहते है  जितनी पवित्रता 


वेटिकन सिटी की है जितनी पवित्रता मक्का की है उससे किसी भी हालत में भारत की पवित्रता को कम नहीं आँका जाना चाहिए जहा से सनातन धर्म का सूत्रपात हुआ और सके हर तत्व को बचाना  और उस देश में उस धर्मिक मूल्यों के लिए ऐसे किसी भी 


कृत्या को रोकना एक उचित कदम है इसको ये कह कर बढ़ावा  नहीं दिया जा सकता कि दूसरे देश में गाय की चर्बी से चॉक्लेट बन रही है क्योकि महत्व उस स्थान का है जहा किसी धर्म और उसके  पवित्र तत्वों ने जन्म लिया और इसी लिए  भारत में गाय  के मारे जाने उसको खाने का विरोध होना ही चाहिए और ऐसा विरोध करने का अधिकार हमारा संविधान हमें देता है |


..डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन


Sunday, October 20, 2019

कैसे बदल गई बांदा कताई मिल की तस्वीर, करने लगे लोग पलायन

20 अप्रैल 1981 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बांदा कताई मिल का शिलान्यास 1983 में 1500सौ मजदूर 10000 किलो 45 लाख का धागा रोज बनाकर देते थे। यह चलती मिल कैसे बर्बाद हुई पढ़ें! 15 वर्ष चलने के बाद युवा पीढ़ी जाने समझे सवाल करें सरकारों से, अपने जनप्रतिनिधि से, जिम्मेदारों से, जो रोजगार देते थे। अपने यहां वे पलायन कर रोजगार मांग रहे हैं अन्य राज्यों से आपके शहर में भारत के कई राज्यों के लोग नौकरी करते थे अपना पेट पालते थे।



 बांदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 20 अप्रैल 1981 को बांदा कताई मिल का शिलान्यास किया था 85 एकड़ जमीन में बहुत खूबसूरत बाग बगीचे फूल खूबसूरत बिल्डिंग बनकर तैयार हुई बड़ी सुंदर तकनीकी की मशीनें लगाई गई 1350 मजदूर 150 कर्मचारी अधिकारी बड़ी ईमानदारी से मेहनत से धागा तैयार करते थे जो उच्च क्वालिटी का था। जिसकी बाजार में मांग थी बांदा कताई मिल के धागे का इस्तेमाल भारत ही नहीं विदेशों में कपड़ा बनाने वाली मिले मांग करती थी। नेपाल बांग्लादेश चाइना भूटान सहित कई देशों को बांदा कताई मिल का धागा जाता था भारत के कई राज्य जहां कपड़ा मिले लगी थी।बांदा कताई मिल का धागा उनकी पहली प्राथमिकता थी बड़ी होशियारी से बांदा कताई मिल को 1992 में बीमार घोषित कर दिया गया। औद्योगिक वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड भारत सरकार दिल्ली ने इस बंदी को अवैधानिक माना इस मिल को चलाने के लिए 1992 में मात्र 35 करोड़ रुपए की आवश्यकता थी। 100 कुंटल धागा बनाने वाली मशीन मजदूर कर्मचारी एक ही आदेश पर बेकार हो गए। धागा मिल के शुरुआती दिनों में 1800 सौ मजदूर काम करते थे वर्क बढ़ता गया मिल प्रबंध तंत्र लेबर निकालती गई अपने अयोग्य लोगों को  रखने की कोशिश शुरू कर दी गई। इस कताई मिल के साथ के  स्थापना से ही भेदभाव शुरू किया गया जो मशीन 50000 तकुवा धागा की होनी चाहिए थी वह बांदा में 25000 तकुवा धागा की लगी। इस कताई मिल का  उद्देश्य था बुंदेलखंड के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देना किसान कपास पैदा करें उनका नौजवान इस मिल में नौकरी कर धागा बनाए। इस कताई मिल को कई बार बेचने की साजिश भी की गई अभी यह साजिश जारी है बड़ा बड़ा प्रलोभन दिखाकर शायद साजिशकर्ता बांदा के एकमात्र इस उद्योग की मिल को बेचना दें यूपी एसआईडीसी उत्तर प्रदेश यार मिल कितनी सक्रियता करती है रोजगार देने में आपके सामने है विभिन्न सरकारों ने उत्तर प्रदेश की 26 मिलो की क्या हालत कर रखी है बताने की जरूरत नहीं है बलिया, मेजा, जौनपुर, बांदा में तथा झांसी की कताई मिलों की स्थिति पर विचार करने की जरूरत है विशेषकर बांदा, झांसी जहां से प्रतिदिन बेरोजगार युवा  हजारों की संख्या में पलायन कर रहा है रोजगार के लिए बुंदेलखंड की चर्चा पूरे भारत में बेरोजगारी गरीबी के लिए प्रचारित की जाती है। श्रम विभाग के तत्कालीन श्रम आयुक्त ने इस मिल बंदी को गलत माना इस मिल की स्थापना 18 करोड 36 लाख रुपए खर्च करके की गई थी। बंगाल, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली के मजदूर बांदा में काम करते थे ग्रेड 4 से लेकर ग्रेड 60 तक का धागा यहां तैयार होता था। चित्रकूट मंडल सैकड़ों वर्ष से यहां के किसान कपास की खेती करते आ रहे हैं धागा कपड़ा व्यापार के लिए यहां की भूमि व जलवायु सबसे उपयुक्त है बांदा कताई मिल के धागे की भारत सहित अन्य देशों में इतनी मांग थी कि डिमांड पूरी नहीं हो पाती थी मांग के अनुसार लेकिन बेईमान मिल प्रबंध तंत्र ने अपने स्वार्थ के लिए सदैव घाटा दिखाया 350 बीघा 50 एकड़ में बनी यह बांदा कताई मिल अपने आप में इतनी खूबसूरत थी कि बांदा जिले के अलावा बाहर के अधिकारी इस मिल की खूबसूरती देखने आते थे। इस मिलके पार्क वा फूलों के वजह से कई बार फिल्म की शूटिंग भी हुई इस मॉडल पर कई बिल्डिंग का निर्माण अन्य जगह हुआ मजदूर खुश थे, परिवार खुश थे, बच्चे प्रसन्न थे तत्कालीन नेताओं की नासमझी के कारण सब बर्बाद हो गया लोगों के सपने टूट गए इस मिल बंदी को औद्योगिक न्याय अधिकार प्राधिकरण इलाहाबाद की खंडपीठ ने असंवैधानिक माना बार-बार बुलाने के बावजूद मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर 20 बरस से इस मिल में कार्यरत मजदूरों कर्मचारियों को परेशान करता रहा। उनके बकाई के लिए के लिए तत्कालीन पीठासीन अधिकारी माननीय विजय कुमार त्रिपाठी आईएएस ने अपने निर्णय दिनांक 4-1-2016 के निर्णय में कहा कि कताई मिल मजदूरों की मांगे जायज है कताई मिल प्रबंध तंत्र जानबूझकर परेशान कर रहा है उन्हें उनका भुगतान तुरंत दिया जाए। यूपी एसआईडीसी तथा उत्तर प्रदेश सहकारी कताई मिल संघ कुछ खिचड़ी पका रहे हैं। कताई मिल प्रबंधन इस मिल को 1992 से बंद दिखा रहा है जबकि यह मेल 3 दिसंबर 1998 को बंद हुई चलती हुई मिल को बंद करना एक साजिश है क्या वर्तमान में देश की मिलों को धागे की जरूरत नहीं है हजारों मिले देश में कपड़ा बनाती हैं वे धागा खरीदती हैं। नई नई धागा मिले खुल रही तो यह क्यों नहीं चल सकती यक्ष प्रश्न? जिसका समाधान हो सकता है इच्छाशक्ति से इस मिल को बचाने के लिए चित्रकूट मंडल का कोई भी नेता मुझे पिछले 20 वर्षों से नहीं देखा केवल कताई मिल मजदूर संघ के नेता रामप्रवेश यादव संघर्ष करते हैं अपने कुछ साथियों के साथ जो बाहर के हैं हम उनके आभारी हैं जो काम बांदा मंडल वासियों को करना चाहिए था यादव जी कर रहे हैं।
बुंदेलखंड कनेक्ट के समन्वयक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण निगम का कहना है कि बांदा कताई मिल से एक ओर जहां बेरोजगारों को रोजगार मिलता वहीं दूसरी ओर छोटे बड़े सभी व्यापारियों किसानों स्थानीय नागरिकों को किसी न किसी रूप में पैसा मिलता यह कताई मिल राजनीति का शिकार हो गई। बांदा के बड़े-बड़े नेता हुए अगर वह थोड़ा सा सोच लेते तो यह मिल चल जाती है पलायन रुकता, हमारे युवाओं को रोजगार के लिए बाहर न जाना पड़ता बांदा का पैसा बांदा में रहता। महोबा निवासी जाने-माने जनप्रतिनिधि प्रसिद्ध राजनीतिक घराने के मनोज तिवारी का कहना है कि कताई मिल के बांदा में खुल जाने से चित्रकूट धाम मंडल के बेरोजगारों को रोजगार मिलता साथ ही पूरे बुंदेलखंड से पलायन रुकता तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने स्थानीय जनता के साथ धोखा किया। चित्रकूट निवासी वरिष्ठ पत्रकार कानपुर संदीप रिछारिया का कहना है कि कताई मिल से बुंदेलखंड के विकास के रास्ते खुलते हैं एक ओर जहां आर्थिक संपन्नता आती क्षेत्र में वहीं स्थानीय किसान कपास की खेती करते जो पहले से होती थी सरकार को चाहिए कि कताई मिल शुरू करें। हमीरपुर के निवासी ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री देवी प्रसाद गुप्ता का कहना है कि यह कताई मिल बुंदेलखंड के लिए उपलब्धि थी खासकर चित्रकूट मंडल के लिए स्थानीय नागरिकों को रोजगार मिलता पूरे देश में संपर्क होता मिल बंद होने से हताशा हुई, निराशा हुई। बांदा निवासी कई समाचार पत्रों के संपादक रहे दिल्ली वरिष्ठ पत्रकार अरुण खरे का कहना है कि नई तकनीक की मशीनें मंगाकर काम शुरू करें कताई मील में पूरे संसाधन उपलब्ध है फिर से कताई मिल शुरू की जाए राजनीतिक लोगों को पहल करनी चाहिए। दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार  मुकुंद गुप्ता  का कहना है कि यहां के राजनेता कभी भी गंभीर नहीं रहे  रोजगार देने के लिए पलायन रोकने के लिए। युवा सामाजिक कार्यकर्ता आगे आए आखिर कब तक हम रोजगार की तलाश में बाहर जाते रहेंगे। कपास जूट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन दिनेश कुमार जी ने कहा कि बांदा की कताई मिल बंद होने से देश के किसानों का नुकसान हुआ है। बांदा निवासी अधिवक्ता आदित्य सिंह परिहार बहुत अफसोस के साथ कहते हैं बांदा की कताई मिल को नियमानुसार बंद ही नहीं किया जा सकता था क्योंकि यह मिल  राज सरकार की पुनर्वास योजना के अंतर्गत संचालित की गई थी जिस का उल्लेख कताई मिल कंपनी की ओर से हाई कोर्ट इलाहाबाद में दायर की गई थी। रिट संख्या 13 व्थ्ओ एफ 1998, 2006 त्क्।भ्आरडी एज 14 फरवरी 2006 हाई कोर्ट इलाहाबाद कोर्ट नंबर 9 न्यायमूर्ति सुनील अंबानी के जजमेंट में उल्लिखित है। कताई मिल कंपनी को 1985 में अध्याय 22 में बीमार मिलों के संचालन के लिए विशेष आर्थिक अनुदान की व्यवस्था की गई है बांदा मिल को चलाने के लिए इसकी भी मदद नहीं ली गई बांदा कताई मिल जानबूझकर बंद की गई है। एक साजिश के तहत मिल की जमीन बेची जाए यहां बांदा, चित्रकूट में भुखमरी रहे, पलायन होता रहे राजनीतिक लोग अपनी रोटियां सेकते रहे। पुनर्वास योजना क्या है?इसका पैसा कहां से आया है और उसका उद्देश्य क्या है? यह जानना युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है। देश में चल रहा है कोई भी पुनर्वास इस कार्यक्रम जिस उद्देश्य शुरू किए गए हैं जब तक वह उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता बंद नहीं किए जा सकते चाहे गरीबी हटाने के लिए हो,स्वास्थ्य के लिए हो शिक्षा के लिए, अथवा रोजगार के लिए हो यह साजिश है।


भारत रत्न बनाम सावरकर

10 #मर्सी_पिटिशन लिखने वाला..... कौन??( वीर सावरकर) अंग्रेजों से ₹60 प्रति माह #पेंशन पाने वाला कौन...(वीर सावरकर)


जो अंग्रेजों से 1924 से 1947 तक ₹60 पेंशन लेता रहा ...जो आज के सवा लाख रुपए महीना है.... अपनी पेंशन बढ़ाने के लिए #डी_एम को खत लिखता रहा था .....वो कौन.....(वीर सावरकर)


अब ज़रा #चरित्र_दर्पण हो जाए


जिसने 1908 में #मार्गरेटलॉरेंस नाम की एक अंग्रेज महिला पर असफल #रेप की कोशिश में #चारमहीनेकीसज़ाकाटीहो...वो कौन.....(वीर सावरकर)


अंडमान की पूरी हिस्ट्री में कुल 3 लोगों ने पर्सनल मर्सी पिटिशन फाइल करी थी.... जिसमें से दो #सावरकर_बंधु और एक बाइंद घोष थे.... यानी दो चार डंडे पड़ते ही हिंदुत्व की चड्ढी फट गई...किसकी!!!(वीर सावरकर की)
सेल्यूलर जेल में करीब 8500-9000 के आसपास #सिख कैदी और दूसरे कैदी थे....
7000 के आसपास #मुस्लिम कैदी थे... इनमें से 3-4 को हर महीने फांसी दे दी जाती थी और 7-8 लोग आत्महत्या कर लेते थे ....पर किसी ने भी #माफी.... #दया...... #रहम. ..…#मर्सी के लिए #भीख नहीं मांगी ....
#माफीनामा लिखने के लिए सिर्फ यही #तीन लोग थे ... और इन्हीं तीनों लोगों में से एक को #भारत_रत्न देने की बात चल रही है।
सावरकर #टूनेशनथ्योरी के #प्रेसिडेंट और #कट्टर समर्थक थे....
जिस #हिंदुत्व की परिभाषा आज हम देख रहे हैं ....दरअसल... इस हिंदुत्व की नींव सावरकर ने ही रखी थी.... सावरकर के अनुसार हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग राष्ट्र होने चाहिए... वो एक हो ही नहीं सकते।


तावड़कोर के दीवान को अपने राज्य को हिंदू राष्ट्र घोषित किया तो बधाई किसने दी????(वीर सावरकर ने) 
दारा सिंह को अपना अलग से सिखिस्तान राष्ट्र घोषित करने के लिए किसने कहा!!!(वीर सावरकर)
#जूनागढ़ और #मैसूर के राजा को भी अलग राष्ट्र घोषित करने के लिए बाकायदा लिखा.... किसने??....(वीर सावरकर) 


यानी..


तो जो #खंड_खंड भारत चाहते थे... उनके लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने अखंड भारत नहीं हुआ इसलिए गांधी का खून किया। 


दरअसल अखंड भारत का सपना #गांधी_जी का था और इसीलिए.... #दाढ़ी बढ़ाकर... #खतना करा कर गांधी जी की हत्या कर दी।
और आप उसे #वीर कहते हैं ??? 
ऐसा वीर जिसने एक निहत्थे और अखंड भारत के सपने को देखने वाले को मार दिया।
(निरंजन टकले का वीडियो रूपांतरण)


इस साल गिफ्ट की अदला बदली बंद

क्यूँ न इस दीवाली एक नया विचार करे। दोस्तों को मिले तो बिना गिफ्ट के मिले। ये भी क्या परम्पराएँ हम शुरू कर बैठे की तुम मेरे यहाँ आना तो गिफट लेते आना और फिर मैं तेरे यहाँ जाऊंगा तो गिफ्ट लेता जाऊंगा। बड़ी बड़ी कंपनियां चांदी काट रही है और मध्यम वर्ग डिब्बों के रेट उलट पलट रहा है की किस दोस्त को क्या देना है, कौन सा रिश्तेदार कितनी हैसियत का है। कोई दोस्त महंगा गिफ्ट देता है तो उसको गिफ्ट भी महंगा ही वापिस करना होगा और कोई हल्का दोस्त तो गिफ्ट भी हल्का दे दो। और कभी कभी तो पिछले वर्षो के गिफ्ट ही दे देते हे।ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, टीवी और सारा मीडिया आपको ये बताने पर लगा है की कितना कितना सामान कहाँ कहाँ बेचा जा रहा है। ये खबरे नहीं है दोस्तों ये आपका दिमाग घुमाने की साजिश है की आपको लगे सारी दुनिया लगी है सामान खरीदने में आप रह गए पीछे। इस साल इस विचार पर काम करे, दीवाली को दीवाला न बनाए।


इस साल दोस्ती को सेलिब्रेट करे। प्यार को सेलिब्रेट करे।


कुछ छोटे छोटे गिफ्ट्स जैसे बिस्कुट ,लड्डू,फ्रूटी,मोमबती,कपडे,इत्यादि उन गरीब बचो में बांटे जो आपको आते जाते टुकर टुकर देखते रहते है। यही सच्ची दिवाली होगी।


बदलो समाज को , लाओ नए विचार और शुरुआत करो अगर कुछ अच्छा लगे !