Monday, November 11, 2024

वृद्ध करदाता की चालाकी

 आयकर अधिकारी ने एक वृद्ध करदाता को अपने कार्यालय में बुलाया...

😀
वृद्ध करदाता ठीक समय पर पहुंच गया,अपने वकील के साथ... 😀
आयकर अधिकारी:-आप तो रिटायर हो चुके हैं,हमें पता चला है कि आप बड़े ठाट बाट से रहते हैं, इसके लिए पैसे कहां से आते हैं....❓😎
वृद्ध करदाता:- जुगाड़ में जीतता हूं... 😀
आयकर अधिकारी:- हमें यकीन नहीं !😎
वृद्ध करदाता:- मैं साबित कर सकता हूं ! क्या आप एक नमूना देखना चाहोगे....❓😀
आयकर अधिकारी:-अच्छी बात है,जरा हम भी तो देखें... शुरू हो जाइए !😎
वृद्ध करदाता:- एक हज़ार रुपए की शर्त लगाने के लिए क्या आप तैयार हैं....❓ मैं यह दावा कर रहा हूं कि मैं अपनी ही एक आंख को अपने दांतों से काट सकता हूं😀
आयकर अधिकारी:- क्या......❓🤔 नामुमकिन,लग गई शर्त!😎
वृद्ध करदाता अपनी शीशे की एक कृत्रिम आंख निकालकर अपने दांतों से काटता है..... !😀
आयकर अधिकारी ने हार मान ली और एक हज़ार रुपये उस वृद्ध करदाता को दे दिए !😎
करदाता:- अब दो हज़ार की शर्त लगाने के लिए तैयार हो.....❓😀
मैं अपनी दूसरी आंख को भी काट सकता हूं !😂
आयकर अधिकारी ने सोचा🥱 जाहिर है कि यह अंधा तो नहीं है..... 😎उसकी दूसरी आंख शीशे की नहीं हो सकती🥱 कैसे कर पाएगा.....❓देखते हैं !😎
और बोला:- लग गई शर्त..... !😎
करदाता ने अपने नकली दांत मुंह से निकालकर अपनी आंख को हलके से काटा.. 😀
आयकर अधिकारी हैरान हुआ पर कुछ कह नहीं सका.. और चुपचाप दो हज़ार रुपये अदा कर दिए !😂
करदाता ने आगे कहा:- चलो एक और मौका देता हूं आपको......😀 क्या आप दस हज़ार की शर्त लगाने के लिए तैयार हो.....❓😀
आयकर अधिकारी ने कहा:-अब कौन सी बहादुरी का प्रदर्शन करोगे....❓😎
वृद्ध करदाता ने कहा:- आपके कमरे में कोने में जो कूड़े का डिब्बा है.... मेरा दावा है कि मैं यहां आपकी मेज के सामने खड़े होकर सीधे उस डिब्बे के अंदर सीधे थूक "विसर्जन" कर सकता हूं...... 😀
और आपकी टेबल पर एक बूंद भी नहीं गिरेगी.... 😂
तभी वृद्ध के वकील ने जोर से चिल्लाया:- मत लगाओ, शर्त मत लगाओ.....! 😩😩
लेकिन आयकर अधिकारी नहीं माना... 😀
उसने देखा कि दूरी 15 फुट से भी ज्यादा है और कोई भी यह काम नहीं कर सकता......!😎 और इस बुड्ढे से तो ये बिल्कुल भी नहीं हो सकेगा...😎
इस तरह बहुत सोच समझकर अपने खोए हुए पैसे को वापस जीतने की उम्मीद से वह शर्त लगाने के लिए तैयार हो गया !😎
वृद्ध के वकील ने माथा ठोक लिया !😎
वृद्ध मुंह नीचे करके शुरू हो गया पर उसकी कोशिश नाकामयाब रही....!😀
उसने आयकर अधिकारी की टेबल को थूक से लबालब कर दिया........😂लेकिन आयकर अधिकारी बहुत खुश हुआ !😂
उसने देखा वृद्ध का वकील रो रहा है ! और वह शर्त जीत गया है।😎
उसने पूछा:- क्या बात है, वकील साहब......❓😀
वृद्ध के वकील ने कहा:-आज सुबह इस शैतान ने मुझसे पचास हज़ार की शर्त लगाई थी...... 😂 कि वह इनकम टैक्स वालों की टेबल पर थूकेगा और वो बजाए नाराज होने के उल्टे इससे खुश होंगे...... !

Wednesday, November 6, 2024

पत्नी का शक

शादी के 3 साल हुए थे और 1 दिन पत्नी के मन में ख्याल आया, क्या होगा अगर मैं अपने पति को छोड़कर चली जाऊं?  

पति का रिएक्शन क्या होगा? फिर वह क्या करेगा?

इसी विचार के चलते पति की परीक्षा लेने के लिए उसने एक चिट्ठी लिखी.. उसमें लिखा, "आपके साथ रहकर बोर हो गई हूं। मुझे अब इस गृहस्थी से कोई लगाव नहीं है। मैं तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रह सकती, इसलिए मैं तुम्हें और इस घर को छोड़ कर जा रही हूं।" 

उसने वो चिट्ठी टेबल पर रखी और खुद बेड के नीचे जाकर छुप गई!

थोड़ी देर बाद पति ऑफिस से घर लौटा। उसे घर में अपनी पत्नी कहीं नहीं दिखी।  

फिर उसकी नजर टेबल पर रखी चिट्ठी पर पड़ी। चिट्ठी को उठाकर उसने पढ़ी। थोड़ी देर तक बिल्कुल शांत रहा, कुछ नहीं बोला।

फिर उसने उसी चिट्ठी में पीछे कुछ लिखा और अपने मोबाइल में गाने बजा कर जोर-जोर से नाचने लगा!  

फिर उसने अपने कपड़े बदले और अपनी एक फ्रेंड को फोन लगाया और कहने लगा... "मैं आज आजाद हो गया हूं!!  

मेरी बीवी को आखिरकार ये एहसास हो गया कि वह मेरे काबिल नहीं है.. इसलिए वह खुद ही मुझे छोड़कर हमेशा के लिए चली गई है और मैं अब आजाद हो गया हूं। तुमसे अभी सामने वाले बगीचे में मिलना चाहता हूं। फटाफट वहां आकर मुझे मिलो..."  

ऐसा कहकर पति घर के बाहर निकल गया!

दोनों आंखों में आंसू की धारा लिए पत्नी बेड के नीचे से बाहर निकली।  

उसके हाथ थरथर कांप रहे थे.. कांपते हाथों से उसने टेबल पर रखी वो चिट्ठी उठाई और पढ़ी जिसमें पति ने लिखा था...

"अरे पगलेट! तुम्हें तो ठीक से छुपना भी नहीं आता! बेड के नीचे से तुम्हारे पैर दिख रहे हैं।  

तुम जल्दी से गरमा गरम चाय बनाओ, मैं सामने की दुकान से गरम गरम समौसे लेकर आता हूं।"

"मेरे जीवन में खुशी तुम्हारे आने से है। आधी खुशी तुझे सताने में है और आधी तुझे मनाने में।  

आखिर लास्ट में तो हम दोनों ही साथ रहेंगे ना! 

कभी हम झगड़े, एक दूसरे की टांग खींचे। एक दूसरे को बुरा-भला कहे, फिर भी एक-दूसरे पर दादागिरी करने के लिए लास्ट में तो हम दोनों ही रहेंगे ना!

जो बोलना है बोलो, जो करना है करो। जब चश्मे गुम जाएंगे तब एक-दूसरे के चश्मे ढूंढने के लिए लास्ट में तो हम दोनों ही रहेंगे ना!

कभी मैं रूठूं तो तुम मुझे मनाना, कभी तुम रूठो तो मैं तुझे मना लूंगा.. एक-दूसरे को लाड लड़ाने के लिए आखिर में तो हम दोनों ही होंगे ना!

जब नजर कम आएगा, सुनाई भी कम देगा तब एक-दूसरे में एक-दूसरे को ढूंढने के लिए हम दोनों ही होंगे ना!

जब घुटनों में दर्द बढ़ जाएगा, कहीं आना-जाना भी बंद हो जाएगा तब एक-दूसरे के नाखून काटने के लिए तो हम दोनों ही होंगे ना!

'मेरे रिपोर्ट तो बिल्कुल क्लियर है, आई एम ऑल राइट।' बोल कर एक-दूसरे को चिढ़ाने के लिए आखिर तो हम दोनों ही होंगे ना!

जब हम दोनों का साथ छूटेगा, अंतिम विदाई होगी.. तब एक-दूसरे को माफ करने के लिए आखिर हम दोनों ही होंगे ना!

आखिर में सिर्फ हम और सिर्फ हम दोनों ही होंगे ना!!!"

कहानी खत्म होते-होते बीवी का रो-रो कर बुरा हाल हो गया।  

उसे पता चल गया कि उसका पति उससे कितना ज्यादा प्यार करता है।  

आपका हर पल मंगलमय हो।

छठ पूजा

 छठ पूजा विशेष 

सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं , जय छठी मईया


कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम करण छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है।


सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। 


✦ छठ पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा :-


छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है।


सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा।  वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी।


वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।


पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं।


शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है।


✦ छठ पर्व परंपरा :-


यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्य देवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्य के उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।


✦ छठ व्रत :-


छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है।


चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है।

इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’


ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।


✦ छठ पूजा विधि :-


छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें।

◆ बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास।

◆  चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी।

◆  नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई।

◆  प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें।


✦ सूर्य को अर्घ्य देने की विधि :-

बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।


✦ पहला दिन नहाय खाय :-


पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।


✦ दूसरे दिन लोहंडा और खरना :-


दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।


✦ तीसरे दिन संध्या अर्घ्य :-


तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।


शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।


सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।


✦ चौथा दिन उषा अर्घ्य :-


चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।


✦ छठ पूजा का पौराणिक महत्त्व :-

छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।


✦ रामायण की मान्यता :-

एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त किया था।


✦ महाभारत की मान्यता :-

एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।


कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।


✦ पुराणों की मान्यता :-

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। 

इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं।

राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।


✦ छठ गीत :-

लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति भाव से पूर्ण लोकगीत गाए जाते हैं।


✦ गीत :-

'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय

काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'

सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।

उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।

निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।

चार कोना के पोखरवा

हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।


इस गीत में एक ऐसे ही तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें माफ नही करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता नहीं कर सकते आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है उसने।


✦ छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र समय :-

ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।

अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ।।


✦ पहला दिन :-

17 नवंबर - नहाय-खाय👉 दिन रविवार को छठ पूजा का प्रथम दिन था। ऋषिकेश में इस दिन सूर्योदय: 06:38 एवं सूर्यास्त: शाम 5:28 पर हुआ। इस दिन से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है


✦ दूसरा दिन :-

18 नवंबर - खरना👉 सोमवार को छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसदिन सूर्योदय से सूर्यास्त लेकर सूर्यास्त तक अन्न और जल दोनों का त्याग करके उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:39 औऱ सूर्यास्त: शाम 05:28 पर ही होगा । दूसरे दिन के अंत में खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है। इसे व्रत करने वाले से लेकर परिवार के सभी लोगों में बांटा जाता है। रात में चांद को जल भी दिया जाता है।


✦ तीसरा दिन :-

तीसरे दिन 19 नवंबर को संध्या समय में सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इसदिन भी पूरे दिन का उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्यास्त: शाम 05:26 पर होगा। तीसरे दिन शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्य देवता को छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाता है।


✦ चौथा दिन :-

यह छठ पूजा का अंतिम दिन होता है। 20 नवंबर, बुधवार की सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाएगा। यह छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य होता है जिसके बाद 36 घंटे के लंबे उपवास का समापन हो जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:47 पर होगा।


        || जय_छठ_माता ||


Tuesday, November 5, 2024

ढाई अक्षर

 काफी बरसों पहले पढ़ा था..!

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।

     ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय॥


      अब पता लगा है कि, ढाई अक्षर हैं क्या ?


तब से मन शांत हो गया.


ऐसा ज्ञान सिर्फ सनातन संस्कृति मे ही मिलेगा


 2½ अक्षर के ‘ब्रह्मा’ और, ढाई अक्षर की ‘सृष्टि’. ``

`

 ढाई अक्षर के ‘विष्णु’ और ढाई अक्षर की ‘लक्ष्मी’. 

``` ढाई अक्षर की ‘दुर्गा’ और ढाई अक्षर की ‘शक्ति’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्रद्धा’ और ढाई अक्षर की ‘भक्ति’. 


 ढाई अक्षर का ‘त्याग’ और ढाई अक्षर का ‘ध्यान’. 


 ढाई अक्षर की ‘इच्छा’ और ढाई अक्षर की ‘तुष्टि’. 


 ढाई अक्षर का ‘धर्म’ और ढाई अक्षर का ‘कर्म’. 


 ढाई अक्षर का ‘भाग्य’ और, ढाई अक्षर की ‘व्यथा’. 


 ढाई अक्षर का ‘ग्रन्थ’ और ढाई अक्षर का ‘सन्त’.


 ढाई अक्षर का ‘शब्द’ और ढाई अक्षर का ‘अर्थ’. 


 ढाई अक्षर का ‘सत्य’ और ढाई अक्षर की ‘मिथ्या’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्रुति’ और ढाई अक्षर की ‘ध्वनि’. 


 ढाई अक्षर की ‘अग्नि’ और ढाई अक्षर का ‘कुण्ड’. 


 ढाई अक्षर का ‘मन्त्र’ और ढाई अक्षर का ‘यन्त्र’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्वांस’ और ढाई अक्षर के ‘प्राण’. 


 ढाई अक्षर का ‘जन्म’ और ढाई अक्षर की ‘मृत्यु’. 


 ढाई अक्षर की ‘अस्थि’ और ढाई अक्षर की ‘अर्थी’. 


 ढाई अक्षर का ‘प्यार’ और ढाई अक्षर का ‘युद्ध’. 


 ढाई अक्षर का ‘मित्र’ और, ढाई अक्षर का ‘शत्रु’.


 ढाई अक्षर का ‘प्रेम’ और ढाई अक्षर की ‘घृणा’. 


 ‘जन्म' से लेकर ‘मृत्यु’ तक हम, बंधे हैं ढाई अक्षर में. 


ढाई अक्षर ही *वक्त* में और ढाई अक्षर ही *अन्त* में.'''


  समझ न पाया कोई भी, रहस्य क्या है ढाई अक्षर में. ```


पंचभीखम की कथा

          एक साहूकार के बेटे की बहू थी, जो बहुत सुबह उठकर कार्तिक के महीने में रोजना गंगा जी नहाने जाती। पराए पुरुष का मुँह नहीं देखती। एक राजा का लड़का था। जब भी रोजाना गंगा जी नहाने जाता और सोचता कि मैं इतनी सुबह नहाने आता हूँ तो भी मेरे से पहले कौन नहा लेता है।          

पाँच दिन कार्तिक के रह गए। उस दिन साहूकार की बहू तो नहा के जा रही थी, राजा का बेटा आ रहा था। खुढ़का सुनकर वह जल्दी-जल्दी जाने लगी, तो उसकी माला-मोचड़ी छूट गई। राजा आया उसने सोचा जब माला-मोचड़ी इतनी सुंदर है तो इसे पहनने वाली कितनी सुंदर होगी, सारी नगरी में राजा के लड़के ने हेलो फिरा दिया कि जिसकी यह माला-मोचड़ी है, वह मेरे पास पाँच दिन आएगी, तब मैं उसकी माला-मोचड़ी दूँगा।

          साहूकार के बेटे की बहू ने कहलवा दिया कि मैं पाँच दिन आऊँगी, पर किसी को साख भरने के लिए बैठा दियो। राजा ने गंगा जी पर बिछावन करके, एक तोते को पिंजरे में टांग कर रख दिया। वह सुबह आई, पहली पैड़ी पर पैर रखा, वह बोली कि 'हे कातक ठाकुर-राय दामोदर-पांचू पांडू-छठो नारायण-भीसम राजा" उस पापी को नींद आ जाए। मैं सत की हूँ तो मेरा सत रखना। राजा को नींद आ गई और वह नहा-धोकर जाने लगी, तो तोते (सुवा) से बोली कि 'सुवा-सुवा सुवटा-गल घालूँगी हार-साख भरिए मेरा वीरा। 'सुवा बोला कि कोई वीर भी साख भरा करता है ? जब वह बोली कि सुवा-सुवा सुबटा-पग घालूँगी नेवर साख भरिये मेरा देवर।' सुवा ने कहा अच्छा भाभी मैं साख भरूँगा। वह तो कहकर चली गई।

          राजा हड़बड़ाकर उठा, सुवा से पूछा, 'सुवा-सुवा वह आई थी, कैसी थी ?' सुवा बोला, 'आभा की सी बिजली, होली की सी झल, केला की सी कामनी, गुलाब का सा रंग।' राजा ने सोचा कि कल मैं अपनी उँगली चीर के बैठ जाऊँगा, तो नींद नहीं आएगी। दूसरे दिन उँगली चीर के बैठ गया। वह आई उसने वैसे ही प्रार्थना करी, बस उसको नींद आ गई। नहा के जाने लगी तो सुवा ने साख भरा दी। राजा ने उठते ही फिर सुवा से पूछा। सुवा ने कल जैसा ही जवाब दे दिया।

          उसने सोचा, कल तो मैं आँख में मिर्च डालकर बैठ जाऊँगा। तीसरे दिन आँख में मिर्च डालकर बैठ गया, सारी रात हाय-हाय करके बिताई। वह आई, उसने वैसे ही प्रार्थना की, राजा को नींद आ गई। नहा के सुवा से साख भराके चली गई। राजा ने सोचा कि कल तो मैं काँटों की सेज बिछाकर बैठूँगा चौथे दिन काँटों की सेज पर बैठकर हाय-हाय करता रहा, पर जब पर वह आई उसको नींद आ गई वह प्रार्थना करके नहा के, सुवा से साख भरा के चली गई पाँचवे दिन राजा आग जलाकर उसकी राख पर बैठ गया। वह उस दिन भी प्रार्थना करती आई कि आज भी मेरा सत रख दियो।

          राजा को नींद आ गई उसने सुवा से साख भरा ली और कहा कि उस पाजी से कह दियो, मेरे पाँच दिन पूरे हो गए हैं। अब मेरी माला-मोचड़ी मेरे घर भेज देगा। राजा ने उठते ही सुवा पूछा वह आई थी क्या ? सुवा बोला आई थी, अपनी माला-मोचड़ी मँगाई है।

          थोड़े दिन बाद राजा के कोढ़ निकल आए, त्राहि-त्राहि पुकारने लगा। पुरोहित को बुलाकर पूछा कि सारे शरीर में जलन कैसे लग गई। पुरोहित बोला कि यह कोई पतिव्रता स्त्री का पाप धरा है, जिससे लगी है। राजा ने पूछा कि अब कैसे ठीक होगा। पुरोहित बोला कि उसको तुम धर्म की बहन बनाओ और उसके नहाए हुए जल से नहाओगे, तो तुम्हारा जलन, कोढ़ ठीक होगा।

          राजा माला-मोचड़ी लेकर उसके घर गया और साहूकार से बोला कि ये तेरी बहू गंगा पर भूल गई थी, यह उसे दे दो और कह देना कि अपने नहाए हुए जल मुझे नहला दे। साहूकार बोला कि वह तो पराए पुरुष का मुँह नहीं देखती, तू इस नाली के नीचे बैठ जा, वह नहाएगी तो तेरे ऊपर पानी पड़ जाएगा। राजा नाली के नीचे बैठ गया। वह नहायी तो जल गिरने से उसकी काया कंचन-सी हो गई।

          *'हे पचंभीखम देवता, जैसे साहूकार की बहू का सत 

रखा, ऐसा सबका रखियो।*


अभागा राजा और भाग्यशाली दास

एक बार एक गुरुदेव  अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे। 

एक विशाल नदी जो की सदाबहार थी उसके दोनों तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था! नदी के इधर एक राजा था राजा को बड़ा अहंकार था कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता वहाँ एक दास भी था बहुत ही विनम्र और सज्जन!

एक बार राजा और दास दोनों नदी के पास गये राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की इच्छा व्यक्त की दो नावें थी रात का समय था एक नाव में राजा सवार हुआ और दूसरी में दास सवार हुआ। दोनों नाव के बीच में बड़ी दूरी थी!

राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा की दास नदी के उसपार से इधर आ रहा है! दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा तो राजा ने कहा की तुम रातभर मन्दिर मे थे! दास ने कहा की हाँ और राजाजी क्या मनोहर देव प्रतिमा थी पर आप क्यों नही आये!

अरे मैंने तो रात भर चप्पू चलाया पर .....

गुरुदेव ने शिष्य से पूछा वत्स बताओ की राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उस पार न पहुँचा? ऐसा क्यों हुआ? जब की उसपार पहुँचने में एक घंटे का समय ही बहुत है! 

शिष्य - हे नाथ मैं तो आपका अबोध सेवक हूँ मैं क्या जानूँ आप ही बताने की कृपा करे देव!

ऋषिवर - हे वत्स राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नहीं खोला और  इसी तरह लोग जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहते है पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नही फेंकेंगे, आसक्ति की रस्सी को नहीं काटेंगे तब तक नाव देव मंदिर तक नहीं पहुंचेगी

हे वत्स जब तक जीव स्वयं को सामने रखेगा तब तक उसका भला नहीं हो पायेगा! ये न कहो की ये मैंने किया, ये न कहो की ये मेरा है, ये कहो की जो कुछ भी है वो सद्गुरु और समर्थ सत्ता का है मेरा कुछ भी नही है जो कुछ भी है सब उसी का है!

 जो अहंकार से ग्रसित है वो राजा बनकर चलता है और जो दास बनकर चलता है वो सदा लाभ में ही रहता है! 


संस्कार क्या है...

एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: "बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: "मां मैं इसका बदला लूंगा।"

मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये", पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"

"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।

*हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!

उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली मे

 खाना है बचा लो….

मैं उस दिन भी एक शादी में बाउंसर के रूप में मौजूद था। आजकल का चलन हो गया है कि शादियों में हम बाउंसरों को काम दिया जाने लगा है, हम शादी में अव्यवस्था होने से रोकते हैं, मेरे साथ मेरे तीन साथी और थे उसी शादी में। मैं टीम लीडर हूँ।

मैं काफी देर से अपनी वैन में बैठा ड्रोन के ज़रिए , शादी की गहमा गहमी देख रहा था। मैं लड़की वालों की तरफ से इंगेज किया गया था। मुझे एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी की कुछ अजीब बातें दिखाईं दीं।

पहली बात तो उसने जो खाना खाया, वो अपनी प्लेट में एक एक चीज ले जा रहा था, उन्हें खाकर ही फिर से आ रहा था। उसने खाना खत्म किया।

वो काफ़ी देर तक खाने की कैटरिंग की कतार को देखता रहा। फिर वो कैटरिंग के लोगों को जा जाकर निर्देष देने लगा। फिर उसने खुद एक स्टाल पर खड़े होकर कमान संभाल ली। मुझे कुछ अजीब लग रहा था, मुझे लग रहा था ये कुछ ज्यादा ही केयरिंग हो रहा है कहीं कोई खाने का खोमचा गायब न कर दे। मैंने अपने एक साथी को वैन में बुलाया और मैं उसकी जगह शादी के टेंट में आ गया। मैं घूमते हुए उस आदमी के पास पहुँचा, उसका अभिवादन किया और फिर उसे इशारे से बुलाया।

वो मेरे पास आ गया, मैंने उससे कहा आपसे बात करनी है जरा मेरे साथ आइए। वो मेरे साथ हो लिया। मैं उसे अपनी वैन के पास ले आया, वहाँ ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। "मैं काफी देर से आपको वॉच कर रहा हूँ, आप कैटरिंग स्टाल पर क्या कर रहे थे, आप शादी में आये हुए मेहमान लग रहे हैं घराती तो हैं नहीं, आखिर इरादा क्या है आपका ?"मैंने कहा, पर कहने में सख्ती थी । मेरी बात सुनकर वो हँसने लगा, फिर संजीदा हुआ, मुझे अजीब लगा उसका व्यवहार। 

"चार महीने पहले मेरी बेटी की भी शादी थी।" उसने ठंडी आह भरी।"मेरे यहाँ दो हज़ार लोगों का खाना बना था । हम सही से मैनेज नहीं कर पाए, लोग भी ज्यादा आ गए । बहुत सा खाना वेस्ट कर दिया गया, लोगों ने खाया कम थालियों में छोड़ा ज्यादा । बारात नाचने गाने में लेट हो गई और बारात जब तक खाने पर आती बहुत से खाने के आईटम कम पड़ गए । मेरे समधी नाराज हो गए , बारात के खाने को लेकर बेटी को जब तब ताने मिलते हैं।"

ये कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं और गला भर्रा गया , " मैं सोचता हूँ कि मेरे यहाँ खाने के मामले में सही कंट्रोल और निगरानी रख ली जाती तो मेरी जो इज्जत गई वो बच जाती । अब मेरी कोशिश रहती है कि जिस किसी भी शादी में जाता हूँ , वहाँ खाने को बेमतलब वेस्ट न करके बचाया जाए । इससे न केवल खाना बचेगा बल्कि किसी की इज्जत बची रहेगी , तो सोचता हूँ भाई 'खाना है बचा लो..' अब जाऊँ मैं ? आपकी इजाजत हो तो थोड़ा खाने की स्टाल पर निगरानी रख लूँ।" कहकर वो वहाँ से चला गया ।

मुझे लग रहा था हम चार के अलावा एक पाँचवां बाउंसर और भी है, काश उस जैसे पचास आदमी और हों तो सौ जनों का खाना बचाया जा सकता है। मैंने उसके पीठ पीछे उसके लिए ताली बजाई और फिर से वैन में बैठकर ड्रोन उड़ाने लगा।

उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली मे।

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है!!

आपका हर पल मंगलमय हो।

Sunday, November 3, 2024

गोवर्धन

गोवर्धन पूजा का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। इसे अन्नकूट पूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो इंद्र देव पर भगवान कृष्ण की जीत का प्रतीक है। इस साल गोवर्धन पूजा २ नवंबर को यानी आज मनाई जा रही है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है जिसमें श्री गिरिधर गोपालजी को ५६ प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यह पर्व दीपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है। कूट का अर्थ होता है पर्वत। अन्नकूट का अर्थ है अन्न का पर्वत।
🌿🌼 भगवान् कृष्ण को छप्पन भोग क्यों लगाते हैं ?
बालकृष्णकी अष्टयाम सेवाका विधान है, इसके अन्तर्गत उन्हें आठ बार भोग भी लगाया जाता है। भगवान् श्रीकृष्णको ५६ प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे ५६ भोग कहा जाता है। बालगोपालको लगाये जानेवाले इस भोगकी बड़ी महिमा है। भगवान् श्रीकृष्णको अर्पित किये जानेवाले ५६ भोगके सम्बन्धमें कई रोचक कथाएँ हैं।
🌿🌼 १. एक कथा के अनुसार माता यशोदा बालकृष्णको एक दिनमें अष्ट प्रहर भोजन कराती थीं। एक बार जब इन्द्रके प्रकोपसे सारे व्रजको बचानेके लिये भगवान् श्रीकृष्णने गोवर्धन पर्वतको उठाया था, तब लगातार ७ दिन तक भगवान्ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया।
८वें दिन जब भगवान्ने देखा कि अब इन्द्रकी वर्षा बन्द हो गयी है, तब सभी व्रजवासियोंको गोवर्धन पर्वतसे बाहर निकल जानेको कहा, तब दिनमें ८ प्रहर भोजन करनेवाले बालकृष्णको लगातार ७ दिनतक भूखा रहना उनके व्रजवासियों और मैया यशोदाके लिये बड़ा कष्टप्रद हुआ। तब भगवान्‌के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धाभक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियोंसहित यशोदा माताने ७ दिन और अष्ट प्रहरके हिसाबसे ७०८-५६ व्यंजनोंका भोग बालगोपालको लगाया।
🌿🌼 २. एक अन्य मान्यताके अनुसार ऐसा कहा जाता है कि गोलोकमें भगवान् श्रीकृष्ण राधिकाजीके साथ एक दिव्य कमलपर विराजते हैं। उस कमलकी ३ परतें होती हैं। इसके तहत प्रथम परतमें ८, दूसरीमें १६ और तीसरीमें ३२ पंखुड़ियाँ होती हैं। इस प्रत्येक पंखुड़ीपर एक प्रमुख सखी और मध्यमें भगवान् विराजते हैं, इस तरह कुल पंखुड़ियोंकी संख्या ५६ होती हैं। यहाँ ५६ संख्याका यही अर्थ है। अतः ५६ भोगसे भगवान् श्रीकृष्ण अपनी सखियोंसंग तृप्त होते हैं।
🌿🌼 ३. एक अन्य श्रीमद्भागवत कथाके अनुसार गोपिकाओंने श्रीकृष्णको पतिरूपमें पानेके लिये १ माह तक यमुनामें भोरमें ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायिनी माँकी पूजा-अर्चना की, ताकि उनकी यह मनोकामना पूर्ण हो। तब श्रीकृष्णने उनकी मनोकामना- पूर्तिकी सहमति दे दी। तब व्रत-समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होनेके उपलक्ष्यमें ही उद्यापनस्वरूप गोपिकाओंने ५६ भोगका आयोजन करके भगवान् श्रीकृष्णको भेंट किया।
छप्पन भोग (भगवान्‌ को चढ़ाये जानेवाले व्यंजनोंके नाम) हिन्दू धर्म में भगवान्‌ को छप्पन भोगका प्रसाद चढ़ाने की बड़ी महिमा है। भगवान्‌को लगाये जानेवाले भोगके लिये ५६ प्रकारके व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है।
छप्पन भोग में परिगणित व्यंजनोंके नाम इस प्रकार हैं-
१-भक्त (भात), २-सूप (दाल), ३-प्रलेह (चटनी), ४-सदिका (कढ़ी), ५-दधिशाकजा (दही- शाककी कढ़ी), ६-शिखरिणी (सिखरन), ७-अवलेह (लपसी), ८-बालका (बाटी), ९-इक्षु खेरिमी (मुरब्बा), १०-त्रिकोण (शर्करायुक्त), ११-बटक (बड़ा), १२- मधुशीर्षक (मठरी), १३-फेणिका (फेनी), १४-परिष्टश्च (पूरी), १५-शतपत्र (खाजा), १६-सधिद्रक (घेवर), १७-चक्राम (मालपूआ), १८-चिल्डिका (चिल्ला), १९-सुधाकुंडलिका (जलेबी), २०-घृतपूर (मेसू), २१- वायुपूर (रसगुल्ला), २२-चन्द्रकला (पगी हुई), २३- दधि (दहीरायता), २४-स्थूली (थूली), २५-कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), २६-खंड मंडल (खुरमा), २७-गोधूम (गेहूँका दलिया), २८-परिखा, २९-सुफलाढ्या (सौंफयुक्त), ३०-दधिरूप (बिलसारू), ३१-मोदक (लड्डू), ३२-शाक (साग), ३३-सौधान (अधानौ अचार), ३४-मंडका (मोठ), ३५-पायस (खीर), ३६ दधि (दही), ३७-गोघृत (गायका घी), ३८- हैयंगवीनम (मक्खन), ३९-मंडूरी (मलाई), ४०-कूपिका (रबड़ी), ४१-पर्पट (पापड़), ४२-शक्तिका (सीरा), ४३ लसिका (लस्सी), ४४-सुवत, ४५-संधाय (मोहन), ४६-सुफला (सुपारी), ४७-सिता (इलायची), ४८- फल, ४९-ताम्बूल, ५०-मोहनभोग, ५१-लवण, ५२- कषाय, ५३-मधुर, ५४-तिक्त, ५५-कटु, ५६-अम्ल।
आज हमें भी गिरिधरनागरजी की कृपा से गोवर्धन पूजन और अन्नकूट की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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