Wednesday, October 9, 2019

दैनिक अयोध्या टाइम्स की पहल से मुर्दा हुआ जिंदा

दैनिक अयोध्या टाइम्स की खबर का हुआ का असर 03:10:2019 को खबर प्रकाशित की थी मृतक ने कहा कि साहब अभी मैं जिंदा हूं|



पूरे 21 साल बाद मुर्दे की सांस चलने की उम्मीद बढ़ गयी है। जी हां, सही सुना आपने। ये कोई कहानी या कपोल कल्पित नहीं है, असलियत है। ये अजब गजब कारनामा राजस्व विभाग के कर्मचारी का है। इनको कोई रोक नही सकता है। अमीर को गरीब व जिंदा को मुर्दा बना देना तो इनके बाएं हाथ का खेल है।


यूपी के अमेठी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। आइये अब आपको पूरे घटना क्रम की ओर ले चलते हैं। अमेठी जिले के संग्रामपुर थाना क्षेत्र के भौसिंहपुर गांव निवासी गोपाल सिंह पुत्र स्वर्गीय राम सरन सिंह ने बीते 3 अक्टूबर को अमेठी तहसील परिसर में अपने आगे पीछे ” एसडीएम साहब मैं जिंदा हूँ, 1998 से न्याय के लिये भटक रहा हूँ, मुझे मेरे चाचा ने लेखपाल की मिली भगत से अभिलेखों में मुर्दा करा दिया और मेरी जमीन अपने नाम करा ली”  का पोस्टर चिपकाकर  लोगों के बीच मे अपने को जीवित साबित करने का प्रयास किया था जो उस समय लोगों के बीच एक कौतूहल बन गया था।। 3 अक्टूबर को इस खबर को अमेठी संवाददाता विजय कुमार सिंह ने प्रमुखता से उठाया था।


खबर की गम्भीरता को देखते हुए जिलाधिकारी अमेठी प्रशांत शर्मा ने एसडीएम अमेठी को उक्त प्रकरण की जांचकर आख्या देने का आदेश दिया था। आदेश के अनुपालन में एसडीएम अमेठी राम शंकर ने तहसीलदार द्वारा इस प्रकरण की जांच कराई जिनकी जांच रिपोर्ट में गोपाल सिंह अभी भी जीवित पाए गए है, अग्रिम विधिक कार्यवाही हेतु आगामी 10 अक्टूबर को बहस एवम आदेश हेतु तिथि नियत की गई है, की रिपोर्ट जिलाधिकारी को प्रेषित किया है।


एसडीएम ने जानकारी देते हुए लिखा है कि 4 जून 1998 को नायब तहसीलदार द्वारा गोपाल सिंह का नाम निरस्त करने और 23 जुलाई 1998 को शिव बहादुर सिंह के नाम वरासत दर्ज करने का आदेश दिया गया था।


अमेठी से विजय कुमार सिंह की रिपोर्ट


Sunday, October 6, 2019

बकुण्ड- इमारत कभी बुलंद थी- श्री रूपेश उपाध्याय एसडीएम श्योपुर

काल की गति और आक्रांताओं के कोप से ध्वस्त हुई इस विरासत के खंडहर अब मौन है। दूर-दूर तक फैली पुरा संपदा प्रमाणित करती है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यह स्थान समृद्ध और वैभवशाली नगर रहा था, पर अब वो वक्त नही रहा। अब तो खंडहर ही शेष रह गए है।
श्योपुर जिले की कराहल तहसील अतंर्गत गोरस श्यामपुर रोड से तीन किमी अंदर पारम नदी के किनारे डोब कुण्ड स्थित है। सन् 1992-93 में पहली बार डोब कुंड जाने का अवसर मिला। एक लम्बे अरसे बाद अब फिर से जाना हुआ।
घने जंगल के बीच पारम नदी के उदगम स्थल पर कटीली झाड़ियो मे प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच डोब कुण्ड के अवशेष देखे जा सकते है। पर यहां तक पहुँच पाना हर किसी के लिए आसान नही है।
किसी समय यहाँ बने दो विशाल मंदिरों से तमाम मूर्तियांश्योपुर और दूसरे संग्रहालयों भेज दी गई है। कुछ चोरी हो गई है। शेष अवशेष वहीं बिखरे पडे है।
प्रतिहार सत्ता के पतन के बाद ग्वालियर मुरैना श्योपुर शिवपुरी क्षेत्र में चंदेलों के समकालीन एक अन्य राजवंश कच्छपघात का उदय हुआ। पहले ये सामन्त के रूप में शासन करते थे। कालांतर में प्रतिहार शासन के बिखराव का लाभ उठाकर उन्होंने स्वतंत्र सत्ता स्थापित की।
इस वंश की राजधानी मुरैना की तहसील अम्बाह में स्थित सिंहोनिया थी। इस वंश में द्वितीय शासक बज्र दमन था। इस वंश का ग्वालियर क्षेत्र के राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में विशिष्ट योगदान है। कालांतर में कच्छपघात वंश में तीन शाखाये हो गई। सिंह पानिया, नरवर एवं डोब कुंड। डोब कुंड शाखा सिहोनिया से आवृजित हुई।
डॉ. हरिहर निवास द्विवेदी के अनुसार सिंह पानिया नरेश बज्र दमन ने जब गांधी नगर के कुछ सदस्यों ने डोब कुंड की शाखा की नींव डाली।
इस शाखा का प्रथम शासक युवराज था। जिसके शासनकाल के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नही होती, किन्तु उसके उत्त्तराधिकारी अर्जुन को विक्रामसिहं द्वारा सन 1145 ई में स्थापित डूब कुंड प्रस्तर अभिलेख में उसे चंदेल शासक विद्याधर का करद शासक होना बताया गया है।
अर्जुन के उत्तराधिकारी अभिमन्यु ने सन् 1035 से 1044 ई तक शासन किया। डोब कुंड अभिलेख में उसके पराक्रम का उल्लेख है।
अभिमन्यु का उत्तराधिकारी विजयपाल हुआ। इसका उल्लेख बयाना के अभिलेख में किया गया है। अभिलेख अनुसार अधिराज विजय के साम्राज्य में श्रीपत नामक जैन साधु रहता था।
विजयपाल के बाद विक्रम सिंह डोब कुंड की गद्दी पर बैठा। सन् 1145 ई के किसी शासक के बारे में जानकारी प्राप्त नही है।
ग्वालियर स्टेट गजेटियर के अनुसार इस गैर आबाद गाँव में तालाब किनारे दो मंदिर है। इनमें एक हरि गौरी का है तथा दूसरा खास मंदिर जैनियों का है। इसके तीन तरफ 8 बुर्जिया है। मंदिर और बुर्जियों के दरवाजे पर निहायत उम्दा खुदाई का काम है। तमाम मूर्तिया नंगी है। जिससे मालूम होता है कि यह दिगम्बरी मंदिर है।
यहॉ वालों का खयाल है कि कुछ मंदिर एक मराठा अमर खंडू के जूल्म ज्यादती से खराब हो गया। यहॉ एक खम्बे पर 59 सत्तरों का बडा लम्बा कतबा खुदा है। इस कतबे में कच्छपघात घराने का हाल लिखा है। इसे विक्रमसिंह कच्छपघात ने खुदवाया था।
डोब कुंड का संरक्षरण न हो पाने से यहॉ अब सब कुछ खत्म होने कगार पर है। हम जैसे जुनूनी व्यक्ति के लिय वहॉ कुछ आकर्षण बचा है तो भटकते भटकते इनकी खैर खबर लेने कभी-कभी वहॉ तक पहुँच जाते है।


पर्यावरण संरक्षण के लिए जैविक कपास को बढ़ावा देने के सभी राजघराने एक मंच पर

दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो, रामपुर| पर्यावरण संरक्षण के लिए जैविक कपास को बढ़ावा देने के सभी राजघराने एक मंच पर आये हैं। मुरादाबाद जनपद की स्योहारा और रामपुर राजघरानों की तरफ से इस दिशा में खास पहल की गई है। गुजरात के बड़ौदा स्थित लक्ष्मी विलास पैलेस में आयोजित राॅयल फेबल्स में आॅर्गेनिक काॅटन का जलवा रहा। शाही घरानों के प्रतिनिधि जैविक कपास के वस्त्रों में नजर आये। पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने बताया कि बड़ौदा की महारानी राधिका राजे गायकवाड की मेहमान नवाजी में तीन दिन चले कार्यक्रमों में मुरादाबाद मंडल की रामपुर व स्योहारा रियासतों को विशेष महत्व मिला। 'रोज़ ट्री' की संस्थापक स्योहारा की कंवरानी कामिनी सिंह ने जैविक कपास को बढ़ावा देने के लिए सभी राजघरानों को उचित मंच प्रदान किया।



नवाब काजिम अली खां ने बताया कि जब सभी राजघरानों के प्रतिनिधि 'रोज़ ट्री' कलेक्शन के साथ सामने आये तो लोग काफी प्रभावित हुए। उन्होंने बताया कि राजघरानों के लोगों को जैविक कपास के वस्त्र पहने देखकर इसका प्रयोग बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि ऑर्गेनिक कॉटन को उन तरीकों और सामग्रियों का उपयोग करके उगाया जाता है, जिनकापर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है। जैविक उत्पादन प्रणाली मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती है। जैविक कपास को सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग के बिना उगाया जाता है। जैविक कपास को बढ़ावा मिलना पर्यावरण संरक्षण के लिए अच्छा होगा।कार्यक्रम की सफलता के लिए नवाब काजिम अली खां ने राॅयल फेबल्स संस्थापक अंशु-वरुण खन्ना व लाइमलाइट ज्वैलर्स की पूजा शेठ का आभार व्यक्त किया है।


 

 ना भूसा ना चारा गौ संरक्षण केंद्र 


 

खबर उत्तर प्रदेश के अमेठी से है जो अपने आप में एक जमाने से वीवीआइपी क्षेत्र के रूप में विश्वपटल पर छाया हुआ था। उसी अमेठी से स्मृति ईरानी ने चुनाव लड़कर लगभग 55 हजार वोट से राहुल गांधी को हराकर चुनाव जीतकर सांसद बनीं और केंद्रीय मंत्री भी बन वीवीआइपी क्षेत्र के तमगे को और मजबूत कर दिया।

 

आइये अब बात करते हैं इसी वीवीआइपी क्षेत्र अमेठी की जहां केंद्रीय मंत्री ने 22 जून 2019 को मुसफिरखाना के नेवादा गांव में एक वृहद गौ संरक्षण केंद्र का उद्घाटन किया। उद्घाटन तो हो गया लेकिन उसके बाद उस तरफ पलटकर देखने व उसकी सुधि लेने वाला कोई अधिकारी न मिला। मंत्री जी भाषण में गौ संरक्षण की बात करते हुए उनके रहने व चारे पानी की भरपूर व्यवस्था होने व गौ माता की भरपूर सेवा किये जाने की बात की लेकिन उनके जाते ही उनकी बात सिर्फ भाषणों तक सिमट कर रह गयी।

 

गौशाला में रह रही गायों में से चारा पानी के अभाव व बीमारियों से ग्रसित होने से  2 से 3 गायों की मौत हो रही है। वहां काम करने वाले कर्मचारी भी आगामी 10 अक्टूबर के बाद काम छोड़ देने की बात कर रहे हैं। ठेकेदार भी अधूरा काम करवाकर चला गया तो अभी तक लौट कर आया ही नहीं क्योंकि जो काम हुआ है अभी तक उसी का भुगतान नहीं हुआ तो आगे का कैसे होगा।

क्या जिला प्रशासन इस गौ संरक्षण केंद्र पर ध्यान देकर भूख प्यास व बीमारी तड़पकर मर रही गायों के प्रति थोड़ी संवेदना झूठी ही सही, दिखाता तो समस्या का कुछ प्रतिशत निदान हो जाता।