अपने बिंदास अंदाज और दिलचस्प बोली के लिए मशहूर कानपुर अब बेतरतीब ट्रैफिक के जाना जाता है। मंगलवार को मेट्रो प्रॉजेक्ट के शिलान्यास के साथ ही कानपुर नए दौर में कदम रखेगा। हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि स्वतंत्रता के पहले ही शहर में इंटिग्रेटिड ट्रांसपॉर्ट सिस्टम मौजूद था। 1933 तक शहर के एक बड़े हिस्से में ट्राम चलती थी। उस दौर में यह सेवा दिल्ली के पहले कानपुर में आई थी।
यह था रूट
कानपुर के पुराने रेलवे स्टेशन (वर्तमान में जीटी रोड पर) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलती थी। वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था। नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना था। उस काल में इस जगह को कारशेड चौराहा कहते थे, जो बाद में अपभ्रंश होकर कारसेट चौराहा हो गया।
नई सड़क पर ट्रैक रोड के दोनों तरफ बिछा हुआ था। यह सर्विस जून-1907 से शुरू होकर 16 मई, 1933 तक चली थी। यह दूरी करीब चार मील थी। इसके डिब्बों की कुछ विशेषताएं सिंगल डेक और खुली छत थी। ट्राम के गंगा किनारे टर्मिनेट होने की बड़ी वजह लोगों की नदी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। इस इतिहास का गवाह बीपी श्रीवास्तव मार्केट अब भी पूरी शान से मौजूद है। अंदर से यह अब भी वैसा दिखता है।
मुंबई-दिल्ली से था मुकाबला
कपूर कहते हैं कि ब्रिटिश राज में शहर के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1900 में कोलकाता में ट्राम आने के बाद 1907 में कानपुर और मुंबई में ट्राम चलाई गई। बिजली भी यहां दिल्ली से पहले आई। दिल्ली में ट्राम 1908 में आई। ये सभी ट्राम बिजली से चलती थीं। मद्रास में घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम चलती थी। 1933 में ट्राम बंद हो गई। तत्कालीन जिला प्रशासन ने बड़े चौराहे से सरसैया घाट जाने वाले ट्रैक (दाईं पट्टी) को महिलाओं के लिए रिजर्व कर दिया था। इसे गंगाजी की पट्टी कहा जाता था।