Saturday, April 12, 2025

रामचरित मानस के सिद्ध मंत्र

१- विपत्ति-नाश के लिये

“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपतिभंजनसुखदायक।।”

२-संकट-नाश के लिये

“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।

जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिंसुखारी।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी। 

हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३-कठिन क्लेश नाश के लिये

“हरन कठिन कलि कलुषकलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४-विघ्न शांति के लिये“

"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५-खेद नाश के लिये

"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"

६-चिन्ता की समाप्ति के लिये

"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७-विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये

"दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज काहूहिं नहिब्यापा॥”

८-मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये

"हनूमान अंगद रन गाजे। 

हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९-विष नाश के लिये

"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।” १०-अकाल मृत्यु निवारण के लिये

"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।

लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”

११-सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये

"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।

जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”

१२-नजर झाड़ने के लिये

"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”

१३-खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिएे

“गई बहोर गरीब नेवाजू। 

सरल सबल साहिब रघुराजू।।”

१४-जीविका प्राप्ति केलिये

“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”

१५-दरिद्रता मिटाने के लिये

"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारिके।

कामद धन दारिद दवारि के।।”

१६-लक्ष्मी प्राप्ति के लिये

"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।

तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”

१७-पुत्र प्राप्ति के लिये

"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।

सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’

१८-सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये“

"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।

सुख संपत्ति नाना विधिपावहि।।”

१९-ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये

"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”

२०-सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये

"सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई"।।

२१-मनोरथ-सिद्धि के लिये“

"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।

तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”

२२-कुशल-क्षेम के लिये

"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”

२३-मुकदमा जीतने के लिये

"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”

२४-शत्रु के सामने जाने केलिये

"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”

२५-शत्रु को मित्र बनाने के लिये

"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”

२६-शत्रुतानाश के लिये

"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”

२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये

"तेहि अवसर सुनि सिवधनुभंगा।

आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”

२८-विवाह के लिये

"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।

मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”

२९-यात्रा सफ़ल होने के लिये

"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”

३०-परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये“

जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥

मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१-आकर्षण के लिये

"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२-स्नान से पुण्य-लाभ के लिये

"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।

लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”

३३-निन्दा की निवृत्ति के लिये

"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।"

३४-विद्या प्राप्ति के लिये

"गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥"

३५-उत्सव होने के लिये

"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।

तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”

३६-यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये

"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।

पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”

३७-प्रेम बढाने के लिये

"सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीती॥"

३८-कातर की रक्षा के लिये

"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”

३९-भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये

"रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।

सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥"

४०-विचार शुद्ध करने के लिये

"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मतिपावउँ।।”

४१-संशय-निवृत्ति के लिये

"राम कथा सुंदर करतारी। 

संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”

४२-ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये

"अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”

४३-विरक्ति के लिये

"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।

सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”

४४-ज्ञान-प्राप्ति के लिये

"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”

४५-भक्ति की प्राप्ति के लिये

"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।

सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”

४६-श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये

"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”

४७-मोक्ष-प्राप्ति के लिये“

"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। 

काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”

४८-श्री सीताराम के दर्शन के लिये“

"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।

लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”

४९-श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये

"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”

५०-श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये

"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।

देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”

५१-सहज स्वरुप दर्शन के लिये

"भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”


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