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Thursday, May 30, 2024

हमारा विनाश कव शुरू हुआ था?

1.हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ था जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया है!



2. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर जर्सी गाय का विषैला दूध पीना शुरु किया था!
3. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही,मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब पीना शुरू किया था!
4. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने गन्ने का रस छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं!
5. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया था और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया था जो रिफाइंड ऑयल हृदय घात, आदि का कारण बन रहा है!
6. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश के युवाओं ने नशा शुरू किया था बीडी, सिगरेट, गुटखा, गांजा, अफीम, आदि शुरू किया था जिससे से कैंसर बढ रहा है!
7. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ जिस दिन देश में 84 हजार नकली दवाओं का व्यापार शुरु हुआ और नकली दवाओं से लोग मर रहे हैं!
8. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने अपने स्वदेशी भोजन छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है!
9. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अनुशासित और स्वस्थ दिनचर्या को छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की थी ।
10. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने घरों में एलुमिनियम के बर्तन व घर में फ्रिज लाया था।
11. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीय जीवन शैली को छोड़कर विदेशी जीवन शैली शुरू की थी।
12 .हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने स्वस्थ रहने का विज्ञान छोड दिया था और अपने शरीर के स्वास्थ्य सिद्धांतों के विपरीत कार्य करना शुरू किया था ।
13. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश का अधिकतर युवा / युवतियां व्यभिचारी बनकर कंडोम का प्रयोग करके व्यभिचार करना ,गर्भ निरोधक गोलियां खाना,लाखों युवतियां हर साल गर्भाशय कैंसर से मरती हैं।
14. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अपने बच्चों को टीके लगवाना शुरू किया था और यह विचार कभी भी नहीं किया था कि टीकों का बच्चों के शरीर पर भविष्य में क्या प्रभाव पडेगा?
15. इस शरीर की कुछ सीमा है कुछ मर्यादा है कुछ स्वस्थ सिद्धांत हैं लेकिन मनमाने आचरण के कारण शरीर की बर्बादी की है!!
नोट :- हमारे विनाश के अनेक कारण हैं आज लोगों को सिर्फ को.रोना ही दिखाई दे रहा है उन्हें यह भी देखना चाहिए कि लोग कैंसर, टीबी, हृदय घात, शुगर, किडनी फेल, हाई वीपी, लो वीपी, अस्थमा आदि गंभीर बीमारियों से मर रहे हैं!!

Sunday, May 19, 2024

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है ?

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगों की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है ?


👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है ।


👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है ।


👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है । (बंद कर देता है )


👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है ।


👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त में उपस्थित प्रोटीन पकने लगता 

है ।


👉  स्नायु कड़क होने लगते हैं इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते 

हैं ।


👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है ।


👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक-एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है ।


👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोड़ा-2 पानी पीते रहना चाहिए और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर  ध्यान देना चाहिए ।


Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव आने वाले दिनों में भारत को प्रभावित करेगा ।


कृपया 12 से 3 बजे के बीच घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें ।


तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा ।


यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा ।


(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है) ।


कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें ।


किसी भी अवस्था में कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पियें । किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम2.5 से 3.5लीटर पानी जरूर लें ।


जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें । किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है ।


ठंडे पानी से नहाएं । इन दिनों मांस का प्रयोग छोड़ दें या कम से कम 

करें ।


फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें ।


हीट वेव कोई मजाक नही है ।


एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है ।


शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है ।


अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें ।


Friday, May 17, 2024

सत्यनाशी भट कटेया



आमतौर पर गर्मियों के दिनों में खेतों में मेड पर खुद से उगने वाला यह पौधा बिहार में कई नाम से जाना जाता है। इसके पीले फूल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। गेहूं और सरसों की फसल में यह खुद-ब-खुद उग आता है। भरभार, घमोई सत्यनाशी भट कटेया और न जाने किन-किन नाम से इसे संबोधित किया जाता है।देश के ज्यादातर हिस्से में अगर किसी को सत्यानाशी कहा जाता है तो उसका मतलब काम खराब करने वाले व्यक्ति से होता है. ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का ना हो, जो हर काम बिगाड़ता हो यानी जिसका कोई फायदा ना हो, ऐसे व्यक्ति को सत्यानाशी कहा जाता है. लेकिन एक पौधा ऐसा भी है, जो कैसी भी जमीन में, कहीं भी उग जाता है और उसका नाम सत्यानाशी पौधा है. सतयानाशी पौधे को आपने अक्सर सड़क के किनारे, सख्त बंजर जमीन में, पथरीली जगहों पर, कड़ाके की धूप वाली जगहों या सूरज की रोशनी ना पहुंचने वाली यानी हर जगह पर देखा हो सकता है.सत्यानाशी पौधे में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं. यह पौधा ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों में उगता है. इस पौधे में बहुत ज्यादा कांटे होते हैं. इसके पत्ते, शाखाओं, तने और फूलों के आसपास हर जगह कांटे होते हैं. इसके फूल पीले रंग के खिलते हैं, जिनके अंदर बैंगनी रंग के बीज पाए जाते हैं. अमूमन किसी पौधे के फूल और फल तोड़ने पर सफेद रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, लेकिन सत्यानाशी के पौधे से फूल तोड़ने पर पीले रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है. पीले रंग के दूध जैसा पदार्थ निकलने के कारण इसे स्वर्णक्षीर भी कहा जाता है.सत्यानाशी के पौधे को स्वर्णक्षीर के अलावा उजर कांटा, प्रिकली पॉपी, कटुपर्णी, मैक्सिन पॉपी समेत कई नामों से पहचाना जाता है. अमूमन किसान इसे बेकार पौधा मानकर काटकर फेंक देते हैं. वहीं, आयुर्वेद में इसे औषधि की तरह इस्तेमाल कर दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनसे कई रोगों का इलाज किया जाता है. सत्यानाशी पौधे का हर हिस्सा यानी पत्ते, फूल, तना, जड़ और छाल आयुर्वेद में बेहद काम के माने जाते हैं.

Friday, April 5, 2024

अकर्मण्यता से उपजा पलायनवादी यथार्थ,संघर्ष से होता ऊंचा मनोबल

(जिजीविषा ही सफलता का पर्याय) 

अकर्मण्यता एक बड़ी शारीरिक,मानसिक व्याधि और दशा है, यह जीवन को निर्रथक बनाती है। इस अवस्था को तत्काल त्यागना चाहिए,और अपने जीवन के संघर्ष के लिए तैयार रखना चाहिए। मन ही मन यदि आपने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। वैसे जीवन में दुष्कर, कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए जिससे पूरी शक्ति एवं उर्जा लगाकर हम उसे प्राप्त कर सकेl कठिन कार्य से घबराकर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता हैl निराशा से बढ़कर कोई अवरोध नहीं अतः निराशा, हताशा को त्यागें और ऊर्जा उत्साह के साथ आगे बढ़े, सफलता आपके कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हटकर खड़ा दिखाई देता हैl जिसे हम विलक्षण मानते और प्रतिभा संपन्न मानते हैं और आज के संदर्भ में हम उसे सेलिब्रिटी कहते हैं तो निसंदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छुपा होता हैl बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या शॉर्टकट नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता एवं संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं।यूं तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताओं और आकांक्षाएं होती हैंl सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ सामाजिकता , प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैंl मानव की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति के संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है किंतु व्यक्ति की इच्छा,आकांक्षा सफलता उस उसके मूल्यों,सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिए l यदि व्यक्ति की आकांक्षा,सफलता और इच्छा उसकी अदम्य इच्छा, भूख और मूल्यों को समाविष्ट ना करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती हैl जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवी संविधान मूल्यों से ओतप्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बनाकर जैविक व रासायनिक हथियार बनाकर व्यापक नरसंहार जैसे अमानवीय अविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता हैl यही वजह है की सफलता का नक्शा और इच्छा के पीछे माननीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी हैl

मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य और उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिएlइसमें कोई संदेह नहीं की विश्व भर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य ,करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती हैl और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रखकर तय की जाती हैl भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही हैlऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र तथा माननीय आदर्श चला गया वह व्यक्ति, मृतक लाश की तरह हो जाता है। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है जिनमें कबीर, रैदास, संत,ज्ञानेश्वर तुकाराम,मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम,खुसरो, गांधी,नेहरू, टैगोर, सुभाष, विवेकानंद जैसे महान लोग सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को अपने जीवन की सफलता मानकर अपने जीवन को समाज को सौंप दिया था।परिणाम स्वरूप व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी ना बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबंध होने का प्रयास करना चाहिए। ताकि तनिक सफलता के स्थान पर चिरस्थाई एवं समाज उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद तथा सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख एवं लालच चिरस्थाई सफलता के सामने महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक हो जाता है ।आज मनुष्य तत्काल एवं अस्थाई सफलता के पीछे माननीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है जो अत्यंत अस्थाई एवं पानी के बुलबुले की तरह है। और इससे न तो कोई इतिहास बनता है और ना ही कोई प्रतिमान ही स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थाई नहीं होती है। राजनीति तथा प्रशासन में मूल्यों सिद्धांतों की तो ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। क्योंकि राष्ट्र तथा नीति निर्देशक तत्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्य विहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग तथा कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को सोचनीय स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तब ही शाश्वत तथा स्थाई हो सकती है जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है। वही देश और राष्ट्र चिरस्थाई तथा लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक एवं प्रजा अपने संपूर्ण कार्य मूल्यों, उसूलों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चलकर वैश्विक देशों से अपने संबंध निर्मल तथा सैद्धांतिक बनाकर रखता हैअन्यथा उस राष्ट्र को विखंडित और पराधीन होने से कोई नहीं बचा सकताl

संजीव ठाकुर,(वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तम्भकार, चिंतक , टिप्पणीकार,रायपुर छत्तीसगढ़, 

Thursday, April 4, 2024

देश में विदेश से ड्रग की तस्करी बनी बड़ी समस्याl युवा वर्ग की बड़ी जनसंख्या नशे की गिरफ्त में बर्बाद

( ड्रग से बृहद शारीरिक,आर्थिक क्षति)


नशीले पदार्थ अपराधिक गतिविधियों के लिए शासन, प्रशासन तथा पुलिस के लिए एक गंभीर चुनौती बन हुआ है|देश में लगातार हो रही ड्रग्स की सप्लाई ने देशभर में अपराधों का इजाफा कर दिया है| नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय, अंतर राज्यीय तस्करी देश तथा विश्व के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है| यह चुनौती इसलिए भी है कि पिछले वर्ष में अपराधियों ने सूखे नशे का सेवन कर अपराध की वारदातें की हैं, नशे की लत में आकर अपराधियों में महानगरों मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई में लगातार बलात्कार, लूट, डकैती,और राहगीरों की हत्या को जन्म दिया है| दूसरी तरफ सूखे नशे की लत में स्कूल और कॉलेज के युवा तथा बच्चे अपना भविष्य खराब करने पर आमादा है| पिछले कुछ माह में मुंबई नारकोटिक्स इकाई ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर बड़ी मात्रा में चरस, कोकीन, गांजा, स्मैक की बड़ी तादाद में जप्त कर कई नामचीन अभिनेता, अभिनेत्रियों को गिरफ्तार कर प्रकरण न्यायालय के हवाले किया है| दूसरी तरफ दिल्ली,बेंगलुरु, कोलकाता में भी पुलिस प्रशासन द्वारा सीधे कड़ी कार्रवाई की हैं|वर्तमान में 

शराब तो सामाजिक बुराई बना ही हुआ है| साथ-साथ सूखा नशा भी समाज के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है, सुखे नशे के मामले में केंद्र के सर्वोच्च नेतृत्व में यानी प्रधानमंत्री ने भी गंभीरता पूर्वक इसे रोकने के लिए चिंता जताई है देश में न सिर्फ ड्रग्स के नशे का इस्तेमाल किया जा रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी कर अवैध कारोबार भी किया जा रहा है ड्रग्स का नशा सामाजिक विडंबना बना हुआ है| तब देश में नए वर्ष के आगमन के पूर्व बड़े-बड़े आलीशान होटलों मैं सूखे नशे की पार्टियां आयोजित करने की तैयारी कर ली है, ऐसे में पुलिस के केंद्र सरकार के तथा राज्य सरकार के आला अधिकारी इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास की रणनीति बनाने में जुट गए है और शासन तथा पुलिस प्रशासन अपना पूरा ध्यान सूखे नसे को प्रतिबंधित करने में लगे हुए हैं, मूलतः मुंबई गोवा और पाकिस्तानी सरहद से लगे क्षेत्र और राज्य से सूखे नशे पदार्थों की आवक सभी राज्यों में होती है| निसंदेह इसे गंभीर षड्यंत्र के रूप में लिया जाना चाहिए| मुंबई सूखे नशे का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या प्रकरण को लेकर जब पुलिस के आला अधिकारी को नशीले पदार्थों रेकेट हाथ लगा तब राज्य तथा केंद्र के कान खड़े हो गए और तब से पूरे देश में ताबड़तोड़ नशे के विरोध में कार्रवाई की जाने लगी और इसी तारतम्य में देश को यह बात समझ में आई कि सूखे नशे की लत में बड़े शहरों के तमाम पूंजीपति नशे के आदी हो चुके परिस्थितियां बहुत गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है, नए वर्ष के आगमन की सेलिब्रेशन तमाम नशीले पदार्थ की सप्लाई करने वाले तस्कर अपनी तैयारी में जुट गए हैं| देश के सभी राज्यों में नशीले पदार्थों के विरोध में केंद्र के निर्देशन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है और युवा वर्ग बच्चों को सोशल मीडिया के द्वारा भी इसकी बुराई के संबंध में लगातार अवगत कराया जा रहा है एवं इस बुराई से दूर रहने का आह्वान किया गया है, देश के बड़े-बड़े रिसोर्ट, जंगल के पिकनिक स्पॉट, देश की मुख्य सड़कों के आसपास ढाबों के संचालकों पर भी नजर रखने की योजना को मूर्त रूप दिया जाना है ताकि अपराधों में कमी आ सके ,शराब से तो अपराध होते ही हैं पर सूखे नशे से अपराधिक ज्यादा उम्र हिंसक और मस्तिष्क शुन्य हो जाते ऐसे में अपराध करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती, और इस तरह वे नशे में अपराधिक कृत्य करने से नहीं चूकते |केंद्र तथा राज्य प्रशासन की चिंता इस बात के लिए तो है ही कि इससे अपराध की संख्या में काफी वृद्धि हुई है पर साथ में इसके तस्करों द्वारा की जा रही ड्रग्स की तस्करी पर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है|अंतरराष्ट्रीय सीमा से आने वाला ड्रग्स शारीरिक रूप से भी काफी नुकसानदेह होता है अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने का एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है, जितने व्यक्ति नशा करके अपराध करने के लिए दोषी हैं |उससे ज्यादा दोषी नशीले पदार्थों के तस्करी करने वाले भी है, तस्कर समूह को चिन्हित कर उस पर बड़ी कार्रवाई करने की देश को गंभीर आवश्यकता है, देश में शराब जहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी बुराई है उससे ग्रामीण आमजन को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी बहुत बड़ा होता है, इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में खासकर बड़े शहरों में सुखा नशा एक बडी सामाजिक बीमारी की तरह अत्यंत गंभीर चुनौती बन गई है, इसे रोकने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए तभी इस सामाजिक गंभीर समस्या पर कुछ राहत और निदान मिल सकता है|

संजीव ठाकुर, (वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तंभकार,चिंतक, कथाकार, रायपुर छत्तीसगढ़

Monday, March 11, 2024

जीवन की कल्पनाओं और जीवंत संबंधों की सार्थक आत्मकथन की अभिव्यक्ति "बीती हुई बतियाँ"

आत्म कथन एवंम स्वयं के संदर्भ में लेखन साहित्य की दुरूह विधा है और इस विधा को बड़े भोले और मासूम तरीके से नवोदित लेखिका बलजीत कौर 'सब्र' ने अपनी प्रथम कृति "बीती हुई बतियाँ" में पिरोया है। बचपन से लेकर अब तक की इनके निजी अनुभवों की जीवंत गाथा को अपने संस्करण में लिपिबद्ध किया है। यह लेखिका के लिए शुभ लक्षण है कि बाल्य काल से ही उनकी पठन-पाठन में गहन रुचि रही है और उसी का सम्यक प्रतिफल का प्रमाण इस कृति के रूप में हमारे हाथों में है। यह बचपन के विभिन्न अध्यायों में विभक्त संस्करणों का एक बड़ा कैनवास है जिसमें लेखिका ने अपनी तूलिका से अलग-अलग रंगों से सजाया है। लिखे गए साहित्य में लेखिका की अपनी स्वयं की अनुभूतियों तथा संवेदनाओं के स्मरण का संप्रेषण तथा अभिव्यक्ति दी है, कलात्मक अभिव्यक्ति में सादा भोलापन,मूल मानवीय संवेदना और

सपाट वक्तव्य भी समाहित हैं, उनके लेखन में कृत्रिमिता कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती है आडंबर विहीन शब्दों का चयन करके लेखिका ने इसको बड़े ही निजी अंदाज में संकलित किया है। इस किताब में आठ आलेखों में अब तक के अनुभवों का विस्तृत विवरण समाहित है। बीती हुई बतियाँ में कुछ बातें जो दैनंदिनी की उल्लेखित है किंतु कुछ ऐसी बातें जो मन में घूमड घूमड कर मस्तिष्क के तंतुओं में आकर रुक जाती हैं उन्हें भी लिखकर लेखिकाओं ने भावनात्मक संश्लेषण में अभिव्यक्त किया है। बचपन वाला इश्क, चाय, बारिश को सजदा, स्कूल की अनमोल सखियां, छत पर गुजरे लम्हे, कुछ बातें जो दिल के करीब है, वो दौर, और इस महत्वपूर्ण कृति की मुख्य पृष्ठभूमि में शीर्षक बीती हुई बतियां में लेखिका ने अपने जीवन का निचोड़ प्रस्फुटित किया है। निसंदेह इनका यह प्रथम प्रयास साहित्य जगत के लिए शुभ संकेत है। सचमुच मानवीय संबंधों को पंख और उड़ान देती है चाय की मीठी चुस्कियां यह उनका गहन व्यक्तिगत अनुभव है और चाय को केवल चाय न मानकर बतरस का बेहद रोचक और संग्रहणीय जरिया बनाया है, चाय एक अंतरण बातों का खूबसूरत माध्यम भी हो सकता है यह लेखिका ने साबित किया है। बारिश को सजदा में अंतरंग भावनाओं को अंतस की तपिस को बारिश की बूंदों में शांत करते हुए लेखिका का मन सचमुच अंतरंग बातों से भीग भीग जाता है यह लेखिका की सफलता है। बाल मन में मित्रता सखियां और बाल मित्र संबंधों की सीमाओं से परे जाकर अंतरंग रिश्ते में परिवर्तित हो जाती है बचपन मित्रता को समर्पित होता है और इन्हीं स्मृतियां को इस कृति में बड़े ही मार्मिक तरीके से इंगित किया गया है। छत पर गुजरे हुए लमहे हर व्यक्ति की जिंदगी में एक अलग अनुभव और विशेषताओं को दर्शाता है यह केवल अनुभव नहीं बचपन की मधुर स्मृतियां जैसे हर मनुष्य लम्हा गुजर जाने के बाद फिर से पाने का प्रयास करता है, इसी जादूगरी में बड़ी दक्षता के साथ लेखिका ने अपनी बात रखी है। बीती हुई रतियों में आकाश के तारों को ताकते हुए भविष्य की कल्पनाओं में खोना मनुष्य का खूबसूरत स्वप्न होता है। उन्हें स्वप्नों को लेखिका ने स्वयं अपने दिल में जिया है। लेखिका भावनात्मक रूप से संवेदनशील है और यही वजह है कि उन्होंने बडे ही संवेदनशील तरीके से अपनी बातों को अपनी किताब में प्रस्तुत किया है। कुछ बातें जो दिल के करीब है मैं लेखिका ने अपने मन की बात को जैसा का वैसा ही लेखन में उतार दिया है उनके लेखन में कहीं भी आत्मश्लाघा, या आत्म प्रवंचना नहीं है, आत्म विश्लेषण होते हुए भी सब कुछ बड़ा खुला एवं स्पष्ट है। और बीती हुई बतिया शीर्षक की इस कृति में लेखिका बलजीत कौर उस कष्ट साध्य समय का भी उल्लेख करती है जब वह करोना जैसे भीषण संक्रमण से पीड़ित थी और उसे दौरान उन्होंने अपनी परिस्थितियों को बड़े ही दिल से संपूर्ण संवेदना और मर्म के साथ लिखने के माध्यम से पाठकों के समक्ष रखा है पूरे विश्व के साथ इस किताब का पाठक भी उसे संक्रमण काल को याद करके नख से शिख तक अत्यंत भयभीत हो जाता है, ऐसे में लेखिका द्वारा उसे पीड़ा को अभिव्यक्त करने का दुरूह कार्य किया है, लेखिका को साधुवाद।

लेखिका ने मानवीय संबंधों, साथियों के साथ अंतरंग मित्रता और जीवन की विसंगतियों को अपनी लेखनी से बड़े ही रोचक तरीके से पाठकों के सामने रखा है। अपने आलेखों के बीच-बीच में बड़ी भोली,मासूम और मार्मिक कविताओं को भी उन्होंने इस किताब में समाहित किया है जो इस कृती की विशेषताओं को द्विगुणित करता है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि लेखिका गद्य और पद्य में समान रूप से पारंगत है और सिद्धहस्त भी। लेखिका का संवेदनशील, भावनाओं से परिपूर्ण लेखन है साहित्य में इनका भविष्य उज्जवल है, किताब में कुछ भाषाई त्रुटियां हैं और कुछ प्रूफ की गलतियां भी रह गई हैं जिन्हें अगले प्रकाशन में सुधार की आवश्यकता होगी। किताब आपके सामने होगी आप पढ़ेंगे आपको मर्मस्पर्शी अंतरंग स्मरण की भी बातों का आस्वाद प्राप्त होगा, ऐसा मैं दिल से महसूस करता हूं। शुभकामनाओं के साथ।

संजीव ठाकुर ,लेखक, चिंतक, समालोचक, कवि, रायपुर छत्तीसगढ़

Friday, February 9, 2024

कानपुर के मोहल्ले के ऐसे अजीबोगरीब नाम आज जानते हैं

भारत की सबसे हैपिएस्ट सिटी कहा जाने वाले, कानपुर शहर को वैसे तो अपने उद्योग धंधों की वजह से मशहूर है लेकिन यहां कई ऐसे स्थान हैं जिनके नाम बहुत ही अजीब-ओ-गरीब हैं। इन मोहल्लों में अफीम कोठी, सीसामऊ, परेड, नवाबगंज, बेकनगंज , बिरहाना रोड,आदि लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इन जगहों के ऐसे नाम क्यों हैं? इनके पीछे की कहानी क्या है? आज हम आपको बताएंगे कि कानपुर की इन जगहों के ऐसे नाम क्यों हैं...


यहां अंग्रेज किया करते थे परेड...
परेड चौराहा
कानपुर के जिस इलाके को आज हम परेड के नाम से जानते हैं वहां अंग्रेजी शासन के दौरान अंग्रेज परेड किया करते थे। यही कारण है कि इस जगह का नाम परेड पड़ गया।
क्यों कहते हैं राम नारायण बाजार...
राम नारायण बाजार
राम नारायण बाजार का नाम मुंशी राम नारायण खत्री की याद में रखा गया था। राम नारायण ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज में थे।
हूलागंज के बारे में...
कानपुर के वर्तमान हूलागंज का नाम सर हू हवीलर की स्मृति में रखा गया। पहले इस जगह का नाम वीलर गंज पड़ा लेकिन फिर वीर सेनापति हुलास सिंह उर्फ हूलावर सिंह की स्मृति को अमर रखने की भावना से इस जगह का नाम हूलागंज रखा गया।
बेरी के बागीचों से पड़ा ये नाम...
बिरहाना रोड को पहले बेरिहाना के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहां बेरी के बहुत से पेड़ हुआ करते थे। जिसमे ठाकुर गजराज सिंह की जमीदारी हुआ करती थी, बाद में यह जगह बिरहाना रोड के नाम से मशहूर हो गई।
यहां बनाई जाती थी खजूर की चटाई...
कानपुर के दो मौहल्ले चटाई मोहाल और सिरकी मोहाल के नाम से मशहूर हैं। दरअसल चटाई मोहाल में पहले खजूर की चटाई और सिरकी मोहाल में सिरकी के पाल बनाए जाते थे। इसलिए इस जगह का नाम चटाई मोहाल और सिरकी मोहाल रखा गया।
कोतवालेश्वर महादेव मंदिर से पड़ा ये नाम...
कानपुर कोतवाली
साल 1857 में कोतवाली उस जगह पर था जहां लाला कुंजी लाल का मंदिर है। इसके पास ही कोतवालेश्वर महादेव का पुराना मंदिर है बाद में इस जगह का नाम कोतवाली पड़ गया।
गोदामों का बाजार...
थाना नवाबगंज कानपुर
कानपुर कोहना के पास ज्योरा एक छोटा सा इलाका था, नवाब आसिफुद्दौला और जीरो मुमालिक अवध ने ज्योरा की जमीन पर गंज आबाद किया तभी से यह जगह नवाबगंज यानी गोदामों का बाजार कहा जाने लगा।
बेकनगंज कानपुर
स्थानीय लोग बताते हैं कि साल 1828 में कानपुर के मैजिस्ट्रेट विलियम बेकन के नाम पर इस इलाके का नाम बेकनगंज पड़ा।
सीसामऊ बाजार
गोविंद चंद के अभिलेख से पता चलता है कि सीसामऊ को पहले ससइमइ कहा जाता था जो बाद में सीसामऊ हो गया।
अफीम का गोदाम...
अफीमकोठी चौराहा कानपुर
कानपुर में एक ऐसी जगह भी है जहां एक जमाने में अफीम का गोदाम हुआ करता था इसलिए इस जगह को अफीम कोठी कहा जाने लगा।


Tuesday, January 30, 2024

50/- प्रति किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में!

 ₹ 50/- प्रति किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में!

चमड़ा सिटी के नाम से प्रसिद्ध कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 कि.मी. के दायरे में आप घूमने जाओ तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी! यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं! इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता हैं!
इस चर्बी से मुख्यतः 3 ही वस्तुएं बनती हैं!
(1) एनामिल पेंट (जिसे अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं!)
(2) ग्लू (फेविकोल) इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं!)
(3) सबसे महत्वपूर्ण जो चीज बनती हैं वह है "देशी घी"


जी हाँ तथाकथित "शुध्द देशी घी"
यही देशी घी यहाँ थोक मण्डियों में 120 से 150 रूपए किलो तक खुलेआम बिकता हैं! इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता हैं!
इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भण्डारे कराने वाले भक्तजन ही करते हैं! लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके अद्भूत पुण्य कमा रहे हैं!
इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नहीं पहचान सकते!
बढ़िया रवे दार दिखने वाला यह ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता हैं!
दिल्ली एनसीआर के शुद्ध भैंस के देसी घी के कथित ब्रांड ***रस व ***रम( कानूनी पक्ष को देखते हुए पूरा नाम अंकित नहीं किया गया है) इसे 20 25 वर्ष पहले से ही इस्तेमाल कर रहे हैं जानवरों की चर्बी को।
औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं, गांव देहात में लोग इसी वनस्पति घी से बने लड्डू विवाह शादियों में मजे से खाते हैं! शादियों पार्टियों में इसी से सब्जी का तड़का लगता हैं! कुछ लोग जाने अनजाने खुद को शाकाहारी समझते हैं! जीवन भर मांस अंडा छूते भी नहीं, क्या जाने वो जिस शादी में चटपटी सब्जी का लुत्फ उठा रहे हैं उसमें आपके किसी पड़ोसी पशुपालक के कटड़े (भैंस का नर बच्चा) की ही चर्बी वाया कानपुर आपकी सब्जी तक आ पहुंची हो! शाकाहारी व व्रत करने वाले जीवन में कितना संभल पाते होंगे अनुमान सहज ही लगाया जा सकता हैं!
अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी आदि खाते हो उसमें क्या मिलता होगा!
कोई बड़ी बात नहीं कि देशी घी बेंचने का दावा करने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं!
इसलिए ये बहस बेमानी हैं कि कौन घी को कितने में बेच रहा हैं,
अगर शुध्द घी ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही शुध्द खा सकते हो, या किसी गाय भैंस वाले के घर का घी लेकर खाएँ, यही बेहतर होगा! आगे आपकी इच्छा..... विषमुक्त भारत----

Saturday, January 20, 2024

हारमोनियम सीखना बहुतआसान

 हारमोनियम सीखना बहुतआसान है फिर सीखते क्यों नहीं

आम व्यक्ति समझता है हारमोनियम सीखना बहुत कठिन है, इसके लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती होगी, या इसके लिए कोई गुरु होना चाहिए तभी हारमोनियम सीख सकते हैं, मेरा मानना है आपको थोड़ा बहुत मार्गदर्शन मिल जाए, बस
आप अपनी मेहनत और लगन से हारमोनियम महीने दो महीने में सम्पूर्ण तो नहीं कह सकते लेकिन सीख सकते हैं, तो फिर प्रश्न उठता है सीखते क्यों नहीं, अभी भी भारत वर्ष में 1℅ लोग हारमोनियम बजाते होगें
सबसे पहली परेशानी तो आप स्वयं हैं, आपको लगता है ये बहुत दुष्कर कार्य हैं, संगीत विद्या सभी के लिए नहीं हैं, मेरी उम्र ज्यादा हो गई है, या मेरे पास समय नहीं हैं, हारमोनियम बिना गुरु के नहीं सीख सकते हैं, मेरी आवाज अच्छी नहीं हैं
आदि आदि बातें आपके मन में चलती रहती हैं
सबसे पहले तो आपको हारमोनियम सीखने की इच्छा को प्रबल करना है, संगीत विद्या सीखने के लिए जनून चाहिए, बाकी के रास्ते स्वयं ही खुलते चले जायेंगे
संगीत विद्या जो भी सीखना चाहता है उसके लिए हैं, सीखने की कोई उम्र नहीं होती है, जब जागो तभी सबेरा
आपको जब भी समय मिलें आप हारमोनियम सीखने के लिए दे सकते हैं
थोड़ा बहुत मार्गदर्शन चाहिए हारमोनियम सीखने के लिए, कुछ लोगों को तो वो भी नहीं मिलता, अपनी इच्छा शक्ति, और लगन से वो हारमोनियम सीख जाते हैं, हारमोनियम गुरु भी हफ्ते में केवल दो दिन क्लास लेते हैं, बाकी का समय प्रेक्टिस के लिए देते हैं, हारमोनियम कोई सीखा नहीं सकता, आप स्वयं ही अपनी मेहनत और लगन से सीखते हैं
बहुत से गुरु तो इतना अनुशासन बताते हैं कि आत्मसम्मान ही खत्म कर देते हैं, इसलिए लोग हारमोनियम कक्षा छोड़कर भाग खड़े होते हैं, यह विद्या हवा पकड़ने जैसी हैं, हवा को केवल महसूस किया जा सकता है, उसे आप अपने अनुभव से ही पकड़ते हैं, जैसे गूंगे व्यक्ति को गुड़ मीठा महसूस होता है लेकिन वो किसी को बता नहीं सकता, इशारे के माध्यम से बता सकता है, कोई भी गुरु बस मार्गदर्शन दे सकता हैं, सीखने के लिए आपको स्वयं प्रस्तुत होना होता है, या ये कहूँ आप स्वयं सीखते हैं कोई आपको सीखा नहीं सकता, जब तक आप स्वयं सीखने के लिए तैयार ना हो
गुरु की कोई आवश्यकता नहीं, आप स्वयं अपने गुरु बन सकते हैं, बस थोड़ा बहुत मार्गदर्शन यूट्यूब, फेसबुक आदि के माध्यम से ले ले, और सच्ची लगन, जूनून और निष्ठा से आप हारमोनियम को बिना डरें, एक बार इसको स्पर्श तो करें
तीव्र इच्छा होना सबसे जरूरी है
आप सब बातें व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ कही से कापी पेस्ट की हुई नहीं हैं में #रामबाबूपटेलतेलसिर आपके साथ प्रतिक्षण मार्गदर्शक के रूप में जुड़ा रहूंगा हर संभव आपकी अप्रत्यक्ष रूप से मदद करूँगा आप इस पोस्ट को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें मेरे फेसबुक पेज को फालो करें Rambabu Patel Telsir पेज
मेरा यूट्यूब चैनल भी है आप उससे भी जुड़ सकते हैं ये हारमोनियम सीखने के लिए पूरी प्लेलिस्ट हैं https://youtube.com/playlist...
मेरा यूट्यूब चैनल https://youtube.com/@Rambabupatelofficial?si=MiwvqcTgmaSLbc
हारमोनियम सीखने के पहले दिन से ही आप एक बात अच्छे से समझ ले हारमोनियम की बटनो से कोई शब्द नहीं बनते हैं
कुछ लोगों गीत या भजन के शब्द हारमोनियम पर ढूंढते रहते हैं और जीवन भर हारमोनियम नहीं सीख पाते हैं, हारमोनियम से केवल एक ध्वनि निकलती हैं, यह ध्वनि किसी भी भाषा के शब्दों को अपने अंदर आत्मसात करने की क्षमता रखती हैं
इसकी बटनों में जब शुरुआत से इसको बजाए तो आपको बता चल जाएगा की शुरुआत में इसकी आवाज भारी मोटी और नीची होती है जैसे जैसे आगे की बटनों में बढ़ते हैं आवाज पतली और उंची होने लगती हैं, यह ध्वनि ही हारमोनियम सीखने का आधार हैं
वैसे तो हारमोनियम में बारह पिच होती है जिसे हम शुरुआत में स्केल कह दिया करते हैं
ये बारह पिच आप समझ ले लेकिन शुरुआत केवल एक ही पिच से करना है
सबसे पहली पिच हारमोनियम का पहला सफेद है जिससे हारमोनियम शुरू हो रही है, आप अपनी हारमोनियम को ध्यान से देखें
सफेद बटन से हारमोनियम की शुरुआत हैं
सफेद मतलब शुद्ध, साफ, जिसमें कोई मिलावट ना हो , हारमोनियम पर कीजिये
पहले सफेद से लगातार आप सफेद पट्टी में आगे की और बढ़िए सात सफेद जैसे ही पूरी होगी यही पहली सफेद जहाँ से आपने शुरू किया वो आ जायेगी
ये सभी शुद्ध स्वर है जो प्रतीक रूप में सफेद पट्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं सा रे ग म प ध नि और पुनः वही पहली सफेद पट्टी आ गई जिसकी आवाज अब पहले सफेद से उंची हैं इसे भी " सा " कहगे ये पुनरावृत्ति फिर शुरू हो गई पूरी हारमोनियम में ये सात सफेद पट्टी पूरी होते ही फिर शुरू हो जाती है
हारमोनियम में पांच काले बटन है जो मिलावट का प्रतीक है जो सफेद पट्टी के बीच बीच में प्रयोग किये गए हैं
पहली सफेद पट्टी के बाद पहला काला दूसरी सफेद पट्टी के बाद दूसरा सफेद तीसरी सफेद पट्टी के बाद कोई काला बटन नहीं है चौथी सफेद पट्टी आ गई हैं
चौथी सफेद पट्टी के बाद तीसरा काला बटन हैं फिर पांचवी सफेद पट्टी फिर चौथी काली बटन फिर छटवी सफेद पट्टी और इसके बाद पांचवीं काली बटन फिर सातवीं सफेद
इसके बाद यही पुनरावृत्ति फिर शुरू हो जाती है
ये बारह पिच भी है इन्हें समझने के लिए आप ये तीन वीडियो देख लीजिए आपको पिच के लिए कभी कोई वीडियो नहीं देखना पड़ेगा
ये बारह पिच हैं
पिच समझने के लिए दूसरी वीडियो
ये वीडियो फेसबुक पेज की सबसे अधिक वाइरल वीडियो है
पिच शब्द अपने क्रिकेट में सुना है खेल के मैदान के बारे में हैं
वैसे ही आपकी आवाज या गले की बनावट के हिसाब से आपकी आवाज उंची या नीची होती है सभी अलग अलग पिच में गाते है इस को प्रेक्टिकल ज्ञान से समझने की कोशिश इस वीडियो से करेंगे
पिच समझने के बाद आपको बारह स्वर समझने हैं जिसके लिए आप ये वीडियो देख सकते हैं वीडियो ध्यान से देखें अन्यथा आप भ्रमित हो सकतें हैं
आप भ्रमित ना हो इसलिए अलग अलग ढंग से ये बात बताई हैं
आप इन बारह स्वर का ज्ञान इन वीडियो के माध्यम से कर ले
आपको स्वर ज्ञान बीच बीच में चेकिंग करने के लिए इस वीडियो से मदद मिल सकती है
सबसे जरूरी है हारमोनियम पर अंगुली चलन इसके लिए आप ये वीडियो देखें
आप ये वीडियो देखगें तो आपको बांये हाथ से अंगुली चलन समझ आ जायेगा
बारह स्केल में अंगुली चलन
ये सब वीडियो देखने के बाद आपको हारमोनियम पर अंगुली चलन में कोई भी समस्या नहीं रहेगी
पिच के लिए एक वीडियो और देखिए
क्रमशः
ये श्रंखला जारी रहेगी




Thursday, January 11, 2024

5 लाख की 1 अगरबत्ती

 गुजरात से अयोध्या पहुंची 108 फीट लंबी अगरबत्ती

दैनिक अयोध्या टाइम्स ब्यूरो

आयोध्या। आगामी 22 तारीख को प्रभु श्री राम के मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के पहले नवनिर्मित मंदिर की सजावट और तैयारी जोर-शोर से चल रही है।  राम मंदिर को लेकर एक से बढ़कर एक प्रयोग हो रहे हैं जो अपने आप में कीर्तिमान रच रहे हैं।  इन्हीं प्रयोगों में एक बड़ा प्रयोग है 108 फीट लंबी अगरबत्ती का भी जिससे एक बड़ी इतिहास आयोध्या में  रची जा सके।बता दे कि  श्री राम मन्दिर के लिए गुजरात से अयोध्या 108 फीट लंबी अगरबती लायी गई हैं जिसका स्वागत  राम भक्तों ने भेलसर चौराहे पर जमकर किया हैं । यह अगरबती प्राण प्रतिष्ठा के लिए अर्पित की जायेगी। इस  अगरबत्ती  को 108 फीट लंबी और गोल आकर में बनाई गई है। अगरबती की लागत करीब 5 लाख है। इसकी सुंगध 15 से 20 किलोमीटर तक होगी।  यहां बुधवार को भाजपा जिला महामंत्री अशोक कसौधान, राज प्रताप सिंह , विनय लोधी , मालिक राम लोधी, आदर्श गुप्ता ने ढोल नगाड़े के साथ पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। श्री श्याम भक्ति मंडल की ओर से महेश साहू, सुधीर सिंघल, विष्णु अग्रवाल, मनीष चौरसिया अशोक गर्ग आदि मौजूद रहे।



Tuesday, January 9, 2024

लोटा और गिलास के पानी में अंतर

जानिए #लोटा और #गिलास के पानी में अंतर.........
#भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये गिलास जो है #विदेशी है.
गिलास भारत का नही है. गिलास #यूरोप से आया.
और यूरोप में #पुर्तगाल से आया था. ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये.
गिलास अपना नही है. अपना लोटा है. और लोटा कभी भी #एकरेखीय नही होता. तो #वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका #त्याग कीजिये. वो काम के नही हैं. इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता. लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है. इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे.
फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है
कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही #गुण उसमें आते है. पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं.
जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं. #दही में मिला दो तो #छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा.
दूध में मिलाया तो #दूध का गुण. लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा. अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा. और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का #सरफेस_टेंशन कम रहता है. क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा. तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा. और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है.अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है. क्योंकि उसमें #शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है.


गिलास और लोटा के पानी में अंतर गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है.
इसी तरह #कुए का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है. आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी #साधू #संत कुए का ही पानी पीते है. न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे. वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है. सरफेस टेंशन कम है. और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है. जो नीचे चित्र में दिखाई गई है.
सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है. पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना. अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है. आपकी #बड़ी_आंत है और #छोटी_आंत है,
आप जानते हैं कि उसमें #मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है. पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है. ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो. अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है.
दुसरे तरीके से समझें, आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा #दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये. तो वो रुई काली हो जाएगी. स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी. इसे दूध बाहर लेकर आया. अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है. तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है.
इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी. और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया. यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है. आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया. जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई. अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि #तनाव बढेगा. तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है. अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा #भगन्दर, #बवासीर, मुल्व्याद जैसी सेंकडो पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा.
इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए. इसलिए लौटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है. गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा. नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है. क्योंकि #नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है. नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है.
अगर #प्रकृति में देखेंगे तो #बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है. मतलब सभी #बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका #सरफेस टेंशन बहुत कम होता है.
तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीयें.
तो लोटे ही घर में लायें.
गिलास का प्रयोग बंद कर दें. जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लौटे बनाने वाले #कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गयी. गाँव गाँव में कसेरे कम हो गये, वो #पीतल और #कांसे के लौटे बनाते थे.
सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गये.
तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लौटे वापिस लाइए