Wednesday, September 18, 2019

‘एक राष्ट्र एक संविधान’ और ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ के समान ही ‘एक राष्ट्र एक मानक’ भी होना चाहिएः राम विलास पासवान

केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री श्री राम विलास पासवान ने आज 14 मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की मानक निर्माण प्रक्रिया और उसको लागू करने के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की। इस बारे में विस्तृत चर्चा हुई कि मानक कैसे निर्धारित किए जाते हैं और उनका कार्यान्वयन कैसे किया जाता है। श्री पासवान ने कहा कि 'एक राष्ट्र एक संविधान' और 'एक राष्ट्र एक राशन कार्ड' के समान ही 'एक राष्ट्र एक मानक' भी होना चाहिए।



बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए श्री पासवान ने कहा कि इस बैठक में सभी हितधारकों, नियामकों और अधिकारियों के साथ 'मानक निर्माण की प्रक्रिया' की समीक्षा की गई  और निर्धारित मानकों के कार्यान्वयन/निष्पादन में सुधार लाने के बारे में भी विचार-विमर्श किया गया। श्री पासवान ने सभी हितधारकों से 17 सितम्बर 2019 तक इस संबंध में अपने सुझाव देने का आग्रह किया। श्री पासवान ने यह भी कहा कि मानकों को तय करने और उनके लागू करने का उद्देश्य 'इंस्पेक्टर राज' को वापस लाना नहीं है बल्कि देश के सभी उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराना है।


 श्री पासवान ने कहा कि भारतीय मानक वैश्विक मानदंड के अनुसार निर्धारित होने चाहिए और अन्य देशों की तरह ही आयातित उत्पादों पर अपने मानकों को लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा अंतर्राष्ट्रीय वस्तुओं के लिए पारस्परिक आधार पर किया जाना चाहिए और प्रभावी निगरानी तथा जांच के लिए एक प्रणाली बनानी चाहिए।


उपभोक्ता मामलों के विभाग में सचिव श्री अविनाश के. श्रीवास्तव ने इस बात पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि मानक निर्माण की प्रक्रिया को पूरा करने में लगने वाले समय को अब 24 महीने से घटाकर 18 महीने कर दिया है।


नीति आयोग के सदस्य डॉ. डीके पॉल ने मीडिया को बताया कि नीति आयोग वर्तमान में चिकित्सा उपकरण विधेयक के मसौदे पर काम कर रहा है जो बाजार में आने वाले गैर-मानक चिकित्सा उपकरणों की समस्या से निपटने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि 23 श्रेणियों के उपकरणों को दवाओं के तहत विनियमित या अधिसूचित किया गया है और यह प्रयास व्यापक पैमाने पर किया जाना है।


इस सभा में यह भी बताया गया कि भारत में बुलेट प्रूफ जैकेट के लिए मानक वैश्विक मानदंडों से बेहतर है और भारत दुनिया में चौथा देश है जिसके पास अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन के बाद ऐसा मानक उपलब्ध है।




*हिन्दी है जन - जन की भाषा*

- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित" कवि,साहित्यकार

14 सितम्बर ,हिन्दी दिवस

 

महात्मा गांधी ने कहा था "ह्रदय की कोई भाषा नहीं है। ह्रदय ह्रदय से बातचीत करता है। और हिंदी ह्रदय की भाषा है। "हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय को 14 सितम्बर 1949 को लिया गया था। हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित एवम प्रचारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा द्वारा अनुरोध किया गया जिसे स्वीकार किया गया। वर्ष 1953 से सम्पूर्ण भारत मे 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष इसीलिए हिन्दी दिवस मनाया जाता है।1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने की कहा था। इसे गाँधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।

  भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय 343(1) में इस प्रकार लिखा है कि " संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ कर राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तराष्ट्रीय रूप होगा।" ये निर्णय 14 सितंबर को हुआ था इसी कारण इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में हम सभी मनाते हैं।

  हिन्दी दिवस के दिन शिक्षालयों में छात्र छात्राओं को हिन्दी भाषा मे बोलने व लिखने की शिक्षा दी जाती है। साहित्यिक संस्थाएं भी हिन्दी के प्रसार हेतु हिन्दी लाओ देश बचाओ जैसे कार्यक्रम आयोजित करती है। विद्यालयों में वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, काव्य पाठ आदि होते हैं। साहित्यिक कार्यक्रमों में हिन्दी सेवियों को सम्मानित किया जाता है। हिन्दी की ओर प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान भी दिए जाते हैं। जिसमे एक लाख एक हजार रुपये उस रचनाकार को दिए जाते है जिसने हिन्दी के लिए प्रचार प्रसार कार्य किया हो।साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा राजस्थान द्वारा प्रतिवर्ष दो दिवसीय कार्यक्रम हिन्दी दिवस पर होता है।

   राजभाषा सप्ताह का आयोजन भी होता है।जिसमे सात दिन तक हिन्दी भाषा के कार्यक्रम होते है । आजकल लोग हिन्दी दिवस के दिन भी अंग्रेजी में ट्वीट करते हैं। कई लोग आम बोलचाल की भाषा मे अंग्रेजी शब्द बोलकर दिखावा करते हैं ऐसे लोग हिन्दी का अपमान कर रहे हैं। हिन्दी भाषा के विकास हेतु अधिक से अधिक हिन्दी मे बोलने का प्रचार करने की आवशयकता है।

   हिन्दी को आज तक भी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका। हिन्दी का सम्मान अपने ही देश ने कम किया है। आओ मिलकर हिन्दी के विकास की बात करें।

  आज हम नोनिहालों को अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। समाज के आयोजनों में ये अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चे रटी हुई कविताएं बोल देते हैं। समाज तालियाँ बजा देता है। माँ बापू बड़े खुश होते हैं। इसीलिये अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ा है।

   हमारी भाषा हमारी संस्कृति व संस्कारो की पहचान है। हमारे गीता रामायण वेद पुराण जितने भी हिन्दू शास्त्र है सभी हिन्दी मे लिखे गए। प्राचीन कवियों लेखकों  ने हिन्दी मे लिखा। यदि हम उन्हें भूल कर अंग्रेजी के पीछे चले तो ये हमारी मूर्खता ही है। आज विश्व  के कई देशों के विद्यार्थी इन शास्त्रों को हिन्दी भाषा मे पढ़ने हेतु भारत आकर ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं और हम विपरीत दिशा में भाग रहे हैं। हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो भारतवासी को एक सूत्र में बांध सकती है। 

  आज कॉन्वेंट स्कूल व ईसाई मिशनरी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जा रहा है। शहरों व गांवों में अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में विद्यार्थी हर वर्ष बढ़ते जा रहे हैं। जो निजी विद्यालय चला रहे है वे बताते है कि कोई प्रवेश नहीं आते अब हिन्दी माध्यम में पढ़ने वालों के इसीलिए अंग्रेजी माध्यम खोल दिया।

   जहाँ तक मानसिकता नहीं बदलेगी हिन्दी के प्रति हमारा सम्मान नहीं जागेगा तब तक हिन्दी का हाल नहीं सुधरेगा। हिन्दी देश की सबसे बड़ी भाषा है।  लोगों को सहसा ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है हिन्दी।

हिन्दी सहज रूप में समझ में आ जाती है। यह राष्ट्रीय चेतना की संवाहक है। दुनिया मे हिन्दी का प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से 1975 में नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था।  इस सम्मेलन में विश्व के  30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विदेशों में हिन्दी दिवस के दिन दूतावासों में हिन्दी भाषा के विशेष कार्यक्रम होते हैं। हिन्दी विश्व की दस ताकतवर भाषाओं में से एक है।

   आज भी पाकिस्तान नेपाल बांग्लादेश अमेरिका ब्रिटेन जर्मनी न्यूजीलैंड संयुक्त अरब अमीरात युगांडा गुयाना अमीरात सूरीनाम त्रिनिदाद मॉरीशस साउथ अफ्रीका सहित कई देशों में हिंदी बोली जाती है। विश्व आर्थिक मंच ने हिन्दी को संसार की दस ताकतवर भाषा मे शामिल किया है। विश्व के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में आज भी हिन्दी पढ़ाई जा रही है। पूरी दुनिया मे करोड़ो लोग हिन्दी बोलते हैं। चीनी भाषा के बाद हिन्दी विश्व मे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हैं।वेब सिनेमा संगीत विज्ञापन आदि क्षेत्रों में हिन्दी की माँग बढ़ती जा रही है। विदेशों में कई पत्र पत्रिकाएं हिंदी में प्रकाशित हो रही है।

   आज की हिन्दी मैथिली मगही अवधी ब्रज खड़ी बोली छतीसगढ़ी आदि 17 बोलियों का सामूहिक नाम है। आज कनाडा जर्मनी इंडोनेशिया में भी हिन्दी भाषी बढ़ रहे हैं।

 

-राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित"

98 पुरोहित कुटी

श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी

जिला झालावाड राजस्थान

Saturday, September 7, 2019

|।चौपाई।।

 

गुरु की मार सहैं जो काया । उसने निर्मल रूप को पाया ।।

सहता  नहीं  जो  घट थापा । कैसे कुटिलता गांवावत आपा ।।

सुन्दर वस्त्र होय जब गन्दा । मसलैं रजक पीटे स्वछन्दा ।।

निर्मल होय जब वस्त्र शरीरा । मानव धारण करत अधीरा ।।

कटैं  वस्त्र जो  दर्जी  हाथे । मानव उसे चढ़ावत माथे ।।

ईंट   सहैं   मार  रजगीरू । सुन्दर बुर्ज बनावत भीरू ।।

बढ़ई   मार  सहैं जो  काठा । मार अखाड़ा सह बनैं पाठा ।।

सुंदर  स्वर्ण  सुनार   तपावत । पीट-पीट बहु भांति बनावत ।।

सहते मार न स्वर्ण सुनारू । बनता कैसे कुण्डल हारू ।।

लौह  गर्म कर  हनैं  लुहारा । विविध भांति बनैं औजारा ।। 

 

ऋषिकान्त राव शिखरे

अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश।

Saturday, August 31, 2019

ई.आई.सी. (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन एजेंसी) कार्यालय के समग्र रूप से सदैव बंद होने पर " प्रेस-वार्ता का आयोजन

आज दिनांक 29 अगस्त, 2019 को समय अपरान्ह 12:30 बजे मर्चेंट्स चेम्बर ऑफ उत्तर प्रदेश द्वारा "आगामी माह
सितम्बर से कानपुर में स्थित ई.आई.सी. (एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन एजेंसी) कार्यालय के समग्र रूप से सदैव बंद होने पर "
प्रेस-वार्ता का आयोजन किया गया।
उक्त प्रेस-वार्ता में निम्नलिखित बिंदु  पर विस्तार से चर्चा की गयी:
 कानपुर में स्थित ई.आई.सी. एकमात्र कार्यकारी कार्यालय है जो न केवल कानपुर में  बल्कि उत्तर प्रदेश में स्थित
समस्त निर्यातकों को सुविधा प्रदान करता है।
 निर्यात के लिए कुछ ASEAN देशों जैसे जापान, कोरिया, नेपाल व श्रीलंका के लिए फिजिकल जाँच की आवश्यकता
होती है, कार्यलाय बंद होने की दशा में नई दिल्ली से ई.आई.सी. के के अधिकारी को नियुक्त कर भेजा
जाएगा।                     
 कुछ मझोले निर्यातकों को समय-समय पर निर्यात सम्बन्धी जानकारियों अभी ई.आई.सी. कार्यालय, कानपुर से
ही मिल जाती है। अब, ई.आई.सी. कार्यालय का समस्त कार्य दिल्ली में स्थानांतरित हो जाने के बाद सभी
निर्यातकों को प्रत्येक कार्य के लिए दिल्ली जाना होगा।  जिससे निर्यात का माल भेजने में 8-10 दिन की देरी
होगी। 
 वर्तमान अनावरण में प्रत्येक निर्यातक के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन
जारी करवाए जब तक कि निर्यातक को शिf{kत न किया जाए। निर्यातक को शिf{kत करने के लिए ऑनलाइन
सर्टिफिकेट  ओरिजिन जारी करने के सम्बन्ध में ई.आई.सी. को पूरे प्रदेश में कार्यशाला करने की आवश्यकता है।
इस हेतु मर्चेंट्स चैम्बर ऑफ उत्तर प्रदेश, ई.आई.सी. कार्यालय को निर्यातकों को ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ
ओरिजिन जारी करने के सम्बन्ध में शिf{kत करने के लिए अपना सभागार देने का आश्वासन देता है।   
 किसी भी नई प्रणाली, वर्तमान में ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन जारी करने की व्यवस्था, को लागू करने से
पूर्व यह माना जाता है कि उस प्रणाली से जुड़े बंधुओं को अवगत कराया जाए। इसलिए ई.आई.सी., कानपुर
कार्यालय को समस्त निर्यातकों को ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन ऑफ ओरिजिन जारी करने की नई
व्यवस्था में सहायता करना चाहिए।
ई.आई.सी. कानपुर एक हजार से अधिक पंजीकृत निर्यातकों को सुविधा प्रदान करता है जिसमें लेदर,
ग्लासवेयर आइटम्स, टेक्सटाइल, परफ्यूमरी, फ़ूड व अन्य उद्योग प्रमुख है। ऐसे में ई.आई.सी. कानपुर कार्यालय बंद होने
से निर्यातको  को बाधा ही उत्पन्न होगी।
इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के निर्यातकों का एक मत यह है कि ई .आई.सी., कानपुर कार्यालय को आगामी एक वर्ष
या उससे अधिक  तक के समय के लिए बंद नहीं करना चाहिए जब तक कि ऑनलाइन सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन
की व्यवस्था पूर्ण रूप से सुचारु रूप से न प्रारम्भ हो जाये।
उक्त प्रेस-वार्ता में मर्चेंट्स चेम्बर के अध्यछ श्री बी.एम.गर्ग,  श्री योगेश दुबे, राकेश संदल इंडस्ट्रीज, श्री विशाल
पांडेय, लोहिया कॉर्प, श्री तहजीबुल, रहमान इंडस्ट्रीज लिमीटेड, श्री अवस्थी, मिर्ज़ा इंटरनेशनल लिमिटेड, तथा सचिव-
महेंद्र नाथ मोदी उपास्थित थे।