Wednesday, October 16, 2019

कानपुर - कभी चलती थी यहाँ ट्राम 

अपने बिंदास अंदाज और दिलचस्प बोली के लिए मशहूर कानपुर अब बेतरतीब ट्रैफिक के जाना जाता है। मंगलवार को मेट्रो प्रॉजेक्ट के शिलान्यास के साथ ही कानपुर नए दौर में कदम रखेगा। हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि स्वतंत्रता के पहले ही शहर में इंटिग्रेटिड ट्रांसपॉर्ट सिस्टम मौजूद था। 1933 तक शहर के एक बड़े हिस्से में ट्राम चलती थी। उस दौर में यह सेवा दिल्ली के पहले कानपुर में आई थी।



यह था रूट


कानपुर के पुराने रेलवे स्टेशन (वर्तमान में जीटी रोड पर) से सरसैया घाट तक डबल ट्रैक पर ट्राम चलती थी। वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, इसका रूट पुराने स्टेशन से शुरू होकर घंटाघर, हालसी रोड, बादशाही नाका, नई सड़क, हॉस्पिटल रोड, कोतवाली, बड़ा चौराहा और सरसैया घाट पर खत्म होता था। नई सड़क के आगे बीपी श्रीवास्तव मार्केट (मुर्गा मार्केट) में ट्राम के रखरखाव के लिए यार्ड बना था। उस काल में इस जगह को कारशेड चौराहा कहते थे, जो बाद में अपभ्रंश होकर कारसेट चौराहा हो गया।


नई सड़क पर ट्रैक रोड के दोनों तरफ बिछा हुआ था। यह सर्विस जून-1907 से शुरू होकर 16 मई, 1933 तक चली थी। यह दूरी करीब चार मील थी। इसके डिब्बों की कुछ विशेषताएं सिंगल डेक और खुली छत थी। ट्राम के गंगा किनारे टर्मिनेट होने की बड़ी वजह लोगों की नदी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। इस इतिहास का गवाह बीपी श्रीवास्तव मार्केट अब भी पूरी शान से मौजूद है। अंदर से यह अब भी वैसा दिखता है।


मुंबई-दिल्ली से था मुकाबला
कपूर कहते हैं कि ब्रिटिश राज में शहर के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1900 में कोलकाता में ट्राम आने के बाद 1907 में कानपुर और मुंबई में ट्राम चलाई गई। बिजली भी यहां दिल्ली से पहले आई। दिल्ली में ट्राम 1908 में आई। ये सभी ट्राम बिजली से चलती थीं। मद्रास में घोड़े से खींची जाने वाली ट्राम चलती थी। 1933 में ट्राम बंद हो गई। तत्कालीन जिला प्रशासन ने बड़े चौराहे से सरसैया घाट जाने वाले ट्रैक (दाईं पट्टी) को महिलाओं के लिए रिजर्व कर दिया था। इसे गंगाजी की पट्टी कहा जाता था।


Tuesday, October 15, 2019

1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे का प्रयास

"सुसनेर की लगभग 1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे के प्रयास जारी ।"
दैनिक अयोध्या टाइम (म.प्र.)ब्यूरो नितेश शर्मा के साथ अनिल गिरी।



आगर मालवा। "सुसनेर की लगभग 1200 वर्ष प्राचीन धरोहर अमरकोट के किले पर कब्जे के प्रयास जारी ।"
कोटा स्टेट के राजपुरोहित की सातवी पीढ़ी के वारिस मुरली मनोहर पारिख ने किले को बताया अपनी निजी सपत्ति ।
कोटा के महाराजा द्वारा अमरकोट की भूमि उनके पूर्वजो को देने की बात कही ।
मनोहर पारिख का दावा भूमि मिलने पर उनके पूर्वजो ने ही बनवाया था यहां पर किला ।
स्वयं के पास मालिकाना हक के समस्त दस्तावेज मौजूद होने की बात कही ।
किले और आस पास स्थित भूमि पर निजी संपत्ति के बोर्ड लगाए गए ।
सुसनेर एसडीएम ने किले और भूमि को शासकीय संपत्ति बताते हुए मुरली मनोहर को आज स्वामित्व के दस्तावेज दिखाने को कहा था ।
अभी तक नही दिखाए गए दस्तावेज ।
शासकीय संपत्ति पर यदि कब्जे का प्रयास पाया तो तहसीलदार द्वारा नोटिस जारी कर विधि अनुसार कार्यवाही करने की बात एसडीएम ने कही ।


मछली पर लिखा है 'अल्लाह', 5 लाख रुपये लगी कीमत

कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है, मछली पर लिखा है 'अल्लाह', 5 लाख रुपये लगी कीमत



यूपी के शामली में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है। इस मछली के पेट पर 'अल्‍लाह' लिखा हुआ है और इसी वजह से यह अद्भुत मछली चर्चा का विषय बन गई है।



मछली पर लिखा है 'अल्लाह', देखने को उमड़ी भीड़


यूपी के शामली जिले के कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है


इस मछली के पेट पर 'अल्‍लाह' लिखा हुआ है और यह मछली चर्चा का विषय बन गई


आलम यह है कि इस मछली को खरीदने के लिए लोग 5 लाख रुपये देने को भी तैयार हैं


शामली उत्‍तर प्रदेश के शामली जिले के कैराना में एक मछली लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गई है और बड़ी संख्‍या में लोग इसे देखने के लिए पहुंच रहे हैं। आलम यह है कि इस मछली के लिए लोग 5 लाख रुपये देने को भी तैयार हैं। दरअसल, इस मछली के पेट पर 'अल्‍लाह' लिखा हुआ है और इसी वजह से यह अद्भुत मछली चर्चा का विषय बन गई है। कैराना में मछली का पालन करने वाले शबाब अहमद इसे अपने एक्वेरियम में पाल रहे हैं। उन्‍होंने बताया कि करीब 8 महीने पहले वह इस मछली को लेकर आए थे। एक्वेरियम में जैसे-जैसे यह मछली बड़ी हो रही है, उसके पेट पर पीले रंग में 'अल्‍लाह' लिखा नजर आने लगा है। शादाब ने बताया कि जब से यह मछली उनके घर में आई है, तब से उनके परिवार में काफी तरक्‍की हुई है।



अनोखी मछली देखने के लिए लोगों की भारी भीड़
शबाब ने बताया कि अब इस मछली की लाखों में बोली लगने लगी है। उन्‍होंने कहा, 'शामली के हाजी राशिद खान ने इस मछली की 5 लाख रुपये कीमत लगाई है। हालांकि मैं अभी और ज्‍यादा कीमत लगाए जाने का इंतजार कर रहा हूं।' शबाब कैराना के मोहल्ला आलकला में रहते हैं और इस अनोखी मछली को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है। दूर-दूर से लोग इसे देखने आ रहे हैं।


शबाब अहमद ने इस मछली के साथ एक्‍वेरियम में 10 अन्‍य मछलियों को भी रखा है। इस अनोखी मछली से अन्‍य मछलियां काफी छोटी हैं। उन्‍होंने कहा कि अल्‍लाह लिखी मछली कुदरत का करिश्‍मा है। हम इसे और अच्‍छे रेट मिलने पर ही बेचेंगे।


अधिकारियों और ठेकेदारों ने की मनमानी, योजनाओं की उड़ाई जा रही धज्जियां 

भाजपा शासन काल में अधिकारियों और ठेकेदारों ने की मनमानी, योजनाओं की उड़ाई धज्जियां 


दैनिक अयोध्या टाइम(म.प्र.)@नितेश शर्मा।


आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग ने पंप  ऊर्जीकरण योजना में किया करोड़ो का घफला , फिर भी जिम्मेदार खामोश।



 एक तरफ जहां मध्य प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के हित में कई योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है  किसानों के हित के लिए कई तरह की योजनाओं को सरकार जमीन से जोड़ने के हर संभव प्रयास कर रही है और कई हद तक यह संभव भी हो रहा है ।। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी यानी शिवराज सरकार के कार्यकाल में इतने बड़े जमीनी घोटाले को अंजाम दिया गया अधिकारियों को भाजपा सरकार में किसी बात का डर नहीं था और ना ही इन अधिकारियों और ठेकेदारों पर जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई ठोस कार्यवाही की इस  ट्रांसफार्मर घोटाले की अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो इसमें कई बड़े अधिकारी और ठेकेदार ब्लैक लिस्ट हो सकते हैं  भाजपा सरकार पर कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोप विपक्ष में रहकर लगाती थी और वही आरोप आगर मालवा में कहीं ना कहीं सिद्ध होते हुए नजर आ रहे हैं जी हाँ
  आगर मालवा में दूसरी ओर विभाग के ठेकेदार और कर्मचारी अधिकारी उन्हीं योजनाओं पर पलीता लगाते नजर आ रहे हैं ऐसी एक योजना आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की है जिसमें विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से किसानों के नाम पर फर्जी बिल भुगतान कर राशि निकाली गई। आगर मालवा जिले में आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग द्वारा पम्प ऊर्जीकरण योजना में वर्ष 2013-14 व 2014-15 में किसानो के नाम पर लाखो रुपये की राशि निकाली गई। जिसमे बिजली विभाग व ठेकेदार और आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी शामिल है। आगर मालवा जिले में कई ऐसे गाँव है, जिसमे आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति कल्याण विभाग की योजना द्वारा किसानो के यहाँ ट्रांसफार्मर तो लगाया गया है, किंतु जिस किसान के नाम से ट्रांसफार्मर स्वीकृत हुआ था उस किसान के नाम से तो ट्रांसफार्मर लगा ही नहीं और बिल भुगतान हो गया हो गया बहुत से किसान के यहा तो काम कम और बिल ज्यादा करवाया गया। जहा 2 लाख का काम था वहा 5 लाख का बिल भुकतान हो गया। ऐसे कई किसानो के नाम से लाखो रूपये के फर्जी बिल भुगतान किया है।  इतना बड़ा घोटाला हो जाता है और जिम्मेदार अधिकारी का कोई ध्यान नही है। और इस पूरे मामले की जांच कलेक्टर अजय गुप्ता के द्वारा करवाई गई थी। जिसमें जांच प्रतिवेदन में लिखा हुआ है कि सामग्री सभी को प्राप्त हुई। कागजी कार्रवाई में तो सामान सभी किसानों को मिला लेकिन धरातल में स्थिति कुछ और निर्मित होती है पूरी पंप उर्जीकरण  योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है किसानों को पता ही नहीं और उनके नाम से लाखों रुपए की राशि सरकारी खजाने में से अधिकारियों और ठेकेदारों के द्वारा डकार ली गई है भ्रष्ट अधिकारी और ठेकेदार पर अभी तक जिम्मेदारों ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखाइए है
 क्या कहते हैं नियम।



 नियम 
1 पौल लगाने मे सीमेंट क्रांकीट होना चाहिए था जो नही किया गया।
2 नियम के हिसाब से 80 से 85 मीटर की दुरी पर पौल लगना चाहिए पर ठैकेदार के द्वारा 50 से 60 मीटर की दुरी पर ही लगा दिया पोल।
3 किसी भी ट्रांसफार्मर पर डेंजर बोर्ड लगना चाहिए था पर नही लगा। जबकि नियमानुसार हर ट्रांसफार्मर पर बोर्ड लगाना जरूरी है। पर किसी भी ट्रांसफार्मर पर बोर्ड नहीं लगाया गया
4 प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर लोहे की सामग्री पर कलर होना चाहिए पर किसी भी सामग्री पर नही हुआ कलर। 
5 प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर 3 अर्थ केबल लगायी जाती है। पर ठैकेदार के द्वारा एक ही अर्थ केबल लगाई गई।
6 वही स्टीमेट के आधार पर कार्य नही हुआ घटिया सामग्री का उपयोग किया गया।