प्रकृति उतना ही धन वैभव उत्पन्न करती है, जिसमें धरती पर रहने वाले सभी प्राणी अपना जीवनयापन सुविधापूर्वक कर सकें। व्यक्ति अधिक धनी बनने की चेष्टा करते हैं, तो इसका सीधा परिणाम होगा कि दूसरों का हक, हिस्सा कटने लगेगा। ऊंँची दीवार उठाने के लिए लिए किसी दूसरी जगह गड्ढा बनाना पड़ता है। कुछ अमीर बनना चाहें, तो यह तभी सम्भव हो सकेगा जब अन्य अनेकों को अभावग्रस्त गरीबी की स्थिति में रहना पड़े। इस प्रकार की विषमता जब भी जहाँ भी उत्पन्न होगी, वहाँ विग्रह खड़ा करेगी।अनावश्यक धन दुर्व्यसनों में,ठाट-बाट में, विलास-व्यभिचार में खर्च होता है, फलतः उनके दुष्परिणाम सामने आते हैं। नशेबाजी, आवारागर्दी, आलस्य, प्रमाद, सम्पन्नता का प्रदर्शन, निरर्थक अपव्यय ऐसे ही कृत्य हैं, जो अनावश्यक धन जमा करने वाले के पीछे पड़ते हैं। यह दुर्व्यसन अधिक धन की मांँग करते हैं और एक व्यक्तित्व को गिराने का दुश्चक्र चल दौड़ता है।एक अमीरी भोगे और दूसरा गरीबी में तड़फे, इस विषमता का सीधा परिणाम ईर्ष्या के रूप में सामने आता है।चोरी, डकैती और कुकृत्य भी प्रायः इसी आधार पर बढ़ते देखे जाते हैं। बड़ों की नकल करने की छोटों में ललक उपजती है, वे भी वैसी ही अमीरी के लिए लालायित होते हैं और तरीका बन नहीं पड़ता, तो गलत मार्ग अपनाते हैं। अनेकों विकृतियाँ प्रायः इसीलिए पनपती हैं कि बुराइयों का वातावरण बनने पर सामान्य लोग भी उसी प्रवाह में बहने लगते हैं। धन का अनावश्यक संग्रह एक प्रकार से समाज में अनेक दुष्प्रवृत्तियों का, अवांछनीयताओं का सृजन करता है।सीमित साधनों में निर्वाह करने की आदत मनुष्य को वह लाभ प्रदान करती है, जो सादगी अपनाने वाले सज्जनो को मिलता रहता है । समता ही एकता बनाए रहने में समर्थ है। एकता में मिल-जुलकर रहने की, मिल-बांटकर खाने की प्रवृत्ति पनपती है। उसी आधार पर हँसते - हंसाते, प्रसन्न एवं सन्तुष्ट जीवन जी सकना सम्भव होता है। परिवार में, मित्र संबंधियों में सद्भाव बनाए रखना उन्हें उनका चिन्तन और चरित्र मानवी गरिमा के ढाँचे में ढला रखना हो तो उसका प्रधान उपाय यही है कि आर्थिक पवित्रता बनाए रखने के लिए अपना आदर्श प्रस्तुत किया जाए और परिवार में आदर्शवादी वातावरण बनाए रखा जाए। इसके लिए सबसे अधिक आवश्यकता आर्थिक शुचिता की है।
Monday, April 14, 2025
Saturday, April 12, 2025
रामचरित मानस के सिद्ध मंत्र
१- विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपतिभंजनसुखदायक।।”
२-संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिंसुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३-कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुषकलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४-विघ्न शांति के लिये“
"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५-खेद नाश के लिये
"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"
६-चिन्ता की समाप्ति के लिये
"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७-विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
"दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम राज काहूहिं नहिब्यापा॥”
८-मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
"हनूमान अंगद रन गाजे।
हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९-विष नाश के लिये
"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।” १०-अकाल मृत्यु निवारण के लिये
"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
११-सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२-नजर झाड़ने के लिये
"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
१३-खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिएे
“गई बहोर गरीब नेवाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४-जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५-दरिद्रता मिटाने के लिये
"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारिके।
कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६-लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
१७-पुत्र प्राप्ति के लिये
"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८-सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये“
"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।
सुख संपत्ति नाना विधिपावहि।।”
१९-ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०-सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
"सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई"।।
२१-मनोरथ-सिद्धि के लिये“
"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२-कुशल-क्षेम के लिये
"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
२३-मुकदमा जीतने के लिये
"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४-शत्रु के सामने जाने केलिये
"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
२५-शत्रु को मित्र बनाने के लिये
"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६-शत्रुतानाश के लिये
"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
"तेहि अवसर सुनि सिवधनुभंगा।
आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
२८-विवाह के लिये
"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९-यात्रा सफ़ल होने के लिये
"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०-परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये“
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
३१-आकर्षण के लिये
"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
३२-स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३-निन्दा की निवृत्ति के लिये
"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।"
३४-विद्या प्राप्ति के लिये
"गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥"
३५-उत्सव होने के लिये
"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
३६-यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
३७-प्रेम बढाने के लिये
"सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती॥"
३८-कातर की रक्षा के लिये
"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९-भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
"रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥"
४०-विचार शुद्ध करने के लिये
"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मतिपावउँ।।”
४१-संशय-निवृत्ति के लिये
"राम कथा सुंदर करतारी।
संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२-ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
"अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३-विरक्ति के लिये
"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४-ज्ञान-प्राप्ति के लिये
"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५-भक्ति की प्राप्ति के लिये
"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
४६-श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७-मोक्ष-प्राप्ति के लिये“
"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा।
काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८-श्री सीताराम के दर्शन के लिये“
"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९-श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०-श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१-सहज स्वरुप दर्शन के लिये
"भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”
चोंच दी, वह चुगा भी देगा
उन्नीसवीं शताब्दी की बात है, राजस्थान के किसी शहर में एक करोड़पति सेठ था,, सब तरह से भरा पूरा परिवार,, सुंदरी पति परायणा पत्नी, और दो आज्ञाकारी स्वस्थ पुत्र,,, व्यापार के लाभ और ब्याज से प्रतिवर्ष संपत्ति बढ़ती रहती,, खर्च में वह बहुत मितव्ययी था,, साल के अंत में आय-व्यय का मिलान करता और देख लेता कि पिछले वर्ष की अपेक्षा कितनी बढ़ोतरी हुई है,,, व्यय कितना रहा,,,,
एक दिन शहर में एक प्रसिद्ध महात्मा आए,, सेठ ने उनकी प्रसिद्धि की बात सुन रखी थी,, आदर सत्कार के साथ अपने घर लिवा लाया,, सेवा से उन्हें प्रसन्न कर दिया,, महात्मा जी ने जन्मपत्री देखी---- उन्होंने बताया बृहस्पति उच्च है,, सब प्रकार के सुखों में जीवन व्यतीत होगा,, यश भी भाग्य में खूब लिखा है,, आप साधु महात्माओं और दीन दुखियों को प्रतिदिन अन्न भेंट किया करें,,, इससे आपके वंश में पांच पीढ़ी तक धन,, वैभव और यश बना रहेगा,,,,
महात्मा जी यह सब बता कर चले गए, सेठ उनके कहे अनुसार दूसरे दिन से अन्न वितरण करने लगा ,,,, परंतु उसके मन में एक चिंता रहने लगी,,---- मेरी छठी पीढ़ी कैसे रहेगी,, उसका क्या हाल होगा ,,उसके लिए क्या किया जाए,,,,? इत्यादि,,,,
सेठानी और मुनीम गुमास्तो ने बहुतेरा समझाया,, कि छठी पीढ़ी की अभी चिंता क्या है,,,? इतनी संपत्ति है, जमा हुआ कारोबार,,,, पांच पीढ़ी तक तो चलेगा ही ,,,आगे भी कोई न कोई उनमें समर्थ होगा,,, जो संभाल लेगा,,, मगर सेठ जी का मन मानता नहीं था,,, बे चिंता में दुबले होते गए ,कुछ बीमार भी रहने लगे,,,,
एक दिन अन्न- वितरण के लिए अपनी कोठी की ड्योढी पर बैठे थे कि एक गरीब ब्राह्मण भगवत भजन करते हुए सामने से गुजरा,,,, सेठ ने कहा--- महाराज अन्न की भेंट लेते जाइए,,, उसने विनम्रता से उत्तर दिया--- सेठ जी इस समय के लिए मुझे पर्याप्त अन्न की प्राप्ति हो गई है,,,, सांय काल के लिए भी संभवत: किसी दाता ने घर पर सीधा भेज दिया होगा,,,, न होगा तो मैं पूछ कर बता दूंगा,,,,
कुछ देर बाद ब्राह्मण वापस आया उसने बतलाया कि घर पर भी कहीं से सीधा आ गया है,,, इसलिए आज के लिए अब और नहीं चाहिए,,,
सेठ जी कुछ चकित--से रह गए,,,,कहने लगे--- महाराज आप जैसे सात्विक ब्राह्मण की कुछ सेवा मुझसे हो जाए,,, कम से कम एक तौल अन्न अपने आदमियों से पहुंचा देता हूं,,,,बहुत दिनों तक काम चल जाएगा,,,,
ब्राह्मण ने सरल भावना से कहा--- दया निधान! शास्त्रों में लिखा है कि परिग्रह पाप का मूल है,,,, विशेषत: हम ब्राह्मणों के लिए ,,,, आप किसी और जरूरतमंद को वह अन्न देने की कृपा करें,,,, दयालु प्रभु ने हमारे लिए आज की व्यवस्था कर दी है,,, कल के लिए फिर अपने आप ही भेज देंगे,,," जिसने चोंच दी है, वह चुगा भी देगा"----
सेठ जी उस गरीब ब्राह्मण की बात सुन रहे थे,,, मन ही मन विस्मित भी थे----" इसे तो कल की भी चिंता नहीं,,, जो आसानी से मिल रहा है,, उसे भी लेना नहीं चाहता,, एक मैं हूं,,, जो छठी पीढ़ी की चिंता में घुला जा रहा हूं " ---
दूसरे दिन से वे स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देने लगे,,,, दान धर्म की मात्रा भी बढ़ गई,,, उनके चेहरे पर शांति की आभा विराजने लगी,,,,
प्रभु की गोद
एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था,उसको भगवान पर विश्वास नहीं था,एक बार उसका एक्सीडेंट हो गया वह सड़क किनारे पड़ा हुआ लोगो को मदद के लिए पुकार रहा था!पर कलयुग का इन्सान किसी इन्सान की जल्दी से मदद नहीं करता वह लोगों को बुला-बुला कर थक गया लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया ! तभी उसके नास्तिक मन ने कृष्ण को गुहार लगाई उसी समय एक सब्जी वाला गुजरा और उसको गोद में उठाया और अस्पताल पहुंचा दिया,और उसके परिवार वालों को फ़ोन कर अस्पताल बुलाया सभी परिवार वालो ने उस सब्जी वाले को धन्यवाद दिया और उसका नाम पूछा ! तो उसने अपना नाम बांके बिहारी बताया और उसके घर का पता भी लिखवा लिया और बोले जब यह ठीक हो जाएगा तब आपसे मिलने आएंगे ! वह व्यक्ति कुछ समय बाद ठीक हो गया फिर कुछ दिनों बाद वह अपने परिवार के साथ सब्जी वाले से मिलने निकला और बांके बिहारी जी का नाम पूछते हुए उस पते पर पहुंचा लेकिन उसको वहां पर प्रभु का मन्दिर मिलता है वह अचंभित हो जाता है और अपने परिवार के साथ मन्दिर के अन्दर जाता है फिर भी वह पुजारी से नाम लेकर पूछता है कि बांके बिहारी कहा मिलेंगे,पुजारी हाथ जोड़कर मुर्ति की और इशारा करके कहता है,कि यहां यही एक बांके बिहारी है उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं और अपनी नास्तिक गलती पर क्षमा मांगता है और बांके बिहारी जी के दर्शन कर जब लोटने लगता है तभी उसकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है जिस पर एक वाक्य लिखा था कि... "इन्सान ही इन्सान के काम आता है उससे प्रेम करते रहो" मैं तो स्वयं तुम्हें मिल जाऊंगा..!!
Sunday, April 6, 2025
पराई बेटी
सुजाता जी थोड़ी सी मायूस हो गयी, अभी बेटी को भेज कर ।
यूँ तो खुश भी बहुत थी, आज कल। अभी बेटे की शादी जो हुई है बहू भी उनकी पसन्द की है, और बेटी अपने परिवार में खुश है।
अब तो उनकी जिम्मेदारियां लगभग खत्म हो गयी है, पर फिर भी बेटी एक बार घर रहकर जाए तो दिल पर जोर तो पड़ता ही है इसीलिए न चाहते हुए भी.. कभी कभी आंखें छलछला रही थी ।
अचानक उन्हें एक याद आया, एक लिफाफा जो अंजू उन्हें जाते हुए थमा गयी थी कि मम्मी इसे फुर्सत में बैठकर पढ़ना, और विचार करना ।
ऐसे भागदौड़ में नही । लेकिन सब्र कहां था उन्हें..??? जल्दी से उसे खोला देखा तो एक खत था उसे खोला औऱ पढ़ने बैठ गयी ।
माँ !! बहुत खुश हूँ ... कि आप अब माँ से एक सास भी बन गयी।
यूँ तो मेरी शादी के बाद ही आप सास बन गयी थी लेकिन फिर भी सास बहू के रिश्ते की अलग बात है ।
मैं जानती हूँ, आप एक अच्छी माँ होने के साथ साथ अच्छी सास भी बनेंगी । पर फिर भी कुछ बातें है जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ , जो मैंने खुद देखी और महसूस की है।
बहुत कोशिश की. आपसे खुद कहूँ , पर हिम्मत नही जुटा पायी तो इस खत में लिख दिया ।
जानती हूँ, मैं आपकी एकलौती बेटी हूँ . जिसके कारण आप मुझे बहुत प्यार करती है, आपकी हर चीज मेरी पसन्द से ही होती है..
फिर चाहे वो घर के पर्दे ,चादर , पेंट हो या आपकी साड़ियां, ज्वैलरी कुछ भी , आज तक आपने मेरे बिना नही लिया । शादी के बाद भी हम हमेशा साथ साथ ही बाजार गए ।
पर अब मैं चाहती हूँ कि आप ये मौका भाभी को दें. उनकी पसन्द न पसन्द का मान रखे ।
आप चाहे तो मैं उनके साथ हर समय मौजूद रहूँगी । पर उनके साथ या उनके पीछे, उनसे पहले या उनके विरोध में कभी नही । जब तक उनकी कोई बहुत बड़ी गलती न हो.
क्योंकि ..... अब इस घर पर उनका हक है , मैं जानती हूँ आपको ये सब जानकर तकलीफ होगी. और शायद आश्चर्य भी !
क्योंकि..!!! मैंने आपको बहुत कुछ है जो कभी नही बताया ।
पर ... माँ , मैं पिछले 5 सालों से ये सब देखती आ रही हूँ , मेरे ही ससुराल में मेरी बातों , मेरी भावनाओं , या पसन्द का कोई महत्व नही है.
सिर्फ और सिर्फ मेरी दोनो नन्दो को इसका हक़ है , मैं वहां तो कुछ नही कर पाती पर मैंने ये पहले ही से सोच लिया था कि अपनी भाभी के साथ ये सब नही होने दूंगी ,
मैं कभी भी उनके जैसी नन्द नही बनूंगी न ही खुद जैसी अपनी भाभी को बनने दूंगी ।
अब वो घर उनका है , उससे जुड़े फैसले लेने का हक़ भी उनका. चाहे वो छोटी बातें हो या बड़ी. उनकी सहमति सर्वोपरि है ।
मैं भुगत चुकी हूँ , आप जानती है , माँ मैं जब अपने ही कमरे में कुछ बदलाव करती हूँ , तो दीदी मुझसे कैसे बात करती है ।
या घर में मैं कोई भी नई चीज ले आऊं तो उसके लिए मुझे कैसे सुनाया जाता है...
हमारे यहां ये सब नही चलता , आपके मायके में होगा..!!! ये शब्द तो हर दिन लगभग मैं 3-4 बार सुनती हूँ ।
जब मैं उन्हें अपने साथ चलने को बोलती हूँ, तब भी उनके अलग अलग नखरे होते है ।
कभी ..... आज नही भाभी. या आप अपनी पसंद से ही ले आइए न !! साथ न जाने के ढेरों बहाने होते है । इसीलिए अब मैं खुद सब करने लगी हूँ , किसी की परवाह किये बिना ।
आप जानती है , जब भैया मुझसे मिलने आते है न तो घर में सबका मुंह देखने लायक होता है ।
अगर उसके हाथ में कोई बड़ा सा गिफ्ट या सामान देख ले तो सब खुश हो जाते है खाली हाथ उनका आना किसी को गंवारा नही.
कहते है अभी पिछले हफ्ते ही तो आया था , कोई खास काम था क्या ....??? मैं जानती हूँ इसीलिए उन्होंने अब घर आना भी कम कर दिया ।
मुझे यकीन है कि भैया ने ये बात आपको नही बताई होगी । इसीलिए आप प्लीज भाभी के मायके से किसी के आने पर तानाकशी न करिएगा ।
क्योंकि मैं इसका दर्द जानती हूँ , और घरवालों से मिलने की खुशी भी ।
कभी उन्हें ये मत कहिएगा कि घर से क्या सीख कर आई है ?? जो भी नही आता प्यार से सिखाइयेगा , जैसे आपने मुझे सिखाया था ।।
बस यही कहना था आपसे कि माँ !! अब मैं पराई होना चाहती हूँ !! आपकी अंजू
सुजाता जी की आंखें भर आयी , गला रुंध गया, मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था ।
उनकी छोटी सी अंजू आज इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी माँ को ही उसने इतनी सारी सीख दे डाली । और खुद सालों से क्या क्या सहन कर रही है, इसकी भनक भी कभी नही लगने दी ।
सुजाता जी ने अंजू से बात करने के लिए फ़ोन उठाया, उधर से हेल्लो की जवाब में सन्नाटा था तो इधर एक कंपकपी थी।
सेवा का सौभाग्य
यदि जीवन में सेवा का सौभाग्य मिलता हो तो सेवा सभी की करना लेकिन आशा किसी से भी ना रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य भगवान ही दे सकते हैं इंसान नहीं। जगत से अपेक्षा रखकर कोई सेवा की गई है तो वो एक ना एक दिन निराशा का कारण जरूर बनेगी।
श्रेष्ठ तो यही है कि अपेक्षा रहित होकर सेवा की जाए। यदि सेवा का मूल्य ये दुनिया अदा कर दे, तो समझ जाना वो सेवा नहीं हो सकती। सेवा कोई वस्तु थोड़ी है जिसे खरीदा-बेचा जा सके। सेवा पुण्य कमाने का साधन है प्रसिद्धि कमाने का नहीं।
दुनिया की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात नहीं, गोविन्द की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात है। श्री सुदामा जी के जीवन की सेवा-समर्पण का इससे ज्यादा और श्रेष्ठ फल क्या होता, दुनिया जिन ठाकुर के लिए दौड़ती है वो उनके लिए दौड़े हैं। प्रभु के हाथों से एक ना एक दिन सेवा का फल अवश्य मिलेगा।
Tuesday, April 1, 2025
सत्संग की महिमा
एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे। गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक संत सत्संग कर रहे हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे।
सत्संग में संत कह रहे थे- जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान की शरण चला जाता है, भगवान उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं।
गीता में भगवान ने कहा हैः
सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।
वाल्मीकि रामायण में आता हैः
जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है।
इसकी व्याख्या करते हुए संतश्री ने कहा : जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया।
अगर कोई दुराचारी सेदुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए। कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा। उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अभी से मैं भगवान की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान का हो गया। सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे। बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया।
राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है? चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।"
सिपाही बोलाः "महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।" राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा।
चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।'
अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।" यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।" राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है। राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा।
चोर बोलाः "महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे पास भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।" राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ।
राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है।
ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ? चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया। सत्संग में मैंने सुना कि ''जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।'' इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि
" अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। "
अब मैं भगवान का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया। इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया। इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी।
कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया। उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया। चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया। राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।
सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है।
जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा।
कुसंग व्यक्ति से कुकर्म करवा कर व्यक्ति को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी दिव्य शक्ति है सत्संग में !
राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो और आनन्ददायक हो।🙏
Sunday, March 23, 2025
आगे बढ़ते रहें
कभी भी हम यह सोच कर कमजोर नहीं पड़ें कि हम अकेले हैं बल्कि यह सोच कर आगे बढ़ें कि हम अकेले ही काफ़ी हैं। पानी में कील ठोंकने से पानी रुकता नहीं.ऐसे ही बहुत सी बातें होती हैं जिन पर हमारा ज़रा भी वश नहीं चलता।
उन बातों को बोझ की तरह मन-मस्तिष्क में लाद कर चलने से जीवन भारी लगेगा इसलिए उन्हें यथास्थिति स्वीकार करके आगे बढ़ने में ही समझदारी है। नियति पर नियंत्रण संभव नहीं है लेकिन उसके प्रति अपनी सोच पर नियंत्रण किया जा सकता है
🌞 बुद्धि नाश कैसे होती है 🌞
मन का विषय क्या है ? मन के अनेक विषय हैं, अर्थात मन में अनेक इच्छाएं हैं, विचार हैं। मन में एक विचार उपजा, एक अभिलाषा जगी कि ऐसा होना चाहिए। अब वह विचार उमड़ घुमण कर मन को मथने लगा। अब उसके प्रति मन अनुराग, आसक्ति, आतुरता पैदा हुई।
उसके उपरांत मन में विचार आने लगे कि कैसे यह उपलब्ध होगा। एक ताना बाना बनने लगा। एक योजना बन गई मन में, उसका मानचित्र खिंच गया। अब उस योजना के कार्यान्वयन की बारी आई। अब उस योजना के कार्यान्वयन में जो जो भी आड़े आयेगा, जो जो बात नहीं मानी जायेगी, वह क्रोध को, असहमति को, नकार को जन्म देगी।
प्रारम्भ में तो आप दो चार बार समझाते हैं, थोड़ा बहुत आपकी समझ के अनुसार कार्यान्वयन होता भी है। परंतु ठीक उस मानचित्र के अनुसार नहीं, जैसा कि आपने अपने मन में रूप रेखा बना रखी है। धीरे धीरे क्रोध का बारूद एकत्रित होने लगा।
अब हम धीरे धीरे क्रोध से सम्मोहित होने लगे। अब धीरे धीरे प्रकृति हमारे ऊपर भारी पड़ने लगी, प्रकृति मालिक होने लगी। क्रोध में हम अपना विवेक खोने लगे, क्रोध ने हमें पूरी तरह अपने वश में ले लिया। हम भूल गए कि हम क्या करने वाले हैं, क्या कर रहे हैं। इसी को बुद्धिनाश कहा गया है। बुद्धि नाश के बाद क्या होगा? वही जो होता है? व्यक्ति क्रोध से फट पड़ता है और फिर बाद में सोचता है कि ऐसे कैसे हुआ !
सुप्रभातम सुमंगलम राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो और आनन्ददायक हो।
जैसी दृष्टि होगी वैसी सृष्टि होगी
एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया. राजा भोज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीनकर राजकोष में जमा कर दी जाए.
व्यापारी जब तक वहां रहा भोज का मन रह रहकर उसकी संपत्ति को हड़प लेने का करता. कुछ देर बाद व्यापारी चला गया. उसके जाने के बाद राजा को अपने राज्य के ही एक निवासी के लिए आए ऐसे विचारों के लिए बड़ा खेद होने लगा.
राजा भोज ने सोचा कि मैं तो प्रजा के साथ न्यायप्रिय रहता हूं. आज मेरे मन में ऐसा कलुषित विचार क्यों आया? उन्होंने अपने मंत्री से सारी बात बताकर समाधान पूछा. मन्त्री ने कहा- इसका उत्तर देने के लिए आप मुझे कुछ समय दें. राजा मान गए.
मंत्री विलक्षण बुद्धि का था. वह इधर-उधर के सोच-विचार में समय न खोकर सीधा व्यापारी से मैत्री गाँठने पहुंचा. व्यापारी से मित्रता करने के बाद उसने पूछा- मित्र तुम चिन्तित क्यों हो? भारी मुनाफे वाले चन्दन का व्यापार करते हो, फिर चिंता कैसी?
व्यापारी बोला- मेरे पास उत्तम कोटि के चंदन का बड़ा भंडार जमा हो गया है. चंदन से भरी गाडियां लेकर अनेक शहरों के चक्कर लगाए पर नहीं बिक रहा है. बहुत धन इसमें फंसा पडा है. अब नुकसान से बचने का कोई उपाय नहीं है.
व्यापारी की बातें सुनकर मंत्री ने पूछा- क्या हानि से बचने का कोई उपाय नहीं? व्यापारी हंसकर कहने लगा- अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाए तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चन्दन बिक सकता है. अब तो यही अंतिम मार्ग दिखता है.
व्यापारी की इस बात से मंत्री को राजा के उस प्रश्न का उत्तर मिल चुका था जो उन्होंने व्यापारी के संदर्भ में पूछा था. मंत्री ने कहा- तुम आज से प्रतिदिन राजा का भोजन पकाने के लिए चालीस किलो चन्दन राजरसोई भेज दिया करो. पैसे उसी समय मिल जाएंगे.
व्यापारी यह सुनकर बड़ा खुश हुआ. प्रतिदिन और नकद चंदन बिक्री से तो उसकी समस्या ही दूर हो जाने वाली थी. वह मन ही मन राजा के दीर्घायु होने की कामना करने लगा ताकि राजा की रसोई के लिए चंदन लंबे समय तक बेचता रहे.
एक दिन राजा अपनी सभा में बैठे थे. वह व्यापारी दोबारा राजा के दर्शनों को वहां आया. उसे देखकर राजा के मन में विचार आया कि यह कितना आकर्षक व्यक्ति है. इसे कुछ पुरस्कारस्वरूप अवश्य दिया जाना चाहिए.
राजा ने मंत्री से कहा- यह व्यापारी पहली बार आया था तो उस दिन मेरे मन में कुछ बुरे भाव आए थे और मैंने तुमसे प्रश्न किया था. आज इसे देखकर मेरे मन के भाव बदल गए. इसे दूसरी बार देखकर मेरे मन में इतना परिवर्तन कैसे हो गया?
मन्त्री ने उत्तर देते हुए कहा- महाराज! मैं आपके दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं. यह जब पहली बार आया था तब यह आपकी मृत्यु की कामना रखता था. अब यह आपके लंबे जीवन की कामना करता रहता है.
इसलिए आपके मन में इसके प्रति दो तरह की भावनाओं ने जन्म लिया है. जैसी भावना अपनी होती है, वैसा ही प्रतिबिम्ब दूसरे के मन पर पडने लगता है. यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है.
हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर रहे होते हैं तो उसके मन में उपजते भावों का उस मूल्यांकन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए जब भी किसी से मिलें तो एक सकारात्मक सोच के साथ ही मिलें.
ताकि आपके शरीर से सकारात्मक ऊर्जा निकले और वह व्यक्ति उस सकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होकर आसानी से आप के पक्ष में विचार करने के लिए प्रेरित हो सके ।
क्योंकि जैसी दृष्टि होगी, वैसी सृष्टि होगी
कंस के द्वारा मारे गए देवकी के 6 शिशु
पौराणिक कथाएं प्रमाण हैं कि जब भी धरती पर अधर्म बढ़ा है तो धर्म की संस्थापना के लिए भगवान ने अवतार लिया है। भगवान श्री कृष्ण वह महानायक हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया को अधर्म और अन्याय के विरुद्ध खड़े होना सिखाया ।
द्वापर का समय था। उस समय मथुरा का राज्य कंस के हाथों में था। कंस निरंकुश व पाषाण ह्रदय नरेश था। वैसे तो वह अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था पर जबसे उसे मालूम हुआ था कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। तभी से उसने उसे काल कोठरी में डाल रखा था । इसी लिए किसी भी तरह का खतरा मोल न लेने की इच्छा के कारण कंस ने देवकी के पहले 6 शिशु की भी ह्त्या कर दी।
कौन थे वे 6 शिशु
-------------------------
ब्रह्मलोक में स्मर, उद्रीथ, परिश्वंग, पतंग, क्षुद्र्मृत व घ्रिणी नाम के छह देवता हुआ करते थे ।
ये ब्रह्माजी के कृपा पात्र थे । इन पर ब्रह्मा जी की कृपा और स्नेह दृष्टि सदा बनी रहती थी। वे इन छहों की छोटी-मोटी बातों और गलतियों पर ध्यान नहीं देते थे। इसी कारण उन छहों में धीरे-धीरे अपनी सफलता के कारण घमंड पनपने लग गया । ये अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझने लग गए ।
ऐसे में ही एक दिन इन्होंने बात-बात में ब्रह्माजी का भी अनादर कर दिया। इससे ब्रह्माजी ने क्रोधित हो इन्हें श्राप दे दिया कि तुम लोग पृथ्वी पर दैत्य वंश में जन्म लो। इससे उन छहों की बुद्धि ठिकाने आ गयी और वे बार-बार ब्रह्माजी से क्षमा याचना करने लगे ।
ब्रह्मा जी को भी इन पर दया आ गयी और उन्होंने कहा कि जन्म तो तुम्हें दैत्य वंश में लेना ही पडेगा पर तुम्हारा पूर्व ज्ञान बना रहेगा ।
समयानुसार उन छहों ने राक्षसराज हिरण्यकश्यप के घर जन्म लिया । उस जन्म में उन्होंने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण कोई गलत काम नहीं किया । सारा समय उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करने में ही बिताया । जिससे प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उनसे वरदान माँगने को कहा ।
दैत्य योनि के प्रभाव से उन्होंने वैसा ही वर माँगा कि हमारी मौत न देवताओं के हाथों हो, न गन्धर्वों के, न ही हम हारी-बीमारी से मरें ! ब्रह्माजी तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए । इधर हिरण्यकश्यप अपने पुत्रों से देवताओं की उपासना करने के कारण नाराज था । उसने इस बात के ज्ञात होते ही उन छहों को श्राप दे डाला की तुम्हारी मौत देवता या गंधर्व के हाथों नहीं एक दैत्य के हाथों ही होगी ।
इसी शाप के वशीभूत उन्होंने देवकी के गर्भ से जन्म लिया और कंस के हाथों मारे गए और सुतल लोक में पुन: स्थान पाया। कंस वध के पश्चात जब श्रीकृष्ण माँ देवकी के पास गए । माँ ने उन 6 शिशु को देखने की इच्छा प्रभु से की जिनको जन्मते ही मार डाला गया था। प्रभु ने सुतल लोक से उन 6 शिशु को लाकर माँ की इच्छा पूरी की । प्रभु के सानिध्य और कृपा से वे फिर देवलोक में स्थान पा गए ।
Friday, March 21, 2025
रोटी के प्रकार
कुछ वृद्ध मित्र एक पार्क में बैठे हुऐ थे, वहाँ बातों - बातों में रोटी की बात निकल गई।
तभी एक दोस्त बोला - जानते हो कि रोटी कितने प्रकार की होती है?
किसी ने मोटी, पतली तो किसी ने कुछ और हीं प्रकार की रोटी के बारे में बतलाया।
तब एक दोस्त ने कहा कि नहीं दोस्त...भावना और कर्म के आधार से रोटी चार प्रकार की होती है।"
पहली "सबसे स्वादिष्ट" रोटी " माँ की "ममता" और "वात्सल्य" से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।
एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।
उन्होंने आगे कहा "हाँ, वही तो बात है।
दूसरी रोटी पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और "समर्पण" भाव होता है जिससे "पेट" और "मन" दोनों भर जाते हैं।",
क्या बात कही है यार ?" ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।
फिर तीसरी रोटी किस की होती है?" एक दोस्त ने सवाल किया।
"तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ "कर्तव्य" का भाव होता है जो कुछ कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है",
थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।
"लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?" मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा-
"चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे ना तो इन्सान का "पेट" भरता है न ही "मन" तृप्त होता है और "स्वाद" की तो कोई गारँटी ही नहीं है", तो फिर हमें क्या करना चाहिये।
माँ की हमेशा इज्ज़त करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी मोटी ग़लतियाँ नज़रन्दाज़ कर दो । बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।
यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो ईश्वर का शुक्रिया करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिये बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, और सोचो कि वाकई, हम कितने खुशकिस्मत हैं।
~ यह भोजन व्यवस्था पर आधारित है।
Monday, March 17, 2025
कर्मों की दोलत
एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके (एक तरह का शाही खजाना) आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने में सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था।
खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसके एक खास मंत्री के पास थी।
इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था..
एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला, तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था, और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।
उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है..
वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा...
उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया।
उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ, और दरवाजे के पास आया तो ये क्या… दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था...
उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था।
राजा चिल्लाता रहा, पर अफसोस कोई ना आया.. वो थक हार के खजाने को देखता रहा..
अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था, पागलों सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरों के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरों मुझे एक गिलास पानी दे दो..
फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..
राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो कि तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..
राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया। जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया...
वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था।
राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया...
उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया...
उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है, और उसकी लाश को कीड़े मकोड़े खा रहे थे..
राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था… ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी…
यही अंतिम सच है... आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी...
चाहे आप कितने भी हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा...
इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है, उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए.. बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत.. जो आपके सदैव काम आएगी.
अधूरा सर्वे
(टिंग-टॉन्ग.... दरवाजे पर घन्टी बजती है। )
बहु देखना कौन है? सोफे पर लेटकर टीवी देख रहे ससुर ने कहा।
माया किचन से निकलकर दरवाज़ा खोलती है।
हां जी, आप कौन?
'महिलाओं की स्थिति पर एक सर्वे चल रहा है। उसी की जानकारी के लिए आई हूँ।' दरवाज़े पर खड़ी महिला ने जवाब दिया।
कौन है बहु? पूछते हुए ससुरजी बाहर आ जाते हैं।
महिला- 'बाऊजी सर्वे करने आई हूँ।'
घनश्याम जी- 'हां पूछिए'
महिला- 'आपकी बहु सर्विस करती हैं या हाउस वाइफ हैं?'
माया हाउस वाइफ बोलने ही वाली होती है कि उससे पहले घनश्याम जी बोल पड़ते हैं।
घनश्याम जी- 'सर्विस करती है'
'किस पद पर हैं और किस कंपनी में काम कर रही हैं?' महिला ने पूछा।
घनश्याम जी कहते हैं
- वो एक नर्स है, जो मेरा और मेरी पत्नी का बखूबी ध्यान रखती है। हमारे उठने से लेकर रात के सोने तक का हिसाब बहु के पास होता है। ये जो मैं आराम से लेटकर टीवी देख रहा था ना वो माया की बदौलत ही है।
-माया बेबीसीटर भी है। बच्चों को नहलाने, खिलाने और स्कूल भेजने का काम भी वही देखती है। रात को रो रहे बच्चे को नींद माँ की थपकी से ही आती है।
-मेरी बहु ट्यूटर भी है। बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी भी इसी के कंधे पर है।
- घर का पूरा मैनेजमेंट इसी के हाथों में है। रिश्तेदारी निभाने में इसे महारत हासिल है।
- मेरा बेटा एयरकंडीशन्ड ऑफिस में चैन से अपने काम कर पाता है तो इसी की बदौलत। इतना ही नहीं ये मेरे बेटे की एडवाइजर भी है।
- ये हमारे घर की इंजन है। जिसके बग़ैर हमारा घर तो क्या इस देश की रफ़्तार ही थम जाएगी।
बाऊजी मेरे फॉर्म में इनमें से एक भी कॉलम नहीं है, जो आपकी बहु को वर्किंग कह सके।
घनश्याम जी मुस्कुराते हुए कहते हैं, फिर तो आपका ये सर्वे ही अधूरा है।
महिला- 'लेकिन बाऊजी इससे इनकम तो नहीं होती है ना।
जनेऊ,यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कार
जनेऊ,यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कार क्या होता है??????
रामचरितमानस में एक चौपाई प्रभुश्रीराम के यज्ञोपवीत के संस्कार से संबंधित बाबा तुलसीदास जी ने भी लिखी है,,,,,,,
*भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥
भावार्थ:-ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं॥
यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) पूर्व में बालक की उम्र आठ वर्ष होते ही उसका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता था | वर्तमान में यह प्रथा लोप सी गयी है | मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं | सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
यज्ञ द्वारा संस्कार किया गया उपवीत, यज्ञसूत्र यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है | इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं | ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है | तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है |
तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं | अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है | बिना यज्ञोपवीत धारण कये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता | शास्त्रों में जहां यज्धातु को देवताओं की पूजा, दान आदि से संबंधित बताया गया है, वहीं उपवीत का अर्थ समीप या नजदीक होना होता है | इस प्रकार यज्ञोपवीत का अर्थ हुआ-यज्ञ के समीप यानी ऐसी वस्तु, जिसे धारण करने पर हम देवताओं के समीप हो जाते हैं |
कर्तव्य के आधार पर चुनाव :- शास्त्रों के अनुसार, छह प्रकार के यज्ञोपवीत ऐसे हैं, जिन्हें धारण किया जा सकता है कपास, रेशम-धागा, सन से बना हुआ, स्वर्ण के धागों से मढा हुआ, चांदी के तार से पिरोया गया एवं कुश और घास से तैयार यज्ञोपवीत |
कर्तव्य के आधार पर माता-पिता इनका चुनाव करते हैं | जो माता-पिता अपनी संतान को पठन-पाठन (पंडित/ब्राह्मण) से जोडना चाहते हैं, उनके लिए शास्त्रों में सूत और रेशम का यज्ञोपवीत धारण करने का विधान है | यदि व्यक्ति देश-समाज के रक्षा कार्यो (क्षत्रिय) से जुडा हो, तो उसे सोने से तैयार जनेऊ धारण करना चाहिए | व्यापार (वैश्य) एवं सेवा कार्य (शूद्र) करने वालों के लिए चांदी या सूत से तैयार उपनयनका विधान है |
रंगों का महत्व : अब प्रश्न उठता है कि हम किस रंग का जनेऊ धारण करें? पढने-पढाने वालों को सफेद रंग का, रक्षा संबंधी कार्यो से जुडे व्यक्ति को लाल रंग का और व्यापार एवं सेवा कार्य से जुडे लोगों के लिए चांदी की जनेऊ धारण करने का प्रावधान है | यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है :
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् |
आयुष्यमग्रं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ||
शास्त्रों के अभिवचन यज्ञोपवीत द्विजत्व का चिन्ह है। कहा भी है :- मातुरग्रेऽधिजननम् द्वितीयम् मौञ्जि बन्धनम् |
अर्थात् :- पहला जन्म माता के उदर से और दूसरा यज्ञोपवीत धारण से होता है |
आचार्य उपनयमानो ब्रह्मचारिणम् कृणुते गर्भमन्त: |
त रात्रीस्तिस्र उदरे विभत्ति तं जातंद्रष्टुमभि संयन्ति देवाः || अथर्व 11/3/5/3
श्लोकार्थ :- गर्भ में रहकर माता और पिता के संबंध से मनुष्य का पहला जन्म होता है | दूसरा जन्म विद्या रूपी माता और आचार्य रूप पिता द्वारा गुरुकुल में उपनयन और विद्याभ्यास द्वारा होता है |
‘‘सामवेदीय छान्दोग्य सूत्र’’ में लिखा है कि यज्ञोपवीत के नौ धागों में नौ देवता निवास करते हैं | ओउमकार, अग्नि, अनन्त, चन्द्र, पितृ, प्रजापति, वायु, सूर्य, सब देवताओं का समूह |
वेद मंत्रों से अभिमंत्रित एवं संस्कारपूर्वक कराये यज्ञोपवीत में नौ शक्तियों का निवास होता है | जिस शरीर पर ऐसी समस्त देवों की सम्मिलित प्रतिमा की स्थापना है, उस शरीर रूपी देवालय को परम श्रेय साधना ही समझना चाहिए |
‘‘सामवेदीय छान्दोग्य सूत्र’’ में यज्ञोपवीत के संबंध में एक और महत्वपूर्ण उल्लेख है :-
ब्रह्मणोत्पादितं सूत्रं विष्णुना त्रिगुणी कृतम् |
कृतो ग्रन्थिस्त्रनेत्रेण गायत्र्याचाभि मन्त्रितम् ||
श्लोकार्थ :- ब्रह्मा जी ने तीन वेदों से तीन धागे का सूत्र बनाया | विष्णु ने ज्ञान, कर्म, उपासना इन तीनों काण्डों से तिगुना किया और शिव जी ने गायत्री से अभिमंत्रित कर उसे ब्रह्म गाँठ लगा दी | इस प्रकार यज्ञोपवीत नौ तार और ग्रंथियों समेत बनकर तैयार हुआ |
यज्ञोपवीत के लाभों का वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार मिलता है :-
येनेन्द्राय वृहस्पतिवृर्व्यस्त: पर्यद धाद मृतं नेनत्वा |
परिदधाम्यायुष्ये दीर्घायुत्वाय वलायि वर्चसे || पारस्कर गृह सूत्र 2/2/7
श्लोकार्थ :- जिस प्रकार इन्द्र को वृहस्पति ने यज्ञोपवीत दिया था उसी तरह आयु, बल, बुद्धि और सम्पत्ति की वृद्धि के लिए यज्ञोपवीत पहना जाय |
देवा एतस्यामवदन्त पूर्वे सप्तत्रपृषयस्तपसे ये निषेदुः |
भीमा जन्या ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधति परमे व्योमन् || ऋग्वेद 10/101/4
श्लोकार्थ :- तपस्वी ऋषि और देवतागणों ने कहा कि यज्ञोपवीत की शक्ति महान है | यह शक्ति शुद्ध चरित्र और कठिन कर्त्तव्य पालन की प्रेरणा देती है | इस यज्ञोपवीत को धारण करने से जीव-जन भी परम पद को पहुँच जाते हैं |
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् |
आयुष्यमग्रयं प्रति मुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः || ब्रह्मोपनिषद्
श्लोकार्थ :- यज्ञोपवीत परम पवित्र है, प्रजापति भगवान ने इसे सबके लिए सहज बनाया है | यह आयुवर्धक, स्फूर्तिदायक, बन्धनों से छुड़ाने वाला एवं पवित्रता, बल और तेज देता है |
त्रिरस्यता परमा सन्ति सत्या स्यार्हा देवस्य जनि मान्यग्नेः |
अनन्ते अन्त: परिवीत आगाच्छुचि: शुक्रो अर्थो रोरुचानः ||
श्लोकार्थ :- इस यज्ञोपवीत के परम श्रेष्ठ तीन लक्षण है | सत्य व्यवहार की आकांक्षा, अग्नि जैसी तेजस्विता, दिव्य गुणों से युक्त प्रसन्नता इसके द्वारा भली प्रकार प्राप्त होती है |
नौ धागों में नौ गुणों के प्रतीक हैं |
अहिंसा (हृदय से प्रेम), सत्य ( वाणी में माधुर्य), अस्तेय (व्यवहार में सरलता), तितिक्षा (नारी मात्र में मातृत्व की भावना), अपरिग्रह (कर्म में कला और सौन्दर्य की अभिव्यक्ति), संयम (सबके प्रति उदारता और सेवा भावना ), आस्तिकता (गुरुजनों का सम्मान एवं अनुशासन), शान्ति (सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय एवं सत्संग), पवित्रता (स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता का स्वभाव) |
यह भी नौ गुण बताये गये हैं | अभिनव संस्कार पद्धति में श्लोक भी दिये गये हैं | यज्ञोपवीत पहनने का अर्थ है :- नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को अपने कन्धों पर परम पवित्र उत्तरदायित्व के रूप में अनुभव करते रहना | अपनी गतिविधियों का सारा ढाँचा इस आदर्शवादिता के अनुरुप ही खड़ा करना |
इस उत्तरदायित्व के अनुभव करते रहने की प्रेरणा का यह प्रतीक सत्र धारण किये रहने प्रत्येक हिन्दू का आवश्यक धर्म-कर्तव्य माना गया है | इस लक्ष्य से अवगत कराने के लिए समारोहपूर्वक उपनयन किया जाता है |
जनेऊ पहनने से क्या लाभ :- मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है | इससे कान के पीछे की दो नसे जिनका संबंध पेट की आंतों से है | आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है |
जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है | जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते | जनेऊ पहनने वाला नियमों में बंधा होता है |
वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता | जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले | अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है | यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जिवाणुओं के रोगों से बचाती है | जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है |
आयुर्वेद में यह भी कहा गया है कि यज्ञोपवीत धारण करने से न तो हृदयरोग होता है और न ही गले और मुख का रोग सताता है | मान्यता है कि सन से तैयार यज्ञोपवीत पित्त रोगों से बचाव करने में सक्षम है | जो व्यक्ति स्वर्ण के तारों से तैयार यज्ञोपवीत धारण करते हैं, उन्हें आंखों की बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है |
इससे बुद्धि और स्मरण शक्ति बढ जाती है और बुढापा भी देर से आता है | रेशम का जनेऊ पहनने से वाणी पर नियंत्रण रहता है | मान्यता है कि चांदी के तार से तैयार यज्ञोपवीत धारण करने से शरीर पुष्ट होता है एवं आयु में भी वृद्धि होती है | यज्ञोपवीत धारण करने से आयु वृद्धि, उत्तम विचार और धर्म मार्ग पर चलने वाली श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है |
ध्यान रखें कि जनेऊ शरीर पर बायें कंधे से हृदय को छूता हुआ कमर तक होना चाहिए।
हनुमान चालिसा का रहस्य
रामायण काल में जब हनुमान जी माता सीता को ढूंढ़ते हुए लंका में पहुंचे, तो उन्होंने वहां शनिदेव को उल्टा लटके देखा। कारण पूछने पर शनिदेव ने बताया कि ‘मैं शनि देव हूं और रावण ने अपने योग बल से मुझे कैद कर रखा है।’ तब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कारागार से मुक्ति दिलाई।
शनि देव ने हनुमान जी से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले, ‘कलियुग में मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फल नही दोगे।’ तभी से शनिवार को हनुमान जी की पूजा की जाती है।
हनुमान चालीसा का पूरा पाठ करने में लगभग पाँच मिनट लगते हैं ! यह लेख थोड़ा लम्बा है, कृपया निश्चिंत हो कर ही इसे पढ़ें !
बुरी आत्माओं को भगाएं : - हनुमान जी अत्यंत बलशाली थे और वह किसी से नहीं डरते थे। हनुमान जी को भगवान माना जाता है और वे हर बुरी आत्माओं का नाश कर के लोगों को उससे मुक्ती दिलाते हैं। जिन लोगों को रात मे डर लगता है या फिर डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये।
साढे़ साती का प्रभाव कम करें : - हनुमान चालीसा पढ़ कर आप शनि देव को खुश कर सकते हैं और साढे साती का प्रभाव कम करने में सफल हो सकते हैं। कहानी के मुताबिक हनुमान जी ने शनी देव की जान की रक्षा की थी, और फिर शनि देव ने खुश हो कर यह बोला था कि वह आज के बाद से किसी भी हनुमान भक्त का कोई नुकसान नहीं करेगें।
पाप से मुक्ती दिलाए : - हम कभी ना कभी जान बूझ कर या फिर अनजाने में ही गल्तियां कर बैठते हैं। लेकिन आप उसकी माफी हनुमान चालीसा पढ़ कर मांग सकते हैं। रात के समय हनुमान चालीसा को 8 बार पढ़ने से आप सभी प्रकार के पाप से मुक्त हो सकते हैं।
बाधा हटाए: - जो भी इंसान हनुमान चालीसा को रात में पढे़गा उसे हनुमान जी स्वंय आ कर सुरक्षा प्रदान करेगें।
बचपन से ही हमें सिखाया गया है कि अगर कभी भी मन अशांत लगें या फिर किसी चीज से डर लगे तो, हनुमान चालीसा पढ़ो। ऐसा करने से मन शांत होता है और डर भी नहीं लगता। सनातन हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्व है। हनुमान चालीसा पढ़ने से शनि ग्रह और साढे़ साती का प्रभाव कम होता है। हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है।
जानिए हनुमान चालीसा की किस चौपाई से क्या चमत्कार होते हैं !
वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाई और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं। यहां जानिए कुछ खास चौपाइयां और उनके अर्थ। साथ ही जानिए हनुमान चालीसा की किस चौपाई से क्या चमत्कार होते हैं…
रामदूत अतुलित बलधामा। अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।।
यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है। इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।
बिद्यबान गुनी अति चातुर। रामकाज करीबे को आतुर।।
यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है। इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।
जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी। इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।
केवल हनुमान चालीसा ही नहीं सभी देवी-देवताओं की प्रमुख स्तुतियों में चालिस ही दोहे होते हैं? विद्वानों के अनुसार चालीसा यानि चालीस, संख्या चालीस, हमारे देवी-देवीताओं की स्तुतियों में चालीस स्तुतियां ही सम्मिलित की जाती हैं। जैसे श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि। इन स्तुतियों में चालीस दोहे ही क्यों होते हैं ? इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इन चालीस स्तुतियों में संबंधित देवता के चरित्र, शक्ति, कार्य एवं महिमा का वर्णन होता है।
चालीस चौपाइयां हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक हैं, इनकी संख्या चालीस इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि मनुष्य जीवन 24 तत्वों से निर्मित है और संपूर्ण जीवनकाल में इसके लिए कुल 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। इन दोनों का योग 40 होता है। इन 24 तत्वों में 5 ज्ञानेंद्रिय, 5 कर्मेंद्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्रा, 4 अन्त:करण शामिल हैं।
सोलह संस्कार इस प्रकार हैं :- 1. गर्भाधान संस्कार 2. पुंसवन संस्कार 3. सीमन्तोन्नयन संस्कार 4. जातकर्म संस्कार 5. नामकरण संस्कार 6. निष्क्रमण संस्कार 7. अन्नप्राशन संस्कार 8. चूड़ाकर्म संस्कार 9. विद्यारम्भ संस्कार 10. कर्णवेध संस्कार 11. यज्ञोपवीत संस्कार 12. वेदारम्भ संस्कार 13. केशान्त संस्कार 14. समावर्तन संस्कार 15. पाणिग्रहण संस्कार 16. अन्त्येष्टि संस्कार
भगवान की इन स्तुतियों में हम उनसे इन तत्वों और संस्कारों का बखान तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा स्तुति से जीवन में हुए दोषों की क्षमायाचना भी करते हैं। इन चालीस चौपाइयों में सोलह संस्कार एवं 24 तत्वों का भी समावेश होता है। जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति है।
राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो आनन्ददायक हो।
भोजन के अंत में पानी पीना जहर
हमारे आयुर्वेद में बताया गया हैं कि भोजन के अंत में पानी पीना जहर के समान हैं । ऐसा क्यों ? चलिये आज इसको हम विज्ञान की कसौटी पर कसने का एक सार्थक प्रयास करते हैं।
Sunday, March 16, 2025
सदा सुहागन रहो
Saturday, March 15, 2025
बगुला भगत
🌳 (शिक्षास्पद कहानी)🌳
एक वन प्रदेश में एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे।
पास में ही बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी। इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता।
एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।
बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'
बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला
'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'
केकडा बोला 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'
बगुले ने एक और हिचकी ली 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।'
बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।
उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'
बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'
सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।
अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।'
बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।
बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा 'मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।'
भगतजी बोले 'बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।'
केकडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया 'यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?'
बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला 'मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।'
केकडा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए।
फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।
इस कहानी से क्या सीखें: ये कहानी भी हमें 2 महत्वपूर्ण सीख देती है।
1. दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियाँ बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।
2. कठिन से कठिन परिस्थिति और मुसीबत के समय में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए और धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए।
निष्कामता ही परमार्थ
एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।राजन ने उनसे पुछा- महात्मन !! आप कौन हैं?
वृद्ध ने कहा- राजन !! मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!
राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ,कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए,बगीचे आदि भी बनवाए थे।राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था।वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए।वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ,सब एक-एक करके सूख गए,बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए।राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया।सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ,वह खँडहर में बदल गया।वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ,तीर्थ,कथा,पूजन,दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।
सत्य ने कहा- राजन !! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं,उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है,धर्म का निर्वहन नहीं।सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं,उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है। इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए।राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया।
शिक्षा-मित्रों !! सच ही तो है,सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी सफाई कर्मचारी (हरिजन) के पूजन व चरण छू लेते हैं। खाना खा लेते हैं,ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है, फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की..!!
सुप्रभातं सुमंगलं। हम बदलेंगे,युग बदलेगा। आपका हरपल मंगलमय हो।
शादी से पहले बात करना क्यों ज़रूरी है?







