पौराणिक कथाएं प्रमाण हैं कि जब भी धरती पर अधर्म बढ़ा है तो धर्म की संस्थापना के लिए भगवान ने अवतार लिया है। भगवान श्री कृष्ण वह महानायक हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया को अधर्म और अन्याय के विरुद्ध खड़े होना सिखाया ।
द्वापर का समय था। उस समय मथुरा का राज्य कंस के हाथों में था। कंस निरंकुश व पाषाण ह्रदय नरेश था। वैसे तो वह अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था पर जबसे उसे मालूम हुआ था कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। तभी से उसने उसे काल कोठरी में डाल रखा था । इसी लिए किसी भी तरह का खतरा मोल न लेने की इच्छा के कारण कंस ने देवकी के पहले 6 शिशु की भी ह्त्या कर दी।
कौन थे वे 6 शिशु
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ब्रह्मलोक में स्मर, उद्रीथ, परिश्वंग, पतंग, क्षुद्र्मृत व घ्रिणी नाम के छह देवता हुआ करते थे ।
ये ब्रह्माजी के कृपा पात्र थे । इन पर ब्रह्मा जी की कृपा और स्नेह दृष्टि सदा बनी रहती थी। वे इन छहों की छोटी-मोटी बातों और गलतियों पर ध्यान नहीं देते थे। इसी कारण उन छहों में धीरे-धीरे अपनी सफलता के कारण घमंड पनपने लग गया । ये अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझने लग गए ।
ऐसे में ही एक दिन इन्होंने बात-बात में ब्रह्माजी का भी अनादर कर दिया। इससे ब्रह्माजी ने क्रोधित हो इन्हें श्राप दे दिया कि तुम लोग पृथ्वी पर दैत्य वंश में जन्म लो। इससे उन छहों की बुद्धि ठिकाने आ गयी और वे बार-बार ब्रह्माजी से क्षमा याचना करने लगे ।
ब्रह्मा जी को भी इन पर दया आ गयी और उन्होंने कहा कि जन्म तो तुम्हें दैत्य वंश में लेना ही पडेगा पर तुम्हारा पूर्व ज्ञान बना रहेगा ।
समयानुसार उन छहों ने राक्षसराज हिरण्यकश्यप के घर जन्म लिया । उस जन्म में उन्होंने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण कोई गलत काम नहीं किया । सारा समय उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करने में ही बिताया । जिससे प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उनसे वरदान माँगने को कहा ।
दैत्य योनि के प्रभाव से उन्होंने वैसा ही वर माँगा कि हमारी मौत न देवताओं के हाथों हो, न गन्धर्वों के, न ही हम हारी-बीमारी से मरें ! ब्रह्माजी तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए । इधर हिरण्यकश्यप अपने पुत्रों से देवताओं की उपासना करने के कारण नाराज था । उसने इस बात के ज्ञात होते ही उन छहों को श्राप दे डाला की तुम्हारी मौत देवता या गंधर्व के हाथों नहीं एक दैत्य के हाथों ही होगी ।
इसी शाप के वशीभूत उन्होंने देवकी के गर्भ से जन्म लिया और कंस के हाथों मारे गए और सुतल लोक में पुन: स्थान पाया। कंस वध के पश्चात जब श्रीकृष्ण माँ देवकी के पास गए । माँ ने उन 6 शिशु को देखने की इच्छा प्रभु से की जिनको जन्मते ही मार डाला गया था। प्रभु ने सुतल लोक से उन 6 शिशु को लाकर माँ की इच्छा पूरी की । प्रभु के सानिध्य और कृपा से वे फिर देवलोक में स्थान पा गए ।
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