गोवर्धन पूजा का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। इसे अन्नकूट पूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो इंद्र देव पर भगवान कृष्ण की जीत का प्रतीक है। इस साल गोवर्धन पूजा २ नवंबर को यानी आज मनाई जा रही है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है जिसमें श्री गिरिधर गोपालजी को ५६ प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यह पर्व दीपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है। कूट का अर्थ होता है पर्वत। अन्नकूट का अर्थ है अन्न का पर्वत।
बालकृष्णकी अष्टयाम सेवाका विधान है, इसके अन्तर्गत उन्हें आठ बार भोग भी लगाया जाता है। भगवान् श्रीकृष्णको ५६ प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे ५६ भोग कहा जाता है। बालगोपालको लगाये जानेवाले इस भोगकी बड़ी महिमा है। भगवान् श्रीकृष्णको अर्पित किये जानेवाले ५६ भोगके सम्बन्धमें कई रोचक कथाएँ हैं।
१. एक कथा के अनुसार माता यशोदा बालकृष्णको एक दिनमें अष्ट प्रहर भोजन कराती थीं। एक बार जब इन्द्रके प्रकोपसे सारे व्रजको बचानेके लिये भगवान् श्रीकृष्णने गोवर्धन पर्वतको उठाया था, तब लगातार ७ दिन तक भगवान्ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया।
८वें दिन जब भगवान्ने देखा कि अब इन्द्रकी वर्षा बन्द हो गयी है, तब सभी व्रजवासियोंको गोवर्धन पर्वतसे बाहर निकल जानेको कहा, तब दिनमें ८ प्रहर भोजन करनेवाले बालकृष्णको लगातार ७ दिनतक भूखा रहना उनके व्रजवासियों और मैया यशोदाके लिये बड़ा कष्टप्रद हुआ। तब भगवान्के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धाभक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियोंसहित यशोदा माताने ७ दिन और अष्ट प्रहरके हिसाबसे ७०८-५६ व्यंजनोंका भोग बालगोपालको लगाया।
२. एक अन्य मान्यताके अनुसार ऐसा कहा जाता है कि गोलोकमें भगवान् श्रीकृष्ण राधिकाजीके साथ एक दिव्य कमलपर विराजते हैं। उस कमलकी ३ परतें होती हैं। इसके तहत प्रथम परतमें ८, दूसरीमें १६ और तीसरीमें ३२ पंखुड़ियाँ होती हैं। इस प्रत्येक पंखुड़ीपर एक प्रमुख सखी और मध्यमें भगवान् विराजते हैं, इस तरह कुल पंखुड़ियोंकी संख्या ५६ होती हैं। यहाँ ५६ संख्याका यही अर्थ है। अतः ५६ भोगसे भगवान् श्रीकृष्ण अपनी सखियोंसंग तृप्त होते हैं।
३. एक अन्य श्रीमद्भागवत कथाके अनुसार गोपिकाओंने श्रीकृष्णको पतिरूपमें पानेके लिये १ माह तक यमुनामें भोरमें ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायिनी माँकी पूजा-अर्चना की, ताकि उनकी यह मनोकामना पूर्ण हो। तब श्रीकृष्णने उनकी मनोकामना- पूर्तिकी सहमति दे दी। तब व्रत-समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होनेके उपलक्ष्यमें ही उद्यापनस्वरूप गोपिकाओंने ५६ भोगका आयोजन करके भगवान् श्रीकृष्णको भेंट किया।
छप्पन भोग (भगवान् को चढ़ाये जानेवाले व्यंजनोंके नाम) हिन्दू धर्म में भगवान् को छप्पन भोगका प्रसाद चढ़ाने की बड़ी महिमा है। भगवान्को लगाये जानेवाले भोगके लिये ५६ प्रकारके व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है।
छप्पन भोग में परिगणित व्यंजनोंके नाम इस प्रकार हैं-
१-भक्त (भात), २-सूप (दाल), ३-प्रलेह (चटनी), ४-सदिका (कढ़ी), ५-दधिशाकजा (दही- शाककी कढ़ी), ६-शिखरिणी (सिखरन), ७-अवलेह (लपसी), ८-बालका (बाटी), ९-इक्षु खेरिमी (मुरब्बा), १०-त्रिकोण (शर्करायुक्त), ११-बटक (बड़ा), १२- मधुशीर्षक (मठरी), १३-फेणिका (फेनी), १४-परिष्टश्च (पूरी), १५-शतपत्र (खाजा), १६-सधिद्रक (घेवर), १७-चक्राम (मालपूआ), १८-चिल्डिका (चिल्ला), १९-सुधाकुंडलिका (जलेबी), २०-घृतपूर (मेसू), २१- वायुपूर (रसगुल्ला), २२-चन्द्रकला (पगी हुई), २३- दधि (दहीरायता), २४-स्थूली (थूली), २५-कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), २६-खंड मंडल (खुरमा), २७-गोधूम (गेहूँका दलिया), २८-परिखा, २९-सुफलाढ्या (सौंफयुक्त), ३०-दधिरूप (बिलसारू), ३१-मोदक (लड्डू), ३२-शाक (साग), ३३-सौधान (अधानौ अचार), ३४-मंडका (मोठ), ३५-पायस (खीर), ३६ दधि (दही), ३७-गोघृत (गायका घी), ३८- हैयंगवीनम (मक्खन), ३९-मंडूरी (मलाई), ४०-कूपिका (रबड़ी), ४१-पर्पट (पापड़), ४२-शक्तिका (सीरा), ४३ लसिका (लस्सी), ४४-सुवत, ४५-संधाय (मोहन), ४६-सुफला (सुपारी), ४७-सिता (इलायची), ४८- फल, ४९-ताम्बूल, ५०-मोहनभोग, ५१-लवण, ५२- कषाय, ५३-मधुर, ५४-तिक्त, ५५-कटु, ५६-अम्ल।
आज हमें भी गिरिधरनागरजी की कृपा से गोवर्धन पूजन और अन्नकूट की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ।