राष्ट्रहित का गला घोंटकर,
छेद न करना थाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
देश के धन को देश में रखना,
नहीं बहाना नाली में..
मिट्टी वाले दीये जलाना,
अबकी बार दीवाली में...
बने जो अपनी मिट्टी से,
वो दिये बिकें बाजारों में...
छुपी है वैज्ञानिकता अपने,
सभी तीज-त्यौहारों में...
चायनिज झालर से आकर्षित,
कीट-पतंगे आते हैं...
जबकि दीये में जलकर,
बरसाती कीड़े मर जाते हैं...
कार्तिक दीप-दान से बदले,
पितृ-दोष खुशहाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
कार्तिक की अमावस वाली,
रात न अबकी काली हो...
दीये बनाने वालों की भी,
खुशियों भरी दीवाली हो...
अपने देश का पैसा जाये,
अपने भाई की झोली में...
गया जो दुश्मन देश में पैसा,
लगेगा रायफल गोली में...
देश की सीमा रहे सुरक्षित,
चुक न हो रखवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना...
अबकी बार दीवाली में...
मिट्टी वाले दीये जलाना..
अबकी बार दीवाली में...
Thursday, October 17, 2019
मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में...
लंकाधीश रावण की मांग..!
( अद्भुत प्रसंग, भावविभोर करने वाला प्रसंग जरुर पढ़ें )बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की #इरामावतारम्' मे यह कथा है.!रावण केवल शिवभक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..! उसे भविष्य का पता था..! वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव है..!जब श्री राम ने खर-दूषण का सहज ही बध कर दिया तब तुलसी कृत मानस में भी रावण के मन भाव लिखे हैं--!खर दूसन मो सम बलवंता.! तिनहि को मरहि बिनु भगवंता.!!रावण के पास जामवंत जी को #आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..!जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे.! लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे.! इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा.! स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ.! मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ.! उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है.!रावण ने सविनय कहा -- "आप हमारे पितामह के भाई हैं.! इस नाते आप हमारे पूज्य हैं.! कृपया आसन ग्रहण करें.! यदि आप मेरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा.!"जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की.! उन्होंने आसन ग्रहण किया.! रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया.! तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं.! इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होंने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है.!" मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ.!"प्रणाम.! प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया..! "क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है..?""बिल्कुल ठीक.! श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है..!"जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है.! क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दे..?रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा –" आप पधारें.! यजमान उचित अधिकारी है.! उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है.! राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया.!"जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है.! रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए.!अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना से समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है..! " यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है.! तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं.! विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना.! ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी.! अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना.! "स्वामी का आचार्य अर्थात स्वयं का आचार्य.! यह जान जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया.! स्वस्थ कण्ठ से "सौभाग्यवती भव" कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया.!सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरे.!" आदेश मिलने पर आना" कहकर सीता को उन्होंने विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचे.!जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे.! सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया.!" दीर्घायु भव.! लंका विजयी भव.! "दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया.! सुग्रीव ही नहीं विभीषण की भी उन्होंने उपेक्षा कर दी.! जैसे वे वहाँ हों ही नहीं.! भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा.." यजमान.! अर्द्धांगिनी कहाँ है.? उन्हें यथास्थान आसन दें.!" श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की, कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं..!" अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं.! यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था.! इन सबके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है.! इन परिस्थितियों में पत्नीरहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो.?"" कोई उपाय आचार्य.?"
" आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं.! स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं.!"श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया.! श्री रामादेश के परिपालन में, विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे.! " अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान ..."आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया.!गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा - लिंग विग्रह.?यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं.! अभी तक लौटे नहीं हैं.! आते ही होंगे.!आचार्य ने आदेश दे दिया - " विलम्ब नहीं किया जा सकता.! उत्तम मुहूर्त उपस्थित है.! इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालू का लिंग-विग्रह स्वयं बना ले.!"
जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित किया.! यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया.! श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया.! आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया.!अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की..! श्रीराम ने पूछा - "आपकी दक्षिणा.?"पुनः एक बार सभी को चौंकाया ... आचार्य के शब्दों ने.." घबराओ नहीं यजमान.! स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती.! आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है ..."" लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य की जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है.!""आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे ....." आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी.! "ऐसा ही होगा आचार्य.!" यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी----- " रघुकुल रीति सदा चली आई.! " प्राण जाई पर वचन न जाई.!!" यह दृश्य वार्ता देख सुनकर उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए.! सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया.! रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी.? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु राम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, वह राम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है.?( रामेश्वरम् देवस्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा करवाई थी )
AJAY PATRAKAR
500 साल पुराने विवाद में 206 साल से फैसले का इंतजार
नमन पांडे अयोध्या
अयोध्या| | देश के सबसे संवेदनशील और चर्चित मामलों में शामिल अयोध्या केस (Ayodhya Case) की सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन चल रही सुनवाई आज (16 अक्टूबर 2019) शाम तक पूरी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले 17 अक्टूबर तक केस की सुनवाई पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की थी। बाद में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 16 अक्टूबर तक मामले की सुनवाई खत्म करने की समय सीमा तय कर दी थी। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस माह के अंत या अगले माह के शुरूआती हफ्ते तक इस बहुप्रतीक्षित केस में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है।
मालूम हो कि अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक को लेकर चल रहा विवाद करीब 500 साल पुराना है। माना जाता है कि इस विवाद की शुरूआत 1528 में तब हुई थी जब मुगल शासक बाबर ने राम मंदिर को गिराकर वहां मस्जिद का निर्माण कराया था। इसी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा था। विवादित स्थल पर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों में मालिकाना हक का विवाद सबसे पहले 1813 में शुरू हुआ, जब हिंदुओं ने इस स्थल पर अपने हक की आवाज उठाई। आइये जानते हैं- अयोध्या केस में कब-कब और क्या-क्या हुआ?
अयोध्या केस की टाइमलाइन..............................................
▪15 अक्टूबर 2019- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की सुनवाई ▪16 अक्टूबर 2019 तक पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की।
▪06 अगस्त 2019- अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।
▪02 अगस्त 2019- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए अयोध्या केस नहीं सुलझाया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने छह अगस्त से केस में प्रतिदिन सुनवाई की तिथि तय की।
▪08 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस एफएम खलीफुल्ला को अयोध्या केस में मध्यस्थता करने की मंजूरी प्रदान की।
▪06 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता को तैयार हुआ, लेकिन हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने ये कहकर असहमति जताई कि जनता मध्यस्थता के फैसलो को नहीं मानेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।
▪26 फरवरी 2019- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने की सलाह दी। कोर्ट ने कहा था कि अगर इसकी एक फीसद भी गुंजाइश है तो मध्यस्थता होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में मध्यस्थता के जरिए विवाद का निपटारा कराने को तैयार हुआ।
▪27 जनवरी 2019- न्यायमूर्ति बोबडे के अवकाश पर होने की वजह से 29 जनवरी 2019 की प्रस्तावित सुनवाई टली। सुप्रीम कोर्ट ने 26 फरवरी 2019 की नई तिथि निर्धारित की।
▪10 जनवरी 2019- मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन द्वारा सवाल उठाए जाने पर जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस केस की सुनवाई से अलग किया। राजीव धवन ने सवाल उठाया था कि 1994 में इसी केस में जस्टिस यूयू ललित ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कोर्ट में पैरवी की थी।
▪जनवरी 2019- अयोध्या केस की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ गठित हुई। पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस बोबडे और जस्टिस एनवी रमन्ना को शामिल किया गया।
▪29 अक्टूबर 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था इस मामले की सुनवाई के लिए जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ का गठन होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगा।
▪27 जनवरी 2018- तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। साथ ही पीठ ने इस केस को पांच जजों की पीठ के पास नए सिरे से सुनवाई करने के लिए भेजने से इनकार कर दिया था।
▪09 मई 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने के फैसले पर रोक लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
▪24 सितंबर 2010- हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिया और हिन्दुओं को विवादित स्थल का शेष हिस्सा समेत मंदिर बनाने के लिए बाकी जमीन देने का फैसला सुनाया। फैसले से असंतुष्ट होकर दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
▪08 सितंबर 2010- हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाने के लिए 24 सितंबर की तारिख तय की।
▪26 जुलाई 2010- अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई।
▪20 मई 2010- विवादित ढांचा विध्वंस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।
▪24 नवंबर 2009- संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पेश की गई। इसमें नरसिंह राव को क्लीन चिट दे दी गई।
▪07 जुलाई 2009- तत्कालीन यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि अयोध्या विवाद से जुड़ीं 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब कर दी गईं हैं।
▪30 जून 2009- अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जांंंचच के लिए बनाए गए लिब्रहान आयोग ने 17 साल बाद अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी।
▪जुलाई 2006- यूपी सरकार ने विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा पुख्ता करने के लिए बुलेटप्रूफ शीशे का घेरा लगाने का प्रस्ताव तैयार किया। मुस्लिम पक्ष ने अदालत द्वारा दिए गए स्टे की अवहेलना का हवाला देकर विरोध किया।
▪20 अप्रैल 2006- यूपीए सरकार ने लिब्राहन आयोग को लिखित बयान दिया कि विवादित ढांचे को गिराना सुनियोजित साजिश थी। भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना ने मिलकर इस साजिश को अंजाम दिया।
▪04 अगस्त 2005- फैजाबाद की जिला अदालत ने विवादित परिसर के पास हुए हमले में चार लोगों को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा।
▪जुलाई 2005- पांच आतंकियों ने विवादित परिसर पर जानलेवा हमला किया। इसमें पांच आतंकी समेत छह लोगों की मौत हुई।
▪अप्रैल 2004- भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या के विवादित स्थल पर बने अस्थाई राममंदिर में पूजा की। साथ ही बयान दिया कि भव्य राम मंदिर का निर्माण जरूर होगा।
▪अगस्त 2003- विहिप ने अनुरोध किया कि राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार विशेष विधेयक लाए। इस मांग को तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ठुकरा दिया था।
▪जून 2003- कांची पीठ शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पहली की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
▪मई 2003- सीबीआई ने 1992 में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।
▪अप्रैल 2003- हाईकोर्ट के आदेश पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की जांच के लिए खुदाई शुरू की। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विवादित स्थल की खुदाई में मंदिर से मिलते-जुलते कई अवशेष मिले हैं। इस रिपोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावे पर मुहर लगा दी थी।
▪मार्च 2003- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस मांग को ठुकराया, जिसमें विवादित स्थल पर पूजापाठ करने की अनुमति मांगी गई थी।
▪जनवरी 2003- रेडियो तरंगों के जरिए विवादित स्थल के नीचे किसी प्राचीन इमाररत के अवशेष का पता लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
▪22 जून 2002- विहिप ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण की मांग उठाई।
▪13 मार्च 2002- सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का दिया आदेश। साथ ही स्पष्ट किया कि किसी को विवादित भूमि पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी।
▪फरवरी 2002- भाजपा ने यूपी चुनाव के लिए घोषणा पत्र से राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हटा दिया। हालांकि, विहिप ने 15 मार्च से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके बाद हजारों हिंदू अयोध्या में एकत्र हो गए।
▪जनवरी 2002- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति बनाई। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को वार्ता के लिए नियुक्त किया गया।
▪06 दिसंबर 1992- हजारों की भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया। इसके बाद देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। इन दंगों में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
▪वर्ष 1990- विहिप कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर ने बातचीत से विवाद सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे।
▪वर्ष 1989- विहिप ने विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रख, मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया।
▪वर्ष 1986- फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं के अनुरोध पर प्रार्थना करने के लिए विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों विरोध में उतरे और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बनाई।
▪वर्ष 1949- विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। कहा गया कि कुछ हिन्दुओं ने ये मूर्तियां वहां रखीं थीं। विवाद बढ़ने पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष अदालत पहुंच गए। सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया।
▪वर्ष 1859- विवादित स्थल पर अंग्रेजों ने बाड़ लगा दी थी। साथ ही परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी
▪वर्ष 1853- पहली बार अयोध्या में विवादित स्थल के पास सांप्रदायिक दंगा हुआ।
▪वर्ष 1528- राम मंदिर गिराकर विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) का निर्माण हुआ। इसे मुगल शासक बाबर ने बनवाया था, इस वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा।
Wednesday, October 16, 2019
उद्यानिकी विभाग देवास में महाघोटाला
अधिकारियों की मनमानी, योजनाओ की उड़ाई जा रही धज्जियां करोड़ों रुपए का किया घोटाला।
दैनिक अयोध्या टाइम (म.प्र.) संवादाता नितेश शर्मा के साथ अनिल पाटीदार की रिपोर्ट
देवास। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यकाल में करोड़ो का जमीनी घोटाला देखने को मिला । यह घोटाला मध्यप्रदेश के देवास जिले के उद्यानिकी विभाग में देखने को मिला। मध्यप्रदेश के देवास में उद्यानिकी विभाग में करोड़ो का जमीनी घोटाला हुवा है। उद्यानिकी विभाग में भाजपा सरकार में आई एक योजना प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में सन 2016,17 एवं 2016/17 में ड्रीप एरिगेशन में हुवा है। यह भ्रष्टाचार कम्पनियों ओर अधिकारियों की सांठ गांठ से हुवा है। इस सरकारी योजना में किसानों के साथ खिलवाड़ हुवा है। किसानों के नाम से करोड़ो रुपयों का काला खेल अधिकारियों और कंपनियों की मिली भगत से खेला गया।किसानों के नाम से करोड़ो रुपयों का गमन विभाग के अधिकारियों ओर कम्पनियों के द्वारा किया गया ।
नियम के हिसाब से जहाँ किसानों को 1 हेक्टेयर पर 8400 मीटर नली मिलना थी वहाँ किसानों को केवल 2000 मीटर नली भी नही मिली । और किसानों के यहाँ कंपनियों को सामान उनके खेत मे सिंचाई करने के लिये लगाना था वो भी कम्पनियो द्वारा लगा नही यह भ्रष्टाचार यही नही रुका किसानों से ना ही कृषक अंश की राशि ली गई। अधिकारियों ने इतना बड़ा जमीनी घोटाला कर दिया और सरकार को कानो कान तक खबर नही हुई। भाजपा शासन में भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया। अब देखना होगा कि सत्ता परिवर्तन होने के बाद इन भ्रष्ट अधिकारियों और कंपनियों पर कब तक गाज गिरेगी । आखिर भाजपा शासन काल मे किसानों के साथ हुवे इस छलावे का जिम्मेदार कोंन है आखिर इतना बड़ा जमीनी घोटाला होने के बावजूत भी स्थानीय प्रशासन क्यों मौन है। क्यों जिम्मेदारो का धियान नही है। जबकि इस मामले की कई बार जांच हो चुकी है पर मामले को दबाने में लगे विभाग के आला अधिकारी। अगर इस मामले की जांच निष्पक्ष तरीके से की जाए तो करोड़ों का भ्रष्टाचार आम जनता के सामने होगा।
क्या कहते है नियम
1.किसानों को मिलना थी 1 हेक्टर पर 8400 मीटर नली पर किसानों को मिली 2000 मीटर नली
2.नियम के मुताबिक किसानो के खेत में होना थी सामग्री फीटिंग पर कम्पनियों के द्वारा नही की खेतों में सामग्री फीटिंग
3.नियम के मुताबिक किसानों द्वारा लिया जाता है कृषक अंश जो कि नहीं लिया गया
4.नियम के मुताबिक किसानों के खेत में सामग्री फिटिंग होने के बाद होता है अधिकारियों द्वारा भौतिक सत्यापन जबकि एक किसान के खेत पर सामग्री फिटिंग कर समस्त किसानों की फोटोग्राफी की गई