Thursday, July 25, 2019

नैनो तकनीक से बढ़ायी जा सकेगी टायरों की मजबूती

नई दिल्ली | (इंडिया साइंस वायर): किसी उबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी
का टायर अचानक पंक्चर हो जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। भारतीय
शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से निजात पाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसी
तकनीक विकसित की है, जो टायरों की परफार्मेंस बढ़ाने में उपयोगी साबित हो
सकती है।
केरल स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड
नैनो-टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट
सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर
लाइनरों को मजबूती प्रदान करने में किया जा सकता है।
नैनो-क्ले और क्रियाशील नैनो-क्ले तंत्र के उपयोग से इनर लाइनर बनाने के लिए
विकसित फॉर्मूले को गैस अवरोधी गुणों से लैस किया गया है। इससे टायरों के इनर
लाइनर की मजबूती बढ़ायी जा सकती है। इंटरनेशनल ऐंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर
फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी (आईआईयूसीएनएन) ने टायर निर्माता कंपनी
अपोलो टायर्स के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराया है। कंपनी जल्द ही इस
तकनीक का उपयोग हाई-परफार्मेंस टायर बनाने में कर सकती है।


प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल और डॉ साबू थॉमस (बाएं से दाएं)


ट्यूब वाले टायरों ग्रिप अच्छी होती है, पर ये टायर जल्दी पंक्चर हो जाते हैं और
पंक्चर होने के बाद कुछ क्षणों में सपाट होकर सतह से चिपक जाते हैं। इसके
विपरीत, ट्यूबलेस टायरों में अलग से कोई ट्यूब नहीं होती, बल्कि यह टायर के
अंदर ही टायर से जुड़ी रहती है, जिसे इनर लाइनर कहा जाता है। ट्यूबलेस टायरों
की एक खासियत यह है कि पंक्चर होने के बाद इनमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है।
हालांकि, बार-बार पंक्चर होने की परेशानी इन टायरों के साथ भी जुड़ी हुई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नैनो तकनीक की मदद से टायर को अधिक मजबूत
एवं टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
गाड़ियों के टायर को अधिक टिकाऊ बनाने से जुड़ी तकनीक को विकसित करने
वाले वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के उप-
कुलपति डॉ साबू थॉमस ने बताया कि "पॉलिमर नैनो-कम्पोजिट विकसित करते हुए
कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और नैनो-क्ले जैसे नैनोफिलर्स के प्रसार से जुड़ी चुनौतियों
से निपटने में ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे अत्याधुनिक उपकरण
मददगार साबित हुए हैं।"


ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी


विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन द्वारा समर्थित आईआईयूसीएनएन
नैनो-उपकरणों के तकनीकी विकास और निर्माण से जुड़े अनुसंधान कार्यक्रमों को
बढ़ावा देता है। इस तरह के अनुसंधान कार्यक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल,
ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोग शामिल हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विभाग के सहयोग से इस केंद्र को ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे परिष्कृत
उपकरणों से सुसज्जित किया गया है, जिसकी मदद से नैनो स्तर के नमूनों की
आंतरिक संरचना को भी देखा जा सकता है।
आईआईयूसीएनएन कई प्रमुख नैनो तकनीकों पर काम कर रहा है। आंतरिक
अनुप्रयोगों और अत्यधिक तापमान एवं आर्द्रता वाले वातावरण में उपयोग होने
वाले उच्च क्षमताओं की नैनो-संरचनाओं से बने एपोक्सी मिश्रण से जुड़ी तकनीकें
इनमें शामिल हैं। इन तकनीकों का उपयोग आमतौर पर एयरोस्पेस, जल शुद्धिकरण


फिल्टर्स, तापीय स्थिरता, नैनो-फिलर्स और वियरेबल डिवाइसेज इत्यादि में
उपयोग हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से भविष्य में उन्नत
प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिसकी मदद से अग्रणी किस्म के
उत्पाद बनाए जा सकते हैं। डॉ साबू थॉमस के अलावा शोधकर्ताओं में
आईआईयूसीएनएन के निदेशक प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल शामिल थे। (इंडिया साइंस
वायर)
Keywords : flattened tyres, Nanotechnology, Nano Mission,


वक्त

मौत  ने  भी  अपने  रास्ते बदल डाले,

मैं जिधर चला उसने कदम वहाँ डाले।

 

जब - जब लगा मेरे जख्म भरने लगे,

पुराने वक्त की यादों ने फिर खुरच डाले।

 

मैं बहुत परेशान था पैरो के छालों से,

मंजिल ने फिर भी रास्ते बदल डाले।

 

रौशनी झरोखों से भी आ जाती मगर,

वक्त की हवा ने उम्मीद के दिए बुझा डाले।

 

वक्त  के  हाथों  में  सब  कठपुतली  हैं,

उसके धागों के आगे लगते सब नाचने गाने,

 

मैं मंजर बदलने की आश में चलता रहा।

साल दर साल फिर भी बढ़ते रहे राह के जाले।।

 

धुन्ध दुःखो की इस कदर जीवन पर बढ़ी,

खुद ही छूटते चले गए सभी साथ देने वाले,

 

एक जगह रुककर कभी जीना नहीं शीखा था।

मजबूरियों ने एक ही जगह पर कदम बांध डाले,

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

मोबाइल 09582488698

65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001

Sunday, July 21, 2019

नई तकनीक से चुनौतियों के हल खोजने वाले उद्यमियों को पुरस्कार

उमाशंकर मिश्र
नई दिल्ली, 18 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): किसी दिव्यांग को ऐसा कृत्रिम अंग मिल जाए
जो दिमाग के संकेतों से संचालित हो तो इसे तकनीक पर आधारित एक महत्वपूर्ण सामाजिक
योगदान माना जाएगा। बिट्स पिलानी के कंप्यूटर साइंस के दो छात्रों उज्ज्वल कुमार झा और
सिद्धांत डांगी ने ऐसे ही बायोनिक हाथ का नमूना पेश किया है, जो दिमाग के संकेतों से
संचालित होता है। इस बायोनिक हाथ के प्रोटोटाइप को इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम 2.0 के
तहत राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित यूनिवर्सिटी चैलेंज प्रतियोगिता में 10 लाख रुपये का पुरस्कार
मिला है। इन दोनों छात्रों ने बताया कि उनका प्रोटोटाइप फिलहाल विकास के दूसरे चरण में है
और इस पुरस्कार राशि की मदद से वे इसे अधिक बेहतर बना सकेंगे।
सामाजिक एवं औद्योगिक समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित ऐसे
नवाचारों के लिए इस वर्ष इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के तहत ओपन इनोवेशन चैलेंज में 16
स्टार्ट-अप कंपनियों और यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत 20 अकादमिक संस्थानों की टीमों को
क्रमशः 25 लाख रुपये और 10 लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया है। इन विजेताओं को 2400
आवेदकों द्वारा प्रस्तुत किए गए नवाचारों में से चुना गया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बुधवार को ये पुरस्कार नई
दिल्ली में प्रदान किए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लाइफ साइंसेज, संचार, बायोटेक्नोलॉजी,
स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, रोबोटिक्स, कचरा प्रबंधन, जल प्रबंधन और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों के
नवाचार इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि "स्टार्टअप का विस्तार और उन्हें
एक स्थापित कारोबारी मॉडल के रूप में स्थापित करना प्रमुख चुनौती है। उद्योग जगत सफल
स्टार्टअप में अगर किसी निर्धारित राशि का निवेश करता है तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
भी ऐसे स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए समान राशि का निवेश करने का फैसला जल्दी ही ले
सकता है।"
पुरस्कृत नवाचारों में आईआईटी-बॉम्बे के शोधकर्ता आदर्श के. द्वारा बनाया गया स्मार्ट
स्टेथेस्कोप, आईआईटी-कानपुर के छात्र नचिकेता देशमुख द्वारा विकसित बिजली ट्रांसफार्मर को


अधिक टिकाऊ बनाने की तकनीक, नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के छात्र रवि प्रकाश द्वारा
दूध उत्पादकों द्वारा दूध सप्लाई करने के लिए बनायी गई स्मार्ट बाल्टी और कानपुर फ्लावरिंग
स्टार्टअप के नचिकेत कुंतला द्वारा मंदिरों से फेंके जाने वाले अपशिष्ट फूलों से अगरबत्ती बनाने
की तकनीक शामिल हैं।


विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा


यह पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन और टाटा ट्रस्ट
की पहल पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत में नवाचारों के लिए अनुकूल वातावरण
विकसित करना है। इसके तहत, ओपन इनोवेशन चैलेंज और यूनिवर्सिटी चैलेंज नामक दो
प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, चयनित उद्यमियों को उद्योग जगत के
साथ मिलकर काम करने का अवसर भी मिलता है। इस वर्ष चयनित स्टार्टअप विजेताओं में से
तीन कंपनियों के साथ लॉकहीड मार्टिन ने कारोबारी करार किया है।
प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि “सरकार देश में स्टार्टअप केंद्र स्थापित करने जा रही है। करीब 150
करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किए जाने इन केंद्रों से स्टार्टअप कंपनियों को संसाधन एवं


सहयोग मिल सकेगा। भविष्य में इस तरह के कुल 20 केंद्र स्थापित किए जाने हैं। इस वर्ष ऐसे
तीन केंद्र शुरू हो जाएंगे और फिर हर साल 3-4 केंद्र स्थापित किए जाने की योजना है।”



इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के यूनिवर्सिटी चैलेंज में पुरस्कृत बिट्स पिलानी के छात्रों द्वारा विकसित प्रोटोटाइप
ओपन इनोवेशन चैलेंज के विजेताओं में एस्ट्रोसेज लैब्स, आयु डिवाइसेज, बीएबल हेल्थ,
बायोलमेड इनोवेशन्स, बीएनजी स्प्रे सॉल्यूशन्स, सी इलेक्ट्रिक ऑटोमोटिव ड्राइव्स, कॉग्निएबल,
सिका ऑन्कोसॉल्यूशन्स, कानपुर फ्लावरसाइक्लिंग, न्यूबवेल नेटवर्क्स, ओसस
बायोरिन्यूएबल्स, टैन90 थर्मल सॉल्यूशन्स, टेरेरो मोबिलिटी, अनबॉक्स लैब्स, वार्ता लैब्स और
विडकेयर इनोवेशन्स शामिल हैं।
यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत पुरस्कृत विजेताओं में सिद्धांत डांगी और उज्जवल झा के अलावा,
आईआईटी-मद्रास के आयुष पारसभाई मनियर एवं ध्यानेश्वरन सेनगोत्तुवेल, आईआईटी-कानपुर
के अयन चक्रबर्ती, अखिल बी. कृष्णा एवं पर्वराज पचोरे, शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ
एग्रीकल्चर साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी और आईआईटी-खड़गपुर के शंखा कर्माकर शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)


Tuesday, July 16, 2019

ग़ज़ल



आइना क्या देखकर शरमा रहा है।

यूँ मिली जब आंख तो घबरा रहा है।

 

बंद पलकों से कहो ना दर्द  कुछ भी,

दिल अभी नादान हँसा जा रहा है।

 

खनखनाकर शोर उठती चूड़ियों की,

क्या शिकायत मुझको बतला रहा है।

 

आज से पहले नही इतना हँसा वो

राज कुछ है साज जो छिपा रहा है।

 

ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं 'मुझको',

रौशनी जो आंख में जलता रहा है।

 

 




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नाम - ऋषिकांत राव शिखरे

पता - पुलसावां, अकबरपुर, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा - बी.एस. सी. (Bachelor of Science)

मो. न. -    +919793477165