Friday, September 27, 2024

तिरुपति बालाजी

 🌹तिरुपति बालाजी के प्रसाद लड्डू की कथा और इतिहास जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, खुद माता लक्ष्मी ने बनाया था लड्डू, क्यों प्रसिद्ध है तिरुपति बालाजी मंदिर का लड्डू?🌹


⭕आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति के पास तिरूमाला पहाड़ी पर स्थित भगवान वेंकटेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां भगवान विष्णु की पूजा होती है। इनकी ख्याति तिरुपति बालाजी के रूप में हैं। भगवान श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती (लक्ष्मी माता) के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। वैष्णव परम्पराओं के अनुसार यह मन्दिर 108 दिव्य देसमों का एक अंग है। विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। आज भी यह कुंड विद्यमान है जिसके जल से ही मंदिर के कार्य सम्पन्न होते हैं।

 


⚜️क्यों प्रसिद्ध है तिरुपति बालाजी मंदिर?

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तिरुपति बालाजी का मंदिर 5 खास बातों के लिए जाना जाता है। पहला यहां बाल दिए जाते हैं, जिसे केशदान कहते हैं। दूसरा विश्‍व का सबसे प्रसिद्ध और अमीर मंदिर जहां पर करोड़ों रुपए का चढ़ावा आता है। तीसरा प्रसाद के रूप में दिया जाने वाला लड्डू जो कि सदियों से एक जैसे ही स्वाद के लिए विश्‍व प्रसिद्ध है। चौथी मान्यता है कि यहां आने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर में बालाजी की जीवंत प्रतिमा एक विशेष पत्थर से बनी हुई है। प्रतिमा को पसीना आता है। उनकी प्रतिमा पर पसीने की बूंदें स्पष्‍ट रूप से देखी जा सकती हैं। बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है। इसलिए मंदिर में तापमान कम रखा जाता है। कहते हैं कि भगवान वेंकेटेश्वर की प्रतिमा पर कान लगाकर सुनें तो भीतर से समुद्र की लहरों जैसी ध्वनि सुनाई देती है। यह आवाज कैसे और किसकी आती है यह रहस्य अभी तक बरकरार है।

 

⚜️लड्डू की सामग्री है?

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तिरुपति बालाजी के दर्शन क्रम में अंत में लड़्डू का प्रसाद मिलता है। •'पनयारम' यानी लड्डू मंदिर के मिलते हैं, जो यहां पर प्रभु के प्रसाद रूप में भी चढ़ाए जाते हैं। इन्हें लेने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं। इसके अलावा अन्न प्रसादम की व्यवस्था भी है जिसके मीठी पोंगल, दही-चावल, रसम आदि भोजन प्रसाद मिलता है। लड़्डू पंचमेवा से बनता है जो कि पंचभूतों और पांच इंद्रियों का प्रतीक है। इसमें बेसन, घी, चीनी, काजू, किशमिश आदि सामग्री मिलाकर यह लड्डू बनाते हैं।

 

⚜️लड्डू की क्या है विशेषता:-

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यह लड्डू प्रसाद सदियों से वितरित किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसकी सामग्री और स्वाद में अभी तक कोई बदलाव नहीं देखा गया। इसे बनाने की प्रक्रिया, सामग्री और अद्वितीय स्वाद के कारण ही इसकी विश्‍व में एक अलग पहचान बनी थी। इस पहचान के कारण तिरुपति के लड्डू को 2009 में Geographical Indication - GI टैग भी मिला था। इसका अर्थ होता है कि तिरुपति के लड्डू को एक विशिष्ट पहचान प्राप्त है और इसे केवल तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में ही तैयार किया जा सकता है। यह टैग इस बात को तय करता है कि तिरुपति लड्डू की विशिष्टता और गुणवत्ता संरक्षित रहे, लेकिन कुछ माह से इसमें बदलाव होने के कारण वर्तमान में यह विवाद और चर्चा में है।

 

⚜️लड्डू से जुड़ी अन्य मान्यता:-

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ऐसी मान्यता है कि यहां का लड्डू प्रसाद का सेवन करने का अर्थ है कि भगवान तिरुपति आपको आशीर्वाद देंगे और लड्डू खाने से अब आपकी सभी समस्याओं का अंत होगा। इसे ग्रहण करने के पीछे यह विश्वास जुड़ा हुआ है कि भगवान तिरुपति बालाजी के प्रसाद के रूप में इसे प्राप्त करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होगी। 


⚜️लड्डू से जुड़ी 3 कथाएं:-

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1. पहली कथा के अनुसार  नंद बाबा और यशोदा मैया श्रीहरि विष्णु की पूजा करते थे। एक दिन उन्होंने लड्डू बनाए और विष्णुजी को भोग लगाकर आंखे बंद की। जब आखें खोली तो नटखट बालकृष्ण वो लड्डू बड़े प्रेम से खा रहे थे। माता यशोदा जी ने दोबारा लड्डू बनाए और नंद बाबा ने फिर से भोग लगाया, लेकिन इस बार भी बालकृष्ण लड्डू खा गए। इस तरह बार-बार ऐसा हुआ तब नंद बाबा को क्रोध आ गया और बालकृष्‍ण को डांटते हुए कहा कि कान्हा, थोड़ा ठहर जा, भोग लगा लेने दे, फिर तू खा लेना। 

 

* इस बार बालकृष्‍ण ने तोतली आवाज में कहा कि, बाबा, आप ही तो बार-बार मुझे भोग लगाकर बुला रहे हो। नंद बाबा को कुछ समझ नहीं आया तो बालकृष्ण ने नंद बाबा और यशोदा माता को अपने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए और कहा कि आपने मेरे लिए बहुत स्वादिष्ट लड्डू बनाए हैं। आज से ये लड्डू का भोग भी मेरे लिए माखन की तरह प्रिय होगा। तभी से बालकृष्ण को माखन-मिश्री और चतुर्भुज श्रीकृष्ण को लड्डुओं का भोग लगाया जाने लगा। 

 

2. दूसरी कथा के अनुसार भगवान विष्णु वेंकटेश श्रीनिवास के रूप में अपनी पत्नी पद्मा और भार्गवी के साथ यहां रहते थे। भगवान वेंकटेश्वर और देवी लक्ष्मी के बीच एक बार यह विवाद हुआ कि किसे अधिक भोग अर्पित किया जाता है। भगवान वेंकटेश्वर का मानना था कि उन्हें सबसे अधिक भोग अर्पित करते हैं जबकि लक्ष्मी माता ने कहा कि आपको लगने वाले भोग में मेरा भी भाग है क्योंकि वह धन की देवी है और मेरे ही धन से भोग लगता है।

 

* इस विवाद के हल के लिए दोनों ने एक भक्त की परीक्षा ली। पहले वह अपने एक धनी भक्त के घर गए, जिसने विभिन्न पकवानों को बनाकर उन्हें भोग लगाया, लेकिन माता लक्ष्मी और भगवान को तृप्ति नहीं हुई। इसके पश्तात् वह अपने एक गरीब भक्त के यहां गए। वहां उस भक्त ने अपने घर बचे हुए आटे, कुछ फल-मेवे को मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाया। इससे तुरंत भगवान बालाजी और माता तृप्त हो गए। इसके बाद से ही उन्होंने लड्डू को अपने प्रिय भोग की मान्यता दी।

 

3. एक तीसारी कथानुसार तिरुमला की पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तब पुजारी इस उलझन में थे कि प्रभु को प्रसाद के रूप में क्या अर्पित करें? तभी एक बूढ़ी मां हाथ में लड्डू का थाल लेकर उधर आईं और उन्होंने प्रथम नैवेद्य चढ़ाने की मांग की। पुजारियों ने इसे प्रभु की आज्ञा समझकर अर्पित किया और जब उन्होंने इसे खाया तो इसके दिव्य स्वाद से वह चकित रह गए। फिर जब उन्होंने बूढ़ी माई से इस स्वाद रहस्य के बारे में कुछ पूछना चाहा तो देखा कि वो गायब हो गई थीं। दूर तक वह कहीं नजर नहीं आई। तब यह माना जाने लगा कि स्वयं देवी लक्ष्मी ने इस प्रसाद को अर्पित करने का संकेत दिया है। एक किवदंती यह भी है कि भगवान बालाजी ने खुद ही पुजारियों को लड्डू बनाने की विधि सिखाई थी।

 

⚜️लड्डू बनाने का इतिहास:- 

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यदि हम कथाओं को छोड़ दें तो तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम का इतिहास बहुत प्राचीन है। जब से मंदिर अस्तित्व में है तब से लड्डू प्रसाद तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर की पारंपरिक रीतियों और भक्ति-पूजा से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि तिरुपति के लड्डू प्रसादम की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई. थी। हालांकि, लड्डू को कब विशेष प्रसाद के रूप में अपनाया गया इस बारे में कोई स्पष्ट डॉक्यूमेंटेशन नहीं मिलता है।


Thursday, September 26, 2024

जनवासा

गांव में विवाह होता था तो इस सीजन में होता था क्योंकि गेहूं, गन्ना कटने के बाद खेत खाली हो जाते थे और बारात को टिकाने (प्रबंध) के लिए अच्छी खुली जगह मिल जाती थी।

  जहां बारात रुकती थी उसे जनवास कहते थे। जनवास का प्रबंध लड़के वाले ही करते थे। जनवास में जो टेंट लगता था उसका पैसा लड़के वाले देते थे। जनरेटर इत्यादि भी उनके तरफ़ का ही होता था।

  लड़की वाले चारपाई, नाच के लिए तख्त की व्यवस्था कर देते थे।



  बराती के स्वागत, नाश्ता कराने, भोजन करवाने के लिए सारा गांव एक पैर पर खड़ा हो जाता था। 

जितने लोग घराती के मदद के लिए आते थे वो सारे बराती को नाश्ता भोजन करवाते जरूर थे लेकिन बेटी के विवाह में स्वयं भोजन नही करते थे।

 बेटी के विवाह में जो लोग नेवता करने वाले रिश्तेदार आते थे वो पैसा, बर्तन,मिठाई, राशन, साड़ी, सिकौहिली, बेना इत्यादि लेकर आते थे। ये सब कुछ बेटी को दिया जाता था और बिटिया के घरवालों की इसी बहाने ज़िम्मेदारी कम हो जाती थी।

   जब तक बारात विदा नही हो जाती थी तब तक सारे गांव वाले मदद के लिए तैनात रहते थे कहते थे कि बेटियां साझी होती हैं। बेटी के पिता की इज्जत सारे गांव वाले अपनी इज्जत मानते थे।

   हर घर से बिस्तर, बर्तन, जरूरत का सारा सामान आ जाता था। गांव वाले ही मिलकर भोजन बना लेते थे। गांव के लड़के आटा गूंथते, लड़कियां पूड़ी बेलती, सारे नवयुवक भोजन परोसने का काम करते यूं मिल जुलकर विवाह हंसी खुशी निपट जाता था।

   तब हॉल नही बुक होते थे। स्कूल, बगीचे, खेत में बारात रुकती थी।

  सारे बाराती नाचते गाते दुआर चार के लिए जाते थे तो गांव के सभी लोग उनके अगवानी के लिए आकर खड़े हो जाते थे। 

 गांव के बुर्जुग कहते थे कि फलाने के द्वार पूजा होने जा रही है जाकर दस मिनट के लिए खड़े हो जाओ।

   किसी के घर से यदि मतभेद भी हो तो भी बिटिया के विदा होते समय जरूर द्वार पर आ जाता था।

कितना अच्छा था पहले का समय कम खर्च में बड़ी अच्छी ढंग से बेटी का विवाह हो जाता था। गांव के लोग बेटी के पिता की ज़िम्मेदारी बांट लेते थे।

 

Saturday, September 7, 2024

परिवर्तन

 कोडक कंपनी याद है? 1997 में, कोडक के पास लगभग 160,000 कर्मचारी थे।

और दुनिया की लगभग 85% फोटोग्राफी कोडक कैमरों से की जाती थी। पिछले कुछ सालों में मोबाइल कैमरों के उदय के साथ, कोडक कैमरा कंपनी मार्केट से बाहर हो गई है। यहाँ तक कि कोडक पूरी तरह से दिवालिया हो गई और उसके सभी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया।
उसी समय कई और मशहूर कंपनियों को अपने आप को रोकना पड़ा। जैसे
HMT (घड़ी)
BAJAJ (स्कूटर)
DYANORA (TV)
MURPHY (रेडियो)
NOKIA (मोबाइल)
RAJDOOT (बाइक)
AMBASSADOR (कार)
उपरोक्त कंपनियों में से किसी की भी गुणवत्ता खराब नहीं थी। फिर भी ये कंपनियाँ बाहर क्यों हो गईं? क्योंकि वे समय के साथ खुद को बदल नहीं पाईं।
वर्तमान क्षण में खड़े होकर आप शायद यह भी न सोचें कि अगले 10 सालों में दुनिया कितनी बदल सकती है! और आज की 70%-90% नौकरियाँ अगले 10 सालों में पूरी तरह से खत्म हो जाएँगी। हम धीरे-धीरे "चौथी औद्योगिक क्रांति" के दौर में प्रवेश कर रहे हैं।
आज की मशहूर कंपनियों को देखिए-
UBER सिर्फ़ एक सॉफ्टवेयर का नाम है। नहीं, उनके पास अपनी कोई कार नहीं है। फिर भी आज दुनिया की सबसे बड़ी टैक्सी-फ़ेयर कंपनी UBER है।
Airbnb आज दुनिया की सबसे बड़ी होटल कंपनी है। लेकिन मज़ेदार बात यह है कि दुनिया में उनके पास एक भी होटल नहीं है।
इसी तरह, Paytm, Ola Cab, Oyo rooms आदि जैसी अनगिनत कंपनियों के उदाहरण दिए जा सकते हैं।
आज अमेरिका में नए वकीलों के लिए कोई काम नहीं है, क्योंकि IBM Watson नामक एक कानूनी सॉफ्टवेयर किसी भी नए वकील से कहीं बेहतर वकालत कर सकता है। इस प्रकार अगले 10 सालों में लगभग 90% अमेरिकियों के पास कोई नौकरी नहीं होगी। शेष 10% बच जाएँगे। ये 10% विशेषज्ञ होंगे।
नए डॉक्टर भी काम पर जाने के लिए बैठे हैं। Watson सॉफ्टवेयर कैंसर और दूसरी बीमारियों का पता इंसानों से 4 गुना ज़्यादा सटीकता से लगा सकता है। 2030 तक कंप्यूटर इंटेलिजेंस मानव इंटेलिजेंस से आगे निकल जाएगा।
अगले 20 सालों में आज की 90% कारें सड़कों पर नहीं दिखेंगी। बची हुई कारें या तो बिजली से चलेंगी या हाइब्रिड कारें होंगी। सड़कें धीरे-धीरे खाली हो जाएंगी। गैसोलीन की खपत कम हो जाएगी और तेल उत्पादक अरब देश धीरे-धीरे दिवालिया हो जाएंगे।
अगर आपको कार चाहिए तो आपको उबर जैसे किसी सॉफ्टवेयर से कार मांगनी होगी। और जैसे ही आप कार मांगेंगे, आपके दरवाजे के सामने एक पूरी तरह से ड्राइवरलेस कार आकर खड़ी हो जाएगी। अगर आप एक ही कार में कई लोगों के साथ यात्रा करते हैं, तो प्रति व्यक्ति कार का किराया बाइक से भी कम होगा।
बिना ड्राइवर के गाड़ी चलाने से दुर्घटनाओं की संख्या 99% कम हो जाएगी। और इसीलिए कार बीमा बंद हो जाएगा और कार बीमा कंपनियाँ भी बाहर हो जायेंगी।
पृथ्वी पर ड्राइविंग जैसी चीजें अब नहीं बचेंगी। जब 90% वाहन सड़क से गायब हो जाएँगे, तो ट्रैफ़िक पुलिस और पार्किंग कर्मचारियों की ज़रूरत नहीं होगी।
जरा सोचिए, 10 साल पहले भी गली-मोहल्लों में STD बूथ हुआ करते थे। देश में मोबाइल क्रांति के आने के बाद ये सारे STD बूथ बंद होने को मजबूर हो गए। जो बच गए वो मोबाइल रिचार्ज की दुकानें बन गए। फिर मोबाइल रिचार्ज में ऑनलाइन क्रांति आई। लोग घर बैठे ऑनलाइन ही अपने मोबाइल रिचार्ज करने लगे। फिर इन रिचार्ज की दुकानों को बदलना पड़ा। अब ये सिर्फ मोबाइल फोन खरीदने-बेचने और रिपेयर की दुकानें रह गई हैं। लेकिन ये भी बहुत जल्द बदल जाएगा। Amazon, Flipkart से सीधे मोबाइल फोन की बिक्री बढ़ रही है।
पैसे की परिभाषा भी बदल रही है। कभी कैश हुआ करता था लेकिन आज के दौर में ये "प्लास्टिक मनी" बन गया है। क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड का दौर कुछ दिन पहले की बात है। अब वो भी बदल रहा है और मोबाइल वॉलेट का दौर आ रहा है। पेटीएम का बढ़ता बाजार, मोबाइल मनी की एक क्लिक।
जो लोग उम्र के साथ नहीं बदल सकते, उम्र उन्हें धरती से हटा देती है। इसलिए जमाने के साथ बदलते रहें।
बढ़िया कंटेंट बनाते रहें, वक्त के साथ चलते रहें।
May be an image of aircraft
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Madan Mohan Malviya Journalist, Anil Gupta and 13K others