Thursday, October 3, 2019

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ


तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
सिंह की सवार बनकर
रंगों की फुहार बनकर
पुष्पों की बहार बनकर
सुहागन का श्रंगार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
खुशियाँ अपार बनकर
रिश्तों में प्यार बनकर
बच्चों का दुलार बनकर
समाज में संस्कार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ


रसोई में प्रसाद बनकर 
व्यापार में लाभ बनकर 
घर में आशीर्वाद बनकर 
मुँह मांगी मुराद बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
संसार में उजाला बनकर 
अमृत रस का प्याला बनकर 
पारिजात की माला बनकर 
भूखों का निवाला बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी बनकर 
चंद्रघंटा, कूष्माण्डा बनकर 
स्कंदमाता, कात्यायनी बनकर 
कालरात्रि, महागौरी बनकर 
माता सिद्धिदात्री बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
तुम्हारे आने से नव-निधियां 
स्वयं ही चली आएंगी 
तुम्हारी दास बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ


सत्य और न्याय ही पत्रकारिता का पहला कर्तव्य :-  तिवारी


दैनिक अयोध्या टाइम्स संवाददाता, रामपुर- तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत दैनिक अयोध्या टाइम्स के सह संपादक एसके तिवारी के प्रथम बार रामपुर आगमन पर स्वागत अभिनंदन किया गया। सह संपादक इसके तिवारी के प्रथम रामपुर आगमन पर ब्यूरो चीफ सैयद फैजान अली की टीम ने स्वागत किया। सह संपादक एसके तिवारी बाजार नसरुल्लाह खान स्थित दैनिक अयोध्या टाइम्स के कार्यालय पहुंचे। जहां उन्होंने रामपुर की पूरी टीम का परिचय लिया। इस मौके पर  सह संपादक एसके तिवारी ने कहा कि पत्रकारिता समाज की सेवा है। आम जनता की आवाज बनकर हम लोग सरकार को अवगत कराते हैं। और सरकार की आवाज बनकर कर आम जनता तक पहुंचाते हैं। यही  पत्रकारिता है। जनता को न्याय दिलाना पत्रकार की पहली प्राथमिकता है। दैनिक अयोध्या टाइम्स के कार्यालय पर उन्होंने रामपुर की राजनीति पर चर्चा की साथ ही देश के राजनीतिक हालातों पर चर्चा की और भविष्य में होने वाली कार्यक्रमों से भी अवगत कराया।सभी लोगों से मेहनत और लगन से कार्य करने का आवाहन किया। सह संपादक एसके तिवारी ने रामपुर से जुड़ी प्राचीन इमारतों और धरोहर को देखा समझा। उनके बारे में जानकारी जुटाई। तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम रूप में एसके तिवारी ने रामपुर की टीम को भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए। लखनऊ के लिए रवाना हो गए। इस मौके पर ब्यूरो चीफ फैजान अली, वरिष्ठ पत्रकार शाहबाज खान,पत्रकार हुमा बी, एडिटर शिवओम कुमार, एडवर्टाइजमेंट अदीबा खान, फोटोग्राफर सारिक याकूब , साहब खा आदि लोग उपस्थित रहे।


मंत्री क्या पटवारी भी रिश्वतखोर








चलिए कई दिनों बाद किसी मंत्री ने शिष्टाचार की बात कही है। सुनकर अच्छा लगा कि जनता के साथ-साथ नुमाइंदे भी व्यवस्था की व्यथा से ग्रसित है। तभी तो लगाम लगाने के लिए भ्रष्टाचार पर तंज कस रहे हैं। वह भी रिश्वत जैसी अमरबेली महामारी के हद दर्जे की आफत से कुंठित होकर। वाकई में मध्य प्रदेश के एक नामी उच्च शिक्षित मंत्री बधाई के पात्र जिन्होंने रिश्वत को रुखसत करने का साहस सुनाया। रणभेरी में भ्रष्टाचार मुक्त भारत की शुरुआत मध्य प्रदेश की सरजमीं से होने जा रही है, जिसके प्रवक्ता ये मंत्री जी बने। माननीय ने सार्वजनिक मंच से अपनी ही सरकार के अधीनस्थ सभी शासकीय पटवारियों को रिश्वतखोर बताया। 


बयान मे दम है तो स्थिति अनियंत्रित, चिंता जनक और कार्रवाई दायक है। फिर देर किसलिए सरकार फौरन रिश्वत के आकंठ में डूबे जमीन का हिसाब किताब रखने वाले पटवारियों की धर पकड़ कर कठघरे में डाल दें किसने रोका है। जब सबूत स्वयं सरकार के पास है तो ऐसे लूटखोर बेखौफ क्यों है संकीचों के पीछे क्यों नहीं? कार्रवाई न होना शंका को जन्म देता है? इसका जवाब भी इन जनाब को देना चाहिए तभी असलियत जनता के सामने आएगी। नहीं तो यह समझा जाए कि बड बोलापन, बोल वचन के अलावा कुछ नहीं हैं। इसीलिए जबान के बाद कलम चलाने में गुरेज हो रही हैं। उधेड़बून, जब सरकारी नियंत्रणी जमीनी पटवारी रिश्वत की भरमार से सराबोर है तो पूरा प्रशासनिक तंत्र और शासन के रहनुमा क्या कर रहे हैं? रखवाली! हिस्सेदारी! कहीं इनकी भी भागीदारी बराबर की तो नहीं है?


 अगर ऐसा है तो यह सरासर नाइंसाफी है साहब! पटवारियों की आड़ में अपनी कमजोरी छुपाने और सुर्खियां बटोरने वाले भद्दे मजाक से काम नहीं चलने वाला। कुछेक रिश्वतखोर पटवारियों के नाम पर सभी पटवारियों को घसीटना कदाचित ठीक नहीं है। ऐसा ही है तो मंत्रियों की रिश्वतखोरी की लंबी फेहरिस्त है कई अंदर और कई बाहर अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। फिर यह नियम मंत्रियों के लिए भी लागू होना चाहिए कि सभी मंत्री भी ………. हैं। या कुछ और। ऐसा कहने का साहस जुटा पाएंगे मंत्री जी? तब हम गर्व से कह सकेंगे आपके राज में मंत्री और संत्रियों के लिए बराबर न्याय है। रही! रिश्वतखोरी इस मामले में चुनिंदा पटवारियों के मुकाबले दलदल में डूबे मंत्रियों की काली कमाई बेशुमार है। आए दिन इसकी खोज-खबर देखने, सुनने और पढ़ने मिल जाना आम बात है। बानगी, हर 5 साल में मलाई के जमात में शामिल नेताओं की आय में 100 गुना तक बढ़ोतरी हो जाना किसी से छुपी नहीं है। बावजूद इसके ना जाने क्यों पटवारियों के पीछे पटवारी हाथ धोखे के पीछे पड़े हुए है। वजह कुछ भी हो लेकिन एक ही चश्मे से सब को देखना कहां से तर्क संगत है। अनर्गल बयान का असर यह हुआ कि प्रदेश के पटवारी 3 दिन के सामूहिक अवकाश पर चले गए।  यदि मंत्री ने पटवारियों से सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगी तो अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे। पटवारियों ने जिला कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपकर अपने इरादे जता दिए हैं। मामले पर पटवारियों ने कहा की इससे हमारे मान-सम्मान-स्वाभिमान और अस्मिता को ठेस पहुंची। तुगलकी बयान से पटवारियों को मानसिक आघात, मनोबल टूटना और अपमानित महसूस करना लाजमी हैं। सोचनिए! गर सभी पटवारी मिलकर एक मंत्री के बारे में टिप्पणी कर देते तो इनका क्या हश्र होता अलकल्पनीय है।यहां यह ना भूले के मंत्रियों और अफसरों की आवभगत में यही पटवारी दिन रात सर्किट हाउसों की रखवाली करते हैं। साथ ही मनपसंद की सवारी, लजीज भोजन और सामग्रियों की व्यवस्था पटवारियों के माथे आला अधिकारी जड़ देते हैं। अमला अपने कामों के अलावे घटना-दुर्घटना, आफत-राहत, धरना-आंदोलन, तीज-त्योहारों और आयोजन-महोत्सव में जुटा रहता है। ऐसे में इन सभी को अपनी नजरों से रिश्वतखोर बता देना एक जिम्मेदार मंत्री को शोभा नहीं देता। हां! जो भ्रष्ट व गैर जिम्मेदार चाहे पटवारी हो या अफसर, नेता किवां मंत्री-मुख्यमंत्री और कोई भी हो उसे हर हाल में बख्शा नहीं जाना चाहिए। इसी कदम ताल की देश के जवान-मजदूर-किसान और हर इंसान को बरसों से दरकार है। अब, देखना है यह कब तलक मुकम्मल होती है।


 









Wednesday, October 2, 2019

आओ हम सब  मिलकर के प्लास्टिक मुक्त भारत की संरचना करें

वर्तमान अर्थ के इस युग में अर्थ अर्जन  की आपाधापी में आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव-शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। आंख खुलते ही शुरू होने वाला प्लास्टिक का उपयोग रात की नींद के साथ ही बंद होता है| गृहोपयोगी वस्तुओं से लेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, विज्ञान सेना, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक का उपयोग बढ़-चढ़कर हो रहा है।स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है विकास की कीमत प्रकृति  का किस स्तर तक नुकसान करके मानव चुकाएगा यह कह पाना बड़ा मुश्किल है| प्लास्टिक  विदेशी से घिरा मानव  कहीं प्रकृति और खुद के अस्तित्व को नष्ट ही ना कर ले |आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है, जाने अनजाने मानव ने अपने जीवन में एक खतरनाक विष का जाल बना लिया है जिसमें  कीड़े मकोड़े की तरह हम खुद ही फस कर  उलझने को विवश हो रहे हैं | प्लास्टिक का उपयोग करना तो बहुत आसान है परंतु उसका निस्तारण , उपयोग करने के बाद सही तरीके से  कर पाना बहुत ही मुश्किल साबित हो रहा है | सही तरीके से  निस्तारित ना होने पर  प्लास्टिक कचरा हमारे जमीनों की उर्वरा शक्ति कम कर रहा है । ऐसे खेतों में पड़ने वाले बीज अंकुरित ही नहीं होते , यदि प्लास्टिक कचरा पॉलीथिन के रूप में नालियों में फेंका जाता है। तो वह नाली और नाले को अवरुद्ध करता है , प्लास्टिक थैली में फेंका गया जूठन हमारे पशुओं  में कैंसर फैला रहा है  |हिमालय की वादियों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक हर जगह उचित निस्तारण व्यवस्था ना होने के कारण प्लास्टिक कचरा फैला पड़ा है जिससे प्रकृति का पर्यावरण चक्र बिगड़ने को विवश हो रहा है ।
                           कुछ विकसित देशों में प्लास्टिक के रूप में निकला कचरा फेंकने के लिए खास केन जगह जगह रखी जाती हैं। इन केन में नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल कचरा ही डाला जाता है। असलियत में छोटे से छोटा प्लास्टिक भले ही वह चॉकलेट का कवर ही क्यों न हो बहुत सावधानी से फेंका जाना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर भारी मात्रा में केमिकल उत्सर्जन होता है जो सांस लेने पर शरीर में प्रवेश कर श्वसन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसे जमीन में फेंका जाए या गाड़ दिया जाए या पानी में फेंक दिया जाए, इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते और प्रकृति के विभिन्न प्रकार के चक्रों को अनियमित करते हैं सो अलग|                                      


वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमने शायद इतिहास में विभिन्न सभ्यता देखी कांस्य युगीन सभ्यता , लौह युग ,और अब हम प्लास्टिक युग में विचरण कर रहे हैं अन्य सभ्यताओं ने मानव को विकसित किया परंतु प्रकृति को नष्ट नहीं किया और आज का प्लास्टिक योग हमारे अस्तित्व से ही खिलवाड़ करने में लगा हुआ है| आज सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं।  सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं।  



                          पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा। हमने अपने आने वाली पीढ़ियों को जहरीली हवा ,पानी और भोजन के अतिरिक्त जहर घोलकर पर्यावरण भी दिया है|
आज सुबह के टूथपेस्ट से शुरू होकर प्लास्टिक का सफर घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों बच्चों के स्कूल बैग तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है आजकल अक्सर आप ट्रेन से सफर करते हैं तो खिड़की से बाहर देखने पर चमकीली प्लास्टिक के रैपर दूर तक चमकते हुए दिखाई देते हैं, आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है| हम प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें इसके लिए सरकार को हमारे ऊपर तथा प्लास्टिक बेचने वालों पर अर्थदंड लगाना पड़ रहा है| विकास की अंधी दौड़ में हम इतने खो चुके हैं कि हमें अपना अस्तित्व ही नष्ट होता नहीं दिखाई दे रहा आप कल्पना करें भारत में 50% प्लास्टिक एक बार इस्तेमाल होने के बाद फेंक दी जाती है अक्सर इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक बैग खतरनाक केमिकल जायलेन, एथिलीन ऑक्साइड , बेंजीन जैसे केमिकल से मिलकर बनते हैं    इनमें रखा हुआ खाना भी प्रदूषित ही नहीं समय के साथ विषैला भी हो जाता है और इस तरह के प्लास्टिक को यदि हम जमीन में दफनाते हैं तो वह जमीन पानी में फेंकते हैं तो वह पानी और कचड़े के रूप में फेंका गया पॉलिथीन तो हजारों सालों तक नष्ट नहीं होता प्लास्टिक कि नॉन बायोडिग्रेडेबल प्रवृत्ति ही हमारे लिए सबसे खतरनाक है|   
                     प्रकृति और मानव अनादिकाल से सहचर के भाव में जीवन यापन करते रहे हैं आज वर्तमान समय की महती आवश्यकता है कि हम पहले तो अपने दिनचर्या में प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें और यदि करें तो यह ध्यान रखें कि वह प्लास्टिक reused, recycled आसानी से की जा सके और धीरे-धीरे  यह उपयोग कम से कम कर किए जा सके |आइए सरकार की मंशा के साथ शामिल होते हुए हम सब भी 2 अक्टूबर 2019 को यह शपथ ले कि अपने जीवन में प्रयोग होने वाली ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक की वस्तुओं का त्याग करेंगे और कुछ नहीं तो कम से कम प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करना हम मनुष्यों का परम कर्तव्य है अगर प्रकृति हमारी रक्षा करती है तो आज की  महती आवश्यकता है कि हम अपनी प्रकृति की रक्षा करें| एक प्रयास प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने का...... 
लेखक--अभिमन्यु शुक्ला