Friday, October 11, 2019

पता भी नहीं चला हम कब बदल गए

1970--80 की फिल्मों की शुरुआत गायत्री मंत्र से होती थी,, जब हीरो को कुछ होता था तो हिरोईन हाथ में दीपक लेकर किसी देव प्रतिमा के आगे नाचती थी,, फिर आखिर में देव के हाथ से ज्योति निकलती और वहाँ हॉस्पिटल में पड़े हीरो के शरीर में प्रवेश कर जाती और वो तुरंत आंख खोल देता|


उन्हीं दिनों में रामायण और महाभारत जैसे सीरियलों की शुरुआत हुई,, लोग घर खेत के कार्य छोड़कर टीवी से चिपक जाते,, उस समय यूसुफ खान को भी दिलीप कुमार नाम से फिल्में करनी पड़ती थी,,
तब तक नेहरू के द्वारा आयातित वामपंथ सक्रिय हो चुका था,, उन्होंने फिल्मों और सीरियलों में मिलावट की प्रक्रिया को शुरू किया,,
फिल्म में हीरो का मुस्लिम मित्र सच्चा और पक्का दिखाया जाने लगा,, ब्राह्मण को गद्दार और ढोंगी पाखंडी दिखाना शुरू किया गया,,
रामायण और महाभारत के प्रतिपक्ष में अलिफ-लैला जैसे धारावाहिको का प्रचार प्रसार किया गया,, हीरोइनें हीरो की जान बचाने के लिए दरगाह पर मन्नत मांगने लगी,, कोई मुसीबत में होता उसके लिए हाथ उठा कर दुआ दी जाने लगी,,
प्रेम के सीन में पीछे से रुआजान कि आवाजें आने लगी,,
हवस का पुजारी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया,, जबकि हवस का मौलवी या फादर भी तो हो सकता था,,
 ॅंजमत और चतंबींक जैसी फिल्मों के माध्यम से दिखाया गया जैसे सारी बुराइयां हिन्दू समाज में ही हैं,,
न्यूज चैनलों के माध्यमों से प्रचलित किया गया कि प्याज की,, या पेट्रोल की,या दालों की कीमतें सातवें आसमान पर, जबकि सातवां आसमान सिर्फ रुइस्लाम और रुक्रिश्चनिटी में मानते हैं,,सनातन परंपरा में एक अखंड आकाश है,,


च जैसी फिल्में,, और सत्यमेव जयते जैसे चर्चित कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिकता को उस और मोड़ा गया,,और हम सोचते रहे कि क्या रक्खा है इस दकियानूसी सोच में,, सब बराबर हैं, सब महान हैं,, सब एक हैं,


आज उन सब बातों का परिणाम है हमारे देश में सेकुलरिज्म का बोलबाला,, धर्म से विमुखता,,कन्हैया जैसे,, स्वरा भास्कर जैसे,, और तमाम तरह के बुद्धिजीवी दोगले सब उसी प्रकार के प्रचार प्रसार का उत्पाद हैं,,


थोड़े जागरूक बनें,, आपस में खाली समय में पड़ोसियों की चुगली,,ताश के खेल,,शराब की बोतल,,क्रिकेट मैच,,बकवास फिल्मों से समय बचाकर धर्म संस्कृति की चर्चा करें,,बच्चो को अपने महापुरुषों के बारे में बताएं,,


कोई भी बदलाव धीरे धीरे होता है,, हर कार्य समय मांगता है,,


जानिये रामपुर का बीता हुआ इतिहास


दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो, रामपुर-रामपुर रियासत के संस्थापक और प्रथम शासक नवाब फेजुल्लाह खांन थे नवाब फेजुल्लाह खाँन का जन्म 1733 ईस्वी में आंवला जोकि अब बरेली जनपद की तहसील है में हुआ था उन्होने बाद में रामपुर को रियासत की राजधानी बनाया इनके बाद रामपुर रियासत पर दस शासकों ने रामपुर रियासत पर शासन किया दूसरे शासक नवाब मुहम्मद अली खाँन थे लेकिन इनका शासन काल केबल 24 दिन रहा उनकी रात के अंधेरे में हत्या कर दी गयी तीसरे शासक नवाब गुलाम मुहम्मद खाँन बने लेकिन उन्होने भी तीन महीने 22 दिन ही नवाबी की चौथे नवाब अहमद अली खाँन थे जोकि नौ वर्ष की आयु में ही सिंहासन पर बैठे थे और 42 वर्ष तक शासन किया। की स्थापना औध संधि के तहत 7 अक्टूबर 1774 में नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा की गयी थी। रामपुर रियासत के इस संस्थापक ने ही रामपुर किले की नीव रखी। नवाब हामिद अली खान ने ब्रिटिश चीफ इंजिनियर डब्लू. सी. राइट की सहायता से पूरे रामपुर किले को नया रूप दिया। इस वास्तु सम्बन्धी परिवर्तन के तहत हामिद मंज़िल, दरबार हॉल, जिसमें आज रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी स्थित है, और इमामबाड़ा भी बनवाया गया। डब्लू. सी. राइट ब्रिटिश सरकार के नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस के एग्ज़ीक्यूटिव इंजिनियर थे। उन्होंने सन् 1899 में ब्रिटिश सरकार को इस्तीफा देकर रामपुर नवाब हामिद अली खान के यहाँ चीफ इंजिनियर का पद स्वीकारा और पूरे रामपुर शहर की वास्तुकला को अलग ऊंचाई पर पहुँचाया। इस्लामिक, हिन्दू तथा विक्टोरियन गोथिक शैलियों का मेल जिसे इंडो सारसेनिक वास्तुकला के नाम से जाना जाता है, उसका व्राइट ने बहुत अच्छा इस्तेमाल किया। उन्होंने किला-ए-मुअल्ला और हामिद मंज़िल की पुर्नार्स्थापना की। जहाँआरा हबीबुल्लाह (2001) ने रामपुर किले का वर्णन किया था जिसमें उन्होंने बताया कि रामपुर किले में खुली जगह और उद्यान भरे थे। इसमें मच्छी भवन का भी वर्णन है, जहाँ नवाब रहते थे तथा जो अवधी महलों के मछली प्रतीकवाद पर रचा गया था। इसी के बगल में रंग महल था जो गायकी और संगीत सम्बन्धी गतिविधियों के लिए बनाया गया था। हामिद मंजिल इस पूरे किले के क्षेत्र का मध्य बिंदु था। किला-ए-मुअल्ला में नवाब के यहाँ काम करने वाले सभी लोगों के लिए रहने की व्यवस्था और कई कामकाज़ी विभाग भी स्थित थे। रामपुर किले के इस बड़े क्षेत्र को हामिद गेट और व्राइट गेट जोड़े रखते थे। रामपुर किला रामपुर शहर के मध्य बसा है। कर्ज़न जब 1905 में नवाब हामिद अली खान से भेंट के लिए रामपुर आया तब उसे देने के लिए एक एल्बम बनवाया गया जिसमें रामपुर किला और किले का वास्तुशिल्प तथा अन्दर की झांकियाँ और पूरे रामपुर शहर के वास्तुकला के अप्रतिम नमूनों का चित्रण था। आज रामपुर किला बहुत बुरी हालत में इतिहास का साक्ष्य देते हुए खड़ा है। रज़ा लाइब्रेरी और उसके समीप के किले का हिस्सा ही सिर्फ अच्छी हालत में है। रामपुर किले तथा रामपुर शहर के जितने भी दरवाज़े थे, सब तोड़ दिए गए हैं।प्रमुख पर्यटन स्थलों में रामपुर किला रामपुर किंग लाइब्रेरी और 'कोठी खास बाग' की गणना की गई है। रामपुर का कुल क्षेत्रफल 2,367 वर्ग किमी है।


Thursday, October 10, 2019

पुलिस का प्रसंशनीय काम भटके हुए बच्चे को घरवालों से मिलाया पुलिस नें




अमेठी ब्यूरो विजय कुमार सिंह

 

अक्सर लोग पुलिस पर तरह तरह के इल्जाम लगाकर बदनाम करते रहे हैं, कुछ तो उनके कारनामो से या फिर पुलिस के प्रति मानसिकता गंदी होने से लेकिन आज हम आपको यूपी के अमेठी की पुलिस के बारे में बताने जा रहे है जिनके कार्यों ने एक बार फिर ये सोचने को मजबूर करता है कि ऐसा सभी पुलिस वाले नहीं होते हैं।

 

बात करते हैं अमेठी पुलिस की जहां की पुलिस महकमे की मुखिया डॉ ख्याति गर्ग हैं। जामो पुलिस को गस्त के दौरान सूचना मिली कि 12-13 वर्ष का एक लड़का लावारिस हालत में घूम रहा है। सूचना पर अमल करते हुए महिला एवं बाल कल्याण अधिकारी ब्रह्मानंद यादव ने बच्चे को बरामद कर काफी देर तक उससे पूँछतांछ करते रहे। पूँछतांछ के दौरान ही बच्चे ने किसी तरह से अपने परिजनों का मोबाइल नम्बर बताया जिस पर बात कर उक्त अधिकारी ने परिजनों को बच्चे के बारे में जानकारी दी और सम्बंधित थाना प्रभारी को भी जानकारी देते हुए परिजनों को भी जानकारी देकर मदद करने का आग्रह किया।

 

मधेपुरा पुलिस ने चौकीदार के माध्यम से परिजनों को सूचना देकर जामो पुलिस से बात कराई और अमेठी का पता लेकर बच्चे के बाबा दादी जामो पहुंचे जहां बच्चे को सकुशल पाकर खुशी से रोने लगे।

 

बच्चे के बाबा ने महिला एवम बाल कल्याण अधिकारी ब्रह्मानन्द व उनकी टीम की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए अमेठी पुलिस का धन्यवाद किया और  आशीर्वाद दिया। पुलिस ने आवश्यक कागजी कार्यवाही करते हुए बच्चे को उनको सुपुर्द कर थाने से विदा किया।


 

 



 

Wednesday, October 9, 2019

दैनिक अयोध्या टाइम्स की पहल से मुर्दा हुआ जिंदा

दैनिक अयोध्या टाइम्स की खबर का हुआ का असर 03:10:2019 को खबर प्रकाशित की थी मृतक ने कहा कि साहब अभी मैं जिंदा हूं|



पूरे 21 साल बाद मुर्दे की सांस चलने की उम्मीद बढ़ गयी है। जी हां, सही सुना आपने। ये कोई कहानी या कपोल कल्पित नहीं है, असलियत है। ये अजब गजब कारनामा राजस्व विभाग के कर्मचारी का है। इनको कोई रोक नही सकता है। अमीर को गरीब व जिंदा को मुर्दा बना देना तो इनके बाएं हाथ का खेल है।


यूपी के अमेठी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। आइये अब आपको पूरे घटना क्रम की ओर ले चलते हैं। अमेठी जिले के संग्रामपुर थाना क्षेत्र के भौसिंहपुर गांव निवासी गोपाल सिंह पुत्र स्वर्गीय राम सरन सिंह ने बीते 3 अक्टूबर को अमेठी तहसील परिसर में अपने आगे पीछे ” एसडीएम साहब मैं जिंदा हूँ, 1998 से न्याय के लिये भटक रहा हूँ, मुझे मेरे चाचा ने लेखपाल की मिली भगत से अभिलेखों में मुर्दा करा दिया और मेरी जमीन अपने नाम करा ली”  का पोस्टर चिपकाकर  लोगों के बीच मे अपने को जीवित साबित करने का प्रयास किया था जो उस समय लोगों के बीच एक कौतूहल बन गया था।। 3 अक्टूबर को इस खबर को अमेठी संवाददाता विजय कुमार सिंह ने प्रमुखता से उठाया था।


खबर की गम्भीरता को देखते हुए जिलाधिकारी अमेठी प्रशांत शर्मा ने एसडीएम अमेठी को उक्त प्रकरण की जांचकर आख्या देने का आदेश दिया था। आदेश के अनुपालन में एसडीएम अमेठी राम शंकर ने तहसीलदार द्वारा इस प्रकरण की जांच कराई जिनकी जांच रिपोर्ट में गोपाल सिंह अभी भी जीवित पाए गए है, अग्रिम विधिक कार्यवाही हेतु आगामी 10 अक्टूबर को बहस एवम आदेश हेतु तिथि नियत की गई है, की रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रेषित किया है।


एसडीएम ने जानकारी देते हुए लिखा है कि 4 जून 1998 को नायब तहसीलदार द्वारा गोपाल सिंह का नाम निरस्त करने और 23 जुलाई 1998 को शिव बहादुर सिंह के नाम वरासत दर्ज करने का आदेश दिया गया था।


अमेठी से विजय कुमार सिंह की रिपोर्ट