Saturday, April 12, 2025

चोंच दी, वह चुगा भी देगा

उन्नीसवीं शताब्दी की बात है, राजस्थान के किसी शहर में एक करोड़पति सेठ था,, सब तरह  से भरा पूरा परिवार,, सुंदरी पति परायणा पत्नी, और दो आज्ञाकारी स्वस्थ पुत्र,,, व्यापार के लाभ और ब्याज से प्रतिवर्ष संपत्ति बढ़ती रहती,, खर्च में वह बहुत मितव्ययी था,, साल के अंत में आय-व्यय का मिलान करता और देख लेता कि पिछले वर्ष की अपेक्षा कितनी बढ़ोतरी हुई है,,, व्यय  कितना रहा,,,,

 एक दिन शहर में एक प्रसिद्ध महात्मा आए,, सेठ ने उनकी प्रसिद्धि की बात सुन रखी थी,, आदर सत्कार के साथ अपने घर लिवा लाया,, सेवा से उन्हें प्रसन्न कर दिया,, महात्मा जी ने जन्मपत्री देखी---- उन्होंने बताया बृहस्पति उच्च है,, सब प्रकार  के सुखों में जीवन व्यतीत होगा,, यश भी भाग्य में खूब लिखा है,, आप साधु महात्माओं और दीन दुखियों को प्रतिदिन अन्न भेंट किया करें,,, इससे आपके वंश में पांच पीढ़ी तक धन,, वैभव और यश बना रहेगा,,,,

महात्मा जी यह सब बता कर चले गए, सेठ उनके कहे अनुसार दूसरे दिन से अन्न वितरण करने लगा ,,,, परंतु उसके मन में एक चिंता रहने लगी,,---- मेरी छठी पीढ़ी कैसे रहेगी,, उसका क्या हाल होगा ,,उसके लिए क्या किया जाए,,,,? इत्यादि,,,,

सेठानी और मुनीम गुमास्तो ने बहुतेरा समझाया,, कि छठी पीढ़ी की अभी चिंता  क्या है,,,? इतनी संपत्ति है, जमा हुआ कारोबार,,,, पांच पीढ़ी तक तो चलेगा ही ,,,आगे भी कोई न कोई उनमें समर्थ होगा,,, जो संभाल लेगा,,, मगर सेठ जी का मन मानता नहीं था,,, बे चिंता में दुबले होते गए ,कुछ बीमार भी रहने लगे,,,,

एक दिन अन्न- वितरण के लिए अपनी कोठी की ड्योढी  पर बैठे थे कि एक गरीब ब्राह्मण भगवत भजन करते हुए सामने से गुजरा,,,, सेठ ने कहा--- महाराज अन्न की भेंट लेते जाइए,,, उसने विनम्रता से उत्तर दिया--- सेठ जी इस समय के लिए मुझे पर्याप्त अन्न की प्राप्ति हो गई है,,,, सांय काल के लिए भी संभवत: किसी दाता ने घर पर सीधा भेज दिया होगा,,,, न होगा तो मैं पूछ कर बता दूंगा,,,,

कुछ देर बाद ब्राह्मण वापस आया उसने बतलाया कि घर पर भी कहीं से सीधा आ गया है,,, इसलिए आज के लिए अब और नहीं चाहिए,,,

सेठ जी कुछ चकित--से  रह गए,,,,कहने लगे--- महाराज आप जैसे सात्विक ब्राह्मण की कुछ सेवा मुझसे हो जाए,,, कम से कम एक तौल  अन्न अपने आदमियों से पहुंचा देता हूं,,,,बहुत दिनों तक काम चल जाएगा,,,,

ब्राह्मण ने  सरल भावना से कहा--- दया निधान! शास्त्रों में लिखा है कि परिग्रह पाप का मूल है,,,, विशेषत:  हम ब्राह्मणों के लिए ,,,, आप किसी और जरूरतमंद को वह अन्न  देने की कृपा करें,,,, दयालु प्रभु ने हमारे लिए आज की व्यवस्था कर दी है,,, कल के लिए फिर अपने आप ही भेज देंगे,,," जिसने चोंच दी है,  वह चुगा भी  देगा"----

सेठ जी उस गरीब ब्राह्मण की बात सुन रहे थे,,, मन ही मन विस्मित भी थे----" इसे तो कल की भी चिंता नहीं,,, जो आसानी से मिल रहा है,, उसे भी लेना नहीं चाहता,, एक मैं हूं,,, जो छठी पीढ़ी की चिंता में घुला जा रहा हूं " ---

दूसरे दिन से वे स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देने लगे,,,, दान धर्म की मात्रा भी बढ़ गई,,, उनके चेहरे पर शांति की आभा विराजने लगी,,,,


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