#शास्त्रोक्त_कलश_स्थापन_शुभ_मुहूर्त :----
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#घटस्थापना_यवरोपण_दीप_प्रज्ज्वलित_दीपपूजन_मुहूर्त ( स्थान -पठानकोट संभाग )
#शुभ_मुहूर्त :--प्रात: 06:27 से 10:27 पर्यन्त ( सूर्योदयान्तर 10 घडी तक अतिश्रेष्ठ ) एवं मध्याह्न
#अभिजित_शुभ_मुहूर्त_समय :--- #मध्याह्ण (दोपहर):-- 11:52':30" amसे 12:40':30" pm तक
(#सभी_दोषों_को_दूर_करने_वाला_सर्वश्रेष्ठ_शुभमुहूर्त)
( प्रातः काल सूर्योदयान्तर चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग नहीं होने से कोई शास्त्रोक्त प्रतिबन्ध नहीं है )
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#वैधृति_योग_निषेधश्चउक्तकालानुरोधेन_स्थिति_सम्भवे_पालनीय:।।
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शारदीय एवं वासन्तिक नवरात्रों में मात्र शुद्ध शास्त्रीय पद्धति का प्रयोग किया जाना चाहिए। चौघड़िया शुद्ध मुहूर्त पद्धति नहीं है इसलिए मुहूर्त में चौघड़िया का उपयोग से परहेज़ करना चाहिए इसका उपयोग अत्यावश्यक परिस्थितियों में करना चाहिए।
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आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को शारदीय नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है। नवरात्रि में घटस्थापना यानि कलश स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि घटस्थापना शुभ मुहूर्त में सम्पन्न हो, तो देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को मनचाहा फल देती हैं।
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लेकिन वहीँ यदि यह पूजा पूरे विधि-विधान और शुभ मुहूर्त में ना हो, तो 9 दिनों तक की जानें वाली यह पूजा सार्थक नहीं मानी जाती और इससे शुभ फलों की प्राप्ति भी नहीं होती। इसलिए ये बेहद ज़रूरी है कि आप नवरात्रि के पहले दिन से जुड़ी सारी जानकरी रखें, ताकि माता की पूजा में कोई कमी न रह जाये और आप छोटी-छोटी ग़लतियाँ जो अक्सर कर देते हैं वो ना करें। चलिए बिना देर किए आपको बताते हैं, नवरात्रि के पहले दिन से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी जानकरी
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नवरात्रि के दौरान मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है। माता के इन नौ रूपों को ‘नवदुर्गा’ के नाम से जाना जाता है।
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सबसे पहले जानते हैं कि नवरात्रि में कौन से दिन माता के किस रूप की पूजा करनी चाहिए:---
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नवरात्रि की प्रतिपदा को – मां शैलपुत्री
नवरात्रि की द्वितीया को – मां ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि की तृतीया को – मां चन्द्रघण्टा
नवरात्रि की चतुर्थी को – मां कूष्मांडा
नवरात्रि की पाचवी को – मां स्कंदमाता
नवरात्रि की षष्ठी को – मां कात्यायनी
नवरात्रि की सप्तमी को – मां कालरात्रि
नवरात्रि का अष्टमी को – मां महागौरी
नवरात्रि का नवमी को। – मां सिद्धिदात्री
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नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। पुराणों के अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है, इसलिए लोग माँ दुर्गा की पूजा से पहले कलश स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं।
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#घट_स्थापना_की_आवश्यक_सामग्री:------
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घटस्थापना के लिए सबसे पहले आपको कुछ आवश्यक सामग्रियों को एकत्रित करने की ज़रूरत है। इसके लिए आपको चाहिए:------
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चौड़े मुँह वाला मिट्टी का कलश (सोने, चांदी या तांबे का कलश भी आप ले सकते हैं)
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किसी पवित्र स्थान की मिट्टी
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सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) सम्भव न हो तो केवल जौ भी ले सकते हैं।
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जल (संभव हो तो गंगाजल)
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कलावा/मौली
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सुपारी
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आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
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अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
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छिलके/जटा वाला नारियल
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लाल कपड़ा
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फूल और फूलों की माला
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पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते (सभी न मिल पाए तो कोई भी 2 प्रकार के पत्ते ले सकते हैं)
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कलश को ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का)
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फल और मिठाई
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#घटस्थापना_की_सम्पूर्ण_विधि:-----
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कलश स्थापना की विधि शुरू करने से पहले सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहने।
कलश स्थापना से पहले एक साफ़ स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता रानी की प्रतिमा स्थापित करें।
सबसे पहले किसी बर्तन में या किसी साफ़ स्थान पर मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालें। ध्यान रहे कि बर्तन के बीच में कलश रखने की जगह हो।
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अब कलश को बीच में रखकर मौली से बांध दें और उसपर स्वास्तिक बनाएँ।
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कलश पर कुमकुम से तिलक करें और उसमें गंगाजल भर दें।
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इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, पंच रत्न, सिक्का और पांचों प्रकार के पत्ते डालें।
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पत्तों के इस तरह ऱखें कि वह थोड़ा बाहर की ओर दिखाई दें। इसके बाद ढक्कन लगा दें। ढक्कन को अक्षत से भर दें और उसपर अब लाल रंग के कपड़े में नारियल को लपेटकर उसे रक्षासूत्र से बाँधकर रख दें।
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ध्यान रखें:---- कि नारियल का मुंह आपकी तरफ होना चाहिए। (जानकारी के लिए बता दें कि नारियल का मुंह वह होता है, जहां से वह पेड़ से जुड़ा होता है।)
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देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए कलश की पूजा करें।
कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला, इत्र और नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।
जौ में नित्य रूप से पानी डालते रहें, एक दो दिनों के बाद ही जौ के पौधे बड़े होते आपको दिखने लगेंगे।
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नोट – आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार और भी विधिवत् तरीके से स्वयं या किसी पण्डित द्वारा पूजा करा सकते हैं।
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प्रात: व्रतसंकल्प:--
--------------------------------------------------------------------ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु: अध्यक्ष ब्रह्मणो वयस:परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे काल-युक्त नाम संवत्सरे आश्विन शुक्ल प्रतिपदि बृहस्पतिवासरे प्रारम्भमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक श्रुति स्मृत्युक्त पुण्यसमवेत सर्वसुखलब्धये संयमादि दृढ़ पालयन् अमुक गोत्र:अमुकनामाहं भगवत्या:दुर्गाया: प्रसादाय व्रतं विधास्ये ।।
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नवरात्रों के नौ दिनों में उपवासादि व्रत रखने वाला व्रती इस संकल्प को नवरात्रा के प्रथम दिवस पर ही प्रात: काल करे,अन्य तिथियों में इसे करने की आवश्यकता नहीं है। जो केवल अन्तिम एक,दो,तीन नवरात्रों में व्रत रखते हैं, उन्हें " एतासु नव-तिथिषु की जगह यथोचित " सप्तम्यां,अष्टम्यां,नवम्यां तिथौ " आदि बदलकर तत्तत्- तिथियों में ही यह संकल्प पढ़ना चाहिए।।
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दैनिक षोडशोपचार पूजासंकल्प:-------
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ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु: अध्यक्ष ब्रह्मणो वयस:परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे कालयुक्तनामसम्वत्सरे आश्विन शुक्ल प्रतिपदि बृहस्पतिवासरे प्रारम्भमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक श्रुति स्मृत्युक्त पुण्यसमवेत सर्वसुखलब्धये संयमादि दृढ़ पालयन् अमुक गोत्र:अमुकनामाहं भगवत्या:दुर्गाया:षोडशोपचार पूजन विधास्ये ।।
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