Wednesday, April 16, 2025

फिजां ने कैसा रंग दिखलाया

 कविता

रचना ॥ उदय किशोर साह ॥
मो० पो० जयपुर जिला बांका बिहार

बागों की कलियाँ हमें देख मुस्कराई
छू मंतर हो गई मेरी गम व      तन्हाई
फिजां ने कैसा ये रंग आज दिखलाया
जीवन जीने की नई आस ये   जगाया

पहाड़ो की तन पे छाई है जवां हरियाली
अँबर पे डोल रही है मेघा   काली काली
वन में मोरनी ने ओढ़ चुनरी है       नाचे
बादलों की गड़गड़ाहट जैसे दुन्दभि बाजे

आरे वरसा तुँ प्यार की बूँद  बरसा     जा
प्यासे धरती की अब तुम   प्यास बुझा जा
खेत खलिहान के तन पे सजा जा हरियाली
नदी ताल तलैया अब भी है यहाँ       खाली

पुरवाई ले आई है प्यार का एक      संदेशा
मिलन में ना लगता है अब कछु भी अंदेशा
दीदार अक्स अपनी इस पल करा कर जाना
अब और ना मेरे  बेबस दिल को।     तड़पाना

दो दिल मिल कर समझौता अब  कर।   लें
गिले शिकवे सारे आज हम दोनों भुला    दें
तन मन में जीवन की आस जगा           दो
हमराही बन कर आ हमें गले लगा        लो


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